छन्द के प्रकार - Hindi Poetry


छन्द के प्रकार
Explained By Shri Jitender Pal singh ji
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छन्द दो प्रकार के होते हैं या कहें छन्द के दो भेद होते हैं:-
१.मात्रिक या जाति
२.वर्णिक या वृत्त
प्रत्येक छन्द के चार चरण होते हैं
विषम चरण-
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पहले और तीसरे चरण को विषम चरण कहा जाता है।
सम चरण-
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दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहा जाता है।
१. मात्रिक छन्द-
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जिसके चारों चरणों में मात्रिक संख्या या मात्राभार समान हो परंतु वर्णों के क्रम या संख्या एक समान न हो। जैसे-
चरण वर्ण मात्रा
१.समय बलवान है सबसे, १० १४
२.बचा कोई नहीं इससे। ९ १४
३.सकल ब्रह्मांड वश इसके, ११ १४
४.सफल कर जन्म हरि भजके।। १२ १४

उपरोक्त उदाहरण सम मात्रिक छन्द है, इसके चारों चरणों का मात्राभार या मात्रासंख्या समान (१४) है, परंतु वर्ण संख्या या उनका क्रम भिन्न है अतः ये मात्रिक छन्द है।
मात्रिक छन्द के भी तीन भेद हैं:-
(क) सम मात्रिक छन्द-
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उपरोक्त उदाहरण सम मात्रिक छंद का है। चारों चरण का मात्राभार सामान है, परन्तु वर्णों के क्रम या संख्या भिन्न है।
(ख) अर्धसम्मात्रिक छन्द-
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जिस छन्द पहले और तीसरे चरण एक से हों तथा दूसरे और चौथे चरण एक से हों, वो अर्धसम्मात्रिक छन्द होते हैं, जैसे-

चरण वर्ण मात्रा
१.कर जोड़े देखो खड़ा, ८ १३
२.प्रभु दर करे पुकार। ९ ११
३.बगुले जैसी सोच ले , ८ १३
४.मन रख चले विकार।। ९ ११

उपरोक्त उदाहरण में पहले और तीसरे चरण का मात्राभार एक समान(१३) और दूसरे और चौथे चरण का मात्राभार(११) एक समान है अतः ये अर्धसम्मात्रिक छन्द है।
(ग) विषम मात्रिक छन्द-
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जब छन्द न सम में हो न अर्द्धसम में हो तो वह विषम मात्रिक छन्द होता है। जैसे कुंडलियां(दोहा+रोला), छप्पय(रोला+उल्लाला) जैसे-

कुंडलियां
तन का प्रायोजन सुनो, मिट्टी शरीर जान,
निश्चित आनी मृत्यु है, कर मूढ़ ज्ञान ध्यान।
कर मूढ़ ज्ञान ध्यान, कर ले पार भवसागर,
तज जाएगा शरीर, जप हरि नाम रत्नागर।
पायी मनुष्य देह, जानो लक्ष्य इस का,
है मुक्ति का उपाय, तज अभिमान तन का।


उपरोक्त उदाहरण न ही सम में है न ही अर्द्धसम में, और प्रथम दो चरण दोहा और बाकी चारों चरण रोला के हैं। इसलिए ये विषम मात्रिक छन्द है।
💢प्रति चरण ३२ मात्रा तक साधारण और ३२ से ऊपर के सभी दण्डक मात्रिक छन्द कहलाते हैं।

२. वर्णिक छन्द-
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वर्णिक छन्दों में वर्णों के क्रम और संख्या एक समान होती है, अर्द्धवर्ण को नहीं गिना जाता है। जैसे-
चरण(इंद्रवज्रा) वर्ण
१.अज्ञान अंधेर मिटाय शिक्षा, ११
२.पावे गुरू प्रेम प्रसाद दीक्षा। ११
३.आज्ञा गुरू की मन से निभाए, ११
४.सो जन गुरू के सदचित्त भाए। ११

उपरोक्त उदाहरण वर्णिक समवृत्त का है, जिसको चारों चरणों में वर्णों के क्रम और संख्या एकसमान है। इसलिए यह वर्णवृत्त है।
मात्रिक छन्दों की तरह वर्णिक छंन्दों के भी तीन भेद हैं-
(क) समवृत्त
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जिस वर्णवृत्त के चारों चरण एक समान हों, उसे समवर्णवृत्त कहते हैं। उओरोक्त उदाहरण समवृत्त वर्णिक छन्द का है।
(ख) अर्धसमवृत्त
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जिस वर्णवृत्त के पहिले, तीसरे और दूसरे, चौथे चरण एक से हों वो अर्धसमवृत्त है। जैसे- वेगवती, भद्रविराट इत्यादि।
चरण(वेगवती) वर्ण
१.बरसी घनघोर घटाएं, १०
२.तीव्र चलें चहुँओर हवाएं। ११
३.बिजुरी चमके तम भागे, १०
४.गर्जन कर्ण सुने डर लागे। ११

उपरोक्त उदाहरण अर्धसमवृत्त है, क्योंकि इसके विषम चरण(१०वर्ण) और सम चरण(११वर्ण) एक समान हैं।
(ग) विषम वृत्त
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जो वर्णवृत्त सम और अर्द्धसम नियमावली से भिन्न हों अर्थात न ही समवृत्त हो न ही अर्धसमवृत्त हों, वो विषम वृत्त कहलाते हैं, जैसे- आपीड़, प्रत्यपीड़ इत्यादि।

चरण(आपीड़) वर्ण
जन हरि दर आये, ८
मन दरसन कर सुख पाये। १२
बहुत भजन हरि जन मिलकर गाये, १६
तज कर व्यसन निज ह्रदय गुरुचरण बसाये।२०
उदाहरण से स्पष्ट है कि इसके चारों चरणों में वर्ण संख्या भिन्न है अतः यह विषम वृत्त है।

💢 जिस वर्णवृत्त पद्य में वर्णों की संख्या २६ से अधिक हो, उन्हें दण्डक वर्ण वृत्त कहते हैं।
ये भी दो प्रकार के हैं-
१. साधारण दण्डक
गणबद्ध पद्य साधारण दण्डक हैं।
२. मुक्तक दण्डक
ऐसे पद्य गणों के बंधन से मुक्त होते हैं कहीं कहीं लघु अथवा गुरु की व्यवस्था रहती है। मुक्तक दण्डक में सिर्फ अक्षरों की संख्या का ही प्रमाण रहता है।

नोट:
मुक्त छंदː मुक्त छन्द आधुनिक काल की देन है। मुक्त छंद नियमबद्ध नहीं होते, केवल स्वछंद गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छंद की विशेषता हैं। इसे स्वछंद छन्द भी कहा जाता है। हिंदी काव्य में इस छन्द को संस्थापित करने का श्रेय सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और सुमित्रनन्दन पंत जी को जाता है। विषय आरंभता में की गई 'गुरू वंदना' इस छन्द का उदाहरण है।
जितेंदर पाल सिंह

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