Saturday, January 4, 2020

'वर्ष' छंद - Hindi Poetry


Explained By Mr Jitender pal singh
वर्णिक नवाक्षर छन्दों की अगली कड़ी में नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ, आइए हम 'वर्ष' छंद पर अभ्यास करें। जिसका विधान निम्न प्रकार से है--
जाति: वृहती
छन्द: वर्ष (वर्णिक)
मगण(222) तगण(221)जगण(121)

आया देखो वर्ष नवीन,
सारे होते काल अधीन।
लोगों में उल्लास बढ़ाय,
देखो! ये संसार नचाय।

काँपे देही शीतल शीत,
भूलो लोगों आज अतीत।
फैली चारों ओर उमंग,
नाचे कूदे यौवन रंग।

आशाओं के दीप प्रदीप्त,
सद्कर्मों से होकर लिप्त।
जीना ऐसे ही नववर्ष,
बाँटो मित्रों नूतन हर्ष।

धारो ऐसे शुद्ध विचार,
हो जाय सौहार्द प्रचार।
लोगों में हो मेल मिलाप,
छूटे ईर्ष्या और विलाप।

माया रूपी बंधन काट
खोलो भाई ज्ञान कपाट।
ढूंढ़ो कोई सद्गुरु आज,
मानो ये है दुर्लभ काज।

जितेंदर पाल सिंह
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🌹नवाक्षर वृत🌹

🌹वर्ष छंद

प्यारा है ये वर्ष नवीन।
फैला है ये प्यार प्रवीण।
तेरा मेरा भूल जवान।
ले हाथों में कर्म कमान।
🌹
जाने क्यों भूले सब लोग।
कैसा है प्यारा सब योग।
देखो ले थामो पतवार।
छोड़ो भारा है करतार।
🌹
गीतों को गाएं सब लोग।
देखी लेखी है सब जोग।
धारा धारा में सब राग।
पूरो सारे जो अनुराग ।
🌹
अरविन्द चास्टा
कपासन ,चितोडगढ़
राजस्थान

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 छ्न्द वर्ष (वर्णिक) नवाक्षर

222 221 121

आया है प्यारा नव वर्ष
छाया चारों ओर सहर्ष
अंधेरा छोड़े जब रात
आयेगा तो सूर्य प्रभात

नाचे मेरा ये मन मोर
जैसे नाचे चन्द चकोर
आओ राधा के मन मीत
गायेंगे कृष्णा हरि गीत

डालो बांहों के तुम हार
बाजे जैसे प्रेम सितार
चूड़ी ये झंकार मचाय
बाजे वीणा सिम्पल गाय
.......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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वर्ष छंद (वर्णिक) नवाक्षर


२२२ २२१ १२१


नारी जैसे तार सितार।
होवे न्यारी प्रेम फुहार।
गूँजे मीठी सी मृदु बात।
जैसे लागे वो स्वर सात।।१।।

सारी तेरी बात सशक्त।
पीड़ा में हो भाव विरक्त।
ज्वाला जैसी आग प्रचंड।
जोड़ें नाते नित्य अखंड।।२।।

मीठे लागे शब्द निनाद।
बातें सारी भाव प्रमाद।
हाथों में है डोर पतंग।
कैसे साधे लोग सुरंग।।३।।

दे सारे संस्कार सुबोध।
तोड़े सारे मौन विरोध।
देखो छायी एक उमंग।
नारी से ही प्रीत तरंग।।४।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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नवाक्षर वार्णिक छंद

वर्ष छंद


मगण तगण जगण
222 221 121

ऐसा होता काश!विधान।
होता मित्रों सत्य विहान।
मेरा हिन्दुस्तान महान।
जैसे गीता और क़ुरान।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर

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छंद - वर्ष


222 221 121


खाता देखो खून उबाल।
होते भारी बेतुक सवाल ।।
माने नारी को बस भोग।
फैला कामी नाम कुरोग।।

लाचारी देखो हर बार ।
टूट जाता है इक तार।।
रिश्तों से पाते छल घात।
हारी काया तो कर बात।।

माना था मेरी पतवार।
छोड़ी है नौका मझधार।।
छूटा मांझी वो तज प्यार।
सौगातें पाई बिन सार।।

सांसे भारी बोझिल आज।
पूरा कैसे जीवन साज।।
दूरी व्यापी है हिय कंत।
सारी आशा दारुण अंत।।

चाहा सादा सा मृदु मोद।
पाया मैंने शून्य प्रमोद।।
कैसे मानूं धन्य सुजान।
हो पाओगे क्या तुम महान।।

ललिता गहलोत

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 वर्ष छन्द- वार्णिक
वृहती जाति
मगण, तगण, जगण,

222 221 121

शीर्षक- होली

राधा छोड़ो मोहन रार,
नैनो से डारो मधु धार,
होली खेलो केशव सँग,
भीगी राधा लालिम रंग।
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होली में खेले सखि श्याम,
प्यारा लागे गोकुल धाम,
संगी साथी खेलत फाग,
नाचे झूमे छेड़त राग।
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नीले पीले रंग गुलाल,
भीगे रंगों में सब ग्वाल,
गाये होली में मधु गीत,
झूमे नाचे माधव मीत।
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दाऊ आयो नंदन गाम,
झूमे गौरी गौ ब्रज धाम,
छेड़ी वेणू की रस तान,
गाये काली कोयल गान।
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भौरे गूँजे कुंतल गात,
मीठो मीठो क्षीरज खात,
कारे कारे नीरज नैन,
छाई शोभा मोहक रैन।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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