Wednesday, August 10, 2022

काव्य प्रदक्षिणा - अच्छे_लेखक_को_अच्छा_पाठक_भी_होना_चाहिए।

अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए।
वर्तमान समय वर्ष 2022 में जहाँ विश्वभर में हर क्षेत्र में विकास हुआ है, तदनुरूप साहित्य क्षेत्र में भी जाग्रति बढ़ी है। तकनीकी के चलते आज आभासी दुनियाँ साहित्य के लिये आधार बन चुकी है । इन विभिन्न मंचो के माध्यम से लेखन को अवसर मिलने लगे है।
आप और हम निश्चित रूप से कई कई साहित्य समूहों जुड़े है ,जहाँ साहित्य संरक्षण और संवर्धन हेतु सतत प्रयास किये जाते है। विभिन्न आयोजनों के माध्यम से लेखन की गद्य पद्य विधाओं को नियमानुसार सिखाया जाता है । जँहा हर साहित्यकार,लेखक, कवि, गजलकार, नवोदित कलम के लिये गद्य -पद्य पर पर्याप्त ज्ञान कोष उपलब्ध होता है ।
अब आज के मूल विषय पर चर्चा करते है।
"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए।"
विभिन्न साहित्यिक समूहों के पटल यात्रा करने पर एक बात सामान्यतया निकलकर सामने आती है, कि हर किसी समूह में उम्दा रचनाए नित्य पटल पर मिलेगी परन्तु पाठकों की संख्या सामान्यतया नगण्य ही मिलेगी। क्योकि अच्छा लेखक होना आसान भी हो परन्तु अच्छा पाठक होना मुश्किल है । यही प्रश्न आज हम स्वयं से करते है कि -हम अन्य लेखकों के सृजन को कितना न्यायपूर्ण तरीके से पढ़ते है , और प्रतिक्रिया सिर्फ वाह वाह से अधिक है अथवा नही।
आदि काल से भारत वर्ष विश्वगुरु रहा है समस्त श्रेष्ठ साहित्य यहाँ उपलब्ध है । हम कितना साहित्य पढ़ पाते है, कितना सीख ले पाते है।
क्या ? हम ऐसा चाहते हैं कि हमारे सृजन तक सभी पहुँचे और उचित पाठक मिले।
क्या? हम चाहते है कि - स्व लिखित सृजन की पाठकों द्वारा निष्पक्ष समीक्षा की जाय।
क्या? हर लेखक को पाठकों की समीक्षा का सम्मान करके उचित संशोधन करना चाहिए।
कड़वा परन्तु सच है ,कि हर एक समूह में कलमकार अपनी रचना प्रेषित करके निकल लेता , पटल की अन्य रचनाओं को पढ़ना नही चाहता , अंतराल पर स्व लिखित रचना पर कोई प्रतिक्रिया न पा कर निराशा को प्राप्त करता है अथवा सम्बन्धित पटल को दोषी करार देता है।
*याद रहे अच्छे पाठकों की भी कमी नही है।




 साहित्यिक मंचो के माध्यम से प्राप्त विषयक चिंतन।
साभार- काव्यांचल सहित्यशाला , Hindi Poetry (page)

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए""
एक ज्वलंत विषय जिस पर विचार मंथन अति आवश्यक है।
हम सभी भाषा की चार संक्रियाओं सुनना, बोलना पढ़ना ,लिखना से भली भाँति परिचित हैं किंतु यदि हम इसे सही रूप में आत्मसात कर पाते तो शायद आज यह विचार मंथन न करना पड़ता।
हम सभी के मन मे भाव व विचारोँ का प्रवाह अनवरत होता रहता है कुछ उसे शब्दों में पिरोकर कागज पर उतार देते हैं यदि यह अभिव्यक्ति रुचिकर व विषयानुरूप हो तो एक रचना बन जाती है,और लिखने वाला एक लेखक की श्रेणी में आ जाता है।।
जैसे चाकू की धार को तेज करने के लिए उसे घिसना पड़ता है वैसे ही लेखनी को पैना करने के लिए पढ़ना व सतत अभ्यास आवश्यक है।।
मुद्दा है कि "अच्छे लेखक को अच्छा पाठक होना चाहिए"
मेरा यह निजी मत है कि अच्छा पाठक के साथ एक समीक्षक की दृष्टि भी सँग हो तो यह बहुत अच्छा होता।
क्योंकि अच्छा पाठक सिर्फ पढ़ता है व रचना की सराहना कर देता है।पर कहीं कहीं लेखनी में जब व्याकरणिक त्रुटियों ,अनुच्छेदात्मक
या अन्य गलतियों कोदेखने के बाद भी इंगित नहीं करता कि रचनाकार को बुरा लग जायेगा।
लेखक या रचनाकार भी सिर्फ सकारात्मक प्रतिक्रियाओं पर प्रसन्न होते हैं नकारात्मकता उन्हें रास नहीं आती,।।
कहा भी गया है कि प्रशंसा एक मीठा व धीमा विष
है जो धीरे धीरे अंत की ओर ले जाता है।
वैसे ही यदि रचनाओँ की निष्पक्ष समीक्षा न की जाए व सिर्फ प्रशंसा ही हो तो वहां लेखनी का प्रवाह रुक जाता है।यह स्थिति दुःखदायी होती है।।
अतः सम्भव हो तो लेखक को अच्छे पाठक के सँग एक अच्छा टीकाकार भी होना चाहिए।।
लेखक को अपनी रचनाओँ पर प्राप्त त्रुटियों को बताने वाली समीक्षा का खुले दिल से स्वागत करके सुधार हेतु प्रयास करना चाहिए।।
निहारिका झा ,खैरागढ़ राज.(36 गढ़)
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 "अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"   - ये सत्य है कि फेस बुक और साहित्यिक समूहों ने साहित्य जगत को अच्छे साहित्यकार दिये हैं,अनेक ऐसे नाम जो हम तक शायद कभी नहीं पहुंँच पाते इस माध्यम से हम उन तक पहुँच सके।अब आती है बात पाठक होने की तो यह वह माध्यम है जहाँ विचारों की अधिकता से मनोमस्तिष्क शून्य होने लगता है। साहित्यिक समूहों में फालोवर्स बढ़ाने की इच्छा से हजारों की संख्या में ऐसे लोग जोड़ लिए गये हैं जिनका वैचारिक स्तर शून्य है ऐसे में सुधि पाठक को ऐसी भीड़ में से सार्थक और अपनी अभिरूचि के विचार चुनना बड़ा कठिन हो जाता है यही कारण है कि यहां पाठकों की संख्या घटी है और लेखक गणों की संख्या में वृद्धि हुई। 
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 Rachna shastri 

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - आजकल रचनाकार चाहता है कि उसकी रचना सब पढ़े और प्रतिक्रया दे पर वह स्वयं दूसरो की रचनाओ को पढ़ता नही इसलिए पहले स्वयं से शुरुआत करनी होगी पहले खुद को पाठक बनना होगा ।
किसी रचना पर सुझाव समालोचक प्रतिक्रया देने मे झिझक होती है कहीं कलमकार बुरा न मान जाये सभी अपने को ही सर्वश्रेष्ठ मान बैठे है रचनाकार को भी सुझाव और सुधार सहजता से स्वीकार करने चाहिए ।
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा  
Netraj singh Rajput 

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- आज जब सभी समूहों में ये दावा किया जाता कि उनके बराबर कोई नहीं ,उन्हि के समूह में पाठक संख्या नगण्य होती । लोग केवल सुंदर महिला को देखने के वास्ते उस पोस्ट को एक ऊँचाई दे देते ,जिसकी ज़रूरत नहीं होती।
वही एक अच्छा लेखक अपनी एक अच्छी पोस्ट पर कमेंन्ट नहीं पाता ,मगर अगर उसे होड़ न हो तो सन्तुष्ट हो ही जाता ।
मेरे ख्याल से जो कम प्रतिक्रिया पाता उसको तो कम से कम लोगो ने पढ़े है ,का वो खुद दावा कर सकता ।
अच्छा पाठक कमेंन्ट कम करेगा मगर पढ़ेगा ज़रूर उसे सीखने को मिलता यही से ।
अच्छा पाठक ये नहीं देखता की किसका समूह है वो पढ़ कर उसी के हिसाब से कमेंन्ट भी करता है ।
ये जो (वाह!वाह! फैक्टर )चला है वो एक अच्छा पाठक बन कर कमेंन्ट करना बिल्कुल भूल जाता क्योंकि उसे की
आसानी से वह किया निकल लिया,एक रचनाकार के पास 10 समूह है दसो जगह वो जा रहा तो ज़ाहिर सी बात वो सबको पका चुका होगा बहुत कुछ रचनाकारों की इन्ही हरकतों से उसे एक बड़ा वर्ग पाठकों का नहीं मिलता ।
अरे आप अपनी ही रचनाएँ कब तक पढवाएँगे ,कभी हमारी भी थोड़ा ही सही पढ़ लीजिये ।
मगर वो इस बात को सिरे से नकार देता क्यों भला की वो बहुत उम्दा रचनाकार है इस बात को किसको समझा रहें होते वो लोग ।
फेसबुक पर तो पता ही नहींचलता कौन अच्छा कौन सही और स्वरचित रचना ।
खैर ये विषय सोचने को मजबूर करता है कि अच्छा पाठक कैसा हो ।
 Vinita singh "vini" - 

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - निश्चय ही अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए। रचना को पूरी पढ़कर ही टिप्पणी
दी जानी चाहिए। मैं खुद भी अपने आप से कहता हूं कि मैं किसी दूसरे लेखक की रचनाएं पढ़ुगा तब
ही तो मेरी रचना ऐ दुसरे लेखक पढ़ेंगे । त्रुटियां निकालने के उद्देश्य से पढ़ना एक अलग विषय है।
रचना के भाव को समझने के लिए रचना पढ़नी
चाहिए।यह मेरा विचार है।
कवि देवदास गढ़पाल कटंगी बालाघाट मध्यप्रदेश

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- मैं अन्य रचनाकारों को भी पढ़ता हूँ। आभासी पटल "फेसबुक" आदि ने उन रचनाकारों की संख्या बढ़ाई है जो कविता को प्रसिद्धि की सीढ़ी मानते हैं और जल्द मशहूर होना चाहते हैं लेकिन कविता, गीत या ग़ज़ल के व्याकरण को समझने से कतराते हैं। कविता के नाम पर किसी की कॉपी पेस्ट या कुछ भी पोस्ट कर देते हैं। जब मैं समझ लेता हूँ कि ये रचना त्रुटि पूर्ण है या कॉपी है तो उसे नज़रंदाज़ करके आगे बढ़ जाता हूँ। मैं समझता हूँ कि ऐसे रचनाकारों को प्रोत्साहित नहीं कर सकता। अच्छे लेखन पर उत्साहबर्धन अवश्य करता हूँ, इसके लिए रचनाकार का परिचित होना या न होना कोई मायने नहीं रखता।
ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
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अच्छे लेखक को अच्छा पाठक तो होना ही होना चाहिए।
अच्छे आलोचक की अच्छी आलोचना भी सहनी चाहिए।।
 नरेंद्र सिंह

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- हर लेखक की अपनी मर्यादाएं होती हैं विशेषतः तब जब वो लेखन के साथ घर गृहस्थी और अपना जॉब भी संभालता हों। मैं आपके विचार से सम्मत हूं कि लेखक को अच्छा पाठक बनना चाहिए लेकिन यह भी उतना ही सच है कि लेखन हमेशा ही मौन से जन्म लेता हैं।
और जो मौन से अवतरित होता है वही चिरकालीन होता हैं।
प्रकृति के कण कण को महसूस करता हुआ सृजक कभी कभी बाहरी भ्रम जाल से मुक्त होकर अपने आप में खो जाना पसंद करता हैं और उस वक्त जो शांति और आनंद मिलता है उसके आगे शब्द बौने हो जाते हैं।
मेरे विचार से सृजक दो प्रकार के होते है एक पाठक और दूसरा साधक।
मंच कोई भी हो वहां पर सम्मिलित लोगों में अच्छे पाठकों का होना भी उतना ही जरूरी है जितना अच्छे सर्जक का।
सर्जक को स्वतंत्र रखना चाहिए। वो चाहे तो औरों को पढ़े और कमेंट दें या फिर चुपचाप अपना सृजन कार्य में व्यस्त रहें।
क्या प्रत्येक मंच सृजक को स्वायत्तता देना पसंद करेगा?
सब एक ही प्रवाह में क्यों चल रहे हैं? लिखो, पढ़ो और कमेंट दो।
आपने मंच का नाम देने की मनाही की है इसलिए नाम नहीं दूंगी। मगर मैं एक ऐसे ग्रुप की सदस्य हूं कि वहां केवल रचनाएं पोस्ट की जाती हैं। पाठकों को और लेखकों को स्वायत्तता दी जाती हैं। जब चाहे तब पढ़े। - 
Bhavna Bhatt

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- निसंदेह लेखक को अच्छा स्वाध्यायी होना अत्यंत आवश्यक है, तभी वह एक उत्कृष्ट लेखन कर सकता है। मेरे दृष्टिकोण से किसी भी मानव के अंतःकरण में लेखन अभिव्यक्ति के गुणों का विकास ही तभी हो पाता है जब वह श्रेष्ठ व महान लेखकों के साहित्य को पढ़ता है।
केवल सतही तल पर एक रचना पर "वाह-वाह" टिप्पणी करना, यह दर्शाता है कि आपके अन्दर साहित्य के प्रति समर्पण, निष्ठा व सम्मान का अभाव है।
किसी भी रचना पर टिप्पणी करने से पहले आपको कई बार सोचना चाहिए कि रचना किस स्तर की है, तभी अपनी निष्पक्ष, बेबाक टिप्पणी करने का कष्ट करें। 
Mukesh K. Saini

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- हर लेखक लेखक बनने से पूर्व पाठक ही होता है। बिना पाठन किये कोई लेखन कार्य कदापि नहीं कर सकता। अन्य लेखकों की रचना का अध्ययन एवं विश्लेषण किये बिना हम स्वरचित रचनाओं को प्रासंगिक नहीं बना सकते हैं। प्रकृति, साहित्य, विज्ञान आदि सभी बिषयों से सम्बन्धित लेख पढ़कर ही हम लेख की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की समीक्षा कर सकते हैं। एक अच्छा पाठक ही बेहतरीन लेखक व कुशल समीक्षक हो सकता है। आधुनिक समय में जीवन के हर पहलू पर लिखी रचनाओं का अध्ययन कर ही हम अपनी लेखनी को परिष्कृत एवं परिमार्जित कर सकते हैं अतः हमें लेखक से पूर्व पाठक बनना होगा। पाठक का भाव ही व्यक्ति को आजीवन प्रकृति के प्रति जिज्ञासु बनाये रखता है।
हरेन्द्र श्रीवास्तव (विज्ञान लेखक)
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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- यह एक ऐसा विषय है जिस पर बार-बार बात करने को दिल करता है । कितने ही ऐसे रचनाकार मेरी मित्रता सूची में हैं जो बहुत अच्छे लेखक हैं लेकिन कभी किसी और की पोस्ट पर नहीं आते।
मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि अगर आप अपने आप को एक सामान्य रचनाकार समझते हैं तो कुछ सीखने के उद्देश्य से दूसरों को पढ़िए और अगर आप बहुत ही उत्तम श्रेणी के रचनाकार है तो कुछ सिखाने के उद्देश्य से पढ़िए। विचारों का आदान-प्रदान या किसी भी रचना पर की गई समीक्षा बहुत से लोगों को ज्ञान अर्जन हेतु सहायक होती है।
सोशल मीडिया या फेसबुक के संदर्भ में एक और समस्या मुझे दिखाई देती है, प्रत्येक रचनाकार को अपनी रचना बहुत से लोगों को पढ़ानी है और इसीलिए वह अलग-अलग समूह में अपनी रचनाएं पोस्ट कर देते हैं। अब जिन लोगों के साथ आप साथ कॉमन ग्रुप शेयर कर रहे हैं उनको आपकी रचना बार-बार दिखाई देगी। ऐसे में वह मन से उतर जाएगी और चाह कर भी आप प्रतिक्रिया नहीं दे पाते।
एक और बात जो प्रचलन में देखी गई है आप गलती से किसी की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर लो या उनके साथ अपना फोन नंबर शेयर कर लो तो कुछ लेखक अपनी रचनाओं के लिंक आपको व्हाट्सएप या मैसेंजर पर भेजना शुरू कर देते हैं। मैं समझती हूँ अपनी रचनाएं अगर आप लोगों को पढ़ाने उनके घर तक जाएंगे तो निसंदेह लोग आपसे उकता जाएंगे, इसलिए समय दीजिए और अपने लेखन के आधार पर अपने पाठक और फोलॉवर्स बनने दीजिए।
फिर एक कैटेगरी ऐसी भी है जो अपनी रचना के साथ भड़काऊ चित्र सलंगन कर देते हैं ऐसे में रचना कितनी भी अच्छी हो, न पढ़ने का दिल करता है और न ही प्रतिक्रिया देने का।
लेखक मित्र रचनाओं के साथ अपनी फोटो डालें अच्छा है लेकिन स्मरण रहे कि आप रचनाकार हैं आपको मिलने वाले लाइक्स और कमेंट्स फोटो के कारण नहीं बल्कि आपकी सृजनशीलता के कारण होने चाहिए।
अंततः कुछ गुणी जन के लिए यह कहना चाहती हूँ कि किसी की भी रचना पर प्रतिक्रिया या समीक्षा सिर्फ नकारात्मक पहलू उजागर करने के लिए न दें। हर बात को कहने का एक सलीका होता है, मर्यादा होती है उसका पालन करते हुए अपनी समीक्षा दें ताकि सामने वाले का मनोबल न टूटे।
एक लेखक और पाठक के रूप में संयमित रहना अति आवश्यक है।
रीना धीमान 'स्वर्ण' , नवी मुंबई

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - यूं तो भाषा का अभिप्राय हृदयस्थ मंतव्य को समझने से है। यह भी सही है कि हर बोली में कोई न कोई फक्कड़ सूफी संत कवि ऐसे हुएं हैं जिनकी भाषा के व्याकरणीय झोल नापने बैठ जाएं तो उनके भावगत रचनामृत से समाज वंचित रह जाए। किंतु ये भी उतना ही सत्य है कि एक स्तरीय रचना के निर्माण में अच्छी भाषा शिल्प का विन्यास आवश्यक है।भाषा अच्छी का अभिप्राय वह सुबोध हो,सरल हो,अति क्लिष्ट न हो , पर अव्याकृत न हो।अक्सर नामचीन लेखकों से ज्यादा पाठक/श्रोता जब एक अपरिपक्व भाषा और बिखरा भाव देखता है तो अंदर में सिर धुनते हुए प्रत्यक्ष में तालियां और वाह वाह लाजबाव उत्तम कथन कहने के मोड पर पाता है खुद को।एक और बात पढ़ने एवं लिखने में फर्क हो जाता है। बोलने में कुछ चीज़ें चल सकती हैं, पर लिखने में थोड़ा साहित्यिक तहजीब मांगती हैं।कभी कभी लेखक अपने हिसाब से सही लिखता है किन्तु टाइप या छपाई में फरक आ जाता है।ऐसी भूल-चूक को स्वीकार कर लेने में कोई बुरी बात नहीं है, वरन् रचना और भी बलवती हो कर निखर जाती है। हां ये भी तथ्य है कि अक्सर कोई मानना नहीं चाहता कि वह गलत हो सकता है। वास्तव में सही और अच्छा तो वही लेखन है जिसे वह नहीं ‌दूसरे सबकहें वाह क्या बात है? जय भारत।
  Suchitra Dey

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- "लेखक के मन से.....पाठक की चेतना तक"
कविता एक दिन भाव से बोली,
कैसी ये नीरस ज़िन्दगी आ गयी है?
पहले कितनी बखत थी हमारी,
तुम्हारे साथ कितना चटक मटक लेती थी मैं भी?
देखो,मैं तो मैं हूँ,अब भी नवयौवना सी,तुम ही कमजोर पड़ गए हो,शायद,इसलिए लोग अब कम रुचि लेते हैं मुझमें,
देखो,यदि ऐसा ही रहा न,तो बेहतर है कि मैं चित्र से दोस्ती कर लूँ,
कम से कम मुझे निहारे तो कोई,।।
देखा नहीं आजकल सोशल मीडिया पर चित्र देख लोग शब्द पढ़ते हैं।
भाव मुस्कुराकर बोला,
तुम कुछ भी कर लो,तुम्हारा उत्थान तब तक सम्भव नहीं जब तक भाव मन से मन तक संचरण न हों,
उसके लिए जरूरी है कि लोग एक दूसरे के शब्दों के पीछे छुपे भावों को पढ़ें,न कि चित्र को,,आजकल ये भूलने लगे हैं लोग, कि लेखन का प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत पठन पाठन ही है।
इसलिए मेरी हो या तुम्हारी बात,मुख्य है पाठक ही।।।
डॉ पूजा मिश्र 'आशना'

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए
यह विषय सभी साहित्यकारों के लिए सटीक विषय है। और इस आभासी संसार का तो ज्वलन्त मुद्दा है। मोबाइल पर उंगलियाँ चलाते ही कई विभिन्न विधाओं में रचनाएँ आँखों के सामने से गुज़रती हैं। ऐसे में होता यह है कि अपने जाने पहचाने नामों पर तो निगाहें बरबस चली जाती हैं। अनजानी रचनाओं पर ध्यान नहीं जाता है। कभी हम जानबूझ कर सरसरी नज़र डाल देते हैं। और कभी टाल ही देते हैं।
किन्तु सच्चाई यह है कि एक श्रेष्ठ पाठक ही अच्छा लेखक बन सकता है। जिसने उसने कहा था, पुरस्कार, पूस की रात, गिल्लू आदि नहीं पढ़ी; वह कैसे कहानीकार बन सकता है। जिसने पुष्प की चाह, साकेत, झाँसी की रानी आदि कविताओं का आनन्द नहीं लिया, वह कैसे काव्य रचना कैसे कर सकता है। जो हम भोगते हैं वही लिखते हैं। वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान; उमड़कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।
यदि आज की लेखन पठन प्रवृति की बात करें तो यह लेन देन का सौदा मात्र रह गया है। आपने मेरी रचना पढ़ी तो मैं भी आपके लेखन पर नज़रें इनायत करूँगा। अरे जितना और जितनों को पढ़ेंगे उतने ही आला दर्ज़े के रचनाकार बन पाएँगे।
एक बात और भी ध्यान देने योग्य है। कई बार बिना पढ़े ही रचना पर प्रतिक्रियाएँ
अपनी उपस्थिति के लेबल स्वरूप लिख दी जाती है। यह और भी ग़लत तरीका है।
अतः पढ़िए और खूब पढ़िए। नए विचार, नई शैली व नई शब्दावली से रुबरू होंगे।
सरला मेहता , इंदौर
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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"- एक अच्छा लेखक होने के लिए अच्छा पाठक होना जरूरी है।
यह अक्षरशः सत्य है।
जब हमारी रचना को पढ़कर कोई प्रतिक्रिया देता है तो हमें लगता है कि हमारा लिखना सफल हुआ ठीक वैसे ही अगर हम किसी अन्य को पढ़कर उसी तरह प्रतिक्रिया देंगे तो उनका मनोबल बढ़ेगा।
अगर कोई हमारी रचनाओं को पढ़कर सकारात्मक तरीके से हमारी कमियाँ बताता है हम उत्साहित होकर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं।
अच्छा लेखक बनने के लिए हमारा पाठक होना जरूरी है,इससे हमें नित नूतन सीखने का अवसर ही मिलता है।
किसी विषय को कई तरीके से लोग कैसे लिखते उन सबको देखकर पढ़कर और सीखकर हम बेहतर करने का प्रयास करते हैं।
पढ़ने से नई विधियों की हमें जानकारी मिलती है।हमारे शब्दकोश में इजाफा होता है।
बिना पढ़े हम तथ्यात्मक जानकारी नही जान सकते
बाकी सिर्फ देखने भर से उसके बारे में पूरी जानकारी नही पा सकते।
अपने लेखन के विकास,नई चीजों की जानकारी के लिए एक अच्छा पाठक होना अत्यंत आवश्यक है।
रूचिका राय

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - यदि लेखक अच्छा पाठक नही है तो वह अच्छा लेखक नही बन सकता लेख विचारों के गर्भ मे पालते हैं विचार मुशाहिदा या मुतआला (देखने और पढ़ने ) पनपते हैं,  एक अच्छे लेखक अच्छा पाठक होना अनिवार्य है
 Warsi Akram Iqbal

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - लेखक को पाठक के स्थान पर रखकर देखना होगा।यदि मैं पाठक होता तो जो मैने लिखा वह उसके स्तर का है भी या नहीं।वह किस स्तर के पाठकों के लिये लिख रहा है ?
उसकी क्या प्रतिक्रिया मिलेगी।यदि लेखक का लेखन स्वास्थ्य सुखाय की भावना से ओतप्रोत है तो बात और है।दूसरी और पाठक लेखक की रचना को पढते समय उसकी मनःस्थिति का ध्यान रखे।उसकी भूल-चूक को उदार मन
से ले।अनावश्यक टिप्पणीकार न बने।
यहां उसे यह ध्यान रखना होगा कि वह यदि लेखक होता और अगर कोई पाठक उसके लेखन पर अवांछनीय टिप्पणी करता तो उसे
कैसा लगता....
दोनो एक दूसरे के पूरक हैं।
आलोचना और समालोचना में यह बहुत जरुरी है।
 Arun Kumar Tayal

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - बहुत सुन्दर एवं साहित्य सरंक्षण के उचित विषय का चुनाव किया गया | यह एक कठिन एवं सोचनीय परिस्थिति है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए | अभी तक के अपने आभासी लेखन से जो मैंने अनुभव किया है वही यहाँ लिखना चाहूंगा | सर्वप्रथम मैंने ज़ब भी किसी पोस्ट पर कुछ नई नई रचनाएं पढ़ना चाही, एक, दो, तीन, पांच, दस ओर बस कहीं वो गुणवत्ता, श्रेष्ठता नहीं मिली, कोई तुकांत नहीं, कोई गहराई नहीं यहाँ तक कि रचना का मूल भाव तक स्पष्ट नहीं होता, लेखक ने दस बारह पंक्तिया लिख कर अपना दायित्व निभा लिया | दूसरा कारण जो मुझे लगा, अति भारी भरकम शब्दों का प्रयोग जिन्हें समझ पाना आम जन मानस के बलबूते की बात नहीं, लेखक क्या कहना चाहता है, समझ नहीं आता, हो सकता है वो सही हो लेकिन मेरा मानना है कि सरल शब्दों का प्रयोग होना चाहिए, जिसे पाठक आसानी से समझ पाए |
मेरा सुझाव है कि आयोजकों को यह स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए कि आप सभी रचनाओं की उचित समीक्षा करें, किसी भी त्रुटि या दोष को बेझिझक इंगित करें ओर लेखक गण कृपया हरेक प्रतिक्रिया पर ध्यान दें, किसी के साथ उलझें मत, विनम्र रहकर अपनी ग़लती माने, आपके लेखन में सुधार आए इसके लिए बहुत जरूरी है |
राम किशोर " राम " पंजाब 

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - जब तक हमें रास्ता पता न हो तब तक हम मंज़िल तय नहीं कर पाते भले वह किसी भी शहर गाँव और क़स्बा ही क्यूँ न हो ।
ठीक वैसे ही हम एक अच्छे लेखक नहीं हो पाते जब तक हम एक अच्छे पाठक या समीक्षक नहीं बन जाते है ।
लेकिन यह भी हमारी बुद्धि विवेक हमारी रुचि पर निर्भर करता है की हम उस विधा को कितना जानते है या उसे समझने की कोशिश करते है या हमारे में उसे सीखने की कितनी लगन और तत्तपरता है ।
जैसे जैसे हम रुचिकर होते जाते है तो हमारे अंदर उसके प्रति प्रश्न भी जन्म लेते है और उसके सही ग़लत को समझने की समझ भी बड़ती है जिसका निराकरण हम गुणीजनों और योग्य जानकारों द्वारा करते है वैसे वैसे
उस विधा के प्रति हम दक्ष हो जाते है और दूसरे रचनाकारों को पढ़ते है और शंकाओं का समधान करते जाते है और लेखन भी करते जाते है।
हाँ यह और बात है विषय भाव और देशकाल को लेकर आपके लेखन में विभिन्नता हो सकती है लेकिन जैसे जैसे आप दूसरी को जितना ज़्यादा पढ़ते जाएँगे उतना आपका लेखन उच्च स्तर का होता जाएगा ।
इसलिए पहले सुधी पाठक होना अति आवश्यक है ।
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मनोज आई के राजदेव ,इंदौर मप्र

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए"सहमत हूँ पर अब इतने लोग रोज लिखतें है ,कई पटल हैं । सभी को पढ़ना मुश्किल है।
पर जो अच्छा लिखतें है उन्हें अवश्य पढ़ती हूँ टिप्पणी भी देती हूं। कुछ लोग सिर्फ अपनी रचनाओं पर ध्यान देते है। एक अच्छा पाठक होना बेहद जरूरी है। अगर सभी कोई लिखे पढ़े कोई नहीं तो कैसे होगा।
 Anita Mishra
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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - बिल्कुल सही कहा है आप ने हम सब लगभग हर व्यक्ति आत्मा केंद्रित हो गया है एवं स्वयं द्वारा रचित रचनाओं के अलावा कुछ और ध्यान लगाकर पढ़ना नहीं चाहता।
 Prafull Kumar Shukla

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - किसी रचना पर भी टिप्पणी करना बड़ा भारी पड़ जाता है व्यक्ति अपने को मूर्धन्य विद्वान समझता है दूसरे की सही बात भी मानना नहीं चाहता इसलिए त्रुटियों की ओर इंगित करना भी बड़ा कठिन है। केवल ठाकुर सुहाती अच्छी लगती है इसलिए प्रतिक्रियाएं वाह-वाह तक सीमित रह जाती हैं।। आपने आत्मीयता पूर्वक पूछा इसलिए यह सच्ची बात कहनी पड़ी है
  सन्त कुमार वाजपेयी 'सन्त'
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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - व्यक्तिगत जीवन की आधिकारिक साझा के अन्तर्गत आने वाले सभी लेख जो की उच्चतम स्तर पर एक अच्छी उम्मीद रखते हैं उन्हें अधिकांशतः ऐसी स्थिति व विचारधाराओं को मद्देनजर रखना चाहिए होगा की किसी भी विषय को सम्मिलित करने से पहले उस विषय की परिपूर्णता से और व्यक्तिगत रूप से सम्मान होना चाहिए
ब्राह्मण दीपक कु. शुक्ला

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - सीखने वाले और सिखाने वाले को एक अच्छा श्रोता और अच्छा वक्ता दोनों बनना पड़ता है। ईश्वर प्रदत्त प्रत्येक मनुष्य को दो आंखें दो कान और एक जिह्वा है जो देखना, सुनना अधिक और कम बोलने की प्रेरणा देता है।
 Digvijay Singh

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" रचनाकार रचना तो करते हैं किंतु नुक्श निकाले जाने पर सौ दलीलें दे अपनी ही बात सत्य साबित करने की कोशिश करते हैं जबकि वह स्वयं भी जानता है त्रुटि है यदि लेखक त्रुटियां मान लें तो निश्चित वह और भी उत्तम सृजक बन सकता है। लेखक होने से पहले अच्छे पाठक होना भी अति आवश्यक है पठन मनन से लेखक के लेखन में उत्कृष्टता आती है
  Lata Sharma

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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - साहित्य क्षेत्र असीमित है जितना अध्ययन करोगे उतना ही ज्ञान प्राप्त होगा ।
आजकल बहुत ही ज्ञान की उत्तम पोस्ट आती हैं जिन्हे देख पढ़ती अवश्य हूं।
सभी जगह गद्य -पद्य की जागृति जागी है। आजकल आभासी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्तम विचार सुंदर ज्ञान के ग्रुप हैं जो कुछ न कुछ देकर ही जाते ।उत्साह भी लिखने का बहुत हुआ अपने ज्ञान की उपलब्धि हासिल करना है।
कुछ सीखना कुछ सिखाना जिसके माध्यम से हम अनाड़ी को ज्ञान मिलता और कुछ आगे बढ़ने की लालसा भी।इसलिए मेरे विचारों से हमें अपने से ज्यादा दूसरों को भी पढ़ना चाहिए। उनका उत्साह अपने विचार देकर बढ़ाना चाहिए।
हमारी अपनी रचना पर कोई प्रतिक्रिया आती है तो हमे खुशी मिलती ओर अपनी कमी का अहसास भी होता है। जिसे हम आगे सुधार सकते हैं।
पुष्पा तिवारी , पुष्पार्जन
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 "अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - अच्छा लेखक होने से पहले एक अच्छा पाठक होना ज़रूरी होता है क्योंकि एक अच्छा पाठक लेख(गद्य या पद्य) के भाव को भली भांति समझ सकता है। एक बार कलम की बारीकियांँ समझ आने पर स्वयं लिखने पर प्रेरित होता है, पर आजकल सभी सोचते हैं कि उनकी रचना पर सभी अपनी प्रतिक्रिया दें (चाहे वह स्वयं दूसरों की रचना पढ़ें या नहीं) क्योंकि उन्होंने अपनी रचना बहुत मेहनत से लिखी है । कभी यह होता है कि उस शख़्स ने मेरी रचना को नापसंद किया तो मैं भी उसकी रचना को नापसंद करूंँ चाहे वह कितनी ही खूबसूरत रचना हो। इसी कारण कई रचनाओं को पाठक नहीं मिलते। सभी रचनाकार बहुत मेहनत से लिखते हैं क्योंकि रचना जो कि स्वरचित होती है वह बच्चे के समान है और बच्चे तो सभी के प्यारे और सभी को प्यारे लगते हैं जरूरत है सिर्फ अपने अहम व वहम को दिल से निकालने की। किसी ने मेरी रचना नहीं पढ़ी तो मैं किसी की रचना क्यों पढ़ूंँ इसी कारण अच्छी रचनाओं को पाठक नहीं मिलते क्योंकि आप किसी को नहीं सराहोगे तो आपको भी कोई नहीं सराहेगा। हम तभी कुछ पा सकते हैं जब हम कुछ देते हैं। दूसरों रचनाकारों को सम्मान दीजिए आपको ख़ुद ब ख़ुद मिल जाएगा।
Renu Gandhi 'अमन'
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"अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए" - बिल्कुल सहमत हूँ इस विषय पर । अच्छे लेखक को अच्छा पाठक भी होना चाहिए । अगर पाठन विषय उनकी स्तर से नीचे का है तो उचित परामर्श मिलेगा और यदि बढ़ियां लिखा होगा तो आगे और लिखने के लिए प्रेरणा मिलती रहेगी ।
Savita Shukla

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