Contributed by - Sh. Jabir Ayaaz Saharanpuri
#शायरी क्या है?
कैसे की जाती है,इसके असरात क्या हैं?क्या ये कोई साईंस है या फन?कौनसी छुपी हुई बातों की पैरवी(पीछा) करनी चाहिए?
किस तरह इसे खूबसूरत बनाया जा सकता है?वगैरह वगैरह
एैसे ज़रूरी सवालों को पीछे छोडकर कुछ लोग अपने हुनर के जौहर दिखाने की जी तोड कोशिश करते हुए नज़र आते हैं और इसी वजह से उर्दू की इस नाजुक सिन्फ(किस्म) का सत्यानास होता जा रहा है और उन्हीं की देखा देखी के चलते नई उम्र के बन्दों ने भी अपने कलम की धार तेज़ करना शुरू करदी है जिनमें सबसे उपर हमारा ही नाम आता है!शायरी का सबसे ज्यादा सत्यानास आजकल के गवैंय्यों की मेहरबानी से हुआ है बल्कि हो रहा है शोहरत ओ दौलत के लालच ने उन्हें अंधा और शायरी को धंधा बनाके रख दिया है!
कैसे की जाती है,इसके असरात क्या हैं?क्या ये कोई साईंस है या फन?कौनसी छुपी हुई बातों की पैरवी(पीछा) करनी चाहिए?
किस तरह इसे खूबसूरत बनाया जा सकता है?वगैरह वगैरह
एैसे ज़रूरी सवालों को पीछे छोडकर कुछ लोग अपने हुनर के जौहर दिखाने की जी तोड कोशिश करते हुए नज़र आते हैं और इसी वजह से उर्दू की इस नाजुक सिन्फ(किस्म) का सत्यानास होता जा रहा है और उन्हीं की देखा देखी के चलते नई उम्र के बन्दों ने भी अपने कलम की धार तेज़ करना शुरू करदी है जिनमें सबसे उपर हमारा ही नाम आता है!शायरी का सबसे ज्यादा सत्यानास आजकल के गवैंय्यों की मेहरबानी से हुआ है बल्कि हो रहा है शोहरत ओ दौलत के लालच ने उन्हें अंधा और शायरी को धंधा बनाके रख दिया है!
अगर आप उनसे ये सवाल पूछेंगे कि शायरी क्या है? ये कैसे काम करती है? लोगों पर इसका क्या असर होता है?इसे बेहतर कैसे बनाया जा सकता है तो शायद ही वो कोई जवाब दे पाऐं....
एक ज़माना वो था जब शायरी को एक सहल संदेश समझा जाता था और अब ये हाल है कि संदेश समाप्त और शायरी सहल!
एक ज़माना वो था जब शायरी को एक सहल संदेश समझा जाता था और अब ये हाल है कि संदेश समाप्त और शायरी सहल!
कहते हैं कि सिर्फ फन-ए-शायरी ही शायरी का मूजिद(बनाने वाला) नहीं बल्कि वो जज़बात जो शायर को शेर कहने पर मजबूर करें,शायरी है!
शायरी की तारीफ एैसे भी मुनासिब है कि जो फिल बदीयह नाज़िल(उतरना)होते हैं या फिर जो हो जाए वो शायरी और जो करनी पडे वो तुक बंदी.....!
वैसे तो हर मुहक़्किक़(हकीकत बयान करने वाला) ने शायरी के हवाले से अपनी राय का इज़हार जुदागाना तरीके से बयान किया है मगर अक्सर ने इसपर इक्तिफा(अच्छा समझना) किया है कि शायरी खुशी और ग़म से पैदा होने वाले अहसास ओ जज़बात का नाम है और उन्हीं अहसास ओ जज़बात से पैदा होता है तसव्वुर और जब तसव्वुर को लफ्ज़ मिल जाते हैं तो शेर बनता है!
शायरी की तारीफ एैसे भी मुनासिब है कि जो फिल बदीयह नाज़िल(उतरना)होते हैं या फिर जो हो जाए वो शायरी और जो करनी पडे वो तुक बंदी.....!
वैसे तो हर मुहक़्किक़(हकीकत बयान करने वाला) ने शायरी के हवाले से अपनी राय का इज़हार जुदागाना तरीके से बयान किया है मगर अक्सर ने इसपर इक्तिफा(अच्छा समझना) किया है कि शायरी खुशी और ग़म से पैदा होने वाले अहसास ओ जज़बात का नाम है और उन्हीं अहसास ओ जज़बात से पैदा होता है तसव्वुर और जब तसव्वुर को लफ्ज़ मिल जाते हैं तो शेर बनता है!
अब सवाल उठता है कि शेर क्या है? शेर का लफ्ज़ तारीख़ी तौर पर शऊर से निकला है यानी किसी चीज़ का जानना इस्तिलाही मायनों (ताज़ा मायने?में एैसा कलाम जो किसी ख़ास वाकिआ या मौजूअ (विषय) की तरफ इशारा करता हो और उसके कहने का कोई मक़सद भी हो!
आम आदमी जब अपने अहसास ओ जज़बात का इज़हार करता है तो नस्र(टुकडे टुकडे) में करता है या फिर नहीं भी कर पाता है लेकिन जब जब कोई शायर अपने अहसास ओ जज़बात का इज़हार करता है तो मन्ज़ूम(नज़्म किया हुआ जोडा हुआ?तरीके से करता है यानी शेर की शक्ल में बयान करता है शेर कहने के लिए तीन चीजों को खास अहमियत दी गई है!
1.वज़न
2.काफिया
3.कस्द
कुछ असातिज़ा को इसपर इख़्तिलाफ है लेकिन अक्सर के नज़दीक जब तक ये तीनों शरतें नहीं पाई जाती शेर नहीं हो सकता और यही तीनों चीजें शेर में हुस्न और मौसीकियत पैदा करती हैं
1.वज़न
2.काफिया
3.कस्द
कुछ असातिज़ा को इसपर इख़्तिलाफ है लेकिन अक्सर के नज़दीक जब तक ये तीनों शरतें नहीं पाई जाती शेर नहीं हो सकता और यही तीनों चीजें शेर में हुस्न और मौसीकियत पैदा करती हैं
#वज़न :-शेर में वज़न क्या है?शेर में वज़न मापनी या उन रुकन का नाम है जो लफ्जों को तौलने या बराबर करने का काम करते हैं..जिसे बहर कहा जाता है!
#काफिया क्या है? काफिया अरबी का लफ्ज़ है और इसके मायने (पीछे आना वाला)और रदीफ यानी आख़री लफ्ज़ से पहले आने वाला लफ्ज़ काफिया कहलाता है..!
#कस्द कहते हैं मक्सद को जब शायर या कारी कोई शेर कहता है तो उसमें कोई न कोई मक्सद होता है!
जाबिर अयाज़
उर्दू शायरी में बहर राग का नाम है ये बहरे दो किस्म की होती हैं
(१)मुफरद यानी अकेला या अकेली मुफरद बहर एक ही रुक्न के बार बार दोहराने से बनी हैं..जैसे..
"मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है"
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
इसमें एक ही रुकन चार बार दोहराया गया है एैसी सारी बहरों को मुफरद या सालिम बहर कहा जाता है!
(२)मुरक्कब यानी तरकीब दिया हुआ या फिर मिलाया हुआ )मुरक्कब बहरें जीनमें कईं तरह के रुकन होते हैं मुरक्कब कहलाती हैं जैसे..फाइलातुन मुफाइलुन फैलुन
#रुकन यानी टकडा जैसे...फऊलुन"इसी एक टुकडे को रुकन कहा जाता है ये तादाद में आठ हैं और इन्हीं से असल उन्नीस बहरें बनी हैं जो चलन में हैं
एैसी तमाम बहरों तो मुरक्कब बहर कहा जाता है
लम्बाई के हिसाब से भी बहरों की दो किसमें हैं.
#अरकान यानी रुकन की जमा या बहुवचन को अरकान कहा जाता है या यूँ कहें कि एक से ज्यादा रुकन को अरकान कहा जाता है भले ही उसमें एक तरह के रुक्न हो या कई तरह के....
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन" या
(१) बहरे मुसम्मन यानी एक शेर में आठ रुकन वाली बहर को मुसम्मन कहा जाता है चार रकुन पहले मिसरे में और चार दूसरे में होते हैं तो इस तरह से आठ हो जाते हैं..जैसे
"मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
मफऊलु फाइलात मुफाईलु फाइलुन
मफऊलु फाइलातु मुफाईलु फाइलुन
फैलुन फैलुन फैलुन
(२)बहरे मुसद्दस यानी छ: रुकन् वाली बहर को कहा जाता है यानी एक शेर में छ: जैसा के उपर बताया गया है एक मिसरे में तीन और दो मिसरों में भी तीन जैसे..
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
फाइलुन फाइलुन फाइलुन या
फैलुन फैलुन फैलुन
------------------------------------------
1 बहरे मुतक़ारिब:मुसम्मन सालिम3 बहरे_रमल_मुसद्दस_महजूफ
4 -बह्र ए ख़फीफ :मुसद्दस मख़बून महजूफ मक्तूअ
5 - बह्र_ए_रमल_मुसम्मन_महज़ूफ
(@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी")
7 - बह्र - ए - ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ मक़्तूअ
भाई साहब आपकी काबलियत की दाद देनी पडेगी वाकई आपकी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी मेरा ढेरों शुभकामनाऐं आपके साथ हैं
ReplyDeleteसाहित्य समर्पण को हृदयतल से नमन
ReplyDeleteशायरी दो तरह की होती है वजन या मतलब बाह्र में की जाती है,
ReplyDeleteदूसरे वह होती है जो बिना वज़न के बिना बह्र के की जाती है,
जो बिना वजन के या बिना बह्र की शायरी होती है उसे तुकबंदी कहा जाता है
और जो लोग शायरी बह्र वजन में करते हैं उन्हें शाहिर कहा जाता है, तो शायरी वजन में ही कहनी चाहिए