Explained By Smt.Simple Kavyadhara Ji
🙏🌹आप सभी साहित्य अनुरागियों को स्नेह वन्दन व नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ही हम छ्न्दों को लेकर आगे बढ़ते हैं
छ्न्द शृंखला के अन्तर्गत आज मैं सिम्पल काव्यधारा आप सभी के लेखन हेतु मयूरी छ्न्द लेकर उपस्थित हुए हैं
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आइये हम सब लेखनी की धार से मयूरी छ्न्द पर अभ्यास करते हैं
**मयूरी छ्न्द
** पँक्ति (दशाक्षर) वृत्त का छ्न्द है,🌹..🌹
लक्षण- रोज राग सो नचै मयूरी।
क्रमशः ....रगण (212 ) जगण (121 ) रगण (212) गुरु (2)
......
अर्थात हर चरण में दस वर्ण ,
दो दो अथवा चारोँ चरण सम तुकांत
212 121 212 2
नियत मापनी
🌹
212 121 212 2
प्रेम का मयूर नाचता है,
वाटिका सुगन्ध साजता है।
स्नेह सा दुलार ढ़ूँढती हैं,
कोकिला उद्यान गूँजती हैं।
.....
तान बाँसुरी बुला रही है,
मोहनी अदा लुभा रही है।
देखते तुझे पुकारते हैं,
आदतें बुरी सुधारते हैं।
......
माँग का सुहाग चाहते हैं
सूर्य सा प्रकाश चाहते हैं
राम से सिया मिले जहाँ हैं
कृष्ण राधिका मिले वहाँ हैं
.....
आन -बान -शान माँगते हैं,
कीर्तिवान नाम माँगते हैं।
पुण्य का प्रताप गंग धारा,
प्रेम को प्रणाम काव्यधारा।
.....🌹🌹
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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मयूरी छंद
दशाक्षर वृत्त का छंद,
२१२ १२१ २१२ २
साँवरे तुझे कहाँ छुपाऊँ?
भाव भक्ति से तुझे रिझाऊँ।
हो रही मलीन आज काया।
पाप पुण्य में सदा झुलाया।।१।।
साथ जो मिले कभी मुरारी।
राह में सजे ख़ुशी हमारी।
पाँव मैं धरूँ अधीन होके।
श्याम बात मान लीन होके।।२।।
कंठ में तुझे सदा बसाया।
भाव रंग में इसे डुबाया।
रूप की छटा लगे निराली।
नैन में सजी प्रभा उजाली।।३।।
पीर आज मैं तुझे बताई।
साँस आज आप में मिलाई।
अर्ज़ ये सुनो कहे सुवर्णा।
नाम होंठ पे सदा सजाना।।४।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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दशाक्षर वृत्त का छंद
मयूरी छंद
रगण जगण रगण गुरु
212 121 212 2
राग-रागिनी सदा सजाते।
संग नित्य वे उसे बजाते।।
चाँद-चाँदनी करें ठिठोली।
प्रेम-भाव की बिछी खटोली।।
सद्य अर्घ्य प्रीत का निराला।
साथ प्यार का सदा उजाला।।
दूर हो रही सभी निराशा।
है जगी नवीन आज आशा।।
लाज से रही प्रिये लजाती।
अग्नि प्यार हाय!वो लगाती।
सौम्यता अथाह ले समाती।
प्रेमसिंधु आस है जगाती।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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मयूरी छ्न्द** पँक्ति (दशाक्षर) वृत्त का छ्न्द
क्रमशः ....रगण (212 ) जगण (121 ) रगण (212) गुरु (2)
......
अर्थात हर चरण में दस वर्ण ,
दो दो अथवा चारोँ चरण सम तुकांत
नियत मापनी
2 121 21 2122
रे मयूर क्यों लुभाय मेघा!
खोल भेद ज्यों सुहाय मेघा?
बात खास आज बोल दे तू।
राज बात आज खोल दे तू।
भाल श्याम,मोर पाखि सोहे।
रंग पंख , कृष्ण अंग मोहे।
रूप साँवरा लुभावना रे।
धूप-छाँव सा सुहावना रे।
त्याग प्रेम का सिखा रही है।
राग बाँसुरी सुना रही है।
लाज राधिका लजा रही है।
साज साधिका बजा रही है।
नीलम शर्मा
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मयूरी छंद
212 121 212 2
कोटि कंठ कीर्ति आज गाए
शीश नित्य मातु को झुकाए
भारतीय हूँ सदा रहूँगा
राष्ट्र धार में सदा बहूँगा।
पुत्र को सदा दुलारती माँ
आज लाल को निहारती माँ
क्रोध अग्नि से जले धरा है।
रोम रोम राष्ट्र का डरा है।
शौर्य रक्त में सदा बहेगा
हिन्द विश्व मौर ही रहेगा
रंग ढंग रूप रंग सारे
एक धार में बँधे सखा रे।
राष्ट्र के विकास को बढ़ाओ
छोड़ द्वन्द्व आज साथ आओ।
है पुकारती सुभारती माँ
अश्रु धार जो उभारती माँ।
आन बान देश की बचाओ
हे युवा न देश ये जलाओ
प्रश्न आज राष्ट्र के उठेंगे
शत्रु एक भी नहीं बचेंगे।
गीता गुप्ता "मन"
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मयूरी छंद -दशाक्षर (वृत छंद )
रगण जगण रगण गुरू
212 121. 212. 2
जो यहाँ वहाँ करे हमेशा
बात झूठ की करे हमेशा
पाप से भरे रहे हमेशा
आन से रहे घटे हमेशा ।
मान से सदा हिये बनाओ
आन यूँ यहाँ पिया बनाओ
शान से सदा प्रीत सजाओ
प्रेम यूँ जरा आग बुझाओ ।
झूठ से नहीं जिया जलाओ
चाँदनी जरा धरा सजाओ
वाटिका जहाँन में सजाओ
राष्ट्र का विकास यूँ कराओ ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
------------------------------------------------------- मयूरी छन्द -दशाक्षर वृत छन्द
रगण(212)जगण(121) रगण(212) अंत गुरु 2
नियत मापनी
212 121 212 2
शीर्षक- प्रकृति छटा
तारिका विभावरी सुहानी,
वाटिका सुहावती लुभानी,
भोर हेम रंग धारिणी सी,
वारि दीप ज्योति दामिनी सी।
*********************
शैलजा प्रवाह चाँदनी सा,
गूँजता सुभाष रागिनी सा,
कोकिला कुहूक कूकती री,
मालती सुगंधि फूलती री।
*********************
मोरनी पसार पंख झूमे,
आसमाँ झुका गिरीश चूमे,
शोभते मराल झूमते हैं,
गात भृंग केश चूमते हैं।
*********************
राधिका प्रबोधनी पिया की,
गोपिका प्रमोदनी हिया की,
बावरे अधीर मीत नैना,
साँवरे ढली पुनीत रैना,
********************
बाँसुरी बजी हिया सुरीली,
भीगती सखी प्रिया हठीली,
मोहते मनोज नैन तेरे,
सोहते सरोजनी सवेरे।
*******************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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**मयूरी छ्न्द** पँक्ति (दशाक्षर)
लक्षण- रोज राग सो नचै मयूरी।
रगण (212 ) जगण (121 ) रगण (212) गुरु (2)
अर्थात हर चरण में दस वर्ण ,
दो दो अथवा चारोँ चरण सम तुकांत
प्रेम मग्न हो मयूर नाचे,
बोल गीत के सजाय साँचे।
झूम-झूम गाय बावरा हो,
प्रेयसी मिलाप चाहता वो।
रूप रंग से सजा हुआ है,
प्रेम की सुरा पिये हुआ है।
जीव जंतु की समान भाषा,
प्रेमहीन को रहे निराशा।
राम नाम का मनुष्य प्रेमी,
ज्ञान ध्यान का कहाय नेमी।
प्रेम मार्ग ईश से मिलाए,
जन्म-मृत्यु चक्र से छुड़ाए।
देश प्रेम की मशाल लेके,
वीर मातृभूमि माँथ टेके।
प्राण मोह त्याग वो बढ़े हैं,
युद्ध काल शत्रु से लड़े हैं।
मातृ-प्रेम बाल गर्भ धारे,
पालती सप्रेम मां दुलारे।
जन्म दे सहे अपार पीड़ा,
हर्ष होय देख बाल क्रीड़ा।
जितेंदर पाल सिंह
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मयूरी छंद
212 121 212 2
कोटि कंठ कीर्ति आज गाए
शीश नित्य मातु को झुकाए
भारतीय हूँ सदा रहूँगा
राष्ट्र धार में सदा बहूँगा।
पुत्र को सदा दुलारती माँ
आज लाल को निहारती माँ
क्रोध अग्नि से जले धरा है।
रोम रोम राष्ट्र का डरा है।
शौर्य रक्त में सदा बहेगा
हिन्द विश्व मौर ही रहेगा
रंग ढंग रूप रंग सारे
एक धार में बँधे सखा रे।
राष्ट्र के विकास को बढ़ाओ
छोड़ द्वन्द्व आज साथ आओ।
है पुकारती सुभारती माँ
अश्रु धार जो उभारती माँ।
आन बान देश की बचाओ
हे युवा न देश ये जलाओ
प्रश्न आज राष्ट्र के उठेंगे
शत्रु एक भी नहीं बचेंगे।
गीता गुप्ता "मन"
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मयूरी छंद -दशाक्षर (वृत छंद )
रगण जगण रगण गुरू
212 121. 212. 2
जो यहाँ वहाँ करे हमेशा
बात झूठ की करे हमेशा
पाप से भरे रहे हमेशा
आन से रहे घटे हमेशा ।
मान से सदा हिये बनाओ
आन यूँ यहाँ पिया बनाओ
शान से सदा प्रीत सजाओ
प्रेम यूँ जरा आग बुझाओ ।
झूठ से नहीं जिया जलाओ
चाँदनी जरा धरा सजाओ
वाटिका जहाँन में सजाओ
राष्ट्र का विकास यूँ कराओ ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
------------------------------------------------------- मयूरी छन्द -दशाक्षर वृत छन्द
रगण(212)जगण(121) रगण(212) अंत गुरु 2
नियत मापनी
212 121 212 2
शीर्षक- प्रकृति छटा
तारिका विभावरी सुहानी,
वाटिका सुहावती लुभानी,
भोर हेम रंग धारिणी सी,
वारि दीप ज्योति दामिनी सी।
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शैलजा प्रवाह चाँदनी सा,
गूँजता सुभाष रागिनी सा,
कोकिला कुहूक कूकती री,
मालती सुगंधि फूलती री।
*********************
मोरनी पसार पंख झूमे,
आसमाँ झुका गिरीश चूमे,
शोभते मराल झूमते हैं,
गात भृंग केश चूमते हैं।
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राधिका प्रबोधनी पिया की,
गोपिका प्रमोदनी हिया की,
बावरे अधीर मीत नैना,
साँवरे ढली पुनीत रैना,
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बाँसुरी बजी हिया सुरीली,
भीगती सखी प्रिया हठीली,
मोहते मनोज नैन तेरे,
सोहते सरोजनी सवेरे।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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**मयूरी छ्न्द** पँक्ति (दशाक्षर)
लक्षण- रोज राग सो नचै मयूरी।
रगण (212 ) जगण (121 ) रगण (212) गुरु (2)
अर्थात हर चरण में दस वर्ण ,
दो दो अथवा चारोँ चरण सम तुकांत
प्रेम मग्न हो मयूर नाचे,
बोल गीत के सजाय साँचे।
झूम-झूम गाय बावरा हो,
प्रेयसी मिलाप चाहता वो।
रूप रंग से सजा हुआ है,
प्रेम की सुरा पिये हुआ है।
जीव जंतु की समान भाषा,
प्रेमहीन को रहे निराशा।
राम नाम का मनुष्य प्रेमी,
ज्ञान ध्यान का कहाय नेमी।
प्रेम मार्ग ईश से मिलाए,
जन्म-मृत्यु चक्र से छुड़ाए।
देश प्रेम की मशाल लेके,
वीर मातृभूमि माँथ टेके।
प्राण मोह त्याग वो बढ़े हैं,
युद्ध काल शत्रु से लड़े हैं।
मातृ-प्रेम बाल गर्भ धारे,
पालती सप्रेम मां दुलारे।
जन्म दे सहे अपार पीड़ा,
हर्ष होय देख बाल क्रीड़ा।
जितेंदर पाल सिंह
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