Explained By Mr.Jabir Ayaaz Saharanpuri ji
आदाब,साहित्य अनुरागी
गज़ल नम्बर चार के हवाले से हम आखरी और एक छोटी बह्र लेकर आये हैं छोटी बह्री की खासिय्यत का जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं छोटी बह्र एक गुनगुनाती,लहराती,मचलती,बलखाती नदिया की तरह होती है!
और जैसे किसी देव हेकल पहाड की ओट से झरना आँखों के सामने एक खुशनुमा मंजर लिये आ जाता है इसी तरह छोटी बह्र में कही हुई बात धम से आँखों को चका चौंद कर देती है और दिमाग बगैर सोचो विचार में पडे फौरन रोशन हो जाता है!
एैसी ही ये बह्र है जिसका नाम है
#बह्रे_ख़फीफ-मुसद्दस-मख़बून-महज़ूफ-मक्तूअ, बह्र का नाम किस तरह बनता है या बना है ये हम आप सबको पहले ही बता चुके हैं..
(गज़ल कहने के लिए आपके पास एक गुरू होना लाज़मी है बिना गुरू के आपकी गज़ल अधूरी है)
गज़ल कहने के लिए रोज़ाना अभ्यासं,पढाई और मशवरह ज़रूरी है!
इस बह्र में छूट ये है कि आप आख़री रुक्न फैलुन२२ को फइलुन११२ भी कर सकते हैं
मतलब अगर आपके एक शेर में एक मिसरा में 22 हो गया और दूसरे मिसरे में 112 हो गया तो तब भी सही है!
उदाहरण में अपनी गज़ल और कुछ फिल्मी गीत दिये जा रहे हैं!
बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
#गज़ल
बे ख्याली का जब ख्याल आया
बाखुदा फिर बहुत मलाल आया
नेकियों संग आज दरिया में
उसके ख़त भी जला के डाल आया
फुर्क़तों के सफर से मैं ज़िन्दा
लौट आया मगर निढाल आया
मैने उसको भुला दिया आख़िर
कितनी मुश्किल से ये कमाल आया
अश्क,यादों के साथ दिल से मैं
हसरत ए वस्ल् भी निकाल आया
महफिल ए यार में सरे महफिल
अपनी पगडी खुद ही उछाल आया
*****************************
इसी बह्र पर कुछ फिल्मी गीत
1. फिर छिड़ी रात बात फूलों की
2. तेरे दर पे सनम चले आये
3. आप जिनके करीब होते हैं
4. यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो,
5. मेरी किस्मत में तू नहीं शायद
6. आज फिर जीने की तमन्ना है
7. ये मुलाकात इक बहाना है
जाबिर_अयाज़_सहारनपुरी
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वज़्न : 2122 - 1212 - 22 / 112
अर्कान : - फ़ाइलातुन , मुफ़ाइलुन , फ़ेलुन / फ़इलुन
बह्र का नाम : - बह्रे - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
क़ाफ़िया : - ज़मानेे (आने की बन्दिश )
रदीफ़ : - से
***** ***** ****** ***
चाहकर भी यहाँ ज़माने से।
इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से।।
बात होती रही तरक्की की।
कुछ अमीरों के मुस्कुराने से।।
बीच महलों के सिसकियाँ अक्सर।
चीखती हैं .........ग़रीबख़ाने से।।
ऐ सितमगर ज़रा बता मुझको।
क्या मिला दिल मेरा दुखाने से।।
बाज़ आते नहीं कभी साहब।
आंकड़े झूठ के दिखाने से।।
वो समझते रहे हमे कमतर।
बच गये हम फ़रेब खाने से।।
"अश्क"किरदार पाक तुम रखना।
दाग़ मिटते ... नहीं मिटाने से।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
ग़ैर मुरद्दफ़
ग़ज़ल
इक़ हसीं शाम, और तन्हाई,
फ़िर मुझे याद, यार की आई।
खूबसूरत हो, इश्क़ कर बैठे,
इश्क़ में हाथ, आइ रुसवाई।
वस्ल की रात है, ख़यालों में,
देखते रह गए, थे रानाई।
खो गए बज़्म में कहीं फ़िर तुम,
भूल हमको, गए हो हरजाई।
तुम हुए मोहताज़ दौलत के,
अख्ज़ फ़ितरत,करे है सौदाई।
ये मुहोब्बत, मिरी इबादत थी,
तुम दिखाने, लगे थे दानाई।
ग़र गिरे तुम कहीं उठा लेंगे,
'दीप' ऐसा नहीं, तमाशाई।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
अख्ज़- लोभ
दानाई- होशियारी
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
ग़ैर मुरद्दफ़
ग़ज़ल
इक़ हसीं तुम, गुलाब हो जानम,
चाहता हूँ बनो, मिरी ख़ानम।
चाँद उतरा, ज़मीं पे हो जैसे,
हर नज़र देखती, रहे आलम।
दिल कहीं और लग नहीं सकता,
देखते रहते हैं, तुम्हें हरदम।
चश्म ए नाज़, की अदा क़ातिल,
ज़ख्म ए इश्क़, की तुम्हीं मरहम।
इश्क़ की प्यास, तुम बुझा दो हाँ,
गुलबदन बन कभी मिरी शबनम।
तुम जो आओ, हवा महक जाए,
ख़ास हो तुम मिरे लिए हमदम।
हम करेंगे नहीं, तुम्हें रुसवा,
'दीप' पर कर यकीं, मिरी जानम।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
ख़ानम- स्त्री, बेग़म
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
ग़ैर मुरद्दफ
गजल
2122 1212 22
नायिका
आज हम फिर तुझे सताएंगे
रूठ जाओ अगर मनाएंगे
**
**
मुस्कुरा कर सहे सितम तेरे
दाग़ दिल के सभी दिखाएंगे
**
**
चाह कर भी तुझे न भूले हम
कर्ज़ दिलकश यहीं चुकाएंगे
**
**
प्यार क्या है समझ नहीं पाये
हाल अपना कभी सुनाएंगे
**
**
जान तुझको अज़ीज़ माना है
यार वादे सभी निभाएंगे
**
**
एक वादा करो कि आओगे
जब कभी हम तुझे बुलाएंगे
नायक
देख लो तुम पुकार कर साथी
हर सदा सुनके दौड़ आएंगे
.....
सिम्पल काव्यधारा ,प्रयागराज
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122 1212 22/112
ग़ज़ल
बस हमारी यही शिक़ायत है,
बद-गुमानी भरी सियासत है।
दीन की बात काम काफ़िर के,
हर किसी की करे ख़िलाफ़त है।
ग़ैर मज़हब मिटाने की साजिश,
फ़िर कहाँ की, तिरी शराफ़त है।
यूँ इबादत से क्या हुआ हासिल,
दिल में नफ़रत भरी अदावत है।
देख इंसाफ की फज़ीहत को,
मुज़रिमों के लिए इनायात है।
वाह वाही भरी ख़बर तेरी,
रोज़ अख़बार की शबाहत है।
अश्क़ अब्सार में गरीबों के,
कौन पोछें बड़ी ज़लालत है।
हमजुबां हम नहीं तिरे होंगे,
तुम समझते रहो बग़ावत है।
मुल्क़ में अम्न बस रहे क़ायम,
'दीप' करता यही इबादत है।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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बह्र का नाम : - बह्रे - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
अर्कान- फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/ फ़इलुन
वज़्न- 2122 1212 22/112
क़ाफ़िया : - सूरत ( अत की बन्दिश ) रदीफ़ : - है
***** ***** ****** ***
माँ के जैसी न कोई सूरत है।
घर में माँ से ही होती बरक़त है।।
माँ न होती तो मैं भी ना होता।
जीस्त ये माँ की ही बदौलत है।।
माँ के आँचल में है सकूं सारा।
माँ के क़दमों तले ही जन्नत है।।
ग़लतियाँ लाख बेटा कर जाये।
माँ को होती नहीं शिकायत है।।
माँ कभी सख्त हो नहीं सकती।
वो तो ममता की होती मूरत है।।
दूध का कर्ज़ भर नहीं सकता।
सोच किस काम की ये दौलत है।।
इक निवाले को जो तरसते हैं।
"अश्क" माँ की उन्हें ज़रूरत है।।
@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
#गज़ल-
इश्क उनको सजा सुनाता है,
इश्क जिनको गले लगाता हे।
*
खत्म कर दे कभी वफ़ा दिल से,
यार हर बार याद आता है।
*
पूछ मत आलमे वफ़ा मुझसे,
चाँद हर रात यूँ सताता है।
*
गुलशनों में बहार क्या देखूं,
हुस्न नाजों पला बुलाता है।
*
मयकदे में बुला चले जाना
आशिकों को बड़ा सताता है।
*
आज "अविराज" क्या कहूँ तुमको
इश्क सब को यहाँ मिलाता है।
*************************
~अरविन्द चास्टा ~
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
ज़िंदगी महकती कहानी है,
हर पलों में भरी रवानी है।
मौत से तू कभी नहीं डरना,
चार ही दिन की जवानी है।
धड़कनों को समेटकर रख लो,
आस,उम्मीद की बढ़ानी है।
जानते हम नहीं कहाँ जायें,
हौंसला जीत की निशानी है।
बेसबब फ़ासला बढ़ा यारा,
ये सुवी प्यार की दिवानी है।
सुवर्णा परतानी , हैदराबाद
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बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन-मुफाइलुन-फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122-1212-22/112
ग़ज़ल
तू चली आ किसी बहाने से।
प्यार तुमसे किया जमाने से ।।
अब न कहना तुम्ही चली जाओ।
आ गई तेरे ही सिखाने से ।।
रूठ कर मुझसे तुम नही जाओ।
मान जाओ चलो मनाने से ।।
पास आने से तेरे राहत है।
ज़ख्म मुझको मिला रुलाने से ।।
कायदा है मिलू ख़ुदी तुमसे ।
फ़ायदा है करीब आने से ।।
दोस्त दुनिया मे ऐसे मिलते है।
मिल गया हो कोई ख़ज़ाने से।।
खुद "विनी" को पता है राजे-दिल।
प्यार मिलता ख़ुदी मनाने से ।।
विनीता सिंह "विनी"
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वज़्न=2122 -12 12- 22/112
ग़ज़ल
बेबजह दूर ज़िन्दगी कर ली
प्यार में पड़ के आशिकी कर ली।
फूल से दुश्मनी निभा कर अब
खुद उसी से ही दोस्ती कर ली।
मौत आती नही पता हमको
फिर बुढ़ापे से खुदखुशी कर ली।
साज़ तुम छेड़ते रहे ज़ालिम!
हमने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली ।
थी मुहब्बत सनम कभी तुमसे
आज फिर तुमसे दिल्लगी कर ली।
हाथ पकडे चली सजन का जो
रूह से फिर भी बन्दगी कर ली।।
विनीता सिंह "विनी"
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वज़्न : 2122 - 1212 - 22 / 112
अर्कान : - फ़ाइलातुन , मुफ़ाइलुन , फ़ेलुन / फ़इलुन
बह्र का नाम : - बह्रे - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
क़ाफ़िया : - आने (उच्चारण)
रदीफ़ : - में
बेवफ़ा की जफ़ा भुलाने में।
याद उसकी सभी मिटाने में।
फासले तो रहे बहुत लेकिन-
नाम शामिल रहा फ़साने में।
जो ख़ुशी तेरे संग थी दिलबर-
ना मिला फिर किसी ख़जाने में।
दौर मुश्किल था आशिक़ी का भी-
मिट गयी ज़िन्दगी निभाने में।
प्यार करते हैं जो यहाँ कृष्णा-
क्या मिला है उन्हें ज़माने में।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उ.प्र.
---------------------------------------
बह्र का नाम : - बह्रे - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
अर्कान- फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/ फ़इलुन
वज़्न- 2122 1212 22/112
क़ाफ़िया : - क्या ( आ स्वर ) रदीफ़ : - दूँगा
ज़िन्दगी तुझको और क्या दूँगा।
तू कहे तो तुझे भुला दूँगा।।
आजकल मतलबी ज़माना है।
सिर्फ़ कहता है जाँ लुटा दूँगा।।
तुम समझ लो भले मुझे कमतर।
मैं हूँ क्या ये तुम्हें दिखा दूँगा।।
याद आऊँगा उस घड़ी तुझको।
ख़ुद को दुनिया से जब मिटा दूँगा।।
वार पर वार तुम करो लेकिन।
प्यार करना तुम्हें सिखा दूँगा।।
हौसलों से उड़ान भरता हूँ।
मत समझना कि सर झुका दूँगा।।
"अश्क" तब और मुस्कुरायेंगे।
ज़ख़्म को अपने जब हवा दूँगा।।
@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 - 10/12/2019
-----------------------------------------
वज़्न: 2122 1212 22
अर्कान:- फ़ाइलातुन, मुफाइलून, फैलुन/ फ़इलून
बह्र ए ख़फ़ीफ मुसद्दस मखबून महजूफ मुक्तअ
आप आये बहार आई है,
रात साक़ी निखार लाई है।
बीत जाये करीब तेरे ही,
शाम देखो बहार लाई है।
साथ तेरे नसीब जागेगा,
सूरत रब से हसीन पाई है।
पाक है प्यार बाखुदा मेरा,
पास मेरे सबा खुदाई है।
आँख तेरी शराब सी यारा,
होश में हूँ वफ़ा निभाई है।
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
-------------------------------------------------------
बह्र का नाम : - बह्रे - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
अर्कान- फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/ फ़इलुन
वज़्न- 2122 1212 22/112
क़ाफ़िया : - गढ़ा ( आ स्वर )
रदीफ़ : - हूँ मैं
-----------------------------------------
इक कहानी गज़ब गढ़ा हूँ मैं
रो रो के मंजिलें चढ़ा हूँ मैं
था बदन पर कफ़न शुरू से ही
समझो मर-मर के ही बढ़ा हूँ मैं
टूटता मैं रहा हमेशा ही
क्षीण कच्चा खड़ा मढ़ा हूँ मैं
थी सुई मेरे पाँव के नीचे
जिस से अव्वल दरी कढ़ा हूँ मैं
रौशनी की न थी निशां कोई
फोड़ कर आँख को पढ़ा हूँ मैं
शब्दार्थ
मढ़ा - मिट्टी का कच्चा घर
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
------------------------------- बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
ग़ैर मुरद्दफ़
********************
जो न टूटे वो सिलसिला हूँ मैं।
तेरे हर दर्द की दवा हूँ मैं।
बैठ तारें हजार गिनता हूँ
सोचता हूँ यही रहा हूँ मैं।
मोल समझा ख़ुशी का जीवन में
दर्द से आज जब मिला हूँ मैं।
फूल खिलते बहार में हरदम
रात आने दो अधखिला हूँ मैं।
चाँदनी रात है सितारे है
ख्याब हूँ आँख में पला हूँ मैं।
आज भी झांकती नजर जिससे
खिड़कियों की तरह खुला हूँ मैं।
हुश्न औ इश्क का तरन्नुम दिल
आज भी खुद से ही जुदा हूँ मै।
आप आओं कभी मेरे घर में
बनके कालीन सा बिछा हूँ मैं।
रहनुमा आप बन गए 'मन' के
सोच कर जिन्दगी जिया हूँ मै।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
---------------------------------------------
बह्र ए ख़फीफ: मुसद्दस मख़बून महजूफ मत्त्कूअ
अर्कान : फाइलातुन ,मुफाइलुन फैलुन/फइलुन
वज़्न-2122. 1212. 22/112
काफिया : आर स्वर
रदीफ : होता है
गज़ल
मन परेशान धार होता है ,
सामने जब गद्दार होता है ।
खुश रहो तुम दुआ यही की थी ,
सोच कर नेक खार होता है ।
भीड़ में सब यहाँ सही ही है ,
पाक इंसा शिकार होता है ।
अजनबी सा निखार है उनका ,
ये तराशा बजा़र होता है ।
सामने से यहाँ सभी चुप है ,
मान पे यार वार होता है ।
रजिन्दर कोर (रेशू )
अमृतसर
------------------------------------------
वज़्न: 2122 1212 22
अर्कान:- फ़ाइलातुन, मुफाइलून, फैलुन/ फ़इलून
बह्र ए ख़फ़ीफ मुसद्दस मखबून महजूफ मुक्तअ
आप आये बहार आई है,
रात साक़ी निखार लाई है।
बीत जाये करीब तेरे ही,
शाम देखो बहार लाई है।
साथ तेरे नसीब जागेगा,
सूरत रब से हसीन पाई है।
पाक है प्यार बाखुदा मेरा,
पास मेरे सबा खुदाई है।
आँख तेरी शराब सी यारा,
होश में हूँ वफ़ा निभाई है।
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
-------------------------------------------------------
बह्र का नाम : - बह्रे - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
अर्कान- फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/ फ़इलुन
वज़्न- 2122 1212 22/112
क़ाफ़िया : - गढ़ा ( आ स्वर )
रदीफ़ : - हूँ मैं
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इक कहानी गज़ब गढ़ा हूँ मैं
रो रो के मंजिलें चढ़ा हूँ मैं
था बदन पर कफ़न शुरू से ही
समझो मर-मर के ही बढ़ा हूँ मैं
टूटता मैं रहा हमेशा ही
क्षीण कच्चा खड़ा मढ़ा हूँ मैं
थी सुई मेरे पाँव के नीचे
जिस से अव्वल दरी कढ़ा हूँ मैं
रौशनी की न थी निशां कोई
फोड़ कर आँख को पढ़ा हूँ मैं
शब्दार्थ
मढ़ा - मिट्टी का कच्चा घर
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
------------------------------- बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
अर्कान:फाइलातुन,मुफाइलुन,फैलुन/फइलुन
वज़्न: 2122,1212,22/112
ग़ैर मुरद्दफ़
********************
जो न टूटे वो सिलसिला हूँ मैं।
तेरे हर दर्द की दवा हूँ मैं।
बैठ तारें हजार गिनता हूँ
सोचता हूँ यही रहा हूँ मैं।
मोल समझा ख़ुशी का जीवन में
दर्द से आज जब मिला हूँ मैं।
फूल खिलते बहार में हरदम
रात आने दो अधखिला हूँ मैं।
चाँदनी रात है सितारे है
ख्याब हूँ आँख में पला हूँ मैं।
आज भी झांकती नजर जिससे
खिड़कियों की तरह खुला हूँ मैं।
हुश्न औ इश्क का तरन्नुम दिल
आज भी खुद से ही जुदा हूँ मै।
आप आओं कभी मेरे घर में
बनके कालीन सा बिछा हूँ मैं।
रहनुमा आप बन गए 'मन' के
सोच कर जिन्दगी जिया हूँ मै।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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बह्र ए ख़फीफ: मुसद्दस मख़बून महजूफ मत्त्कूअ
अर्कान : फाइलातुन ,मुफाइलुन फैलुन/फइलुन
वज़्न-2122. 1212. 22/112
काफिया : आर स्वर
रदीफ : होता है
गज़ल
मन परेशान धार होता है ,
सामने जब गद्दार होता है ।
खुश रहो तुम दुआ यही की थी ,
सोच कर नेक खार होता है ।
भीड़ में सब यहाँ सही ही है ,
पाक इंसा शिकार होता है ।
अजनबी सा निखार है उनका ,
ये तराशा बजा़र होता है ।
सामने से यहाँ सभी चुप है ,
मान पे यार वार होता है ।
रजिन्दर कोर (रेशू )
अमृतसर
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