Explained by Smt. Lalita Gahlot ji Bikaner ,Rajasthan
यह दैशिक जाति या वर्ण संज्ञा का छन्द है।
इसके 89 भेद हो सकते हैं।
प्रत्येक चार चरण, दो-दो चरण परस्पर समतुकांत होते है।
प्रति चरण 10 मात्राएँ होती हैं।
चरणान्त: जगण गुरु लघु (11121) अनिवार्य।
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दीप छंद
पुलकित प्रणय व्योम, भरता सुखद जोम।
तन मन नवल राग, व्यंजन वृहद जाग ।।
प्रवेश प्रणय देह, बरसे मधुर नेह।
प्रियतम अगर पास, निरखे सबल आस ।।
पायी मृदुल प्रीत अंतस मधुर गीत।
झंकृत ह्रदय तार, तन-मन सजन वार ।।
बिरहा दहक आग, ज्वाला प्रणय जाग।
आंखे बरस कंत, आये तरस अंत ।।
जीवन मधुर सार, संगी सरस प्यार।
चिर मोद अभिसार अनमोल उपहार ।।
ललिता गहलोत
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दीप छन्द
मानुस जनम धार, दीन्हों प्रभु बिसार।
पाओ सरन नाम, निसदिन जपहु राम।
बिगड़े करम छोड़, मन का भरम तोड़।
मत जान हरि दूर, चहुँओर भरपूर।
बाँटो जगत प्यार, मिल जाय हरिद्वार।
राखौ हरि समीप, भवसागर महीप।
तन मन करत भोग, भूले धरम लोग।
सतगुर करत ज्ञान, तब पाय भगवान।
हे! प्रभु सुन पुकार, कर दूर अँधियार।
मन आये परगास, कर अंतरि निवास।
जितेंदर पाल सिंह
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दीप छ्न्द
मां का मन विशाल, चुनरी चढ़त लाल।
गोटा चमकदार , पायल झनकदार।
......
महिमा कर बखान, मिटते सब थकान ।
ऊंचा चढ़ पहाड़ , जय मां कह दहाड़ ।
....
मां का मन उदार , त्यागो सब विकार ।
पाते सब प्रसाद , हो दूर अवसाद ।
.....
कर ले कुछ विचार, पुलकित मन निखार ।
आये भवन द्वार , विनती सुन हजार ।
........
सिम्पल काव्यधारा , प्रयागराज
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दीप छंद
🌹
प्रात: नवल दीप, कोई धवल सीप।
आभा मुख अपार, कामांध सुकुमार।।
🌹
वन बाग तट ताल, बैठे विहग डाल।
प्रेमाकुल विभोर, निश्चल नव किशोर।।
🌹
आलाप सुर गीत, ढूंढे मन सुप्रीत।
धारा विकल मन्द, फैली सब सुगन्ध।।
🌹
छाई वलय घोर, नाचे मनस मोर।
निकसे सहज सौर विरही तड़प ओर
🌹
दीपो कलन छंद, द्वो दीर्घ त्रय मंद।
अंते गुरु लघुत्व, छन्दों परित सत्व।।
🌹
✍ अरविन्द चास्टा
कपासन , चित्तौड़गढ़ राजस्थान
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दीप छंद
दस मात्रिक छंदविषय - वाणी
मीठे वचन बोल , मन में अमृत घोल ।
वाणी करत सार , जीवन मधुर प्यार ।।
मत कर बहस मीत , सबसे सरस प्रीत ।
गाते रहत गीत , जीवन लगत रीत ।।
जोड़ो ह्रदय तार , कड़वा वचन भार ।
मन में रहत प्यार , सब के मन सुधार ।।
अंदर अगर ज्ञान , बाहर न अभिमान ।
बोलो सहज बात , जिससे रहत पात ।।
रजिन्दर कोर (रेशू) , अमृतसर
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दीप छंद
अम्बे सुन पुकार, मैं बालक गँवार,
छाये मन विचार, ताजो सब विकार।
है नौ दिन बहार, पाए हम दुलार,
होवे हवन पाठ, बंधे नवल गाँठ।
माँ का मन विशाल, ओढ़े चुनर लाल,
गूँजे मधुर ताल, जाए क़हर काल।
चाहूँ सबल आस, राखो सतत पास,
हो कंचन प्रभात, हो रजत प्रभाव।
सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद
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दीप छंद , १० मात्रिक छंद
चरणान्त : १११२१ अनिवार्य
वाणी मधुर बोल , पिक मुख मनुज खोल ।
मत बाज बन ढोल , जिह्वा विष मत घोल ।।
बन सोम सम धार , उर का असुर मार ।
बन दीप जग देख , लिख दे अमर लेख ।।
मन रोष कर त्याग , अब तो मनुज जाग ।
जीवन प्रणय सार , कर प्यार जग तार ।।
कैसे बसत लोग ? कर काम अरु भोग ।
निज जीवन सँवार , हिय भगवन उतार ।।
अभय कुमार आनंद , लखनऊ उत्तरप्रदेश
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दीप छन्द
टपके नयन नीर ,मनवा रह अधीर
बढ़ती सजन पीर ,लागे ह्रदय तीर।
बरसे सघन जोर, बिजुरी करत शोर
आतुर मन हमार, करता प्रिय पुकार।
जागी मधुर आस,,लाया नव प्रकाश,
मनवा कर विश्वास,आये सजन पास,
कागा मधुर बोल,,जा रे नयन खोल,
मिश्री वचन घोल,हो समय अनमोल,
आई धवल रात, हो प्रेम बरसात,
लागी लगन मीत,,पाया सजन जीत।
रानी सोन 'परी'
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दीप छंद
नभ का सम सुखांत, फिर भी मन अशांत,
छाता सरस शृंगार, होता मन उदार।
बनती सबल प्यार सहकर प्रणय वार,
साथी मदद खास, होती मगर पास।
चांदी धवल रात, पिय की तरस गात
आँसू बिरह धार , अंतस बरस सार।
होती सहज रार, सरकार मनुहार,
गढ़ती सम अपार, सहती तम असार।
उसकी पहल जीत, बहकी तनय मीत,
विरहन मन वितांत जलते तन निशांत।।
विनीता सिंह विनी
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दीप छन्द
मानुस जनम धार, दीन्हों प्रभु बिसार।
पाओ सरन नाम, निसदिन जपहु राम।
बिगड़े करम छोड़, मन का भरम तोड़।
मत जान हरि दूर, चहुँओर भरपूर।
बाँटो जगत प्यार, मिल जाय हरिद्वार।
राखौ हरि समीप, भवसागर महीप।
तन मन करत भोग, भूले धरम लोग।
सतगुर करत ज्ञान, तब पाय भगवान।
हे! प्रभु सुन पुकार, कर दूर अँधियार।
मन आये परगास, कर अंतरि निवास।
जितेंदर पाल सिंह
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दीप छ्न्द
मां का मन विशाल, चुनरी चढ़त लाल।
गोटा चमकदार , पायल झनकदार।
......
महिमा कर बखान, मिटते सब थकान ।
ऊंचा चढ़ पहाड़ , जय मां कह दहाड़ ।
....
मां का मन उदार , त्यागो सब विकार ।
पाते सब प्रसाद , हो दूर अवसाद ।
.....
कर ले कुछ विचार, पुलकित मन निखार ।
आये भवन द्वार , विनती सुन हजार ।
........
सिम्पल काव्यधारा , प्रयागराज
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दीप छंद
🌹
प्रात: नवल दीप, कोई धवल सीप।
आभा मुख अपार, कामांध सुकुमार।।
🌹
वन बाग तट ताल, बैठे विहग डाल।
प्रेमाकुल विभोर, निश्चल नव किशोर।।
🌹
आलाप सुर गीत, ढूंढे मन सुप्रीत।
धारा विकल मन्द, फैली सब सुगन्ध।।
🌹
छाई वलय घोर, नाचे मनस मोर।
निकसे सहज सौर विरही तड़प ओर
🌹
दीपो कलन छंद, द्वो दीर्घ त्रय मंद।
अंते गुरु लघुत्व, छन्दों परित सत्व।।
🌹
✍ अरविन्द चास्टा
कपासन , चित्तौड़गढ़ राजस्थान
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दीप छंद
दस मात्रिक छंदविषय - वाणी
मीठे वचन बोल , मन में अमृत घोल ।
वाणी करत सार , जीवन मधुर प्यार ।।
मत कर बहस मीत , सबसे सरस प्रीत ।
गाते रहत गीत , जीवन लगत रीत ।।
जोड़ो ह्रदय तार , कड़वा वचन भार ।
मन में रहत प्यार , सब के मन सुधार ।।
अंदर अगर ज्ञान , बाहर न अभिमान ।
बोलो सहज बात , जिससे रहत पात ।।
रजिन्दर कोर (रेशू) , अमृतसर
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दीप छंद
अम्बे सुन पुकार, मैं बालक गँवार,
छाये मन विचार, ताजो सब विकार।
है नौ दिन बहार, पाए हम दुलार,
होवे हवन पाठ, बंधे नवल गाँठ।
माँ का मन विशाल, ओढ़े चुनर लाल,
गूँजे मधुर ताल, जाए क़हर काल।
चाहूँ सबल आस, राखो सतत पास,
हो कंचन प्रभात, हो रजत प्रभाव।
सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद
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दीप छंद , १० मात्रिक छंद
चरणान्त : १११२१ अनिवार्य
वाणी मधुर बोल , पिक मुख मनुज खोल ।
मत बाज बन ढोल , जिह्वा विष मत घोल ।।
बन सोम सम धार , उर का असुर मार ।
बन दीप जग देख , लिख दे अमर लेख ।।
मन रोष कर त्याग , अब तो मनुज जाग ।
जीवन प्रणय सार , कर प्यार जग तार ।।
कैसे बसत लोग ? कर काम अरु भोग ।
निज जीवन सँवार , हिय भगवन उतार ।।
अभय कुमार आनंद , लखनऊ उत्तरप्रदेश
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दीप छन्द
टपके नयन नीर ,मनवा रह अधीर
बढ़ती सजन पीर ,लागे ह्रदय तीर।
बरसे सघन जोर, बिजुरी करत शोर
आतुर मन हमार, करता प्रिय पुकार।
जागी मधुर आस,,लाया नव प्रकाश,
मनवा कर विश्वास,आये सजन पास,
कागा मधुर बोल,,जा रे नयन खोल,
मिश्री वचन घोल,हो समय अनमोल,
आई धवल रात, हो प्रेम बरसात,
लागी लगन मीत,,पाया सजन जीत।
रानी सोन 'परी'
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दीप छंद
नभ का सम सुखांत, फिर भी मन अशांत,
छाता सरस शृंगार, होता मन उदार।
बनती सबल प्यार सहकर प्रणय वार,
साथी मदद खास, होती मगर पास।
चांदी धवल रात, पिय की तरस गात
आँसू बिरह धार , अंतस बरस सार।
होती सहज रार, सरकार मनुहार,
गढ़ती सम अपार, सहती तम असार।
उसकी पहल जीत, बहकी तनय मीत,
विरहन मन वितांत जलते तन निशांत।।
विनीता सिंह विनी
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दीप छंद में चार चार चरण समतुकांत होते हैं आद.
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