Saturday, October 12, 2019

तांडव छंद Hindi poetry




•••••••••तांडव छंद•••••••••••••
 आदित्य जाति या वर्ण संज्ञा  छंद ।छंदो के दो परस्पर चरण समतुकांत या चारों सम तुकांत होंगे।

इस जाति के 233 भेद हो सकते है।
इसके चरणांत में जगण (१२१) अनिवार्य है। कथित अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए रचनाकार अपनी सुविधानुसार मापनी ले सकते है।

तांडव छंद.......

१२मात्रिक छंद ,अंत में १२१ अनिवार्य




लटक मटक चलत नार, मचल मचल लहर पार।
बहक बहक मदन चाल, उलझ उलझ चटख हाल।।

पलक झपक कमल नैन, बसत अधर अमन चैन।
महक भरत सरस साँस, करत सतत अलग आस।।

उठत अगर लहर प्रीत, नयन बनत करम गीत।
करम अगर चरम होय, परम जगत कलह खोय।।

बहत पवन दमक चाल, लहर उठत चमक गाल।
परख लगन उठत आग, भड़क उठत सजन राग।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

------------------------------------------
तांडव छ्न्द
12 मात्रा , चार चरण , दो दो या चारो चरण समतुकांत ,अंत 121 अनिवार्य



हैं मात पिता महान, रखते सबको समान ।
है सृष्टि यही प्रगाढ़, मत गर्भ कभी बिगाड़।
.....
इन पर मत कर प्रहार, बेटी करती पुकार ।
बेटी बहुएं शिकार , दिखता इनमें विकार ।
.....
बढ़ता यह दुष्प्रभाव , बढ़ता यह कुप्रभाव।
अब रोक प्रथा दहेज, संस्कृति ही है दहेज ।

......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

-----------------------------------------
 तांडव छन्द
चरणान्त में जगण(121) अनिवार्य।
12 मात्रिक छंद

दो अथवा चारों चरण समतुकांत


कलयुग पसरा प्रचंड, अब मानवता विखंड।
भरपूर भरे विकार, दूषित मनवश गँवार।

संस्कार दिये बिसार, भूले सब प्रेम प्यार।
मांबाप हुए पराय, अब वृद्ध नहीं सुहाय।

नारी घर ब्याह लाय, तांडव कर वो नचाय।
पसरी अब कूटमार, घर बीच उठी दीवार।

नाते सब तार तार, टूटा मन रोय हार।
स्त्री प्रेम करे भतार, सबको मन से नकार।

भाई सब दूर दूर, व्यवहार कठोर क्रूर।
ममतामय मात रोय, वृद्धा सब साथ खोय।

जितेंदर पाल सिंह
शब्दार्थ
भतार- पति
विखंड-टुकड़ों में विभाजन

-----------------------------------------
तांडव छंद

चरणान्त में जगण (१२१) अनिवार्य ।
दो अथवा चारों चरण समतुकांत ।
विषय - समय महान

जब समय करे महान , खुद तब करता सुजान ,
तब अनुपम हो जहान , मत कर अब लोभ मान ।

देख समय को गरीब , जान न अब यूँ करीब ,
ले कर अब तूँ विचार , बात न कर तू हजार ।

दे मत अब यूँ बखान , कर झटपट तू निदान ,
खोल मन यहाँ सुधार , ले न अब यहाँ उधार ।

मन कर अब तू तुषार , सब मिल कर जग सँवार ,
मत सुन अब तू कहार , अंदर अब मन पुकार ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

-------------------------------
तांडव छन्द*******
12मात्रिक छन्द
121 चरणान्त अनिवार्य



घन तिमिर सघन विशाल, सलिल थिरकत हिम भाल।
पवन सुरभि तन लुभाय, शिशिर शरद सुखद आय।
**********************
गरजत जलज घनघोर, प्रकृति सुभग चित चोर।
द्युति चम चमक परिधान, जल करत गिरि रसपान।
*********************
कुसमित महकत उद्यान, सुरमय भ्रमर मृदुगान।
चपल पथिक प्रणय राग, सुमन सुरभित अनुराग।
***********************
मद अधर कमल कपोल, मन मदन करत किलोल।
टप टप मधुरस भिगोय, जब नयन नयन डुबोय।
********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़



No comments:

Post a Comment