Explained By Mr.Jabir Ayaaz saharanpuri ji
#गज़ल5
आदाब साहित्य अनुरागी सिलसिला ए गज़ल के हवाले से हम लेकर आए हैं बह्र नम्बर पाँच इस बह्र पर अक्सर नात,हम्द,तराने,या क़ौमी व मज़हबी तराने लिखे जाते रहे हैं और गज़लें तो लिखी ही जाती हैं आप भी इस बह्र पर कुछ भी लिख सकते हैं उर्दू की कोई बह्र किसी विषय के लिए खा़स नहीं है आप गीत,नज़्म,गज़ल,कत्आ,नात,तराना देशभक्ती, कुछ भी लिख सकते हैं!
अर्कान:फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
वज़्न: 2122 2122 2122 212
पूरी बह्र तो ये मुसम्मन सालिम है मगर खूबसूरती के लिए इसके आख़री रुक्न फाइलातुन 2122 से दो हर्फ यानी दो मात्रा काट कर फाइलुन 212 कर दी गई हैं इसलिए बह्र के नाम में महज़ूफ जोडा गया है यहाँ बह्रों की काट छांट कौन से रुक्न से काटना है या नहीं काटना ये बताना ज़रूरी नही हैं
क्यूंकि किसी एक बह्र पर भी आप पूरी ज़िन्दगी लिख सकते हैं इलीसिए बह्रों की संख्या कम पाई जाती है!
गज़ल के आख़री शेर में अपना नाम लिया जाए तो उसे मक्ता कहते हैं आप अपना नाम गज़ल के पहले शेर में भी रख सकते हैं पर बीच में सही नही हैं
बहर कैफ आपको ये बह्र दी जा रही है उदाहरण में कुछ गीत और मेरी गज़ल भी देखें👇
आसमाँ हर पल न यूँ सर पर उठाना चाहिए
या तुम्हें कोई लडाई का बहाना चाहिए
नफरतों से यार कब हारा है दुश्मन इसलिए
अपने दुश्मन को मुहब्बत से हराना चाहिए
नस्ले आदम ख़त्म होती आ रही है अब तुम्हें
जंग के मैदान से भी लौट आना चाहिए
छोडकर ज़िद मिलके बाहम आलमे इम्कान से
दुश्मने इन्साियत को अब मिटाना चाहिए
फूल ज़ख्मी हो गये हैं कलियाँ बे मुस्कान हैं
गुलशन ए हस्ती से ख़ारों को हटाना चाहिए
चाहते हो गर सुकूँ क़ायम रहे दिल का तो फिर
तफ्रिक़ा बाज़ों से हर दम जी चुराना चाहिए
जंग में तो आज़माया है बहुत दुश्मन मगर
अम्न के मैदान में भी आज़माना चाहिए
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फिल्मी गीत
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
दिल के टुकड़े टुकड़े कर के मुस्करा के चल दिए ।
आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे
होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है
यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी
मंज़िलें अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ |
चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात है |
ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े बलम
👉काफिया और रदीफ अपनी मर्ज़ी से ले सकते हैं
आप एक से ज़्यादा रचना भी पस्ट कर सकते हैं
अपनी रचना के पहले आपको बह्र का नाम फिर अर्कान फिर वज़्न लिखना होगा
रचना के बाद में अपना और शह्र का नाम लिखना अनिवार्य है!
#जाबिर_अयाज़_सहारनपुरी
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#बह्र का नाम ;- बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
#वज़्न;-2122 2122 2122 212
#अर्कान;- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
#काफ़िया :- सताता (आता की बन्दिश)
#रदीफ़:- कौन है
#ग़ज़ल;-
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रोज़ ख़्वाबों में मुझे आकर सताता कौन है।
चैन दिल का और नीदों को चुराता कौन है॥
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कौन है जो रूठने पर भी मनाता है मुझे।
गुदगुदाता कौन है मुझ को हंसाता कौन है॥
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इस अधूरी ज़िन्दगी में रंग भरने के लिए।
प्यार का दीपक मेरे दिल में जलाता कौन है॥
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ख़्वाहिशें ये नफ़्स की मेरे बढ़ा कर हाय रे।
रोग इस दिल को मुहब्बत का लगाता कौन है॥
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अब तो जागो ख़्वाब से दिन भी निकल आया विनी!!!
रात को फिर देखना ख़्वाबों में आता कौन है॥
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विनिता सिंह "विनी"
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बहरे-रमल
मुज़ाहिफ़ शक्ल:
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
ज़िन्दगी होती नहीं, आँसू बहाने के लिए,
लोग मिलते ही रहेंगें, यूँ रुलाने के लिए।
ग़ैर की बातों पे, ख़ुद को यूँ, परेशां क्यूँ करो,
बदज़ुबानी ये, करें दिल को, जलाने के लिए।
इस ज़माने की नज़र से तुम ज़रा बचकर रहो,
बोलता हमको है, गुमराही, फँसाने के लिए।
ख़ूबसूरत हो बड़ी, शाहे खुबां, जाने जहां,
दूर मत जाना कभी, मुझको सताने के लिए।
ये रिवायत है, जहां की, तज़किरा करता रहे,
छेड़ दो कोई, फ़साना इस ज़माने के लिए।
ख़ूब लूटा है, यकीं हमने यहाँ, जिस पे किया,
है नहीं कोई, ये हक़ मेरा, दिलाने के लिए।
आलमे दहशत, नज़र आये जिधर देखे नज़र,
'दीप', आवाज़े ग़दर तेरी, दबाने के लिए।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
बह्र-ए- रमल मुसम्मन महजूफ़
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
ग़ज़ल
ख़ूबसूरत हो, हंसी बारिश, के मौसम की तरह,
ज़ुल्फ़ पर बूंदे ये पानी की,हैं शबनम की तरह।
लग नज़र जाये नहीं, तुमको ज़माने की कहीं,
घूरती हैं कुछ निगाहें जान, दुश्मन की तरह।
चीर दिल मेरा गयी, तीरे नज़र तेरी सनम,
मुस्कुराहट है बनी तेरी ये, मरहम की तरह।
उड़ रहा आँचल सँभालो इन हवाओं से ज़रा,
दिनदहाड़े तुम नहीं निकलो यू दरहम की तरह।
दिल के दरिया में लगी उठने हैं लहरें इश्क़ की,
'दीप' राहों में खड़ा है, ख़ैर मकदम की तरह।
जितेंदर पाल सिंह
ख़ैर मकदम-- स्वागत
दरहम-- अस्तव्यस्त
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ग़ज़ल🌸
बहर रमल मुसम्मन महजूफ
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
काफ़िया - आई स्वर
रदीफ़ - इश्क में
2122 2122 2122 212
🌹
कौन कहता है नही होती जुदाई इश्क में,
कौन कहता है नही होती सगाई इश्क में।
🌹
हर सितम को भूल के आगे सदा बढ़ते रहे,
चाह कर भी कर न पाये बेवफाई इश्क में।
🌹
अब न कर कोई हिमाकत जो जला दे प्यार में,
ये अदाएं है सताती जो भुलाई इश्क में।
🌹
ये कहाँ हम आ गए है मोड़ कम आते नजर,
जिंदगी बस जा रही है धूँध छाई इश्क में।
🌹
अब कहाँ पे है गजल ओ गीत मेरे ये बता,
बात को अविराज कितनी है छुपाई इश्क में।
🌹✍
अरविन्द चास्टा "अविराज"
कपासन चित्तौड़गढ़ राज.
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ग़ज़ल
बहर रमल मुसम्मन महजूफ
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
काफ़िया - आना(उच्चारण)
रदीफ़-सीख लो
2122 2122 2122 212
दर्द पीकर आँसुओं का मुस्कुराना सीख लो।
जिंदगी में ग़ैर के भी काम आना सीख लो।
ज़ख्म देंगी नफ़रतें ही हर घड़ी मानव तुम्हें-
प्यार को भी प्यार से तुम अब निभाना सीख लो।
तोड़ दो सब बन्दिशें ही यार तुम सारे यहाँ -
आदमी हो आदमी से दिल लगाना सीख लो।
इश्क़ में गर चाहिए मन्ज़िल मुक़म्मल तो यहाँ-
हुस्न के दरबार में सर को झुकाना सीख लो।
इक खुशी की चाह में कृष्णा सदा जलते रहे-
अब ग़मों की राख से इसको बुझाना सीख लो।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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बह्य- रमल_मुसम्मन_महजूफ
अर्कान- फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फैलुंन
2122 2122 2122 212
रदीफ़- आना
काफिया:- छोड़ दो
आज दिल की बात कह दो, सच,
छुपाना छोड़ दो,
कैद दिल मे है मुहब्बत, अब बहाना छोड़ दो।
बात आधी ही रही ये वक्त ढलता ही रहा,
हो गई सदियाँ सितमगर, राह आना छोड़ दो।
चाँद तेरे गेसुओं में छुप गया आया नही,
अब हटाओ जुल्फ मुख से,तुम लजाना छोड़ दो।
कट रही है आपके बिन जिंदगी शामो शहर,
यूँ अकेली राह में मिलना मिलाना,
छोड़ दो।
हम निभाते रह गए, आपके वादे बफ़ा,
तुम खफ़ा थे, किसलिए "नीरज" जताना छोड़ दो।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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बह्र- बह्रे-रमल मुसम्मन महज़ूफ़
वज़्न- 2122 2122 2122 212
अर्कान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
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इक हसीं सा ख़्वाब हमको था दिखाया आपने,
आसमां किस बात पे सर पर उठाया आपने।।
बस्तियाँ कितनी यहाँ वीरान जल के हो गईं,
आग जो दिल में लगी थी कब बुझाया आपने।।
इससे पहले राज़ कोई आपका होता अयाँ,
दो दिलों के दरमियाँ दूरी बढ़ाया आपने।।
इस चमन पे हक़ हमारा आपसे कम कब रहा,
क्या अकेले ही लहू इसमें बहाया आपने।।
बेवफ़ा कहने से पहले सोच तो लेते ज़रा,
क्या कभी रिश्ता किसी से है निभाया आपने।।
कुछ अदाएँ आपकी अब भी लुभाती हैं मगर,
नफ़रतों का फिर वही सिक्का चलाया आपने।।
तोड़कर सारी हदें अब क़त्ल ही कर डालिए,
"अश्क"पे इल्ज़ाम जो इतना लगाया आपने।।
@ अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी "
दि0 - 09/01/2020
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2122 2122 2122 212
आना ,चाहिए
सोचती हूँ बात ये क्या,दिल लगाना चाहिए।
और जब ठोकर लगे क्या,मुस्कुराना चाहिए।
यूँ मिली बरबादियों में होश कुछ भी ना रहा।
दौर क्या मायूसियों का,आजमाना चाहिए।।
बेवफा हमको कहे सारे जमाने का चलन।
मुद्दतों तक क्या उसी का भाव खाना चाहिए।
जो चलाते थे कभी वो, तीर चुभते है हमें।
किस तरह उर नेह का दीपक जलाना चाहिए।
हर वफ़ा में लाज की मीरा रही घायल स्वजन,
अब फ़क़त इस राज को दिल मे छिपाना चाहिए।
है नही चाहत मुझे अब,चांद या फिर मान की।
अब सदा उनके हृदय में ही ठिकाना चाहिए।
मान जा रानी यहाँ कीमत नही अब नेह की,
अब न अपने प्यार से रिश्ता निभाना चाहिए।
रानी
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बहर ए रमल
मुसम्मन महज़ुफ
2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
दर्दे दिल तुमने दिया मुझको सताने के लिए,
जाम हमने भी उठाया है भुलाने के लिए।
आज मत रोको सुनो साक़ी यू पीने से मुझे,
दोस्त आये हैं पुराने सब पिलाने के लिए।
तोड़ डाले सब वो वादा-ए-वफ़ा कैसे बता,
नाम तेरा इस ज़िगर से भी मिटाने के लिए।
बाद जाने के तिरे हम भी नहीं तन्हा सनम,
पास किस्से हैं तिरे सबको सुनाने के लिए।
'दीप' ने ख़त हैं सँभाले जो उसे तूने लिखे,
सर्द तन्हाई की रातों में जलाने के लिए।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
मुसम्मन महज़ुफ
2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
दर्दे दिल तुमने दिया मुझको सताने के लिए,
जाम हमने भी उठाया है भुलाने के लिए।
आज मत रोको सुनो साक़ी यू पीने से मुझे,
दोस्त आये हैं पुराने सब पिलाने के लिए।
तोड़ डाले सब वो वादा-ए-वफ़ा कैसे बता,
नाम तेरा इस ज़िगर से भी मिटाने के लिए।
बाद जाने के तिरे हम भी नहीं तन्हा सनम,
पास किस्से हैं तिरे सबको सुनाने के लिए।
'दीप' ने ख़त हैं सँभाले जो उसे तूने लिखे,
सर्द तन्हाई की रातों में जलाने के लिए।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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ग़ज़ल
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बेसबब मेरे ख़यालों में ,कभी आया करो।
बावफ़ा यूँ ज़िंदगी में बेकसी लाया करो।
रास्ता है प्यार का ,अब प्रीत ये छूटे नहीं।
इश्क़ है नगमा इसे,दिल से कभी गाया करो।
रहनुमा ऐसी ख़ता,ईनाम में हमको मिले।
हुस्न हो तो चाँद सा हो,ये क़हर ढाया करो।
हाथ फैला के दुआ में,यार तुम को माँगती।
दे मुझे थोड़ा भरम,अहसास में पाया करो।
आब बनके जो “सुवी”,तुझमें समा जाए कभी।
ख़्वाब में बन के फ़जा , यूँ ही सदा छाया करो।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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_ बह्रे -रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
*********
ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
इन्तहां होने लगी वो जब किताबों में मिले
इश्क की खुशबू बढ़ी वो जब गुलाबों में मिले
........
रात को बेचैन करती चांद तारे खिल उठे
जल उठी शम्मा मचल कर तो चिरागों में मिले
.......
ढूंढते ही रह गये मुझको जहां की भीड़ में
हौसलों के साथ रहते हर इरादों में मिले
......
जब गजल गाने चले तो दर्द दिल के कह गये
आज कुछ तस्वीर उनकी थी दरारों में मिले
.....
कुछ हुए सपने धुआं कुछ राख बनके रह गए
ज़ख़्म जब जब थे गिने तब तब हिसाबों में मिले
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
*******
बह्रे -रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
********
ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
इश्क करके देख लो दिल के यहां काले मिले
हसरतें जलने लगी दिल पर यहां छाले मिले
.......
नफरतों के दौर में तुझसे मुहब्बत हो गई
क्या सितम हम पर हुआ दिल पर तेरे ताले मिले
........
हम वफ़ा करते रहे उनकी इबादत कर रहे
आज ग़ैरों से मिले वो ज़हर के प्याले मिले
......
बेवफ़ाओं से भरा था इक हमारा शहर ये
क्या खिलाते फूल गुलशन प्यार में भाले मिले
.......
ग़ैर की महफ़िल सजी थी वो तिजारत कर रहे
काव्यधारा को यहां क्यूं गम के ही पाले मिले
.......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
*********
बह्रे -रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
********
ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
छोड़ दो तन्हां मुझे क्या प्यार में मुझको मिला
प्यार के राही बता दे क्या करूं तुझसे गिला
.........
सोचते थे इस सफर में साथ हैं हम रात दिन
दे गये धोखे हजारों प्यार का था ये सिला
........
हार आहों के बने थे नफरतों की आग से
क्या कहूं उजड़ा चमन ये था मुहब्बत से खिला
.......
आंख से पीने लगे हम आंसुओं का ये ज़हर
दर्द है उभरा हमारा ज़ख़्म दिल का है छिला
.......
काव्यधारा कह रही इकरार ना करना कभी
मौत भी ना आ सकी जो प्यार सागर में हिला
........
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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२१२२ २१२२ २१२२ २१२
बेसबब मेरे ख़यालों में ,कभी आया करो।
बावफ़ा यूँ ज़िंदगी में बेकसी लाया करो।
रास्ता है प्यार का ,अब प्रीत ये छूटे नहीं।
इश्क़ है नगमा इसे,दिल से कभी गाया करो।
रहनुमा ऐसी ख़ता,ईनाम में हमको मिले।
हुस्न हो तो चाँद सा हो,ये क़हर ढाया करो।
हाथ फैला के दुआ में,यार तुम को माँगती।
दे मुझे थोड़ा भरम,अहसास में पाया करो।
आब बनके जो “सुवी”,तुझमें समा जाए कभी।
ख़्वाब में बन के फ़जा , यूँ ही सदा छाया करो।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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_ बह्रे -रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
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ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
इन्तहां होने लगी वो जब किताबों में मिले
इश्क की खुशबू बढ़ी वो जब गुलाबों में मिले
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रात को बेचैन करती चांद तारे खिल उठे
जल उठी शम्मा मचल कर तो चिरागों में मिले
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ढूंढते ही रह गये मुझको जहां की भीड़ में
हौसलों के साथ रहते हर इरादों में मिले
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जब गजल गाने चले तो दर्द दिल के कह गये
आज कुछ तस्वीर उनकी थी दरारों में मिले
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कुछ हुए सपने धुआं कुछ राख बनके रह गए
ज़ख़्म जब जब थे गिने तब तब हिसाबों में मिले
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सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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बह्रे -रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
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ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
इश्क करके देख लो दिल के यहां काले मिले
हसरतें जलने लगी दिल पर यहां छाले मिले
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नफरतों के दौर में तुझसे मुहब्बत हो गई
क्या सितम हम पर हुआ दिल पर तेरे ताले मिले
........
हम वफ़ा करते रहे उनकी इबादत कर रहे
आज ग़ैरों से मिले वो ज़हर के प्याले मिले
......
बेवफ़ाओं से भरा था इक हमारा शहर ये
क्या खिलाते फूल गुलशन प्यार में भाले मिले
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ग़ैर की महफ़िल सजी थी वो तिजारत कर रहे
काव्यधारा को यहां क्यूं गम के ही पाले मिले
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सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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बह्रे -रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज्न - 2122 2122 2122 212
अर्कान - फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
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ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
छोड़ दो तन्हां मुझे क्या प्यार में मुझको मिला
प्यार के राही बता दे क्या करूं तुझसे गिला
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सोचते थे इस सफर में साथ हैं हम रात दिन
दे गये धोखे हजारों प्यार का था ये सिला
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हार आहों के बने थे नफरतों की आग से
क्या कहूं उजड़ा चमन ये था मुहब्बत से खिला
.......
आंख से पीने लगे हम आंसुओं का ये ज़हर
दर्द है उभरा हमारा ज़ख़्म दिल का है छिला
.......
काव्यधारा कह रही इकरार ना करना कभी
मौत भी ना आ सकी जो प्यार सागर में हिला
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सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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वाहहहहह भाई कमाल है
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