मानव वर्ण संज्ञा अथवा जाति छंद, ये छन्द 14 मात्रिक छन्द हैं।
हाकलि छन्द
चरणान्त: गुरु (2) अनिवार्य।
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
हाकिल छन्द के लिए ज़रूरी है, कि तीन चौकल के बाद एक गुरु(2) हो।
"त्रै चौकल गुरु हाकिल"
नोट: यदि चार चरणों में तीन चौकल न बन पा रहे हों, तो इस छन्द को मानव छन्द कहेंगे।
-----------------------------------
सोचो समझो बोलो तब, वाणी पहले तोलो सब ।
मन में ईर्ष्या पालो मत, हिम्मत से तुम हारो मत ।
......
शीतल सा मन रखना तुम, चन्दन सा तन रखना तुम ।
चाहे जितनी विपदा हो , सहना जैसे वसुधा हो ।
......
सूरज बनकर उगना तुम, दीपक बनकर जलना तुम।
संस्कृति पथ पर चलना तुम, गुण की औषधि बनना तुम ।
.......
चमको जैसे मोती हो, धागा माणिक होती हो।
निश्छल मोहन प्यारे थे , राधा को अति प्यारे थे ।
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
------------------------------------
हाकलि छंद14 मात्रिक,त्रय चौकल गुरु हाकलि।
*****************************
1-11-19
**********
हाकलि छंद
***********
नीला अंबर देखो तुम, सूरज से कुछ सीखो तुम।
फैला अपनी किरणों को, हर लो धरती के तम को।
तारों की रजनी तुम बन कर, भीगा आंचल फैलाकर।
प्यारी शीतलता देना, तापित मन ठंडा करना।
यात्री हो जीवन पथ के, चलना नित साथी बन के।
यात्रा अनजानी है .... ये, दुनिया पीछे रह जानी ... ये।
मीठी बोली मधु...... होती, पीड़ा नाशक ये ..….. होती।
शीतल जब....…वाणी होती, ज्वाला भी ........…ठंडी होती।
ईश्वर की प्रतिकृति .. ..बन के, जीवन की अनुमति ....बन के।
सांसों को जीना ......... सीखो, मानव बन रहना...... ..सीखो।
राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना
----------------------------------------
हाकिल छन्दतीन चौकल के बाद गुरु(2) अनिवार्य
परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत
जीवन का पथ है दुर्गम, सुख-दुख का रहता संगम।
संभल कर तुम सब चलना, दुख मिलने पर मत डरना।
मत मन ये कलुषित रखना, कारज मत अनुचित करना।
सुन बतियाँ करता सच्ची, मत समझो यह हैं कच्ची।
मानस को एक कर जानो, आपस में एकता ठानो।
मत बनना तुम उत्पाती, सब अपने जन हैं संघाती।
एक धरती सबकी माता, एक प्रभु है सबका दाता।
एक जल ही सबने पीना, एक सत है सबका मरना।
नीरधि एक सब नदियों का, एक प्रभु ही सबका कर्ता।
एक सधते सब है सधता, क्यूँ दुविधा मन है रखता।
नीरधि-- सागर
जितेंदर पाल सिंह
---------------------------------------------
हाकलि छंद
चरणांत २ गुरु अनिवार्य, १४ मात्रिक छंद,
३ चौकल के बाद १ गुरु अनिवार्य ।
अपनी भाषा हिंदी हो। अद्भुत साहित्य सृजन हो।
ये पढ़कर जन ज्ञानी हो। तन मन सारा पुलकित हो।।
सृजनात्मक लेखन होवे। ध्यान मनन पूरा होवे।
लेखन में मौलिकता हो। शब्दों में लौलिकता हो।
आयामों की छाया हो। लेखन कौशल सारा हो।
सब तथ्यों का निरूपण हो। ये साहित्यिक सृजन हो।।
छू जाए जो तन मन को। लिख दो ऐसे चरणों को।
संस्कारों की धारा हो। सच्चाई का नारा हो।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
-------------------------------
हाकलि छन्द14 मात्रिक छन्द
तीन चौकल के बाद एक गुरु(2)
दो दो या चारो चरण समतुकांत
मापनी:-
22 22 22 2
माखन मोहन खावत है, देखत यशुदा धावत है,
मटकी पटकी झटपट है, तेरो कान्हा नटखट है।
पनघट आकर छेड़त है, ऊधम करके खेलत है,
छीना झपटी माखन की, लीला प्यारी मोहन की।
नैनन रसना घोलत री, मधुरस मीठे बोलत री,
गोकुल सँकरी गलियों में, खोई मोहन मुरली में।
राधा झूले झूला रे, कान्हा हमको भुला रे,
खोया राधा नैनन में, नटवर मोरे तन- मन में।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर( छत्तीसगढ़)
------------------------------------------
हाकलि छंद- 14 मात्रिक छन्द (तीन चौकल अंत में द्विकल अनिवार्य)
**** **** **** **
जनता सुधबुध खोई है, सत्ता सचमुच सोई है,
खाने वाला कोई है निर्धन बस्ती रोई है।।
झूठी बातें गढ़ते जब, होते देखा लज्जित कब,
पढ़ना लिखना छोड़ो सब, विकसित गंगा देखो अब।।
देखो पानी बिकता है, महंगा जीवन लगता है,
ठगने वाला ठगता है, सहने वाला सहता है।।
खतरा सबके ऊपर है साँसें लेना दूभर है।।
दूषित जिनसे निर्झर है, उनपर मानव निर्भर है।।
भोले भाले लगते हैं, उल्टी चालें चलते हैं
खींचातानी करते हैं, नेता उनको कहते हैं।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट जनपद- मऊ(उ0प्र0)भारत
दि0-03/112019# 01:00 AM
-------------------------------------------
हाकलि छन्द
14 मात्रिक छन्द
तीन चौकल के बाद एक गुरु(2)
दो दो या चारो चरण समतुकांत
मापनी:-
22 22 22 2
मेरा माधव नटखट है, रजकण भीतर लटपट है।
करता जोरी खटपट है, केशव कुंतल हर लट है।
मनवा मोहन भावत है, जाने क्या ये चाहत है।
करता खुद को आहत है, हर पल कान्हा ध्यावत है।
नटखट मटकी फोड़त है, पकड़ो तो कर जोड़त है।
लेकर उर कब मोड़त है, माँगूँ तो मुख मोड़त है।
राधै झूला झूलत है, दुनिया दारी भूलत है।
काहे दुनिया खीजत है, जब जब प्रेमी रीझत हैं।
14 मात्रिक छन्द
तीन चौकल के बाद एक गुरु(2)
दो दो या चारो चरण समतुकांत
मापनी:-
22 22 22 2
मेरा माधव नटखट है, रजकण भीतर लटपट है।
करता जोरी खटपट है, केशव कुंतल हर लट है।
मनवा मोहन भावत है, जाने क्या ये चाहत है।
करता खुद को आहत है, हर पल कान्हा ध्यावत है।
नटखट मटकी फोड़त है, पकड़ो तो कर जोड़त है।
लेकर उर कब मोड़त है, माँगूँ तो मुख मोड़त है।
राधै झूला झूलत है, दुनिया दारी भूलत है।
काहे दुनिया खीजत है, जब जब प्रेमी रीझत हैं।
नीलम शर्मा ✍️
No comments:
Post a Comment