Friday, December 6, 2019

अनुष्टुप छन्द:- Hindi poetry


Explained By Smt. Dr. Neeraj Agrawal ji , Bilaspur 
(chttishgarh )
नमन साहित्य अनुरागी
सभी को गुणीजनों को नमन करते हुए, मैं छंदभ्यास की इस कड़ी में उपस्थित हुई हूँ अष्टाक्षर वृत का एक छन्द लेकर "अनुष्टुप छन्द"
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अनुष्टुप छन्द:- वार्णिक छन्द

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यह एक अष्ठाक्षर वृत्त का प्रमुख छंद श्लोक है ,जो हर एक काव्य में प्रयोग हुआ है। मुख्यतः इसका प्रयोग संस्कृत भाषा में किया जाता है, तथापि साहित्यकार होने के नाते सभी को इसकी जानकारी होना अति आवश्यक है।
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श्लोक अष्ठाक्षर वृत्त
🌹लक्षण🌹
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श्लोके षष्ठम् गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् ।


द्विचतुष्पादयोहृस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययो:।।

अस्य छंदस: षष्ठम् अक्षरं गुरु पञ्चमम च लघु।
सप्तमम अक्षरं प्रथमे तृतीये च पादे गुरु द्विचतुष्पादयो:च
सप्तमम अक्षरं लघु भवति।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
श्लोक के चार चरण होते है,
हर चरण में छठवां /6 वर्ण गुरु-2 होता है
हर चरण का पाँचवा 5 वर्ण लघु होता है।
सम चरण 2और 4 में सातवाँ वर्ण लघु 1 होता है
विषम चरण 1और 3 में सातवाँ वर्ण गुरु होता है।
शेष वर्ण स्व इच्छा से लिए जा सकते है।
यथा
हर वर्ण के लिये 0 लिखा जो स्वेच्छिक लेने है । अनिवार्य हेतु मात्रा लिखी है।
प्रथम चरण:-वर्ण -8
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८- वर्ण
0 0 0 0 1 2 2 0
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द्वितीय चरण:-
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ वर्ण
0 0 0 0 1 2 1 0

तृतीय चरण:-
0 0 0 0 1 2 2 0

चतुर्थ चरण:-
0 0 0 0 1 2 1 0

🌹🌹🙏
दो दो चरण अथवा चारों चरण अथवा सम चरण तुकांत लिए जा सकते है।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
हिंदी भाषा में श्लोक बहुत ही कम प्रचलित है । सीखने के उद्धेश्य से मात्र 2 श्लोक लिखें।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


उदाहरण:-
माँ शारदे धरूँ शीश,
विद्या विनय दायिनी।
मंगलमय आशीष,
मोहनी हँस वाहिनी।
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ज्ञानमय जले दीप,
ज्ञानदा शुभ कारिणी।
मन मोती बने सीप,
वेदिके तम हारिणी।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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अनुष्ठुप छंद। श्लोक
🌹
गुरु मिले हमें ऐसे,
हुआ सब सुधार है।
बनी रहे कृपा ऐसे,
मेरी यही पुकार है।।
🌹
गुरु हरि समाना ही
भवसागर तार है।
दास पे अनुकम्पा हो,
बस ये अरदास है।।
🌹
अरविन्द चास्टा ,कपासन चित्तौड़गढ़। राजस्थान
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अनुष्ठुप छंद

कवि स्वयं विधाता है। 
कृति रचे सशक्त ये।
दर्पण वो दिखाता है। भेद भाव विरक्त ये।।

गीत छंद सजा देगा। शब्द बने प्रहार है।
सच को ये दिखा देगा। जैसे ठंडी फुआर है।।

लेखनी उपकारी है। लागे न्यारी तरंग है।
वाणी ये हितकारी है। देता प्यारी उमंग है।।

ये छुए सब सोपान। भावना को दुलारता।
तभी पावत सम्मान। सद्गुणों से निहारता ।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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 अनुष्टुप छन्द:- वार्णिक छन्द

आठ वर्ण

श्लोक के चार चरण होते है,
हर चरण में छठवां /6 वर्ण गुरु-2 होता है
हर चरण का पाँचवा 5 वर्ण लघु होता है।
सम चरण 2और 4 में सातवाँ वर्ण लघु 1 होता है
विषम चरण 1और 3 में सातवाँ वर्ण गुरु होता है।
शेष वर्ण स्व इच्छा से लिए जा सकते है।
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साँझ हुई सिंदूरी सी, साँझ आज उजास है।
नाच रही मयूरी सी, सूर्य सजन पास है।

रोम-रोम हर्षे गात, मूक नैन पुकारते।
भानु पिया हिया लात, अपलक निहारते।

आज मिलन होने दो, सूर्य सजन पास है।
प्रेम मन डुबोने दो, साँझ आज उजास है।

प्रेमी पाति पढ़ाने दो, हृदय पिय प्रीत है,
आस नभ चढ़ाने दो, दिनेश तम जीत है।

नीलम शर्मा 

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अनुष्टुप छन्द
श्लोक के चार चरण होते है,
हर चरण में छठवां /6 वर्ण गुरु-2 होता है
हर चरण का पाँचवा 5 वर्ण लघु होता है।
सम चरण 2और 4 में सातवाँ वर्ण लघु 1 होता है
विषम चरण 1और 3 में सातवाँ वर्ण गुरु होता है।
शेष वर्ण स्व इच्छा से लिए जा सकते है।
अनुष्टुप छन्द

जहर घोलने वाला, देखो घूमे जहाँ-तहाँ ।
काट जहर को देख , जो फैले हैं यहाँ-वहाँ ।।

स्वच्छ जहां बना लो जी, दम घुट रहा सुनो ।
कंचन जग हो सारा , पथ ऐसा सभी चुनो ,

नारी शोषित क्यों होती , क्यों कल्पित सुता यहाँ ?
राहों में लुटती स्त्री है , गंदा देखो हुआ जहां ।।

मां का स्वप्न जला डाला , गोदी जो थी बढ़ी पली ।
रोई थी फुलवारी भी , सूना देखो सभी गली ।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश

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अनुष्टुप छन्द
श्लोक के चार चरण होते है,
हर चरण में छठवां /6 वर्ण गुरु-2 होता है
हर चरण का पाँचवा 5 वर्ण लघु होता है।
सम चरण 2और 4 में सातवाँ वर्ण लघु 1 होता है
विषम चरण 1और 3 में सातवाँ वर्ण गुरु होता है।
शेष वर्ण स्व इच्छा से लिए जा सकते है।
अनुष्टुप छन्द

कुटिलता भरे कर्म, माथे तिलक चंदन।
आडम्बर भरा धर्म, सब माया का क्रंदन।

घट घट बसे राम, पर बाहर खोजते।
बारम्बार जपो नाम, मन क्या तुम सोचते।

नश्वर सब संसार, निश्चित देह अंत है।
तज मोह अहंकार, आत्मा ये ईश अंश है।

धर्म का मर्म जानो रे! मानवता प्रधान है।
हरि का ध्यान धारो हे! भक्ति का ये विधान है।

भवसागर निस्तार, ये जन्म अनमोल है।
गुरु चरण उद्धार, शुभ कर्म निदान है।

जितेंदर पाल सिंह

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अनुष्टुप छंद- वर्णिक
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तुम ही तो विधाता हो, तुमसे ही विधान है,
तुमसे साँझ होती है, तुमसे ही विहान है।।

जग के हो तुम्हीं दाता, तुम साथी अनाथ के,
तुम्हरी है कृपा सारी, बिगड़े को सँवार दे।।

तुमसे जीव सारे हैं, नभ से ले धरा सभी,
तुम हो बेसहारों के, कब भूले तुम्हें कभी।।

हम क्या ले यहाँ आये, जग ये क्यों लड़े यहाँ,
धन के लोग हैं लोभी, जब देखो जहाँ - तहाँ।।

तम हारे उजाला हो, सच की धारणा धरूँ,
अबला को बना ज्वाला, प्रभु ये विनती करूँ।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"

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अनुष्टुप छ्न्द , 8 वर्ण
5,6 ,7 वर्ण पर यह नियम अनिवार्य
122 प्रथम,121 द्वितीय,122 तृतीय, 121 चतुर्थ


प्रमुदित यहां सीता 
कोयल मृदु भाषिणी 
गावत सब हैं गीता 
कूकत मन शोभिणी 
......
नाम जपत है राधा 
प्रीत निरखने लगी 
कृष्ण बसत है आधा 
सिम्पल लिखने लगी 
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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अनुष्टुप छंद 

ये जगत दिखाता है
आस तन तरंग है
प्रेम मन बनाता है
राह सब उमंग है ।

लोग जग सजा देगें
प्रभु जगत आस है
मान सब बना देगें
दात सजन पास है ।

सांझ जग बहारे हैं
मान यह पुकार लो
लोग सब सहारे हैं
साथ सब सँवार लो ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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