Wednesday, October 30, 2019

सखी छंद HINDI POETRY


सखी छंद  
मानव जाति के १४ मात्रिक छंद जो कि कुल ९ हैं 
जिसमें से आज से आने वाले अगले पोस्ट तक हमलोग  सखी  छंद का अभ्यास कर रचना करेंगे जो निम्नलिखित हैं :-
क) कुल मात्रा १४ ,चरणान्त २२२(मगण) (गुरु गुरु गुरु) या १२२(यगण) (लघु गुरु गुरु) अनिवार्य
ख) दो-दो चरण परस्पर समतुकांत।
ग) १४ वीं मात्रा पर यति
घ) सहूलियत के लिये आप निम्न मापनी ले सकते हैं:-
१२२२ १२२२
२१२२ २१२२
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सखी छंद
चरणान्त १२२
देश जब भी जागता है , देख दुश्मन भागता है ।
आँख आगे जो उठाता , मृत्यु अपनी ही बुलाता ।।

हर तरफ जय गान देखो , देश का सम्मान देखो ।
होश भी है जोश भी है , जंग का उदघोष भी है ।।

नीर संचय कर रहे हैं , भू सुधा से भर रहे हैं ।
पेड़ पौधे मुस्कुराए , हैं कृषक भी गुनगुनाये ।।

अब फसल हैं लहलहाती , खेत हरियाली सुहाती ।
हैं सड़क भी चमचमाती ,स्वच्छता शोभा बढ़ाती ।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर बांका बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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सखी छंद 14 मात्रिक
पदांत 222 मगण वाचिक भार , सम चरण तुकांत।
🌹
कहाँ जाऊँ बता दो ये जहाँ कोई मिले अपना ।
मुझे विश्वास इतना ही कभी पूरा सजे सपना।।
🌹
खिले थे फूल बगिया में, वहीं थे शूल उस पथ में।
गया हूँ भूल पुष्पों को, मगर है वो चुभन हिय में।।
🌹
सुनी है आज भी मैने, खनक पायल जहाँ टूटी।
खड़ा हूँ आज भी वैसे, जहाँ पर प्रीत थी छूटी।।
🌹
जमी है धूल दर्पण पे, छवि धूँधली नजर आती।
रहो थामें मुझे प्रियतम, तुम्हारी याद तड़पाती।।
🌹
मिलो खुल कर कभी हमसे, यही अविराज कहता है।
तुम्हारे साथ रहने से , हमेशा प्यार बढ़ता है।।
🌹
अरविन्द चास्टा
कपासन, चित्तौड़गढ़ ,राज.

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सखी छन्द(14मात्रिक)
चरणान्त: यगण(122) फिर यति
परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत


सुनो बात सखी कहूँ जो, गयी रात नहीं सकी सो।
सखा सोच समझ बनाना, नहीं प्रीत कहीं लगाना।

कि परदेश पिया हमारे, गए छोड़ बिना सहारे।
विरह अग्नि जलूँ मरूँ रे! सुनो पीड़ तुम्हें कहूँ रे।

मुझे युक्ति सखी बताओ, पिया संग मुझे मिलाओ।
प्रणय बंधन है पिया से,डरे है पगला जिया ये।

अरे भेज भतार पाती, लिखो जो मनवा सुहाती।
बड़ी दूर किया ठिकाना, नहीं और हृदय दुखाना।

करूँ निसदिन मैं प्रतीक्षा, मिलो आन अपार इच्छा।
सुनो साजन लौट आओ, नहीं और मुझे सताओ।

**

सखी छन्द(14मात्रिक)
चरणान्त: मगण(222) फिर यति
परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत


प्रेम मिलकर निभाएंगे, घर पिया का बसायेंगे।
सुरमई सांझ आयी है, प्रीत संदेश लायी है।

दुख बीते भुलायेंगे,साथ जीवन बिताएंगे।
रात दिन संग तेरा हो,हाथ में हाथ मेरा हो।

स्वप्न सुंदर सजायेंगे,हम नहीं अब सतायेंगे।
साथ मेरा नहीं छूटे,डोर प्रीतम नहीं टूटे।

राम जी हैं बने साक्षी,हम हुए प्रीत आकांक्षी।
मेहँदी हम रचाएंगे,नववधू रूप धारेंगे।

माँ पिता मिल विदा देंगे,धर्म अपना निभा देंगे।
हर सखी छूट जायेगी,याद सबकी रुलायेगी।

जितेंदर पाल सिंह

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सखी छ्न्द
14 मात्रा , चार चरण , दो दो या चारो चरण समतुकांत , अंत 222 या 122
यहां 122 लिया गया है

.......
लहराओ चलो तिरंगा ,चल लेकर ध्वज तुरंगा ।
पहले ये धर्म निभाओ,शहीद का मान बढ़ाओ ।
.....
चलो सजी लेकर थाली,दीपक जले स्नेह वाली।
तिलक सजे मस्तक रोली ,चली बहन की फिर टोली।
......
आज भाई दूज आया,मन में फिर उमंग छाया।
भाभी भी खुशी मनाए ,सखी जैसी ननद पाए ।
......
करूं स्नेह वन्दन भैया,माथ लगा चन्दन भैया।
दूज पर्व पावन प्यारा,इसे मनाए जग सारा।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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सखी छन्द 1222 1222 या 2122 1222 कहाँ जाऊँ बता मैया,कहाँ मेरा ठिकाना है। पराया धन मुझे कहते,विदा कर भूल जाना है। कहूँ कैसे तुझे माँ मैं,सताते हैं जलाते हैं। मिले लोभी मिले पापी,मुझे सारे रुलाते हैं। कभी कहते वहाँ जाओ,जहाँ से तू चली आई। भला कैसे चली जाऊँ,वहाँ फिर जिस गली आई। बनी है बोझ बेटी क्यों,जहाँ बेटा खजाना है। बना दस्तूर दुनिया का, हमें ये भी निभाना है।


रानी सोनी 'परी

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सखी छंद (14 मात्रा)
मापनी-1222 1222

कहाँ माँ को भुला पाते,हृदय से हम अभी साथी।
निवाला हाथ से खाते,अमिय पल थे कभी साथी।

सदा ही गीत हैं गाते, सुने थे जो सभी साथी।
सुखद अनमोल वे नाते,कि जीवित है तभी साथी।


बड़ी अनमोल थी लोरी,सुनाती थी हमेशा माँ।
मृदुल सम्बन्ध की डोरी,बनाती थी हमेशा माँ।
करे वो पीर की चोरी,हँसाती थी हमेशा माँ।
दिखा कर वह कभी छोरी,चिढ़ाती थी हमेशा माँ।

हृदय जो तोड़ते जाते,सदा दुख ही यहाँ पाते।
दुखी कर छोड़ते जाते,बददुआ ही यहाँ पाते।
सभी मुँह मोड़ते जाते,सजा प्रतिपल यहाँ पाते।
हृदय जो जोड़ते जाते,सफलता ही यहाँ पाते।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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सखी छंद- (14 मात्रिक छन्द)
चरणान्त- यगण ( लघु गुरू गुरू) 122

मत किसी का मन दुखाओ, प्रेम के बस गीत गाओ,

अब मिलन की छवि सजाओ, मीत बनकर पास आओ।।
तुम बुलाओ मैं रिझाऊँ, रूठ जाओ जब मनाऊँ,
बोलना मत दूर जाऊँ, पास जब तुमको बुलाऊँ।।

आग जीवन हो कि पानी, मृत्यु ने कब हार मानी,
बात क्यों करनी पुरानी, चल नई गढ़ दें कहानी।।

पुष्प हर्षित का खिलायें, द्वेष को हिय से मिटायें,
दीप चल ऐसा जलायें, इस धरा से तम भगायें।।

हम नदी के दो किनारे, एक दूजे के सहारे,
तुम रहो हर क्षण हमारे, हम रहें प्रतिपल तुम्हारे।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद - मऊ(उ0प्र0)भारत
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 सखी छन्द
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14 मात्रिक छन्द

अंत 222 (गुरु गुरु गुरु)
या 122( लघु गुरु गुरु) अनिवार्य
कुल चार चरण
दो दो या चारो चरण समतुकांत
शीर्षक- सुदामा कृष्ण

द्वारिका महल आये सुदामा, पूछत मधुसूदन धामा,
नाम सुनत मोहन धाए,देखत मित्र गले लगाए।

आसन सिंहासन बिठायो, देख हरिहर शीश झुकायो,
नैनन अश्रु सों चरण धोए,हाल मित्र देख प्रभु रोये।

पैर निज वस्त्र से सुखाए,दोस्त पद नैन से लगाये,
पोछत कान्हा पग छाले,पैर से कंटक निकाले।

पोटली छुपाय सुदामा,देखत कृष्ण मित्र अभिरामा,
पोटली प्रभु खींच लीन्ही,भावज मधुर भेंट दीन्ही।

दो मुठ्ठी भर मोहन खाये,तीसरी मुठिका उठाये,
रोक रुक्मणि कर मुस्काई, भावज सबको भिजवाई।

रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

कज्जल छंद - HINDI POETRY


Explained By Mr. ABHAY KUMAR ANAND JI

कज्जल छंद

साहित्य अनुरागी ने आज मुझे सौभाग्य प्रदान किया है कि मैं अभय कुमार आनंद आपलोगों के समक्ष मानव जाति का दो छंद ,अभ्यास व रचना हेतु प्रस्तुत करूँ।
इसके पहले कि मैं वो दो छंद रखूँ ,कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मात्रिक छंद के बारे में याद दिलाना चाहूँगा ताकि रचनाधर्मिता सफल व स्पष्ट हो:-

१. लौकिक छंद के मुख्यतः दो भाग हैं :-
क) मात्रिक व जाति

ख) वर्णिक व वृत्त

२. साधारणतः छंद के चार पद व चरण होते हैं।

३. जिस छंद के चारों चरण में एक समान मात्रा हो परंतु वर्ण क्रम एक सा न हो ,वही मात्रिक छंद है ।

जैसे :-
क) पुरन भरत प्रीति मैं गाई वर्ण ११, मात्रा १६
ख) मति अनुरूप अनूप सुहाई वर्ण १२, मात्रा १६
इनमें वर्णों का क्रम और संख्या एक समान नहीं पर मात्राएं १६, १६ दोनों पद में एक समान है इसलिए यह मात्रिक छंद है।

आज के विषय पर आता हूँ । मानव जाति के १४ मात्रिक छंद जो कि कुल ९ हैं जिसमें से आज से आने वाले अगले पोस्ट तक हमलोग १ छंद का अभ्यास कर रचना करेंगे जो निम्नलिखित हैं :-
१. कज्जल छंद
क) कुल मात्रा १४ ,चरणान्त २१ ( गुरु, लघु) अनिवार्य
ख) चारों चरण समतुकांत या दो-दो चरण परस्पर समतुकांत।
ग) १४ वीं मात्रा पर यति

घ) सहूलियत के लिये आप निम्न मापनी ले सकते हैं :-
२२२१ २२२१
११२२१ ११२२१
२११२१ २११२१
११११२१ ११११२१

कज्जल छंद
क) कुल मात्रा १४ ,चरणान्त २१ ( गुरु लघु) अनिवार्य
ख) चारों चरण समतुकांत या दो-दो चरण परस्पर समतुकांत।
ग) १४ वीं मात्रा पर यति

कैसे - कैसे कर्म - कांड ,
परोसते पंडित प्रकांड ।
मिले निर्वाण मृतक मान ,
पकड़ पूँछ कर गाय दान ।।

कुरीति को जड़ से निकाल ,
यह प्रथा एक महाजाल ।
रावण भाँति मुख विकराल ,
जनता का है बुरा हाल।।

लोक- लाज में भोज-भात ,
जीते जी कोई न साथ ।
है समाज की खास बात ,
चोर - चोर मिल बाँट खात ।।

असहनीय हुआ यह सोच ,
सर पर बोझिल देख बोझ ।
घातक रीति देती मार ,
कब समाज होगा उदार ?

अभय कुमार आनंद
बांका बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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कज्जल छन्द
मानव जाति या वर्ण संज्ञा का 14 मात्रिक छन्द , 

चरणान्त गुरु लघु(21) अनिवार्य। परस्पर 2 या चारों चरण समतुकांत।

सुंदर रूप कजरा डार, मतवारी चली है नार।
छम छम छम करे झंकार, पायल पग किया शृंगार।

चंचल नैन मीठे बैन, लागत जाग बीती रैन।
उड़ता जाय आँचल हाय! सुघड़ रूप सबको भाय।

कुंडल केश कांधे डाल, लट लहराय सुंदर गाल।
मुखड़ा चाँद सा चमकाय, देखो वो खड़ी मुस्काय।

स्त्री तेरे कई हैं रूप, जननी मित्र सुता बहुरूप।
बनिता रूप से परिवार, भाई को बहन का प्यार।

सृष्टि का बनी प्रतिरूप, जीवन का तुम्हीं प्रारूप।
तुझ बिन सून सब संसार, तू ममतामयी आधार।

जितेंदर पाल सिंह

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कज्जल छंद
मानव जाति का छंद
14 मात्रिक ,अंत -21

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फैल रहा आतंक राज, हारता अब विकास काज।
उजाड़ रोज नए प्रभाव, बिखेरते हैं दुष्प्रभाव।

रक्षक आज हैं सब मौन, सही दिशा दिखाए कौन।
टूटा धीर सभी का आज, बिन बजाए बजे न साज।

दीनता से नम है आंख, डर से सूखती हर शाख।
ये है दहशतों का दौर, जहर सा है मुख का कौर।

बेच रहे जो आज जान, देखिए तो उनका मान ।
राष्ट्र कब इनसे निहाल, मानव हुआ अब बेहाल।

राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना

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सखी छ्न्द
14 मात्रा , चार चरण , दो दो या चारो चरण समतुकांत , अंत 222 या 122
यहां 122 लिया गया है

.......
लहराओ चलो तिरंगा ,चल लेकर ध्वज तुरंगा ।
पहले ये धर्म निभाओ,शहीद का मान बढ़ाओ ।
.....
चलो सजी लेकर थाली,दीपक जले स्नेह वाली।
तिलक सजे मस्तक रोली ,चली बहन की फिर टोली।
......
आज भाई दूज आया,मन में फिर उमंग छाया।
भाभी भी खुशी मनाए ,सखी जैसी ननद पाए ।
......
करूं स्नेह वन्दन भैया,माथ लगा चन्दन भैया।
दूज पर्व पावन प्यारा,इसे मनाए जग सारा।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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कज्जल छंद (14 मात्रिक छंद)
चरणान्त - गुरू लघु (21)


नेता हो रहे धनवान,जनता दे रही बलिदान,
दिल्ली है कि खेले खेल,सबके सब हुए अनमेल।।

निसदिन है बढ़े अतिचार,मानवता दिखे लाचार,
है चहुँओर हाहाकार,बहरी है बनी सरकार ।।

झूठे तुम गिनाकर काम,जग में हो बढ़ाते नाम,
इमली को बताकर आम,उनके हो लगाते दाम।।

भ्रष्टाचार की हर पोल,हल्ला बोलकर दो खोल,
हम तुम जब रहेंगे साथ,दे देंगे सभी को मात।।

निर्बल का न हो उपहास,सड़कों से मिटे संत्रास,
ऐसा तुम करो कुछ काज, हो सुन्दर सुशोभित राज।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद - मऊ(उ0प्र0)भारत
दि0 30/10/2019

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कज्जल छंद
वियष - जीवन के रंग


मन की बात कहता कौन, फिर भी देख कोई मौन ,
कोई कब यहाँ दे राज, जीवन के यहाँ ये काज ।

कब चुप है बडे़ से लोग , करते रोज माया भोग ,
कहते बात देखो गोल , देते है ज़हर मन घोल ।

अब माँ बाप से दे तोड़, जीवन कौन देता जोड़,
जिनके बाल करते नाश , चलती अब उसी की साँस ।

करते है गलत सारे कर्म , बोले बात हरदम धर्म ,
मन में अब न सेवा जाग, सारा जग यहाँ है दाग ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर


Tuesday, October 22, 2019

चण्डिका छन्द - Hindi poetry


चण्डिका छन्द 



चण्डिका छन्द

भागवत जाति या वर्ण संज्ञा के छंद का अध्ययन करेंगे। 
इस जाति के छंदों के 377 भेद हो सकते हैं और ये 13 मात्रिक छन्द हैं। 
वर्णन निम्नलिखित है:---



इसके चरणान्त में रगण(212) अनिवार्य है। 13 मात्रिक ।
परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत। 

इसका दूसरा नाम धरणी भी है।

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चण्डिका छंद 13 मात्रिक
पदांत 212
🌹

मन तो हर्षित चाहिए, प्यार सदा अपनाइये।
ध्यान लक्ष्य पर दीजिये, पार तरणि को कीजिये।।
🌹
बाधाओ को बॉधिए, नैराश्य नही साधिये।
अमिरस ऐसा पीजिये, नेह वृक्ष को सींचिये।।
🌹
जो मिले यहाँ राह में, प्रेमी रस की चाह में।
वही प्याला पिलाइये, मदमस्त यों बनाइये।।
🌹
धैर्य पथ सही साधना, लिए प्रेम की कामना।
गहरे मिलती मोत है, सच यही ओत प्रोत है।।
🌹
शब्द शब्द है छानना, रीत नीत है मानना।
साहित्य सदा सारथी, मात शारदा आरती।।
🌹
अरविन्द चास्टा
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चण्डिका छन्द
इसके चरणान्त में रगण(212) अनिवार्य है। 13 मात्रिक । परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत।


जब करे हानि मान की, शत्रु ललकार भारती।
शस्त्र उठा मैदान में, धर्म निज देश आन में।

चण्डिका ही कृपाण है, शस्त्र सबसे महान है।
ये रक्षक दीनहीन की, और पहचान वीर की।

धार तू रूप चण्डिका, मेट अन्याय कंटिका।
कष्टकारी समाज है, दुष्टता राजकाज है।

आपसी फूट भेद हैं, बोल सच्चे निषेध हैं।
लूट का कामकाज है, क्या यही रामराज्य है?

आत्महत्या किसान की, मौत होती जवान की।
जो रक्षक हों भक्षक यहां,न्याय ढूढ़ें बता कहाँ?

जितेंदर पाल सिंह।

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चण्डिका छंद
13 मात्रिक छंद
चरणान्त 212 (रगण) अनिवार्य।

परस्पर दो चरण या चारों चरण समतुकांत।

शैल पुत्री तू मात है , सर पे मेरे हाथ है ।
मात तू ब्रह्मचारिणी, हस्त पुष्प धारिणी ।।

हे अर्ध चंद्र धारिणी , माँ सर्व दुख निवारिणी ।
हर कष्ट सिंह वाहिनी , सूर्य लोके निवासिनी ।।

हो स्कन्द मातृ स्वरूपनी , तुम मात विद्यादायिनी ।
हो शुभ्र बस्त्र सुशोभिता , तुम ही माँ तुम ही पिता ।।

सर्व कल्याणकारिणी , हे चार भुजा धारिणी ।
महिषासुरा विनाशिनी , हे अभय वर प्रदायिनी ।।

बसा ले चरण के तले , भक्त हूँ लगा ले गले ।
माँ तू मुझको तार दे , अनुचर को बस प्यार दे ।।

शब्दार्थ
अनुचर = भक्त

अभय कुमार आनंद
बाँका बिहार व   लखनऊ उत्तरप्रदेश

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चण्डिका छ्न्द ...
13 मात्रा , अंत 212 अनिवार्य
.....

विद्या की तुम दायिनी, तुम हो मोक्ष प्रदायिनी।

काम क्रोध की नाशिनी, रूप चण्डिका धारिणी ।
.....
झूठ पाप से मैं डरूं, अपराध से सदा डरूं।
नित राह सत्य की चलूं , सेवा दुखियों की करूं।
.....
वन्दना करूं शारदे , संकटों से उबार दे।
भव से नैया तार दे, जीवन को नव सार दे।
......
मात भक्ति मुझमें भरो, पुलकित तन मन को करो ।
मात मुझ पर कृपा करो , ज्ञान प्रकाश हिये करो ।
.....


सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

उल्लाला छन्द - Hindi poetry.

Explained By Mr. Ashok kumar "ASHK" 

उल्लाला छन्द
साहित्य अनुरागी परिवार के समस्त मित्रों को सादर नमन,
साहित्य अनुरागी के अगले चरण की पोस्ट लेकर आपके बीच आज 
दि021/10/2019 ई0 को मैं अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी" अपने जन्मदिन के अवसर पर उपस्थित हूँ। इस चरण में हम भागवत जाति या वर्ण संज्ञा के छंद का अध्ययन करेंगे। इस जाति के छंदों के 377 भेद हो सकते हैं और ये 13 मात्रिक छन्द हैं। 

 वर्णन निम्नलिखित है:---
1. उल्लाला छन्द
इसमें चरणान्त का कोई निश्चित नियम नहीं है, 
यद्यपि 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य है। 
अंत में गुरु(2) या दो लघु(11) भी ले सकते हैं।


इसका दूसरा नाम चंद्रमणि भी है, इस दो दल वाले उल्लाला में 13वीं मात्रा लघु होगी।

 और 15+13 प्रति दल मात्राएं होती हैं।ये अर्धसम्मात्रिक छन्द है।

रचनाकार सिर्फ 13 मात्रिक उल्लाला पर ही प्रयास करें।

____ ______ _____ __

उल्लाला छंद पर स्वरचित उदाहरण--

**** **** **** **
कहने वाले सब कहे,हमको देखो चुप रहे,
हमने लाखों दुख सहे,तुमने भी क्या कुछ गहे।।

जग ने है ठोकर दिया,उह मैं सोचो कब किया,
पहले तो लांछन लिया,तब मैं ये जीवन जिया।।

तुम ढूंढोगे जब जहाँ,मिल जायेंगे हम वहाँ,
मत सोचो हैं अब कहाँ,कबसे देखो हम यहाँ।।

जितने आंसू हम पिये,तुम देखो पीकर प्रिये,
तुम हो यादें तज दिये,हम यादों में रम लिये।।

जब कोई दीपक जले,रहते देखा तम तले,
सपने जो नैनन पले,सब हैं आते दिन ढले।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद - मऊ(उ0प्र0) भारत
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उल्लाला छन्द
13 मात्रिक छन्द 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य।
दो या चारों चरण समतुकांत। चरणान्त दो लघु।


शीतल बहुत बहे पवन, बादल उड़े भरे गगन।
मन नव तरंग आगमन, हर्षित हुआ मिटी तपन।

भगवन मिले हमें शरण, आवागमन मिटे मरण।
धारे कई कई जनम, मन का नहीं छुटै भरम।

सद्गुरु मिले तजा अहम, तज काम मोह लोभ तम।
मानुष जनम यही करम, हरिनाम जाप सुख परम्।

सद्गुरु दिखाय हरि भवन, चरण करूँ सदा नमन।
मन ज्योति ध्यान की जलत, ठहराव आ गया चलत।

प्रभु आ गयी ऋतु मिलन, पूरन हुए सभी जतन।
हो दुख कलेश का पतन,नित नाम जाप कीरतन।

जितेंदर पाल सिंह

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उल्लाला छ्न्द
13 मात्रा ,चार चरण ,11वीं मात्रा लघु अनिवार्य , समतुकान्त ,
......

सांई सुमिरन कीजिए, बस इन्हें जप लीजिए।
जिनके हिय में ये बसे , उनके सब संकट कटे।
.....
छोड़ जगत का मोह अब, रिश्तों से मुख मोड़ अब ।
सांसों का सब खेल है , तब तक जीवन रेल है।
.....
डोर जब यह टूट गई , सांस तन से छूट गई।
चिन्ता सोच नहीं हुआ, जब यम आदेश हुआ।
....
सभी देखते रह गए ,जब सुरधाम चले गए।
करो सुकर्म मान मिले, सत्य का बस ज्ञान मिले।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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उल्लाला छंद
13 मात्रिक छंद 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
चरणान्त गुरु/लघु लघु


कर जोड़े जोड़ करके , पग राखे तोड़ करके ।
मुख हंसी छल-कपट का , मन भरुका है गरल का ।।

कर के वादा चल दिये , जन गण मन से छल किये ।
आँचल माँ गंदा हुआ , राजनीति धंधा हुआ ।।

बचपन बिलखे भूख से , स्वान नहाये दूध से ।
कैसी है असमानता , कल्पित है स्वाधीनता ।।

सेवा जिनका धर्म है , फिर ओछा क्यों कर्म है ।
हे जननायक ध्यान दो , सब जन को सम्मान दो ।।

शब्दार्थ
भरुका - मिट्टी का पात्र,चुक्कड़

अभय कुमार आनंद
लखनऊ उत्तरप्रदेश

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उल्लाला
१३ मात्रिक ; (११वीं मात्रा अनिवार्य रुप से लघु।)



सबके दिल में खोट है । देता हर इक चोट है ।।
रखकर मन पर भार हम।करते जीवन पार हम।।

सत्य को मुखर की तृषा। किन्तु विजय पाती मृषा।।
द्वंद भीतर पाल चले।चाहत अंतस ही गले।।

विगत की मधुरिम सुधियाँ ।सजल कर जाती अँखियाँ।।
हिय एक अंगार मही।तुहिन कण सी शोभ रही।

प्रगट एक वो दीप हो।प्रेम मधुर संगीत हो।।
ह्रदय प्रबल हो भावना।सर्वत्र सुख की कामना।।

तुझ पर एक काव्य रचूं। छंद बंधने से बचूं ।।
मुक्त मेरे भाव चलें । वांचन से सब हिय खिलें।।

ललिता

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उल्लाला छंद
ये १३ मात्रिक छंद है,अंत १११ या १२ अनिवार्य,११वि मात्रा लघु।



भारत माता को नमन। वैभव ऐसा के गगन।
सुजला सुफ़ला हो चमन। हमको रखना है अमन।।

जाँबाजों का है वतन। गौरव का होवे मनन।
दुश्मन का कर दो हनन। मिलकर दे दो ये वचन।।

ग़द्दारों का है क़हर। संगीनों का है बसर।
खूनी होली का सफ़र। हो जाते तब ये अमर।।

सरहद पर जब हो कलह। शस्रों से होती सुलह।
अब चलना है वीर पथ। भारत माता की शपथ।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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उल्लाला छंद
13 मात्रिक 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
🌹
मनस भटके यहाँ वहाँ, ढूंढे प्यार कहाँ कहाँ।
प्यास ऐसे कहाँ बुझे, ये सवाल अनबुझे।।
🌹
मन किशोर है जब बना, प्रेम प्रीत से है सना।
फिरता रहे तना तना, छाया प्रेम मन घना।।
🌹
अपलक निहारता रहा, भावो में खिलता रहा।
अमर प्रेम ऐसा पला, खुद ने ही खुद को छला।।
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अब लगी रट है मिलना, प्रेम पाश में बंधना।
अली कली रीत फलना, प्रेम पथ काँटों चलना।।
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यही भाव मन साथ हो, हरपल तेरी बात हो।
गीत लिखूं दिनरात हो, प्रेम प्रीत सौगात हो।।
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 अरविन्द चास्टा।

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उल्लाला छंद
१३ मात्रिक छंद ११वीं मात्रा लघुअनिवार्य
दो या चारों चरण समतुकांत ।

चरणान्तदो लघु
विषय: देश

अब देश हो हरा भरा, कर लो यहाँ करम खरा ,
सब साथ नेक दिल यहाँ, हम जैस कौन हो कहाँ ।

कोई न देख अब बुझे , भारत यहाँ हमे सुझे ,
सब यूँ किसान बन रहे ,गलती यहाँ न हम सहे ।

तकनीक भी यहाँ बने ,मन से रहो सदा घने ,
हित देश का बहुत करो ,ठहराव को न अब जरो।

सब का यहाँ सुधार हो ,अब यूँ न पर उधार हो ,
मन से लगाव हो सदा ,हो रोष भी यदाकदा ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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उल्लाला छंद
13 मात्रिक 11वीं मात्रा लघु
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अब प्रज्वलित प्रकाश है । प्रदीप का उल्लास है।
तिमिर कहीं सोया हुआ , साया भी खोया हुआ।

दिव्य रश्मि रविकार है, तम का ही प्रतिकार है।
रोकता प्रतिपल विषाद, ताकता हर पल निषाद।

तीव्रता हृदय की लिए, जलते रहे मन के दिए।
बढ़ता रहे सद्ज्ञान है, मिटता हुआ अज्ञान है।

राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना

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छन्द-**उल्लाला**
मात्राभार-१३मात्रिक छंद
11वी मात्रा अनिवार्यतः लघु

अंत गुरु

हृदय बसा अनुराग हो, नहीं क्रोध की आग हो।
निर्मल मन व्यवहार हो, निश्चित बेड़ा पार हो।।

जिनके मन सद्भावना, पूरी हो सब कामना।
जीवन से क्या भागना, मुश्किल का कर सामना।।

अबके सावन की झड़ी, मुझपर कुछ ऐसे पड़ी।
साजन से मैं क्यों लड़ी, बीत गयी सुख की घड़ी।।

~प्रभात

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उल्लाला छन्द
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13 मात्रिक छन्द

चार चरण 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
अंत गुरु या 1 1 लघु लघु अनिवार्य
दो या चारो चरण समतुकांत
शीर्षक- कान्हा

श्याम ब्रज की एक गली,छेड़ ग्वालन नेक भली,
चीर यमुना तीर हरे, फोड़ मटकी क्षीर भरे।

नैन तिरछे रस बरसे, देख गोपी मन हरषे,
मोहन तो रंग रसिया, प्रीत ह्रदय सँग बसिया।

रैन मधुवन श्याम मिले, नैन राधा प्रेम खिले,
केशव बसे रोम सखी, भू-पवन से व्योम सखी।

माधव की श्यामल छटा, केश सघन सावन घटा,
मेघ बरसे नेह भरे,प्रेम अधर मुरली धरे।

रास कृष्ण मधुवन रचते, नैनन चपल जग हरते,
नीरज चरण शीश धरूँ,जीवन प्रभु सफल करूँ।

रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)