Thursday, November 28, 2019

पद्य छंद - Hindi Poetry

Explained By Smt. Geeta Gupta " Mann" , Unnav (U.P.)

*पद्य छंद*
विघ्नहर्ता गजानन की चरण वन्दना करते हुए माँ वागेश्वरी का आह्वान करती हूँ।आप अपने आशीष से लेखनी को कृतार्थ करें।
साहित्य अनुरागी समूह के सभी रचनाकारों को मैं गीता गुप्ता "मन" हृदय तल से नमस्कार करती हूँ। समूह का कोटिशः आभार कि मुझ अदना को छंदज्ञान की शृंखला में नवीन कड़ी जोड़ने का सौभाग्य प्रदान किया।
मात्रिक छंदों के पश्चात हम वर्णिक छंदों का अध्ययन एवं अभ्यास कर रहे हैं।इसी कड़ी में आज हम पद्य छंद के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे।



*पद्य छंद*
अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत्त
वर्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
लक्षण- निसि लगत पद्य हूँ ।
क्रमशः नगण सगण लघु गुरु।।
यथा
111 112 12
नियत मापनी
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत ले सकते हैं।

उदाहरण-
   निसि लगन नैन री। दिन कछु न चैन री।
कब पहुँचि सद्यरी। लखहुँ पड़ पद्यरी।।
(छंद प्रभाकर)

 नमन वरदायिनी। नमन सुखदायिनी।
धवल पटधारिणी। सकल शुभकारिणी।।

वरक कर में सजे। मधुर ध्वनियाँ बजे।
विमल मति दान दो। सकल जग में दो।।

वदन शुभ कान्ति हो। विकल मन शान्ति हो।
चरण रसपान दो। सुमति शुचि ज्ञान दो।।

सुमधुर सुभारती। मुदित कर आरती।

सुरभि सुर मंगला। भुवन नवरंग ला।

(गीता गुप्ता "मन")
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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🌹पद्य छंद🌹
अष्ठाक्षर वृत्त
क्रमशः नगण सगण लघु गुरु
सम चरण तुकांत
🌹
मिलन अब हो रहा। सफल अब हो रहा।।
कुछ दिनन बात है। शगुन अब हो रहा।।
🌹
सपन सजने लगे। मधुर लगने लगे।।
सरगम कहीँ बजे। नयन झुकने लगे।।
🌹
हर पल यहाँ वहाँ। कलरव जहाँ तहाँ।।
बरबस यही सहूँ। प्रियतम मिले कहाँ।।
🌹🙏
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़

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पद्द छंद ८ वर्ण प्रतिचरन,अंत लघु गुरु
१११ ११२ १२


नयन भरलो पिया। जतन उर से किया।
धड़क उठता हिया। अगन बढ़ती जिया।।

विकट क्षण है यही। क्षणिक मद ये नहीं।
घुमड़ कर मैं बही। सजन मन की कही।।

लगन हिय से जड़ी। पवन बन के उड़ी।
ग़ज़ल बन के खड़ी। सृजन कर दो घड़ी।।

सपन नयना पले। चमन धरती जले।
कमल बन के खिले। शपथ जब तू मिले।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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 पद्य छंद
अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत
वार्णिक छंद

8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु
नियत मापनी :-111 112 12

विषय:- वर्षा
सघन बरसे घटा, गगन निखरी छटा,
सरस धरणी खिली,जलधि सलिला मिली।
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हिरन अटवी चले,कमल सरसी खिले,
पुलक थिरके शिखी,मधुर मुरली सखी।
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तड़ित दमके विभा,गगन चमके प्रभा,
जलद बरसे सुधा,प्रणय मन की विधा।
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पनघट चलो सखी, रजत मटकी रखी,
नयन तरसे पिया, मुदित हरषे हिया।
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सजन विनती करूँ, नयन कलशे धरूँ,
सुखद कर दो निशा, बदल मन की दशा।
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सुरभि चपला कहे,मदन वनिता गहे,
विनय करते प्रिये, मिलन जलते दिये।।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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पद्य छंद

अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत
वार्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु
नियत मापनी :-111 112 12

हिरण मनवा हुआ,हुलस धड़का जिया।
सुमन बगिया खिली,सजन अँखियाँ मिली।।

नवल सपने सजे,विरह विरहा तजे।
हरष हरसे घटा,नवल सजती छटा।।

मदन मितवा हुआ,पदम नयना पिया।
अधर छलके सुधा,प्रणय हियरा जगा।।

जतन फलता सदा,करम उजली प्रभा।
यतन नीलम किया,गगन अपना लिया।।
नीलम शर्मा 

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पद्य छंद

अष्ठाक्षर वृत्त
नगण सगण लघु गुरु
111 112 1 2

अगन मन में जगी।प्रणय रस में पगी।।
प्रियम अब पास हैं।सुखद पल खास हैं।।

अमिय रस दे रहे।नयन अब खो रहे।।
सकल सब कामना।सफल अब साधना।।

नयन भर रो रहे।हृदय अब क्या कहे।।
विरह मन जल रहा।शयन अब खल रहा।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा, कुशीनगर

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पद्य छन्द देखिये 11111212 वर्ण..8
सुमन अब सीचते , हिय मगन खीचते
विरह मन है जले ,सपन अब है पले

लगन मन मे लगी ,सजन मिलने चली
प्रियतम अभी कहे, मिलन न तभी रहे

नयन तकते रहे, जगन जगते रहे
सुमन खिलना नदी, हदय मचला सखी
स्वरचित
ऋतु गुलाटी
हिसार हरियाणा

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 पद्य छंद
अष्ठाक्षर वृत्त
क्रमश: नगण सगण लघु गुरू

सम चरण तुकांत
111 112 12

पवन अब है चले , सुमन अब है खिले ,
सपन सब यूँ सजे , जगत सब ले मजे ।

चमन महके सदा , नयन चहके कदा,
विरह न रहे कहीं, मिलन अब हो यहीं ।

सुखद पल हो सभी , दुख क्षण न हो कभी,
खुश मन सभी रहे , नयन न कभी बहे ।

पतझड़ न हो पिया, दुख न अब हो जिया
घर घर रहे खुशी मन मन रहे सुखी ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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पद्य छंद
अष्टाक्षर वृत
१११ ११२ १२

नगण सगण लघु गुरु

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सदृश सब फूल है।
चुभन हृद शूल है ।।
सहन करता चले।
निस दिन जिया जले।।

अधर खुलते नही ।
दमन कहते नही।।
व्यथित रहते सदा।
अगन सहते सदा।।

बहक इक चाह में।
भटक सद राह से।।
कठिन भव जीव की।
गहन तम से ढकी ।।

विगत सुधि पास हो ।
सुदृढ लय श्वास हो।।
प्रबल अरदास हो
तन मन विश्वास हो।।

प्रबल मन ज्ञान हो।
सफल तब जान लो।
सरस भर कामना।
जगत सब तारना।।

ललिता गहलोत

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पद्य छ्न्द , (वर्णिक )
8 वर्ण , अंत 12
111 112 12

चलत मन मोहना, किलकत प्रमोदना ।
ठुमकत चले कहां, पुलकित सभी यहां।
......
शुभ नयन राधिका, खिलत मन वाटिका ।
सब मिल जपा करे, गिरधर हरे हरे ।
.....
कुशल तन शोभना, बनत जग जोगना ।
जगत हरि डोलना, मधुर सब बोलना
......
सुमन खिलते वहां, चरण रखते जहां ।
हम मगन हो गए, दरस प्रभु हो गए ।
....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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अष्टाक्षर पद्य छंद
गण=नगण- सगण - लघु गुरु
मात्रा=111 112 12

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पकड़ निज हाथ में । चलत पिय साथ मे ।
नयन खिलते रहे। सहज मिलते रहे।।

व्यथित सब पास है । जगत हिय सांस है ।
कहत मन रार है । दिखत अब सार है।।

सजल मन बावरे। तड़प नित सांवरे।
मगन चलते चलो। सजन मुझसे मिलो।।

कुशल तन साध लो। सजन मन बांध लो ।
मधुर लहरी बने। सरस् प्रहरी बने।।

जगत मिथकों भरा। सहन करती धरा।
जनक दुलरा रहा। तनय इठला रहा।।

विनीता सिंह विनी

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साहित्य अनुरागी
पद्य छंद
१११ ११२ १२


प्रबल मन कामना,कठिन हर चाहना।
सहज मिलता नहीं, कुसुम ‌ खिलता नहीं।

चलन इस राह का,जतन बस दाह का ।
करम करता नहीं, शरम ‌करता नहीं।

मनुज मन जोड़ता , सहज दिल तोड़ता।
कथन कुछ बोलता, वचन कब तोलता।

कृतिम हर चाह है, पतन दिन -रात है।
भ्रमण सम राह है, गमन उस धाम है।
राज्यश्री सिंह
गुड़गांव

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 पद्य छन्द
8 वर्ण,
प्रत्येक चरण:

नगण(१११) सगण(११२) लघु गुरु(१२)

तरसत रहे जिया, समझत नहीं पिया।
दरसन लगी तिषा, अखियन जगी निशा।

विरह मन पीड़ है, नयन भर नीर है।
मिलन हिय आस है, प्रियतम उदास है।

दर पर निहारती, हर पल पुकारती।
जतन सब हारती, दुख मन सहारती।

अब मत सता मुझे, विनय करती तुझे।
नित तक थकी गली, विरह मुझको मिली।

लगन तुमसे लगी, प्रिय मत करो ठगी।
अब जब मिलाप हो, तब मत विलाप हो।

जितेंदर पाल सिंह

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पद्य छंद
८ वर्ण
प्रत्येक चरण-

नगण(१११)सगण(११२)लघु गुरु(१२)

भ्रमर मुख चूमते, मगन मद झूमते।
कुमुद अलसा रहे, अलक सुलझा रहे।

सघन बदरा घिरे, सजन जियरा डरे।
न तुम बिन चैन रे, बहत अब नैन रे।

पवन पुरवा चली, अगन तन में लगी।
निरख सखि कौमुदी, विहस रही केतकी।

मिलन मन आस है, क्षणिक भर साँस है।
प्रलय घन यामिनी, दहक नभ चाँदनी।।
ममता गुप्ता

1 comment:

  1. बहुत सुंदर एवं ज्ञानवर्धक अभिव्यक्ति

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