Explained By Mr.Arvind chasta , Kapasan Chittorgarh Raj.
🍁गोपी छंद🌹🍁
गोपी छंद तैथिक जाती का 15 मात्रिक छंद है ।
*प्रति चरण 15 मात्रा होती है।
*पत्येक चरण के आरम्भ में त्रिकल होना अनिवार्य है
अर्थात
111 /21/12 मात्रा युक्त शब्द ।
*हर चरण के अंत में गुरु होना अनिवार्य है। वाचिक भार मान्य नही है।
*दो दो चरण अथवा सम चरण अथवा चारों चरण सम तुकान्त लिए जा सकते है।
उदाहरण 🍁
गुणहु भुज शास्त्र वेद गोपी।
धरहु हरि चरण प्रीटी चोपी।
जनम क्यों व्यर्थ गमावौ रे।
भजन बिन पार न पावौ रे।
-छंद शास्त्र-
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🍁तैथिक 15 मात्रिक🍁
🍂गोपी छंद🍂
प्रीत जागी हिय तुमसे ही।
रीत भूली सब तबसे ही।
भई बावरी नैन लागै।
दरस होय तो भाग जागै।
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चपल चमके डर डर जाऊँ।
कसक विरही किसे सुनाऊँ।
जाय बसे हो विदेश पिया ।
रात दिवस एक नाम लिया।
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अरविन्द चास्टा "अविराज"
कपासन चित्तौड़गढ़ राज.
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🌹गोपी छंद🌹
तैथिक जाती का 15 मात्रिक छंद।
*प्रति चरण 15 मात्रा।
*प्रत्येक चरण के आरम्भ में त्रिकल होना और चरणान्त गुरु(2) अनिवार्य।
111 /21/12 मात्रा युक्त शब्द ।
*हर चरण के अंत में गुरु होना अनिवार्य है। वाचिक भार मान्य नही है।
*दो दो चरण अथवा सम चरण अथवा चारों चरण सम तुकान्त लिए जा सकते है।
निशा बीती भोर भई रे!
तरणि किरणें ताक रहीं हे!
उठो निंद्रा त्याग चलो रे!
सुनो कोयल तान मधुर ये।
बजे मंदिर शंख मजीरा,
उठो आलस त्याग शरीरा।
भजन गावत लोग सुहायें,
भजें भगवन ढोल बजायें।
समय रुकता है कब भाई?
भजो भगवन होय सहाई।
मिला मानुष जन्म सुभागी,
रही आत्मा किंतु अभागी।
सफल कर लो जन्म सुमीता,
करें पावन हरि जन पतिता।
तरे आत्मा ये भवसागर,
भरो हरि जप जीवन गागर।
विहग नभ में उड़कर गायें,
चहक जीवन गीत सुनाएं।
छटा स्वर्णिम छाय गगन पर,
भरे बाला नीर नदी पर।
जितेंदर पाल सिंह
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गोपी छंद 15 मात्रिक,आरम्भ त्रिकल और अंत गुरु अनिवार्य
मधुर भाव से हृदय खिलता।
सुखद सार भी अमिय मिलता।।
हृदय प्रेम ही सदा पलता।
तभी सम्बन्ध निलय चलता।।
हृदय अनुबन्ध शुभे ,सारा।
रहे दीर्घ काल तक प्यारा।।
मधुर भाव जो स्रवित धारा।।
नहीं सम्बन्ध रहे खारा।
सदा सरस सम्बन्ध होता।
मधुर प्रीत अनुबन्ध होता।।
काश! मीत उपबन्ध होता।
हृदय प्यार मधुगन्ध होता।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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गोपी छंद ,१५ मात्रिक छंद
आरंभ त्रिकल अनिवार्य,
अंत में गुरु अनिवार्य
२१२२ ११२ ११२
आज आकाश पतंग उड़े।
लोग देखो छत पेंच लड़े।
हाथ में डोर कभी धर ले।
आज पूरे नभ को हर ले।।
रंग सारे सजते नयना।
देख ये सुंदर सा सपना।
दृष्य ये साथ मनोहर है।
रूप प्यारा नव सागर है।।
आज संक्रांत वियोग हरे।
स्नेह सारा अब योग धरे।
मेल होता गुड का तिल से।
भाव आते शुभ ये मन से।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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गोपी छंद
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तैथिक जाति का १५मात्रिक छंद
प्रति चरण १५
आरम्भ त्रिकल अंत गुरु अनिवार्य
चारों चरण समतुकांत या
दो- दो चरण तुकांत
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साथ चाँदनी चाँद मिलते।
रात हैं न तो दिल मचलते।
कहें दिल की बात भारणी।
रहें जैसे क्षितिज धारणी।
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याद आती पिया की सखी।
जिया कि पाती पढ़ लू सखी।
गए पिया परदेश याद सताए।
रुका नहि मोसे हिय जाए।।
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सपन सुहावन लगे पिया।
देख -देख मन मचले जिया।
हृदय मिले खिले कुसुम सिया।
पास आने फिर क्यों न दिया।।
विनीता सिंह विनी
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*गोपी- छन्द* मात्रिक छन्द
तैथिक जाति 15 मात्रा छन्द
आदि त्रिकल अनिवार्य, अंत गुरु अनिवार्य।
मापनी:- 111, 212, 111, 112,
अरूण लालिमा शुचि रुचिर है,
विहग व्योम छूकर मुदित है,
सुमन वाटिका सुरभि महकी,
चपल सारिका कुहुक कुहकी।
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वारि शैलजा अविरल बहे,
गगन चूमते गिरिवर गहे,
शुचित मोहनी मुदित हरषे,
सघन मेघ से मणिक बरसे।
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मगन मोरनी विपिन ठुमके,
चमक दामिनी विकल चमके,
सकल झूमते रसमय रसने,
अलख प्रेम में रमकर मदने,
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मुकुट मोरपंख अनुपम है,
किशन साँवरे छवि रमण है,
मधुर नैन से अमिय बरसे,
विकल राधिका मिलन तरसे।
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अधर बाँसुरी मनहर बजी,
सरस गोपिका तन मन सजी,
मधुप शोभते चिकुर विमले,
सुखद मोहिते नयन कमले।।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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गोपी छंद
2122 112 112
15 मात्रिक छंद
प्रत्येक चरण के आरंभ में त्रिकल होना
और चरणान्त गुरु अनिवार्य ।
चांद सी रात सजे सजनी,
रूप सी यूँ महके रजनी,
स्नेह प्यारा अब रात जगे ,
साज जैसे मन मीत बजे ।
प्रेम की आस यहां अब है,
प्रीत की प्यास जहां अब है ,
साथ तेरा अब मान पिया ,
हाथ तेरा अब जान जिया ।
देख नैना मन ये महके,
याद में रैन हिया चहके
मेघ देखो मन में बरसे,
आज प्यासा मन ये तरसे ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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गोपी छंद ,
१५ मात्रिक छंद
प्रत्येक चरण के आरम्भ में त्रिकल अनिवार्य,
अंत में गुरु अनिवार्य
२१२२ ११२ ११२
......
प्रीत के आंगन में सजती,
प्रेम को मैं हिय में रखती ।
दास तेरी बन के रहती,
स्नेह की नदिया में बहती।
.........
नाथ तेरे चरणों रहना ,
भक्ति के सागर में बहना ।
धाम चारों तुुम हो मन में ,
नाम तेरा जपती जन में ।
.......
दोष मेरे हर ले सब तू ,
सत्य राहों पर ले चल तू ।
काज सारे शुभ ये कर दे ,
प्रभु ऐसा मुझको वर दे।
.......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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