Explained By Smt. Rajinder Kaur "Rashu" ji Amritsar Panjab
“साहित्य अनुरागी “ समूह के “छंद लेखन कार्यशाला “ में आप सभी गुणीजनों का मैं “रजिन्दर कोर “ रेशू हार्दिक स्वागत करती हूँ 🙏
वर्णिक छंदों की इस कड़ी में आज हम ईश छंद के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे ।
ईश छंद
जाती - अनुस्ठुप (8 वर्ण हर चरण में)
लक्षण - सजि गंग ईश ध्यावो।
अर्थात
हर चरण में क्रम से
सगण जगण गुरु गुरु
नियत मापनी।
112 121 22
चार चरण
दो दो अथवा चारो चरण अथवा सम चरण तुकांत लिए जा सकते है।
उदाहरण-१
सजि गंग ईश ध्यावो
नित ताहि सीस नावौ
अघ ओघहूँ नसै है
सब कामना पुजै है।
छंगप्रभाकर
उदाहरण-२
११२ १२१ २२
मन मान यूँ सुधारों,
अब मैल झूठ मारों,
सब का बनो सहारा,
जग में रहो पिराया ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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ईश छ्न्द (वर्णिक)
8 वर्ण
112 121 22
अरि है समाज सारा,जब घूर के निहारा ।
सब लाज लूटते हैं,हर बार नोंचते हैं।
.......
हर ओर व्यभिचारी,अपराध भ्रष्टचारी ।
हम नारियां नहीं हैं,रण चण्डियां बनीं हैं।
.....
सुन लो समाज सारे,हम भी यहां दुलारे।
तुमको गले लगाया,तन दूध है पिलाया।
.....
हमको नहीं उजाड़ो,समझो यहां विचारो।
सब पाप को मिटाओ ,अब लाज को बचाओ।
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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ईश छंद अष्टाक्षर वृत्त
112 121 22
सम चरण तुकांत
🌹
अब साथ बात होगी।जब स्वेत रात होगी।।
बस ध्यान ये रखो यूँ।सब आस खास होगी।।
🌹
मन रोज राह /मार्ग देखे।एक खोज चाह लेखे।।
कब हो हमार बैना।तकते हमार नैना।।
🌹
कर लो पुकार ऐसी।कर जाय पार जैसी।।
एक साथ हो तुम्हारा।हिय प्यास राखुँ ऐसी।।
🌹
चपला सुहासिनी हो।धनदा प्रदायनी हो।।
वर दो कृपा मुझे यूँ।भव से उबारिणी हो।।
🌹🙏✍
अरविन्द चास्टा
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ईश छंद
ये वार्णिक छंद है, ८ वर्ण हर चरण,अंत दो गुरु।
११२ १२१ २२
मन में भरी उदासी। तन में उठी विलासी।
विधि वो यही करेगा। मद में भरा फिरेगा।।
जग देखता रहेगा। दरिंदा नहीं डरेगा।
दुनिया अधीन सोती। अबला मलीन रोती।।
तन नोचते भिखारी। कपटी बढ़ी खुमारी।
महिला सभी जलेगी। कब ये दशा ढलेगी।।
बढ़ने लगी ढिठाई। बनने लगे कसाई।
तरसे करे दुहाई।करनी कड़ी ठुकाई।।
कपटी बने शिकारी। तन वासना बीमारी।
वहशी हुए मदारी। लुट गयी है दुलारी।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
ये वार्णिक छंद है, ८ वर्ण हर चरण,अंत दो गुरु।
११२ १२१ २२
मन में भरी उदासी। तन में उठी विलासी।
विधि वो यही करेगा। मद में भरा फिरेगा।।
जग देखता रहेगा। दरिंदा नहीं डरेगा।
दुनिया अधीन सोती। अबला मलीन रोती।।
तन नोचते भिखारी। कपटी बढ़ी खुमारी।
महिला सभी जलेगी। कब ये दशा ढलेगी।।
बढ़ने लगी ढिठाई। बनने लगे कसाई।
तरसे करे दुहाई।करनी कड़ी ठुकाई।।
कपटी बने शिकारी। तन वासना बीमारी।
वहशी हुए मदारी। लुट गयी है दुलारी।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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आधार छन्द - ईश
मापनी - 112 121 22
ईश छंद अष्टाक्षर वृत्त
सम चरण तुकांत
सजना हमें बताना।उर का कहाँ ठिकाना।।
मन के समीप आना।मन ढूँढता बहाना।।
तुम जिंदगी हमारी।तुम बंदगी हमारी।।
सुन लो पुकार म्हारी।मन मोहना मुरारी।।
मनवा उजास होता।मनमीत पास होता।।
मितवा मुझे पियारा।जगदीश ही सहारा।।
नित बाट मैं निहारूँ।घन श्याम को पुकारूँ।।
घटते घिरे अंधेरे।हरि नाथ साथ मेरे।
नीलम शर्मा
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छंद--ईश छंद
मापनी-- सगण- जगण- गुरु -गुरु
मात्रा--११२- १२१- २२
जाति--अनुष्ठुप [ ८ वर्ण हर चरण में ]
🌺
अबला बनी जलाई।सबला यही बुराई।
तुमने नही निभाई ।किस से कहे भलाई।।
🌺
दुख हैं नही निभाई।हल से कटे बुराई ।
निजता करे पुकार ।सबला करें गुहार ।।
🌺
पिय बात खास मानो।हिय बात आप जानो।
रुह साथ मांग लाई ।निज रात स्वांग पाई।।
🌺
कर जोड़ हाथ आई।सहते शरीर पाई।
सुन बात मूक सारी।खुद रूप देह तारी।।
विनीता सिंह विनी
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ईश छंद11212122
8वर्ण
मन का बनी सहारा बहती उमंग धारा
दिखता नहीं किनारा तब ईश ने उबारा।
नित ज्ञान दीप ज्वाला नव आस नित्य पाला।
प्रभु दास है तुम्हारे। बस आपके सहारे।।
नभ सूर्य चन्द्र तारे। सब आरती उतारे।
रत पुष्प वृक्ष सारे। हर कष्ट लो हमारे।।
भज राम कृष्ण स्वामी प्रभु आप दूरगामी।
शुचि दान नित्य सेवा। प्रभु है अनादि देवा।।
प्रभु गीत गा रहे हैं। तुमको बुला रहे हैं।
प्रतिमान आपके है। गुणगान आप के है।।
कर दो कभी इशारा। फिर भक्त ने पुकारा।
दर आ गए तुम्हारे बस आपके सहारे।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तर प्रदेश
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ईश छंद - वर्णिक छंद (8 वर्ण)मापनी- सगण जगण गुरू-गुरू
112 121 22
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घनघोर है अँधेरा, अब तो दिखे सवेरा,
प्रभु वेदना हमारी, हर पीर आज सारी।।
मन से तुम्हें पुकारूँ, हिय में सदा उतारूँ,
भगवान के सहारे, नइया लगे किनारे।।
धनुही कभी उठाते, रण शौर्य हो दिखाते,
मुरली कभी बजाते, तुम रास हो रचाते।।
तुम हो प्रकाशवाला, तुमसे रहे उजाला,
करूणानिधान आओ, तम से हमें बचाओ।।
हम लेखनी पुजारी, विनती सुनो हमारी,
मन प्रीत भाव दे दो, रचना स्वभाव दे दो।।
@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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