🌼जय माँ शारदे🙏🏻🌼
छंदों की कार्यशाला में सबका स्वागत है ।
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आज जिन छंदों का अध्ययन हम करेंगे, वे रौद्र वर्ण संज्ञा या जाति के छंद हैं। और इनके १४४ भेद हो सकते हैं। ये ११ मात्रिक छंद हैं।
शिव छंद
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इस छंद के चरणान्त में सगण(११२),
रगण(२१२) या नगण(१११) में किसी को अनिवार्य कर छंद लिखा जा सकता है।
ध्यान रखने योग्य कि इसकी तीसरी, छठी एवं नवीं मात्रा सदा लघु रहती हैं।
(क) सगण(११२)
(ख)- रगण(२१२)
(ग) -नगण(१११)
शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: नगण(111) अनिवार्य
लपट झपट छल करत, अति कपट करत जगत।
दिवस निशि सुपन दिखत, मन धन बिचरत रहत।
जल पनघट भरन चल, तरणि उगत तिमिर ढल।
कलित अलि मटक चलत, धवल तन वसन ढकत।
मुख हसत रुचिर लगत, पकड़ कलश सिर धरत।
लट झटक ठुमक ठुमक, सलिल मुख पड़त छलक।
चमकत रजत सम शशि, नवरत भर सजत निशि।
सलिल बहत तट सरित, करत चलत क्षिति हरित।
अचरज कृति हरि करत, हरि मिलत नित सिमरत।
अवगुण करम तज खल, सरन अब सद्गुरु चल।
शब्दार्थ - निशि- रात, तरणि- सूर्य ,तिमिर- अंधकार ,कलित- सुंदर
अलि- युवती ,रजत- चांदी ,धवल- उज्वल, गोरा
वसन- वस्त्र ,नवरत- सितारे, तारे,नक्षत्र
सरित- नदी ,क्षिति- भूमि ,खल- दुर्जन
जितेंदर पाल सिंह
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: नगण(111) अनिवार्य
डगमग पग शिशु धरत, करतब नव नित करत।
मुख रज दमकत रजत, नटखट सु-मदन बहुत।
मन सुमन पिय मधुबन तज विरह उर विरहन।
अपलक तकत नयनन, हुलस तन-मन कण-कण।
सुरभित अधर बतरस, उलसित मधुर सरबस।
चहल चपल चितवन, महकत कमल उपवन।
सुरभित सुरमय पवन, चमकत दिनकर नयन।
अधरम मधुरम बयन, झलमल निशिकर शयन।
प्रिय पति वह दृग युगल, चढ़त-बढ़त हिय अनल।
कठिन डगर मत मचल, खिलत मुख धवल कमल।
नीलम शर्मा ✍️
चहल-चटकीला, तेज़। ,रज- मिट्टी ,सरबस-सर्वस्व
सुरभित-सुगंधित, सुवासित। ,दृग-आँखें ,धवल- सफेद
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छन्द-**शिव**
मात्राभार-११मात्रिक छंद
चरणान्त: सगण(११२)
रगण(२१२)नगण(१११)
(३,६,९)मात्रा अनिवार्यतः लघु
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फूल बनकर रहना ,नीर बनकर बहना
झूठ मत तुम सहना , साँच हरदम कहना
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मोह मगन जागता , रात गगन ताकता
साँझ किरण माँगता , भोर तमस भागता
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करत भरत सब जगत , मन अभिनय कर ठगत
धरम करम नहिं करत , दुख सह-सह कर मरत
~प्रभात
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शिव छंद
११ मात्रिक
राह में मिलो कभी ,आ गले लगो कभी
प्रेम दीप तो जले ,स्वप्न नैन में पले
दूरियाँ सता रहीं ,धाह दिल जला रहीं
रात दिन कचोटती , देख याद नोंचती
बाग में बहार हो, प्रीति की बयार हो
उर रहे हरा-भरा, प्रेम वृष्टि हो जरा
हो परी कि अप्सरा, मैं करूँ बखान क्या
नैन फेर देखती, तो लगे कि उर्वशी
आयुष कश्यप
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शिव छंद
ये ११ मात्रिक छंद है
चरणांत ११२/२१२/१११ अनिवार्य
३-६-९ मात्रा लघु
जाप-पाठ रोज़ हो। रोज़ दान-धर्म हो।
देह ये निरोग हो । राम जाप रोज़ हो।।
देख अंग-रंग ये। थाम लेत संग है।
देख प्रीत दंग हो। भाव-भक्ति अंग हो।।
होय प्रीत लाज जो। छोड़ काम काज जो।
चाह पूर्ण आज हो। साथ पुण्य काज हो।
लोभ,मोह छोड़ ये। छोड़ क्रोध काम ये।
काम पूर्ण नित्य ये। होय पुण्य धाम ये।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: नगण (111) अनिवार्य
विधान- तीसरी, छठवीं नवमी मात्रा सदा लघु रहती है।
कुल चार चरण दो दो चरण समतुकांत ,
(1)
अपलक निरखत नयन, अनुपम छवि मन मदन।
किसलय सुमन सुरभित, उड़ नभ विहग प्रमुदित।
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(2)
नरकट अधर नटवर, सघन चिकुर जलधर।
चपल नयन मधुप सम, उदित तरणि गगन भ्रम।
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( 3)
वसन उदधि कनमकय, नमन चरण विमलमय।
कुण्डल चमकत द्युति सम, किशन दरस अतुल धन।
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(4)
बजत मधुर सरगम, मगन तन मन हरदम ।
सुरमय सरस मधुरिम, सुखमय धवलगिरि हिम।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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शिव छंद 11 लघु
🌹
मरघट पर शिव रहत, जन-जन मन भय हरत।
भटकत मन शम करत, बम बम बम जग सुनत।।
🌹
निरखत रुदन अविचल, परिजन करत हलचल।
अटल मरण जग कहत, शव दहन मिलहि करत।।
🌹
जब तम जग मह परत, जल थल नभ सब निरत।
मन उरग सम बन कर, अगन मन परगट कर।।
🌹
धरण चलत गगन तकत, लुडकत मुँह बल गिरत।
निसदिन जब अति अधिक, तव जन पर करत धिक।।
🌹
शिव शिव रट लग रहल, हरि हर सब मन बहल।
हर हर हर मन सकल, कर कर विनय हर पल।।
🌹✍
अरविन्द चास्टा
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शिव छंद
11 मात्रिक छंद
चरणान्त ११२/२१२/१११ अनिवार्य
३-६-९ वीं मात्रा लघु
देव देख दुर्दशा , पाप है रचा-बसा ।
पाप सब हरो सुनो , जग सुनो नई चुनो ।।
मारते सुता यहाँ , सामना कहाँ यहाँ ।
कोख है कराहती , देख मात भारती ।।
फूल जो खिली नहीं , डाल पर मरी कहीं ।
बीज सिर्फ बो दिया , नव प्रभूत खो दिया ।।
बालिका बिना कहीं सृष्टि है सुना कही ?
मन बड़ा उदास है । है किधर समाज है ?
शब्दार्थ :-
प्रभूत - कली , सामना - समानता
अभय कुमार आनंद
बांका बिहार व
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: सगण(112) अनिवार्य
गुण विहीन मत रहो, मन अधीन मत चलो।
नाम शिव निरगुण है, नाम जाप सद्गुण है।
सब दिशा विचरत है, पारब्रह्म निकट है।
हे! कृपालु जग पिता, नाम देहु दुख मिटा।
राम नाम नित भजो, मैल मन सकल तजो।
नभ जल धरा बसता, सृष्टि का शिव करता।
जप निरंतर शिव को, काट पाप निसतरो।
धर्मशील उर धरे, मुक्त नाम प्रभु करे।
योनि योनि भटकता, पाप कर्म निकटता।
जन्म बंधन सब कटे, मुक्ति नाम शिव रटे।
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: रगण(212) अनिवार्य
आ गयी निकट घड़ी, आँख संग प्रिय लड़ी।
रूपवान है पिया, ले गया सखी जिया।
सोमवार व्रत धरे, शिव कृपा बहुत करे।
वर मिला बहुत भला, प्रेम मोर हिय पला।
आज हूँ सुखी बड़ी, शंभु दृष्टि है पड़ी।
जा रही पिया गली, साज रूप सम कली।
छूट सब सखी गयीं, माँ पिता संग नहीं।
ब्याह ले गए पिया, हाथ हाथ में लिया।
स्वर्ग सम कुटुंब है, मन बड़ा प्रसन्न है।
अब नहीं विरह जलूँ, मान संग गृह रहूँ।
जितेंदर पाल सिंह
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शिव छ्न्द
11 मात्रा ,चार चरण , दो दो या चारो चरण समतुकान्त ,
3,6,9 मात्रा पर लघु अनिवार्य , अंत 212 या 112 या 111 ,
......
राम ब्याह ले चले, प्रीत रीत दे चले।
धूम आज है वहां, राम राज है जहां।
......
कूटनीति कर नई , कोप रूप धर गई।
मांगती वचन रही , राम वन गमन कही ।
भोर सब गया बदल, राज्य में उथल पुथल।
रो रहे सभी विकल, होनहार था अटल ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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शिव छंद-
11मात्रिक छंद
चरणान्त-नगण*(111)
विधान-तीसरी,छठवीं नवमीं मात्रा सदैव लघु
(1)
कनक सुमन खिलत वन प्रमुदित सकल त्रिभुवन
मधुर ध्वनि शुभ अनुपम सरस सरगम निरुपम ।
(2)
शिव शिव प्रथम स्मरण। जगत पितु सुखद चरण ।
प्रतिपल सुखकर सगुण। हरि हर हृदय अवगुण।।
(3)
चरण अमृत कलश नित। नमन शिव विनय सहित।
हृदय जलधि शुभ सदय। नित अतुलित रवि उदय।
(4)
जन जन शिव भज नियम । तन मन सुरभित परम।
कल कल नित जल बहत। अजर अमर शिव कहत।
(5)
बम बम बम जग विनय। हर हर शिव शिव अनय।
गुण निधि अनुपम सरल ,नटवर प्रिय बहु गरल।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: नगण(111) अनिवार्य
लपट झपट छल करत, अति कपट करत जगत।
दिवस निशि सुपन दिखत, मन धन बिचरत रहत।
जल पनघट भरन चल, तरणि उगत तिमिर ढल।
कलित अलि मटक चलत, धवल तन वसन ढकत।
मुख हसत रुचिर लगत, पकड़ कलश सिर धरत।
लट झटक ठुमक ठुमक, सलिल मुख पड़त छलक।
चमकत रजत सम शशि, नवरत भर सजत निशि।
सलिल बहत तट सरित, करत चलत क्षिति हरित।
अचरज कृति हरि करत, हरि मिलत नित सिमरत।
अवगुण करम तज खल, सरन अब सद्गुरु चल।
शब्दार्थ - निशि- रात, तरणि- सूर्य ,तिमिर- अंधकार ,कलित- सुंदर
अलि- युवती ,रजत- चांदी ,धवल- उज्वल, गोरा
वसन- वस्त्र ,नवरत- सितारे, तारे,नक्षत्र
सरित- नदी ,क्षिति- भूमि ,खल- दुर्जन
जितेंदर पाल सिंह
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: नगण(111) अनिवार्य
डगमग पग शिशु धरत, करतब नव नित करत।
मुख रज दमकत रजत, नटखट सु-मदन बहुत।
मन सुमन पिय मधुबन तज विरह उर विरहन।
अपलक तकत नयनन, हुलस तन-मन कण-कण।
सुरभित अधर बतरस, उलसित मधुर सरबस।
चहल चपल चितवन, महकत कमल उपवन।
सुरभित सुरमय पवन, चमकत दिनकर नयन।
अधरम मधुरम बयन, झलमल निशिकर शयन।
प्रिय पति वह दृग युगल, चढ़त-बढ़त हिय अनल।
कठिन डगर मत मचल, खिलत मुख धवल कमल।
नीलम शर्मा ✍️
चहल-चटकीला, तेज़। ,रज- मिट्टी ,सरबस-सर्वस्व
सुरभित-सुगंधित, सुवासित। ,दृग-आँखें ,धवल- सफेद
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छन्द-**शिव**
मात्राभार-११मात्रिक छंद
चरणान्त: सगण(११२)
रगण(२१२)नगण(१११)
(३,६,९)मात्रा अनिवार्यतः लघु
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फूल बनकर रहना ,नीर बनकर बहना
झूठ मत तुम सहना , साँच हरदम कहना
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मोह मगन जागता , रात गगन ताकता
साँझ किरण माँगता , भोर तमस भागता
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करत भरत सब जगत , मन अभिनय कर ठगत
धरम करम नहिं करत , दुख सह-सह कर मरत
~प्रभात
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शिव छंद
११ मात्रिक
राह में मिलो कभी ,आ गले लगो कभी
प्रेम दीप तो जले ,स्वप्न नैन में पले
दूरियाँ सता रहीं ,धाह दिल जला रहीं
रात दिन कचोटती , देख याद नोंचती
बाग में बहार हो, प्रीति की बयार हो
उर रहे हरा-भरा, प्रेम वृष्टि हो जरा
हो परी कि अप्सरा, मैं करूँ बखान क्या
नैन फेर देखती, तो लगे कि उर्वशी
आयुष कश्यप
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शिव छंद
ये ११ मात्रिक छंद है
चरणांत ११२/२१२/१११ अनिवार्य
३-६-९ मात्रा लघु
जाप-पाठ रोज़ हो। रोज़ दान-धर्म हो।
देह ये निरोग हो । राम जाप रोज़ हो।।
देख अंग-रंग ये। थाम लेत संग है।
देख प्रीत दंग हो। भाव-भक्ति अंग हो।।
होय प्रीत लाज जो। छोड़ काम काज जो।
चाह पूर्ण आज हो। साथ पुण्य काज हो।
लोभ,मोह छोड़ ये। छोड़ क्रोध काम ये।
काम पूर्ण नित्य ये। होय पुण्य धाम ये।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: नगण (111) अनिवार्य
विधान- तीसरी, छठवीं नवमी मात्रा सदा लघु रहती है।
कुल चार चरण दो दो चरण समतुकांत ,
(1)
अपलक निरखत नयन, अनुपम छवि मन मदन।
किसलय सुमन सुरभित, उड़ नभ विहग प्रमुदित।
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नरकट अधर नटवर, सघन चिकुर जलधर।
चपल नयन मधुप सम, उदित तरणि गगन भ्रम।
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( 3)
वसन उदधि कनमकय, नमन चरण विमलमय।
कुण्डल चमकत द्युति सम, किशन दरस अतुल धन।
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(4)
बजत मधुर सरगम, मगन तन मन हरदम ।
सुरमय सरस मधुरिम, सुखमय धवलगिरि हिम।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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शिव छंद 11 लघु
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मरघट पर शिव रहत, जन-जन मन भय हरत।
भटकत मन शम करत, बम बम बम जग सुनत।।
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निरखत रुदन अविचल, परिजन करत हलचल।
अटल मरण जग कहत, शव दहन मिलहि करत।।
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जब तम जग मह परत, जल थल नभ सब निरत।
मन उरग सम बन कर, अगन मन परगट कर।।
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धरण चलत गगन तकत, लुडकत मुँह बल गिरत।
निसदिन जब अति अधिक, तव जन पर करत धिक।।
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शिव शिव रट लग रहल, हरि हर सब मन बहल।
हर हर हर मन सकल, कर कर विनय हर पल।।
🌹✍
अरविन्द चास्टा
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शिव छंद
11 मात्रिक छंद
चरणान्त ११२/२१२/१११ अनिवार्य
३-६-९ वीं मात्रा लघु
देव देख दुर्दशा , पाप है रचा-बसा ।
पाप सब हरो सुनो , जग सुनो नई चुनो ।।
मारते सुता यहाँ , सामना कहाँ यहाँ ।
कोख है कराहती , देख मात भारती ।।
फूल जो खिली नहीं , डाल पर मरी कहीं ।
बीज सिर्फ बो दिया , नव प्रभूत खो दिया ।।
बालिका बिना कहीं सृष्टि है सुना कही ?
मन बड़ा उदास है । है किधर समाज है ?
शब्दार्थ :-
प्रभूत - कली , सामना - समानता
अभय कुमार आनंद
बांका बिहार व
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: सगण(112) अनिवार्य
गुण विहीन मत रहो, मन अधीन मत चलो।
नाम शिव निरगुण है, नाम जाप सद्गुण है।
सब दिशा विचरत है, पारब्रह्म निकट है।
हे! कृपालु जग पिता, नाम देहु दुख मिटा।
राम नाम नित भजो, मैल मन सकल तजो।
नभ जल धरा बसता, सृष्टि का शिव करता।
जप निरंतर शिव को, काट पाप निसतरो।
धर्मशील उर धरे, मुक्त नाम प्रभु करे।
योनि योनि भटकता, पाप कर्म निकटता।
जन्म बंधन सब कटे, मुक्ति नाम शिव रटे।
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शिव छन्द
11 मात्रिक छन्द
चरणान्त: रगण(212) अनिवार्य
आ गयी निकट घड़ी, आँख संग प्रिय लड़ी।
रूपवान है पिया, ले गया सखी जिया।
सोमवार व्रत धरे, शिव कृपा बहुत करे।
वर मिला बहुत भला, प्रेम मोर हिय पला।
आज हूँ सुखी बड़ी, शंभु दृष्टि है पड़ी।
जा रही पिया गली, साज रूप सम कली।
छूट सब सखी गयीं, माँ पिता संग नहीं।
ब्याह ले गए पिया, हाथ हाथ में लिया।
स्वर्ग सम कुटुंब है, मन बड़ा प्रसन्न है।
अब नहीं विरह जलूँ, मान संग गृह रहूँ।
जितेंदर पाल सिंह
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शिव छ्न्द
11 मात्रा ,चार चरण , दो दो या चारो चरण समतुकान्त ,
3,6,9 मात्रा पर लघु अनिवार्य , अंत 212 या 112 या 111 ,
......
राम ब्याह ले चले, प्रीत रीत दे चले।
धूम आज है वहां, राम राज है जहां।
......
कूटनीति कर नई , कोप रूप धर गई।
मांगती वचन रही , राम वन गमन कही ।
भोर सब गया बदल, राज्य में उथल पुथल।
रो रहे सभी विकल, होनहार था अटल ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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शिव छंद-
11मात्रिक छंद
चरणान्त-नगण*(111)
विधान-तीसरी,छठवीं नवमीं मात्रा सदैव लघु
(1)
कनक सुमन खिलत वन प्रमुदित सकल त्रिभुवन
मधुर ध्वनि शुभ अनुपम सरस सरगम निरुपम ।
(2)
शिव शिव प्रथम स्मरण। जगत पितु सुखद चरण ।
प्रतिपल सुखकर सगुण। हरि हर हृदय अवगुण।।
(3)
चरण अमृत कलश नित। नमन शिव विनय सहित।
हृदय जलधि शुभ सदय। नित अतुलित रवि उदय।
(4)
जन जन शिव भज नियम । तन मन सुरभित परम।
कल कल नित जल बहत। अजर अमर शिव कहत।
(5)
बम बम बम जग विनय। हर हर शिव शिव अनय।
गुण निधि अनुपम सरल ,नटवर प्रिय बहु गरल।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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