Tuesday, October 15, 2019

बहरे मुतदारिक,मुसम्मन सालिम




बहरे मुतदारिक,मुसम्मन सालिम
अरकान:फाइलुन,फाइलुन,फाइलुन,फाइलुन
वज़न्:212,212,212,212
पूरी दुनिया ही नाआशना हो गई
ये तो नफरत की यार इन्तिहा हो गई
इक ज़रा सी ख़ता हमसे क्या हो गई
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से ख़फा हो गई
ख्वाहिशों की इमारत बनाई थी जो
उनके जाने से अब वो फना हो गई
आके हर कोई इक मशवरा दे रहा
सारी दुनिया लगे पारसा हो गई?
रात के बाद दिन था के गुज़रा नहीं
तेरी यादों की फिर इब्तिदा हो गई

जाबिर अयाज़ सहारनपुरी भारत

गज़ल में कम से कम पांच अश्आर हों!
काफिया और रदीफ आप अपने हिसाब से चुने
उदाहरण में इस बहर के सुर ताल के लिए कुछ फिल्मी गीत दिये जा रहे हैं 👇
(1)हर तरफ हर जगह बे-शुमार आदमी
(2)एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
(3)बे-खुदी में सनम उठ गये जो कदम
(4)कर चले जो फ़िदा जान तन साथियों
(5)खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी
(6)आपकी याद आती रही रात भर
(7(गीत गाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं
तो हो जाएये शुरू अपनी कलम से जलवा बिखेरने के लिए..शुभकामनाऐं
मिनजानिब:जाबिर अयाज़ सहारनपुरी
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बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम:फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन(212 212 212 212 )

ग़ज़ल

शाम आयी, सुहानी, वो आया नहीं,
दिल कहीं, चैन मेरा ये, पाया नहीं।

खाब नींदे, चुराने, लगे हैं मिरी,
रोज़ गुज़रे कई, पास आया नहीं।

साथ चलने के, वादे वफ़ा थे किये,
खूबसूरत वो चेहरा दिखाया नहीं।

हालते हाल का, कोई पैग़ाम दे,
इश्क़ ऐसे, किसी ने, निभाया नहीं।

तुमने क़ैदे मुहोब्बत में हमको लिया,
दिल लगाने से दिल रोक पाया नहीं।

ख़ूबसूरत अदाओं ने, रोका हमें,
और कोई, हमें भी तो, भाया नहीं।

बेवफ़ाई के, डर से, परेशां है दिल,
'
दीप' ने सब्र, इसको सिखाया नहीं।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम:
अरकान-फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
वज़्न-212 212 212 212 )

ग़ज़ल

२१२ २१२ २१२ २१२
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जो खड़े हैं उनको गिराया करो
बेवजह मत किसी को सताया करो।

जो नहीं दे सको सुख किसी को जरा
मत हृदय फिर किसी का दुखाया करो।

है कमानी अगर तुमको इज़्जत यहाँ
साथ मुफ़लिस का हरपल निभाया करो।

शौक से फिर करो तुम मुकर्रर सज़ा
दोष है किसका पहले बताया करो।

कान होते दीवारों के भी आजकल
राज़ दिल का कहीं मत सुनाया करो।

जो नहीं दे सको रोशनी तुम अगर
दीप फिर मत कहीं का बुझाया करो।

'
राम' बिगड़ी बनेंगी तुम्हारी सभी
सामने रब के सिर को झुकाया करो।

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (.प्र.)
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बहरे मुतदारिक ,मुसम्मन सालिम
अरकान :फाइलुन ,फाइलुन,फाइलुन,फाइलुन
वज़न्:212 212 212 212
काफिया : स्वर
रदीफ़ : रही रात भर
गज़ल

याद उसकी सताती रही रात भर
बेवजह ही जगाती रही रात भर ।।

मन परेशान था यूं जाने किधर
खो गई यूँ ,चुपी ही रही रात भर ।।

रोशनी भी थी जागती राह में
चाँदनी गुनगुनाती रही रात भर ।।

आजमाते रहे लोग हर दौर में
मैं यहीं याद करती रही रात भर ।।

जिंदगी कट रही यूँ निभाते यहाँ
गीत ही गुनगुनाती रही रात भर ।।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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212-212-212-212
काफ़िया---आन रद़ीफ़---का
अर्कान---फ़ाइलुन-फ़ाइलुन- फ़ाइलुन-फ़ाइलुन

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ग़ज़ल

देखता है खुदा ढ़ंग इंसान का
पी रहा खून इंसान इंसान का।

बढ़ गई भूख सबकी हजारों गुना
मोल भी हो रहा आज सम्मान का।

मर रहीं बेटियां आज अपमान से
कौन रखता भला ध्यान है मान का।

बिक रही जिंदगी अब गरीबी भरी
मोल है क्या पता उस मरी जान का।

रूठ कर अब खुदा से छोड़ दी खुदी
चुन लिया साथ अब किसी शैतान का।

मिल रहा मान सम्मान शैतान को
घट रहा मान तेरे हि भगवान का।

अब कहां चाव है मान के पान का।
बस दिखावा बचा मुफ़्त की शान का।

राज्यश्री सिंह
स्वरचित
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212 212 212 212

फर्ज़ इंसान का तो अदा कीजिए ,
मुफ़लिसों का भी थोड़ा भला कीजिए

उम्र ढल जायेगी हाथ क्या आयेगा ,
वक्त को साथ लेकर चला कीजिए।

क्या पता आख़री शाम हो जाये कब
जो मिला उसमें ही खुश रहा कीजिए

झूठ का बोलबाला कहे कौन सच,
सामने आईना रख लिया कीजिए

यूँ नहीं कोई हीरा बना है यहाँ ,
जीस्त़ की आग में अब तपा कीजिए।

हारकर बैठना मौत सा ही तो है,
मुश्किलों का जरा सामना कीजिए।

जिन्दगी चार दिन की है "कश्यप" यहाँ ,
जख़्म पर दूसरों के द़वा कीजिए।


आयुष कश्यप
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मुतदारिक,मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
ग़ज़ल

वज्र ....212 212 212 212
इश्क में देखकर लोग जलते रहे
बस इसी नाम पर लोग छलते रहे
सामने से गुज़र जा देखें तुझे
आज दिल में यही ग़म पलते रहे
मुस्कुराती अदा भी छलावा लगी
बस यही सोच कर हम सँभलते रहे
चाँद पूनम कहूँ या कहूँ बेवफ़ा
सोच कर आज आँसू निकलते रहे
भूलकर भी हमें याद करते नहीं
और हम याद में ही पिघलते रहे
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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 बहरे मुतदारिक ,मुसम्मन सालिम
अरकान:- फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
वज्म- 212 ,212,212,212
काफिया- लाते
रदीफ़- रहे
आँधियों में शमा हम जलाते रहे,
रात सूनी ढली ग़म भूलाते रहे।

आशियाँ आपका जां जिगर आपका,
बेरहम बेखबर को बुलाते रहे।

नाम तेरा लिखा शोख अंदाज में,
रात कश्ती अकेले चलाते रहे।

प्रेम से डोर दिल की बंधी साथिया,
कोशिशें दिल से दिल को मिलाते रहे।

रात बीती जवानी हुई हादसा,
खेल ही खेल में खिलखिलाते रहे।

हार "नीरज" हुई फैसलों की अगर,
हौसलों की सुरा हम पिलाते रहे।

रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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 बहरे मुतदारिक ,मुसम्मन सालिम
अरकान:- फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
वज्म- 212 ,212,212,212
काफिया-
रदीफ़- हो गए

अर्थ ही दोस्ती के जुदा हो गए
आदमी थे कभी अब ख़ुदा हो गए

उम्र भर के लिए जो मिरे थे कभी
आज ग़ैरों पे वे ही फ़िदा हो गए

खो गया है नशे में ये सारा शह्र
आप चलते हुए मयकदा हो गए

आप के साथ का ये हुआ है असर
हम ज़माने के मन की सदा हो गए

कैसे मंजिल पे पहुँचे ये कृष्णा भला
राहबर ही यहाँ गुमशुदा हो गए

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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बहरे मुतदारिक ,मुसम्मन सालिम
अरकान :फाइलुन ,फाइलुन,फाइलुन,फाइलुन
वज़न्:212 212 212 212
काफिया .... स्वर
रदीफ़ ....कौन है
विधा....गज़ल

देखिए साथ ये ,ग़मज़दा कौन है,
अक्स है साथ वो,रहनुमा कौन है।

मुश्किलों ने कभी ,साथ छोड़ा नहीं,
पूछिए ज़िंदगी से ,जला कौन है।

सिलसिला बेरुख़ी का ,बयां कर गया,
बोलिए मुद्दतों से, हँसा कौन है।

जो सियासत समझके ,चला था गया,
तोड़कर साथ ये,अब फँसा कौन है।

बस खिलौनासुवी बन गयी हूँ यही,
आज हमको यहाँ,मानता कौन है।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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बहर: मुतदारिक
मुसम्मन सालिम
वज़्न: 212 212 212 212

ग़ज़ल

बादशाही किसी की, मुसलसल रहे,
वक़्त की ये गवाही है, कुछ पल रहे।

ये सियासत, तुम्हारी, तमाशा हुई,
लोग कटते गए, तुम तो ओझल रहे।

जब गुज़रने लगे हद से, ज़ुल्मो सितम,
याद रखना, ग़दर की भी, हलचल रहे।

हो मुबारक, तुम्हें ख़ास, हाकिमगिरी,
साथ हक़ के हमारे, मुकम्मल रहे।

साफ़ कपड़े पहनकर, छुपाते हो क्या?
बद इरादों की,ग़र दिल में दलदल रहे।

दास्ताँ इश्क़ की, क्या सुनाऊँ तुझे,
ज़िन्दगी भर मुहोब्बत में, बेकल रहे।

लोग कहने लगे हम को, सौदाइ सा,
हासिले दर्द में 'दीप', अव्वल रहे।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप
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बहरे मुतदारिक ,मुसम्मन सालिम
अरकान :फाइलुन ,फाइलुन,फाइलुन,फाइलुन
वज़न्:212 212 212 212
काफिया ....आन स्वर
रदीफ़ ...से
विधा....गज़ल

212 212 212 212
है बयाँ ये किया आज ही शान से
चाहते हैं उन्हें हम दिलो जान से

हम लुटाते रहे प्यार उन पे बहुत
वो रहे है मुहब्बत में अनजान से

संदली एक अहसास सा हो रहा
हां ठहर जाओ बन एक अरमान से

मैं खड़ी साथ हमदम ग़मों में सदा
सोचते हो सनम क्यों परेशान से

दिल भुला ही सका ना मुलाक़ात वो
हर्फ तेरे लगे पाक आजान से

ललिता गहलोत
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बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम:
अरकान-फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
वज़्न-२१२ २१२ २१२ २१२

ग़ज़ल

२१२ २१२ २१२ २१२

दर्द है चोट है पर दवाई नहीं
ज़िन्दगी ये मुझे रास आई नहीं

रूठ मुझसे गई छोटी-सी बात पर
मैं बुलाता रहा पास आई नहीं

किस लिये हम करें आज ग़म से गिला
जबकि हमको खुशी थी सुहाई नहीं

ऊँचे महलों में थी वो पली नाज़ों से
इसलिये झोपड़ी मेरी भायी नहीं

सबने पहने हैं चेहरों पे चेहरे कई
कौन है जिसने कालिख़ छुपाई नहीं

जिंदा तब तक जहाँ में रहेगा अभय
साँसें हो जाएँ जब तक पराई नहीं

अभय कुमार आनंद
बांका बिहार
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अरकान=फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मापनी/मीटर=२१२ २१२ २१२ २१२

ग़ज़ल

आँख रोती है, पर वो दिखाता नहीं,
दर्द अपना, किसी को बताता नहीं,

बाप का फर्ज़, हर हाल, पूरा करे,
वो किसी पे, ये एहसां जताता नहीं,

सख़्त उसकी, लगे बात, औलाद को,
हाल खुद का कभी, वो सुनाता नहीं,

दिल ये चाहे हमेशा, ख़ुशी आपकी,
बाप औलाद का, दिल दुखाता नहीं,

फ़िक्र सबकी ज़रूरत, खुशी की उसे,
ख़ाब पहले, वो अपने सजाता नहीं,

बेच कर वो पसीना, ख़रीदे ख़ुशी,
कर्ज़ से भी, कदम वो हटाता नहीं,

चाहता खूब, आगे बढ़ो पढ़ो,
'
दीप' उसको, समझ कोइ, पाता नहीं।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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ग़ज़ल
🌹
आज कुछ भी सुनाना नही चाहता।
दर्द दिल का बताना नहीं चाहता।
🌹
खो गई है मेरी आशिकी ही कहाँ।
वाद कोई लिखाना नहीं चाहता
🌹
आज साकी पिला दे मुझे इस कदर।
होश में दिल लगाना नहीं चाहता
🌹
वो शमा ही बुझा दी गमे इश्क में।
इस निशा मैं उजाला नहीं चाहता।
🌹
तुम मेरी थी हमेशां रहोगी मेरी
प्यार फिर से जताना नहीं चाहता।
🌹
साथ जितना रहा बन्दगी हो गई।
ख्वाब दूजा सजाना नहीं चाहता।
🌹
जानता हूँ सदा बेबसी को तेरी।
महफ़िलो में बुलाना नहीं चाहता।
🌹
चन्द दिन ही हुये हम मिले थे जहाँ।
वक्त वो दोहराना नहीं चाहता
🌹
बस यही राज अविराज जाहिर हो।
नाम तेरा बताना नहीं चाहता।
🌹
अरविन्द चास्टा अविराज
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वज़्न;-212- 212- 212 -212
अर्कान;-फ़ाइलुन -फ़ाइलुन-फ़ाइलुन फ़ाइलुन

बह्र;-बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
क़ाफ़िया;- ( की बंदिश )
रदीफ़;-देखते -देखते
ग़ज़ल
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इक नज़र क्या मिली आपसे हमनशीं
प्यार हम को हुआ देखते देखते।।

हाय नज़रों से तेरी मेरी जाने-जाँ।
तीर दिल पर चला देखते देखते।।

आँख जैसे मिली खुद नज़र झुक गई।
हाय क्या हो गया देखते देखते ।।

पास आये मगर कुछ बोले सनम।
हो गई है ख़ता देखते -देखते ।।

प्यार की चाशनी घोलते ही रहे
कोई धोखा दिया देखते- देखते ।।

प्यार करना कभी सोच कर तुम मगर।
बेवफ़ा हो गया देखते- देखते।

विनीता सिंह "विनी"
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 बहर: मुतदारिक
मुसम्मन सालिम
वज़्न: 212 212 212 212

आलमे तिश्नगी क्या? बताऊँ तुझे,
बात दिल की मैं, दिल से, सुनाऊँ तुझे।

जब से देखा है, बेताब दिल हो गया,
चीर के दिल, ये अपना, दिखाऊँ तुझे।

इस तग़ाफ़ुल की किसको शिकायत करूँ,
पास आओ, मुहोब्बत सिखाऊँ तुझे।

रोज़ तकना, दरीचों से, तेरा मुझे,
दिल ये चाहे, गले मैं, लगाऊँ तुझे।

थाम लूँ हाथ तेरा, ये ख़्वाहिश मिरी,
बद नज़र से, हसीना बचाऊँ तुझे।

लरज़िशे लब कहे क्या? ज़रा दे बता,
इश्क़ है जाँ, नहीं मैं सताऊँ तुझे।

इस ज़माने की, परवाह हम क्यूँ? करें,
'
दीप' चाहे, के अपना, बनाऊँ तुझे।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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ग़ज़ल
212 212 212 212
दर्द ने ज़िन्दगी भर हवा दी है क्या
बुझ रही इस शमा को जला दी है क्या
उड़ रही ज़िन्दगी ये हवा की तरह
आग इसमें किसी ने लगा दी है क्या
लब से अपने वो कुछ बोलते क्यों नही
ग़म की गठरी किसी ने थमा दी है क्या
भूल बैठा है खुशियों को अपने यहाँ
ज़िन्दगी ने उसे भी सजा दी है क्या
थाम कर हाथ तेरा यूँ आकिब' चला
खोई हिम्मत किसी ने जगा दी है क्या

आकिब  जावेद
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बह्र- बह्रे-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अर्कान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
वज़्न - 212 212 212 212
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मारना है तो मारो अहंकार को
मत करो और लाचार लाचार को।।

ज़िन्दगी उसके क़दमों में होती मगर
लोग जीने नहीं देते ख़ुद्दार को।।

ज़िन्दगी धूप है, ज़िन्दगी छांव है।
साफ रक्खा करो अपने किरदार को ।।

ये सबूतों का भी खेल क्या ख़ूब है।
मिल गई है रिहाई गुनहगार को।।

दर्द हर वर्क़ पे बेटियों का दिखे।
आंख नम हो गयी देख अख़बार को ।।

तर्क पे तर्क जिस दिन शुरू हो गया।
लोग देंगे बदल तेरी सरकार को।।

"
अश्क"मंज़िल क़दम चूम लेगी तेरा।
हौसला तू बना ले अगर हार को।।

@
अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद-मऊ(0प्र0) भारत

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