Explained By Mr. Jitender pal singh ji
लीला छन्द
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आदित्य जाति की पिछली कड़ी में हमने तोमर, तांडव और नित छन्द का अध्यन और इन पर आधारित रचनाओं का सृजन करना सीखा। इसी कड़ी में आज हम लीला छन्द के बारे में जानेंगे। आदित्य जाति के छंन्दों के 233 भेद हो सकते हैं। कुछ मापनी हम यहां अभ्यास हेतु दे रहे हैं। चरणान्त जगण अनिवार्य है।
चरणान्त के नियम को ध्यान में रखते हुए रचनाकार कोई भी 12 मात्रिक मापनी ले सकते हैं। दो चरण परस्पर अथवा चारों चरण समतुकांत।
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लीला छन्द
चरणान्त: (121)जगण
दो चरण परस्पर समतुकांत या चारों समतुकांत
12 मात्रिक
मन भरमाये अपार, यह जग लीला अँधार।
सद्गुरु जब हों कृपाल, ज्ञान जगे तब कपाल।
ईश्वर है अति उदार, दुर्मति अपनी सुधार।
व्यर्थ नहीं जाय जन्म, नाम जपो तज कुकर्म।
सुन मन मैला सँवार, कर उजला मत नकार।
तूँ कर आत्मिक विकास, मिट मन की जाय प्यास।
अब मन आधार नाम, नित जप कर जोड़ राम।
नाम भगाये विकार, सुनकर मन की पुकार।
उर हरि धारे निवास, होय नहीं मन उदास।
कर्म तजो सब अशुद्ध, हरि कर देंगे प्रबुद्ध।
जितेंदर पाल सिंह
चरणान्त: (121)जगण
दो चरण परस्पर समतुकांत या चारों समतुकांत
12 मात्रिक
मन भरमाये अपार, यह जग लीला अँधार।
सद्गुरु जब हों कृपाल, ज्ञान जगे तब कपाल।
ईश्वर है अति उदार, दुर्मति अपनी सुधार।
व्यर्थ नहीं जाय जन्म, नाम जपो तज कुकर्म।
सुन मन मैला सँवार, कर उजला मत नकार।
तूँ कर आत्मिक विकास, मिट मन की जाय प्यास।
अब मन आधार नाम, नित जप कर जोड़ राम।
नाम भगाये विकार, सुनकर मन की पुकार।
उर हरि धारे निवास, होय नहीं मन उदास।
कर्म तजो सब अशुद्ध, हरि कर देंगे प्रबुद्ध।
जितेंदर पाल सिंह
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लीला छंद
१२ मात्रिक छंद
विषय -मीत
होते मीत सब खास , करते है जिगर वास ,
जग में है दिवस चार , जीवन में दुख हजार ।
होता हरदम लगाव , देता है वह सुझाव ,
आता है बहुत काम , लेता है न वह दाम ।
कोई हो जब न पास, उससे ही परम आस ,
मन होता कब उदास , करता मीत न निराश ।
जग में है वह करीब , अंदर से बहुत गरीब ,
उस पर है सदय मान , करता कब वह गुमान ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
१२ मात्रिक छंद
विषय -मीत
होते मीत सब खास , करते है जिगर वास ,
जग में है दिवस चार , जीवन में दुख हजार ।
होता हरदम लगाव , देता है वह सुझाव ,
आता है बहुत काम , लेता है न वह दाम ।
कोई हो जब न पास, उससे ही परम आस ,
मन होता कब उदास , करता मीत न निराश ।
जग में है वह करीब , अंदर से बहुत गरीब ,
उस पर है सदय मान , करता कब वह गुमान ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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आदित्य जाति का लीला छंद।लीला छंद*********
12 मात्रिक, अंत 121
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आज दिन हुआ महान, नापते विहग विहान ।
मैं खड़ी बनी अजीत , हो रही सभी सुजीत ।
प्राण आज हैं नवीन, शांत मन बड़ा प्रवीण।
ले रही नदी बहाव, बढ़ रहा विचार भाव
भानु का चढ़ा प्रकाश, शक्ति का हुआ विकास।
कर लिया वशी अकाल, देख दिशा, मति , सुकाल।
अविवेक बना अतीत, बुद्धि बल बनें सुगीत।
बढ़ रही आज सुप्रीत, मिट रहीं सभी कुरीति।
जागता रहे प्रबोध। झूठ का करो विरोध।
संत बन रहो रहीम। काम भी बनें कबीर।
राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना
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12 मात्रिक , दो दो चरण तुकांत या चारो चरण समतुकांत , चरणांत 121
छ्न्द लिखो कर प्रयास,सीख करो निज विकास।
शब्द लिखो कर विचार,काव्य रचो सब अपार।
.....
ज्ञान करे जब प्रकाश,जड़मति का होय नाश।
सब जन होयें सुजान,कीर्ति मिले यश महान।
.....
लेख अथक हो सुभाष ,फैल रहा जग प्रकाश ।
आज नया शुभ प्रभात ,भोर खिले हैं सुपात ।
......
छोड़ बनूं जड़ सुजान,कीर्ति मिले यश महान।
सांझ सुबह कर प्रणाम,सूर्य चमकता विहान ।
......
संस्कृति में हो सुधार ,आए हिंदी निखार ।
सृष्टि करे अब पुकार,सीख रहे अब लकार ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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लीला छंद- (12 मात्रिक छन्द)
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मन में हो लाख पीर,मत हो जाना अधीर,
अब चाहे होय देर,पर आगे है सवेर।।
अब होते क्यों उदास,कर लो थोड़ा प्रयास,
मिट जायेगी थकान,जब देखोगे विहान।।
करते हों जो प्रहार,तज दो ऐसे विचार,
कर मीठी बात चार,सुख पाओगे अपार।।
बनते हैं वो महान,पर रोते हैं किसान,
सब खाली नौजवान,बस देखें आसमान।।
उसके झूठे सुकाज,जब सोचेगा समाज,
अपने वो आसपास,फिर ढूंढेगा विकास।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट जनपद- मऊ (उ0 प्र0)भारत
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लीला छंद
पदांत 121
🌹तुझको देख कर पास,भागा है मनस त्रास।
सुखों की लगी कतार,रोम रोम हो पुकार।
🌹
आशान्वित था सुधार,जाने कब हो बहार।
जब हुआ प्रणय प्रहार,अपलक रहता निहार।
🌹
लौटा फिर है अतीत,होने लगता प्रतीत।
हाल मिटे हैं अभाव,ये तेरा है प्रभाव।
🌹
अब मत करना विचार,बरसती रहे फुहार।
आया ऐसा सुयोग,हो गया सफल प्रयोग।
🌹
छंद से हुआ जुड़ाव,मुक्तक से है दुराव।
कैसी लीला अपार,लेखन का है सुधार।
🌹
✍ अरविन्द चास्टा
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लीला छंद
पदांत १२१
विषय : किसान
देख हिंद का किसान ,मन हुआ लहू लुहान ।
तन बना हुआ मशीन ,गत फिर भी दीन-हीन ।।
हल उठा डटा महान ,हिला पड़ा जान-प्राण ।
हल करे कौन हिसाब ,विचित्र है कृषक किताब ।।
कर्ज का खड़ा पहाड़ ,सुने सेठ का दहाड़ ।
तन बस बचा है हाड़ ,बिलख रहा वक्ष फाड़ ।।
सो गया देख जमीर ,अमीर ही हैं अमीर ।
ईश भी नहीं उदार ,कृषक घर दिये उजाड़ ।।
तापमान है अपार ,बरसती नहीं फुहार ।
खत्म हुआ कारबार ,बंद अब सारे द्वार ।।
अभय कुमार आनंद
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लीला छन्द
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चरणान्त जगण (१२१)अनिवार्य
दो या चारो चरण समतुकांत
विषय- दीपोत्सव
ज्योतिर्मय हो नव दीप, माणिक बने मन सीप,
तामस मिटे घन घोर, दीपक जले हर ओर।
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दीन दुखियों के द्वार, बाँट खुशियाँ हर बार,
रोशन करो मन प्रीत, प्रेममय सुमधुर गीत।
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सुखमय करो हर काम,पीर हर लो बिन दाम,
काली अमावश रात,घन तिमिर को कर मात।
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प्रज्ज्वलित हो शुभ दीप, भाव उज्जवलित प्रदीप,
मंगलमय सकल काज, विजय पथ सफल आज।
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आगमन राम निवास, राज दरबार सुवास,
तोरण सजे सब द्वार, दीपमणिका बन हार।।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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