Explained By - Simple kavyadhara ji (Pryagraj)
🌹🙏आप सभी साहित्य अनुरागियों स्नेहिल नमन,🙏 🌹
🌹मित्रों हम सभी एक साथ कदम से कदम मिलाकर साहित्य की ओर बढ़ रहे हैं और एक से एक छ्न्दों पर अभ्यासरत हैं
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🌹अनुरागी बन्धुजनों पुनः छ्न्द शृंखला के अन्तर्गत मैं सिम्पल काव्यधारा आप सभी के लेखन हेतु पुनीत छ्न्द लेकर उपस्थित हुई हूं।🌹
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🌹आइये हम सब अपनी अपनी लेखनी से भावों को उकेर कर काव्यसागर में डूबते हुए सुन्दर सृजन करते हैं
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🌹पुनीत छ्न्द🌹
🌹पुनीत छ्न्द तैथिक जाति का 15 मात्रिक छ्न्द है, प्रति चरण 15 मात्रा ,
प्रत्येक चरण के अन्त में 221( तगण )
अनिवार्य है । अन्य नियम समान होगा।🌹
🌹दो दो चरण अथवा सम चरण अथवा चारों चरण समतुकान्त लिए जा सकते हैं
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पुनीत छ्न्द का उदाहरण
तिथि कल पुनीत है हे तात,
मेरी कही जु मानों बात।
हरि पद भजौं तजौं जंजाल,
तारै वही नंद को लाल।
- छन्द प्रभाकर -
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स्वरचित
पुनीत छ्न्द
15 मात्रिक पदांत 221 ( तगण )
चल रे वृन्दावन की ओर ,
महके तुलसी नाचे मोर ।
जीवन का है ये आनन्द ,
बसे जहां हैं परमानन्द।
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राधा संग रचाए रास ,
कण कण में करते हैं वास।
चले शिव रखे नारी भेष ,
मुग्ध हुए श्रीधर को देख ।
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शीश मुकुट है पटुका पीत ,
होली खेलें मन के मीत ।
पिचकारी में भर के रंग ,
छेड़े सबको भीगे अंग ।
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गोपी ग्वाले भागे संग,
मथुरा काशी देखे दंग।
पुनीत तेरा प्यारा नाम ,
विनीत सिम्पल का प्रणाम ।
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शब्दार्थ
पटुका (वस्त्र) पुनीत (पवित्र) विनीत (विनम्र)
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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🍁15 मात्रिक पुनीत छंद🍁
पदांत 221
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वो ठिठुरा भूला आराम।
हर पल दौड़ा अपने काम।
कब हो सुबह कहाँ हो शाम।
पेट पालना कर हो दाम।।
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महतारी पाले है लाल।
सहलाती वो है भाल।
आज अगर कहीं बिका माल।
वरना भूखे ही है साल।
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कपटी पापी लेते मौज।
हक छिनता जाता है रोज।
लाज लूट है करते भोग।
इस समाज में कैसा रोग।
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अरविन्द चास्टा
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🌹पुनीत छ्न्द🌹
रस- श्रृंगार
🌹पुनीत छ्न्द तैथिक जाति का 15 मात्रिक छ्न्द है, प्रति चरण 15 मात्रा ,
प्रत्येक चरण के अन्त में 221( तगण )
अनिवार्य है । अन्य नियम समान होगा।🌹
🌹दो दो चरण अथवा सम चरण अथवा चारों चरण समतुकान्त।
२१२ २१२ २२१
चंद्रमा सा सजीला रूप,
तुम बने इस हृदय के भूप।
छोड़ना मत कभी ये साथ,
संग मेरे चलो हे! नाथ।
प्रेम के गा रहें हैं गीत,
हाथ में हाथ तेरे मीत।
मत जलाना विरह की आग,
द्वार बाबुल दिया है त्याग।
बैर जग से किया है आज,
प्रीत के हम बजायें साज।
गुनगुनी धूप सा आभास,
आ गए तुम पिया जो पास।
हो गया जब पिया से प्यार,
देख सोलह किये श्रृंगार।
चूम माथा किया है स्पर्श,
आज मन में बड़ा है हर्ष।
श्वास में ले रही हूँ नाम,
मन पिया का हुआ है धाम।
प्रार्थना सुन लिए हैं राम,
पा लिया है नया आयाम।
जितेंदर पाल सिंह
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पुनीत छंद
15 मात्रिक,अंत 221(तगण)
मानवता जीवन आधार।
देता है विस्तृत आकार।।
नित्य करूँ उनका आभार।
करते जो इसको साकार।।
कभी नहीं होते लाचार।
और नहीं होते बेकार।।
उनको हरदम है धिक्कार।
करें न जो इसको स्वीकार।।
हृदय नहीं होता पाषाण।
नवयुग का होता निर्माण।।
भाव नहीं होते निष्प्राण।
जग का हो जाता कल्याण।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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पुनीत छंद
तैथिक जाति का 15 मात्रिक छंद है,
प्रत्येक चरण के अंत में 221तगण
2122 122 21
आज बाते करे यूँ भोर
लाज से आँख खोले भोर,
प्रेम से देख लेगा मोर
प्यार से यूँ जगा ले चोर ।
जीव सारे यहाँ है संग
प्रीत के यूँ सभी है रंग,
हाथ छोड़ो न तू ऐ मीत,
साथ गाऐ सभी यूँ गीत ।
जाग ले तू यहाँ ये जोग
भाग ले तू यहाँ यूँ भोग,
जागने का यही है जोश
ले जहाँ में नया ये होश ।
रजिन्दर कोर रेशू
अमृतसर
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पुनीत छंद
१५ मात्रिक छंद,अंत २२१ से अनिवार्य
भरा मूढ़ता से इंसान,
देखो कितना है नादान।
जीवन राह नहीं आसान,
लाए कैसे अब मुस्कान।।
डर से करे नहीं स्वीकार,
जीवन लगता तब दुश्वार।
होता मानव तब लाचार,
बन जाओ प्रभु तुम आधार।।
देखो ईश्वर जग हालात।
ख़ुशियों की दे दो सौग़ात।
जरा भाग्य को दो आकार,
तुझ पर निर्भर है संसार।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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#पुनीत छन्द- तैथिक जाति
15 मात्रिक छन्द।
अंत 221(तगण) अनिवार्य,
दो दो, सम या चारो चरण समतुकांत।
विषय- शबरी के राम
अखियाँ राह निहारे राम,
शबरी दरश दिखाओ राम,
बरषों से मिलने की चाह,
कुटिया सहित सजाई राह।
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तकते नैन पैसनी घाट,
भिलनी जोह रही है बाट,
रखती चख चख जूठे बेर,
करिये मत प्रभु ज्यादा देर।
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तिनके पथ से लेती बीन,
बिखरे धरणी ताजे फूल,
निशदिन मन मे करती ध्यान,
कितने पल बैठेंगे राम,
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चहकी चिड़ियाँ, करती गान,
बखरी शबरी आये राम,
बहते नयना बिसरी पीर,
हरषे मनवा बरसे नीर।
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झलती बिजना परसे बेर,
धविने सुनके आये टेर,
अबकी करना बेड़ा पार,
विनती प्रभु से सौ सौ बार।।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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