Saturday, November 16, 2019

बहरे_रमल_मुसद्दस_महजूफ

Explained By Mr. Jabir Ayaaz Saharanpuri ji

बहरे_रमल_मुसद्दस_महजूफ
फाइलातुन,फाइलातुन,फाइलुन
2122, 2122, 212

बहरे रमल की कईं किसमें हैं पर ये बहर मुसद्दस है तीन आरकान वाली और महज़ूफ भी है यानी के इसके तीसरे रुकन फाइलातुन 2122 के आख़री दो हर्फ"तुन२"या मात्रा को हज़फ मतलब काट कर फाइलुन 212 रहने दिया!

इस बहर को उर्दू अदब में बहुत शोहरत मिली फिल्मी गीतों में भी इसे खूब आजमाया गया छोटी बहर है और छोटी बहरों की एक ख़ास बात ये होती है कि कम शब्दों में बडी बता कह दी जाती है इसीलिए कवियों ने छोटी बहरों को खूब पसंद किया!

आपको भी ये एक छोटी बहर दी जा रही है आप भी लिखये और अपनी क़लम से अपने ख्यालात मोतियों की तरह छोटे से धागे में पिरो दीजिए!नीचे कुछ फिल्मी गीत दिए गये हैं उनसे मदद लें उदाहरण में मेरी गज़ल भी देख लें!

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फिल्मी गीत
*तुम न जाने किस जहां में खो गये |
*दिल के अरमां आंसूओं में बह गये |
*हर जगह दुश्मन ज़माना गम नहीं |
*इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल |

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क्या यूँही हर दिन गुज़ारा जाएगा

या कभी दिल को क़रार आ जाएगा
आज़माई जाएगी जब जब वफा
हर घडी इक रूप धारा जाएगा
इश्क़ से ही हारना काफी नहीं
ज़िन्दगी से भी तो हारा जाएगा
दिल गया,दौलत गई,फिर जाँ गई
इश्क़ में अब क्या हमारा जाएगा
एै मुहब्बत हुक्म करते जा तु बस
हुक्म जो भी हो गवारा जाएगा
आज फिर घर से निकल आए हैं वो
बेसबब फिर कोई मारा जाएगा

जाबिर अयाज़ सहारनपुरी
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बह्र- बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
अर्कान- फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
वज़्न- 2122 2122 212

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है उन्हें हमसे अदावत क्या करें ।
और वो भी बेमुरव्वत क्या करें ।।

लाख हो नफ़रत उन्हें हमसे मगर।
है हमें उनसे मुहब्बत क्या करें ।।

जब हुए तन्हा सफ़र में प्यार के ।
हो गयी ख़ुद से बग़ावत क्या करें ।।

आपके बिन दिल कहीं लगता नहीं ।
आप हैं दिल की ज़रूरत क्या करें।।

हो भला कैसे मुकम्मल आप बिन।
हैं ग़ज़ल की आप चाहत क्या करें।।

चाहकर भी कुछ बयाँ करता नहीं ।
बेज़बां दिल है शिकायत क्या करें।।

अब ग़लत कहना ग़लत को है ग़लत।
"अश्क" है पर सच की आदत क्या करें।।

@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद- मऊ (उ0 प्र0) भारत
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 बहरे-रमल
मुसद्दस महज़ूफ
2122 2122 212


ग़ज़ल

रोज़ आहिस्ता से, गुज़रे ज़िन्दगी,
रेत सी हाथों से, बिखरे ज़िन्दगी।

बात रिश्तों की सुनाऊँ क्या तुम्हें,
जो मिले सबके थे, नखरे ज़िंदगी।

ग़ैर अपनों से लगें, कुछ इस क़दर,
ख़ून के रिश्तों से गहरे ज़िन्दगी।

इश्क़ को समझे, हक़ीक़त हम यहां,
हो गए जज़्बात, क़तरे ज़िन्दगी।

उम्र समझौतों में, गुज़री है यहां,
बस निभाने की थी फ़िक़रे ज़िन्दगी।

ढूंढ़ लेता हूँ, मैं गैरों में उन्हें,
जो लगें अपने से, चेहरे ज़िन्दगी।

है ख़ुदा मेरा निगहबां, हर क़दम,
'दीप' कट जाए ये, सफ़रे ज़िन्दगी।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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बह्र- बह्रे रमल मुसद्दस महजूफ
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
वज्न 2122 2122 212
.......
गजल
2122 2122 212
बेवफा से हम वफ़ा करते रहे
अपने वादों पर सदा चलते रहे
.....
क्या पता था प्यार है कुछ दिन सनम
हर कदम खुद को फना करते रहे
.....
हर जगह थी चाहतों की रंजिशे
हर जगह हमसे जफा करते रहे
......
आज तुमसे दूर हूं तो क्या हुआ
याद तुमको हर दफा करते रहे
.....
मर मिटे हमराज तेरे इश्क में
तुम हमेशा ही खफा करते रहे
.....
इश्क का सौदा जहां में कर लिया
वो सदा घाटा नफा करते रहे
......
हर किसी ने इश्क को रुसवा किया
दाग दामन के सफा करते रहे
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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वज़्न --2122-2122-212
बहरे- रमल- मुसद्दस-महफूज

अर्कान --फाइलातुन- फाइलातुन- फाइलुन
क़ाफ़िया ----अना + रद़ीफ़---मुझे।
ग़ज़ल*****
*******

दिल दिया है दर्द भी सहना मुझे
और अब कुछ भी नहीं कहना मुझे।

याद जब आकर सताएगी मुझे
अश्क को दरिया बना बहना मुझे।

जिंदगी तूफ़ान सी बन जाएगी
हर थपेड़े उम्र भर सहना मुझे।

दूर पर्वत फर उठे काली घटा
धार जल की बन वहीं रहना मुझे।

जब बहारें इस चमन में आएंगी
बन महक हर बाग में बहना मुझे।

है वफ़ा मेरी तुम्हारे ही लिए
जिंदगी की शाम बस करना मुझे।

आंख का आंसू नहीं बनना मुझे
अक्स तेरे रूप का रखना मुझे।

15/11/19
राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना
गुड़गांव
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ग़ज़ल
रदिफ...तो जरा
क़ाफ़िया...ओ स्वर
वज्न...२१२२ २१२२ २१२

राज़ दिल का ,तुम बताओ तो कभी,
क्यू छुपाते हो, जताओ तो कभी।

क्या हुयी वो भूल ,हमसे आख़री,
जो दबाए ग़म, सुनाओ तो कभी।

लाख रंजिश भी , दबी हो दरमियाँ,
अब मुहब्बत से, बुलाओ तो कभी ।

जुस्तजू बेनाम , मत कर हमनवा,
रश्क सीने से ,हटाओ तो कभी।

थी “सुवी” तेरी ,कभी जो राज़दा,
आज़ की ज़हमत ,उठाओ तो कभी।

(आज़...लालच/लोभ)

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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बह्र-रमल मुसद्दस महजूफ
अर्कान-फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़न-2122 2122 212

नाम तेरा दिल पे मैं लिखता रहा
और लिखकर बारहा पढ़ता रहा

है मेरे लब पे कोई भी शिक़वा नही
वो भले मुझपे सितम करता रहा

तिश्नगी मन की न बुझ पायी कभी
जाम से तर होंठ मैं करता रहा

चाँदनी झिलमिल सी अब चमके कहीं
तीरगी में देर तक चलता रहा

हार से कृष्णा कभी डरना नहीं
हार से ही जीत का रस्ता रहा

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा, कुशीनगर, उ.प्र.
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बहरे-रमल
मुसद्दस महज़ूफ
2122 2122 212

ग़ज़ल

बात बिगड़ी, इक़ ज़रा सी बात में,
पूछ बैठे, तुम कहाँ थे? रात में।

अश्क़ आखों से निकल आये मिरी,
हम कहें क्या? तल्ख़िए हालात में।

ख़ूब अंजामे मुहोब्बत का सिला,
लुट गए हम, इश्क़ के जज़्बात में।

ख़्वाहिशे दिल, चाहते हैं तुम कहो,
हम तो हाज़िर हैं, तेरी ख़िदमात में।

छोड़कर हमको, नहीं जाना कहीं,
मर ही जायेंगे, सनम सदमात में।

खेल थी तेरी, मुहोब्बत बेवफ़ा,
हार हम तुझसे गए, शह-मात में।

ठोकरें ग़म की, मिटा सकती नहीं,
'दीप' जीना है, ग़मे लम्हात में।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़
अरकान---फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
वज़्न---2122 2122 212
रदीफ़--देर तक
क़ाफ़िया--आया

ग़ज़ल-----

कर के वादा तू न आया देर तक
रंजो-ग़म ख़ुद को सुनाया देर तक

देखकर जलता पतिंगा सामने
शम्अ ने खुद को जलाया देर तक

उसकी नज़रों में न जाने क्या नशा
बिन पिए मैं लड़खड़ाया देर तक

वक़्त हमको ले के आया आज फ़िर
तेरे दर पर सर झुकाया देर तक

पर क़तर जिसको रखा था क़ैद में
वो परिंदा जी न पाया देर तक

काम वो आया नहीं है वक़्त पर
दोस्त को भी आज़माया देर तक

ज़ख़्म देकर आप तो फिर चल दिए
हमने खुद मरहम लगाया देर तक

अब्र ने रुदादे-ग़म अपनी सुना
आसमाँ को भी रुलाया देर तक

चंद यादें चंद आँसू और ग़म
"अंशु" इनसे दिल सजाया देर तक

अंशु विनोद गुप्ता.( दिल्ली )
16/11/2019.
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बह्र -बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
अर्कान-फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाईलुन


काफ़िया-आता
रदीफ़-कौन है

वज्न- 2122 2122 212

दर्द को दिल में बसाता कौन है ।
ख्वाहिशों के घर जलाता कौन है।

मुफलिसी के दौर में कैसे भला
बेसबब मोती लुटाता कौन है ।

दफअतन दिल में कोई जो आ गया
वस्ल के सपने सजाता कौन है ।

रब ने ही जोड़ें मरासिम आपसे
खामखाँ दिल को लगाता कौन है ।

याद में महबूब की इस नाम को,
रेत पर लिख कर मिटाता कौन है ।

बाग से रूठी बहारें आज तक ,
गुल खुशी के फिर खिलाता कौन है ।

तिश्नगी बुझ ना सकी 'मन' की यूँ ही
प्यास सागर से बुझाता कौन है।

गीता गुप्ता 'मन'

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बहरे-रमल
मुसद्दस महज़ूफ
2122 2122 212

ग़ज़ल

सामने बातें करें, अज़मत भरी,
अस्ल सीरत है, बड़ी ग़ीबत भरी।

दौर ऐसा आ गया, हम क्या कहें,
मज़हबी बातें हुईं, नफ़रत भरी।

याद हैं मुझको, मुलाकातें हसीं,
थी नज़र तेरी, सनम उल्फ़त भरी।

क्या मिला तुमको हमें रुसवा किया,
आदतें ऐसी नहीं, हिकमत भरी।

दिन तसव्वुर में, नहीं था ये मिरे,
शाम तन्हा हो गयी, फ़ुरसत भरी।

ज़र की चाहत में, बदल रिश्ते दिये,
इश्क़ की दुनिया, करी ग़ुरबत भरी।

इश्क़ पर अब मैं, यकीं कैसे करूँ,
'दीप' की रातें रहीं, फुरक़त भरी।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'

अज़मत- इज़्ज़त/सम्मान
हिक़मत- बुद्धिमत्ता
फुरक़त- वियोग/जुदाई
ग़ुरबत- ग़रीबी
ग़ीबत- पीठ पीछे निंदा
सीरत- स्वभाव

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 बहरे -रमल -मुसद्दस -महजूफ
अरकान : फाइलातुन,फाइलातुन,फाइलुन
वजन:2122. 2122. 212

रदीफ़: कीजिऐ
काफिया: आ स्वर
गज़ल

दर्द को यूँ अब हराया कीजिऐ ,
हौसले हरदम जगाया कीजिऐ ।१।

है यहाँ बहती सदा ही जिंदगानी ,
रोज सागर से बनाया कीजिऐ ।२।

प्यार जीवन में यहाँ गुनहा नहीं है ,
बंदगी से अब निभाया कीजिऐ।३।

डूबती साँसे नज़रअंदाज है,
खुद न नज़रे यूँ गिराया कीजिऐ।४।

बोलने वाले नहीं कुछ बोलते ,
दिल न अब ऐसे जलाया कीजिऐ ।५।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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 गज़ल
बहरे-रमल मुसद्दस महज़ूफ
2122 2122 212
क्वाफि आना स्वर
रदीफ़ आ गया

🌹
ख्वाब आँखों में सजाना आ गया
फूल बागों में खिलाना आ गया।
🌹
हो गई श्रृंगार अब ये जिंदगी
गीत रागों में बनाना आ गया।
🌹
था कहीं भटका हुआ सा राह में
इश्क में मेरा ठिकाना आ गया
🌹
है लगी बनने कहानी प्यार की
प्रेम बातों में जताना आ गया
🌹
हो रही है अब मुकम्मल शाइरी।
शेर महफ़िल में सुनाना आ गया
🌹
साथ तेरा क्या मिला ए जिंदगी
जी रहा हूँ ये बताना आ गया।
🌹
ना करो अविराज बातें यूँ बड़ी
प्यार को दिल में छुपाना आ गया।
अरविन्द चास्टा "अविराज"

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बहरे-रमल
मुसद्दस महज़ूफ
2122 2122 212

बह्र ÷÷ 2122 2122 212
काफ़िया ÷÷ आने
रदीफ़ ÷÷ में है

कैद दिल तो हुस्न पैमाने में है
शब कटी मेरी ये मैखाने में है

अब खुदा लगता हमें अपना सनम
बस इरादा जीस्त महकाने में है

दिल मेरा है जाने जाँ मासूम सा
हां हुआ ये इश्क अनजाने में है

रूह में तू घुल गया है इस कदर
याद तेरी देख सिरहाने में है

है तेरा अहसास भी तो मखमली
मिल गया जैसे तू नजराने में है

तेरी चाहत काम कुछ वो कर गई
खिल रहीं कलियां भी वीराने में है

मैक़दे में वो नशा जानम कहाँ
जो नजर के जाम छलकाने में है

ललिता गहलोत

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