Explained By Mr. Ashok kumar "ASHK"
उल्लाला छन्द
साहित्य अनुरागी परिवार के समस्त मित्रों को सादर नमन,
उल्लाला छन्द
साहित्य अनुरागी परिवार के समस्त मित्रों को सादर नमन,
साहित्य अनुरागी के अगले चरण की पोस्ट लेकर आपके बीच आज
दि021/10/2019 ई0 को मैं अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी" अपने जन्मदिन के अवसर पर उपस्थित हूँ। इस चरण में हम भागवत जाति या वर्ण संज्ञा के छंद का अध्ययन करेंगे। इस जाति के छंदों के 377 भेद हो सकते हैं और ये 13 मात्रिक छन्द हैं।
वर्णन निम्नलिखित है:---
1. उल्लाला छन्द
इसमें चरणान्त का कोई निश्चित नियम नहीं है,
यद्यपि 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य है।
अंत में गुरु(2) या दो लघु(11) भी ले सकते हैं।
इसका दूसरा नाम चंद्रमणि भी है, इस दो दल वाले उल्लाला में 13वीं मात्रा लघु होगी।
और 15+13 प्रति दल मात्राएं होती हैं।ये अर्धसम्मात्रिक छन्द है।
रचनाकार सिर्फ 13 मात्रिक उल्लाला पर ही प्रयास करें।
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उल्लाला छंद पर स्वरचित उदाहरण--
**** **** **** **
कहने वाले सब कहे,हमको देखो चुप रहे,
हमने लाखों दुख सहे,तुमने भी क्या कुछ गहे।।
जग ने है ठोकर दिया,उह मैं सोचो कब किया,
पहले तो लांछन लिया,तब मैं ये जीवन जिया।।
तुम ढूंढोगे जब जहाँ,मिल जायेंगे हम वहाँ,
मत सोचो हैं अब कहाँ,कबसे देखो हम यहाँ।।
जितने आंसू हम पिये,तुम देखो पीकर प्रिये,
तुम हो यादें तज दिये,हम यादों में रम लिये।।
जब कोई दीपक जले,रहते देखा तम तले,
सपने जो नैनन पले,सब हैं आते दिन ढले।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद - मऊ(उ0प्र0) भारत
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उल्लाला छन्द
13 मात्रिक छन्द 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य।
दो या चारों चरण समतुकांत। चरणान्त दो लघु।
शीतल बहुत बहे पवन, बादल उड़े भरे गगन।
मन नव तरंग आगमन, हर्षित हुआ मिटी तपन।
भगवन मिले हमें शरण, आवागमन मिटे मरण।
धारे कई कई जनम, मन का नहीं छुटै भरम।
सद्गुरु मिले तजा अहम, तज काम मोह लोभ तम।
मानुष जनम यही करम, हरिनाम जाप सुख परम्।
सद्गुरु दिखाय हरि भवन, चरण करूँ सदा नमन।
मन ज्योति ध्यान की जलत, ठहराव आ गया चलत।
प्रभु आ गयी ऋतु मिलन, पूरन हुए सभी जतन।
हो दुख कलेश का पतन,नित नाम जाप कीरतन।
जितेंदर पाल सिंह
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उल्लाला छ्न्द
13 मात्रा ,चार चरण ,11वीं मात्रा लघु अनिवार्य , समतुकान्त ,
......
सांई सुमिरन कीजिए, बस इन्हें जप लीजिए।
जिनके हिय में ये बसे , उनके सब संकट कटे।
.....
छोड़ जगत का मोह अब, रिश्तों से मुख मोड़ अब ।
सांसों का सब खेल है , तब तक जीवन रेल है।
.....
डोर जब यह टूट गई , सांस तन से छूट गई।
चिन्ता सोच नहीं हुआ, जब यम आदेश हुआ।
....
सभी देखते रह गए ,जब सुरधाम चले गए।
करो सुकर्म मान मिले, सत्य का बस ज्ञान मिले।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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उल्लाला छंद
13 मात्रिक छंद 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
चरणान्त गुरु/लघु लघु
कर जोड़े जोड़ करके , पग राखे तोड़ करके ।
मुख हंसी छल-कपट का , मन भरुका है गरल का ।।
कर के वादा चल दिये , जन गण मन से छल किये ।
आँचल माँ गंदा हुआ , राजनीति धंधा हुआ ।।
बचपन बिलखे भूख से , स्वान नहाये दूध से ।
कैसी है असमानता , कल्पित है स्वाधीनता ।।
सेवा जिनका धर्म है , फिर ओछा क्यों कर्म है ।
हे जननायक ध्यान दो , सब जन को सम्मान दो ।।
शब्दार्थ
भरुका - मिट्टी का पात्र,चुक्कड़
अभय कुमार आनंद
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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उल्लाला
१३ मात्रिक ; (११वीं मात्रा अनिवार्य रुप से लघु।)
१
सबके दिल में खोट है । देता हर इक चोट है ।।
रखकर मन पर भार हम।करते जीवन पार हम।।
२
सत्य को मुखर की तृषा। किन्तु विजय पाती मृषा।।
द्वंद भीतर पाल चले।चाहत अंतस ही गले।।
३
विगत की मधुरिम सुधियाँ ।सजल कर जाती अँखियाँ।।
हिय एक अंगार मही।तुहिन कण सी शोभ रही।
४
प्रगट एक वो दीप हो।प्रेम मधुर संगीत हो।।
ह्रदय प्रबल हो भावना।सर्वत्र सुख की कामना।।
५
तुझ पर एक काव्य रचूं। छंद बंधने से बचूं ।।
मुक्त मेरे भाव चलें । वांचन से सब हिय खिलें।।
ललिता
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उल्लाला छंद
ये १३ मात्रिक छंद है,अंत १११ या १२ अनिवार्य,११वि मात्रा लघु।
भारत माता को नमन। वैभव ऐसा के गगन।
सुजला सुफ़ला हो चमन। हमको रखना है अमन।।
जाँबाजों का है वतन। गौरव का होवे मनन।
दुश्मन का कर दो हनन। मिलकर दे दो ये वचन।।
ग़द्दारों का है क़हर। संगीनों का है बसर।
खूनी होली का सफ़र। हो जाते तब ये अमर।।
सरहद पर जब हो कलह। शस्रों से होती सुलह।
अब चलना है वीर पथ। भारत माता की शपथ।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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उल्लाला छंद
13 मात्रिक 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
🌹
मनस भटके यहाँ वहाँ, ढूंढे प्यार कहाँ कहाँ।
प्यास ऐसे कहाँ बुझे, ये सवाल अनबुझे।।
🌹
मन किशोर है जब बना, प्रेम प्रीत से है सना।
फिरता रहे तना तना, छाया प्रेम मन घना।।
🌹
अपलक निहारता रहा, भावो में खिलता रहा।
अमर प्रेम ऐसा पला, खुद ने ही खुद को छला।।
🌹
अब लगी रट है मिलना, प्रेम पाश में बंधना।
अली कली रीत फलना, प्रेम पथ काँटों चलना।।
🌹
यही भाव मन साथ हो, हरपल तेरी बात हो।
गीत लिखूं दिनरात हो, प्रेम प्रीत सौगात हो।।
🌹
✍ अरविन्द चास्टा।
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उल्लाला छंद
१३ मात्रिक छंद ११वीं मात्रा लघुअनिवार्य
दो या चारों चरण समतुकांत ।
चरणान्तदो लघु
विषय: देश
अब देश हो हरा भरा, कर लो यहाँ करम खरा ,
सब साथ नेक दिल यहाँ, हम जैस कौन हो कहाँ ।
कोई न देख अब बुझे , भारत यहाँ हमे सुझे ,
सब यूँ किसान बन रहे ,गलती यहाँ न हम सहे ।
तकनीक भी यहाँ बने ,मन से रहो सदा घने ,
हित देश का बहुत करो ,ठहराव को न अब जरो।
सब का यहाँ सुधार हो ,अब यूँ न पर उधार हो ,
मन से लगाव हो सदा ,हो रोष भी यदाकदा ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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उल्लाला छंद
13 मात्रिक 11वीं मात्रा लघु
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अब प्रज्वलित प्रकाश है । प्रदीप का उल्लास है।
तिमिर कहीं सोया हुआ , साया भी खोया हुआ।
दिव्य रश्मि रविकार है, तम का ही प्रतिकार है।
रोकता प्रतिपल विषाद, ताकता हर पल निषाद।
तीव्रता हृदय की लिए, जलते रहे मन के दिए।
बढ़ता रहे सद्ज्ञान है, मिटता हुआ अज्ञान है।
राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना
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छन्द-**उल्लाला**
मात्राभार-१३मात्रिक छंद
11वी मात्रा अनिवार्यतः लघु
अंत गुरु
हृदय बसा अनुराग हो, नहीं क्रोध की आग हो।
निर्मल मन व्यवहार हो, निश्चित बेड़ा पार हो।।
जिनके मन सद्भावना, पूरी हो सब कामना।
जीवन से क्या भागना, मुश्किल का कर सामना।।
अबके सावन की झड़ी, मुझपर कुछ ऐसे पड़ी।
साजन से मैं क्यों लड़ी, बीत गयी सुख की घड़ी।।
~प्रभात
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उल्लाला छन्द
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13 मात्रिक छन्द
चार चरण 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
अंत गुरु या 1 1 लघु लघु अनिवार्य
दो या चारो चरण समतुकांत
शीर्षक- कान्हा
श्याम ब्रज की एक गली,छेड़ ग्वालन नेक भली,
चीर यमुना तीर हरे, फोड़ मटकी क्षीर भरे।
नैन तिरछे रस बरसे, देख गोपी मन हरषे,
मोहन तो रंग रसिया, प्रीत ह्रदय सँग बसिया।
रैन मधुवन श्याम मिले, नैन राधा प्रेम खिले,
केशव बसे रोम सखी, भू-पवन से व्योम सखी।
माधव की श्यामल छटा, केश सघन सावन घटा,
मेघ बरसे नेह भरे,प्रेम अधर मुरली धरे।
रास कृष्ण मधुवन रचते, नैनन चपल जग हरते,
नीरज चरण शीश धरूँ,जीवन प्रभु सफल करूँ।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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उल्लाला छन्द
13 मात्रिक छन्द 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य।
दो या चारों चरण समतुकांत। चरणान्त दो लघु।
शीतल बहुत बहे पवन, बादल उड़े भरे गगन।
मन नव तरंग आगमन, हर्षित हुआ मिटी तपन।
भगवन मिले हमें शरण, आवागमन मिटे मरण।
धारे कई कई जनम, मन का नहीं छुटै भरम।
सद्गुरु मिले तजा अहम, तज काम मोह लोभ तम।
मानुष जनम यही करम, हरिनाम जाप सुख परम्।
सद्गुरु दिखाय हरि भवन, चरण करूँ सदा नमन।
मन ज्योति ध्यान की जलत, ठहराव आ गया चलत।
प्रभु आ गयी ऋतु मिलन, पूरन हुए सभी जतन।
हो दुख कलेश का पतन,नित नाम जाप कीरतन।
जितेंदर पाल सिंह
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उल्लाला छ्न्द
13 मात्रा ,चार चरण ,11वीं मात्रा लघु अनिवार्य , समतुकान्त ,
......
सांई सुमिरन कीजिए, बस इन्हें जप लीजिए।
जिनके हिय में ये बसे , उनके सब संकट कटे।
.....
छोड़ जगत का मोह अब, रिश्तों से मुख मोड़ अब ।
सांसों का सब खेल है , तब तक जीवन रेल है।
.....
डोर जब यह टूट गई , सांस तन से छूट गई।
चिन्ता सोच नहीं हुआ, जब यम आदेश हुआ।
....
सभी देखते रह गए ,जब सुरधाम चले गए।
करो सुकर्म मान मिले, सत्य का बस ज्ञान मिले।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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उल्लाला छंद
13 मात्रिक छंद 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
चरणान्त गुरु/लघु लघु
कर जोड़े जोड़ करके , पग राखे तोड़ करके ।
मुख हंसी छल-कपट का , मन भरुका है गरल का ।।
कर के वादा चल दिये , जन गण मन से छल किये ।
आँचल माँ गंदा हुआ , राजनीति धंधा हुआ ।।
बचपन बिलखे भूख से , स्वान नहाये दूध से ।
कैसी है असमानता , कल्पित है स्वाधीनता ।।
सेवा जिनका धर्म है , फिर ओछा क्यों कर्म है ।
हे जननायक ध्यान दो , सब जन को सम्मान दो ।।
शब्दार्थ
भरुका - मिट्टी का पात्र,चुक्कड़
अभय कुमार आनंद
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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उल्लाला
१३ मात्रिक ; (११वीं मात्रा अनिवार्य रुप से लघु।)
१
सबके दिल में खोट है । देता हर इक चोट है ।।
रखकर मन पर भार हम।करते जीवन पार हम।।
२
सत्य को मुखर की तृषा। किन्तु विजय पाती मृषा।।
द्वंद भीतर पाल चले।चाहत अंतस ही गले।।
३
विगत की मधुरिम सुधियाँ ।सजल कर जाती अँखियाँ।।
हिय एक अंगार मही।तुहिन कण सी शोभ रही।
४
प्रगट एक वो दीप हो।प्रेम मधुर संगीत हो।।
ह्रदय प्रबल हो भावना।सर्वत्र सुख की कामना।।
५
तुझ पर एक काव्य रचूं। छंद बंधने से बचूं ।।
मुक्त मेरे भाव चलें । वांचन से सब हिय खिलें।।
ललिता
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उल्लाला छंद
ये १३ मात्रिक छंद है,अंत १११ या १२ अनिवार्य,११वि मात्रा लघु।
भारत माता को नमन। वैभव ऐसा के गगन।
सुजला सुफ़ला हो चमन। हमको रखना है अमन।।
जाँबाजों का है वतन। गौरव का होवे मनन।
दुश्मन का कर दो हनन। मिलकर दे दो ये वचन।।
ग़द्दारों का है क़हर। संगीनों का है बसर।
खूनी होली का सफ़र। हो जाते तब ये अमर।।
सरहद पर जब हो कलह। शस्रों से होती सुलह।
अब चलना है वीर पथ। भारत माता की शपथ।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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उल्लाला छंद
13 मात्रिक 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
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मनस भटके यहाँ वहाँ, ढूंढे प्यार कहाँ कहाँ।
प्यास ऐसे कहाँ बुझे, ये सवाल अनबुझे।।
🌹
मन किशोर है जब बना, प्रेम प्रीत से है सना।
फिरता रहे तना तना, छाया प्रेम मन घना।।
🌹
अपलक निहारता रहा, भावो में खिलता रहा।
अमर प्रेम ऐसा पला, खुद ने ही खुद को छला।।
🌹
अब लगी रट है मिलना, प्रेम पाश में बंधना।
अली कली रीत फलना, प्रेम पथ काँटों चलना।।
🌹
यही भाव मन साथ हो, हरपल तेरी बात हो।
गीत लिखूं दिनरात हो, प्रेम प्रीत सौगात हो।।
🌹
✍ अरविन्द चास्टा।
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उल्लाला छंद
१३ मात्रिक छंद ११वीं मात्रा लघुअनिवार्य
दो या चारों चरण समतुकांत ।
चरणान्तदो लघु
विषय: देश
अब देश हो हरा भरा, कर लो यहाँ करम खरा ,
सब साथ नेक दिल यहाँ, हम जैस कौन हो कहाँ ।
कोई न देख अब बुझे , भारत यहाँ हमे सुझे ,
सब यूँ किसान बन रहे ,गलती यहाँ न हम सहे ।
तकनीक भी यहाँ बने ,मन से रहो सदा घने ,
हित देश का बहुत करो ,ठहराव को न अब जरो।
सब का यहाँ सुधार हो ,अब यूँ न पर उधार हो ,
मन से लगाव हो सदा ,हो रोष भी यदाकदा ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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उल्लाला छंद
13 मात्रिक 11वीं मात्रा लघु
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अब प्रज्वलित प्रकाश है । प्रदीप का उल्लास है।
तिमिर कहीं सोया हुआ , साया भी खोया हुआ।
दिव्य रश्मि रविकार है, तम का ही प्रतिकार है।
रोकता प्रतिपल विषाद, ताकता हर पल निषाद।
तीव्रता हृदय की लिए, जलते रहे मन के दिए।
बढ़ता रहे सद्ज्ञान है, मिटता हुआ अज्ञान है।
राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना
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छन्द-**उल्लाला**
मात्राभार-१३मात्रिक छंद
11वी मात्रा अनिवार्यतः लघु
अंत गुरु
हृदय बसा अनुराग हो, नहीं क्रोध की आग हो।
निर्मल मन व्यवहार हो, निश्चित बेड़ा पार हो।।
जिनके मन सद्भावना, पूरी हो सब कामना।
जीवन से क्या भागना, मुश्किल का कर सामना।।
अबके सावन की झड़ी, मुझपर कुछ ऐसे पड़ी।
साजन से मैं क्यों लड़ी, बीत गयी सुख की घड़ी।।
~प्रभात
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उल्लाला छन्द
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13 मात्रिक छन्द
चार चरण 11वीं मात्रा लघु अनिवार्य
अंत गुरु या 1 1 लघु लघु अनिवार्य
दो या चारो चरण समतुकांत
शीर्षक- कान्हा
श्याम ब्रज की एक गली,छेड़ ग्वालन नेक भली,
चीर यमुना तीर हरे, फोड़ मटकी क्षीर भरे।
नैन तिरछे रस बरसे, देख गोपी मन हरषे,
मोहन तो रंग रसिया, प्रीत ह्रदय सँग बसिया।
रैन मधुवन श्याम मिले, नैन राधा प्रेम खिले,
केशव बसे रोम सखी, भू-पवन से व्योम सखी।
माधव की श्यामल छटा, केश सघन सावन घटा,
मेघ बरसे नेह भरे,प्रेम अधर मुरली धरे।
रास कृष्ण मधुवन रचते, नैनन चपल जग हरते,
नीरज चरण शीश धरूँ,जीवन प्रभु सफल करूँ।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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