Saturday, January 25, 2020

"पादाकुलक" छंद- Hindi poetry


Explained By Mr. Jitender Pal Singh ji 
प्रिय साहित्य अनुरागियों,
छन्द अभ्यास की अगली श्रृंखला में संस्कारी जाति का सोलह(१६) मात्रिक छन्द 
"पादाकुलक" छंद
पर अभ्यास करेंगे।

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"सोलह मात्रिक छंद है, संस्कारी है जाति।

चारों चौकल चरण में, पादाकुलक कहात।।"

अर्थात इसके प्रत्येक चरण में चार चौकल हों। दो अथवा चारों चरण समतुकांत।
पाद-आकुलक से तात्पर्य है, पदों का संग्रह करने वाला।

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चौकल पांच प्रकार के हैं--
११११,१२१,२२,२११,११२ इनके आधार पर शब्द संयोजन लेकर छन्द रचना का सृजन किया जा सकता है।
उदाहरण- युगल गीत।

मुखड़ा(नायिका)
बिजुरी चमके धड़के जियरा,
कब डालोगे आँगन फेरा।

डरती हूँ विरहा की रैना,
सावन में बरसें हैं नैना।
कब देखूंगी मुखड़ा तेरा,
बिजुरी चमके धड़के जियरा। --टेक

(नायक)
यादें तेरी आयें सजनी,
करवट लेते बीते रजनी।
परदेसी है साजन तेरा,
बिजुरी चमके धड़के जियरा।

(नायिका)
ताने लोगों के सुनती हूँ,
सपनों में खोई रहती हूँ।
बदरा ले जा संदेशा मेरा,
बिजुरी चमके धड़के जियरा।

(नायक)
आऊँगा तुझको ले जाने,
होंगे झूठे जग के ताने।
मेरा आँगन होगा डेरा,
बिजुरी चमके धड़के जियरा।

जितेंदर पाल सिंह
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16 मात्रिक

पादाकुलक छंद
चार चौकल प्रति चरण
🍂
मधुकर तितली अरण्य साथी।
वसन्त मोहक सबको भाती।
लाया प्रेमी ऐसा पटका।
देखत ही मन मेरा भटका।
🍂
बैठी हूँ मैं तरुवर छाया
राजा ऋतु का बसन्त आया।
मन को भाये पत्रक उड़ते।
कणकण में है सुगन्ध भरते।
🍂
नवरस सजते रागों बजते।
प्रेमी युगलों के मन हरते।
उठती है अब हिलोर सागर।
अब आ सुध लो नटवर नागर।
🍂
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़ राज.

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पादाकुलक छ्न्द

संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छ्न्द
प्रत्येक चरण में चार चौकल हो
चौकल पांच प्रकार के हैं
११११, १२१, २२, २११, ११२

बंधन वो प्यारा लगता है।
मन में मित्रों जो पगता है।
अक्सर दिल में जो जगता है।
बिन चाहे उर में उगता है।

मन उपवन सुखमय रहता है।
सुखसागर प्रतिपल बहता है।
उर में जब तक अति दृढ़ता है।
जीवन में अद्भुत क्षमता है।

सतरंगी सपने सजते हैं।
उर में मधुरिम धुन बजते हैं।
हिय को केवल पिय जँचते हैं।
शायद सब सच ही कहते हैं।

सुख-दुख दोनों ही सहते हैं।
खुशियों में शामिल रहते हैं।
प्रेमिल धारा में बहते हैं।
मिलजुल कर रोते-हँसते हैं।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर

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पादाकुलक छ्न्द

संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छ्न्द
प्रत्येक चरण में चार चौकल हो
चौकल पांच प्रकार के हैं
११११, १२१, २२, २११, ११२

कुुण्डल तेरा चमके चम चम
जैसे बिजली दमके दम दम
काली बदरी छाए ऐसे
जियरा बस में आए कैसे
.......

ला दो सजना मुझको कंगन
पैरों में हो पायल छम छम
माथे टीका होंठों लाली
जयपुर की हो चुनरी जाली
.....
फिर हम दोनों मिलकर गाए
बरखा फुहार मन को भाए
झूलूं तेरी बांहों में मैं
निरखूं तेरी छांओं में मैं
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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पादाकुलक छंद

संस्कारी जाती का छंद ,सोलह मात्रिक छंद,हर चरण में चार चौकल अनिवार्य,२ या ४ चरण सम तुकांत।
११११/१२१/२२/२११/११२(चौकल इस तरह लिए जा सकते है)

भारत सीमा का हो गौरव।
चाँदी सा वो चमके सौरव।
उपजी वेदों की है पोथी।
बातें ये मत समझो थोथी।।

सीमा का ये प्रहरी बनके।
रोके मुश्किल क्षण को तन के।
इसकी सब से ऊँची चोटी।
दुश्मन की तो गलती बोटी।।

मानव बनता जब है रावण।
दुश्मन का ये बनता दानव।
लौकिक तेरा लागे प्रचंड।
तुम हो अजेय तुम हो अखंड।।

सुरम्य तेरी कुंदन गाभा।
अनुपम,सुंदर तेरी आभा।
विराट तन पर सब है मोहित।
गंगा-जमुना से है शोभित।।

✍️

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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16 मात्रिक

पादाकुलक छंद
चार चौकल प्रति चरण,
११११ , १२१, २२, २११, ११२

पावन हृदर मेरा धड़के,
सावन देखो मेघा भड़के।
पायल यूँ ही मेरी छनके,
घायल जी ये मेरा खनके ।

सागर जैसे जियरा बहता,
साजन सारी बातें सहता ।
सपने जागे रैना बुनता,
टूटा हृदर किसकी सुनता ।

डरते डरते जीवन कटता,
टुकड़ों सा ये हृदर बटता।
जीवन में यूँ बातें सहते ,
किसको साजन अपना कहते ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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सादर समीक्षार्थ

पादाकुलक छंद
16 मात्रा
अंत गुरु
4 चौकल प्रति चरण

बसन्त की पुनि बेला आयी
चहुदिशि अनुपम शोभा छायी।
अलि दल गुंजन पुष्पित उपवन
कोकिल सरगम प्रमुदित आनन।

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है दृग विशाल मोहक आनन
श्यामल सूरति मस्तक चन्दन
तन पर जिनके पीला अम्बर
भाई जिनके प्यारे हलधर।

**************
राधे राधे रसना बोले,
जीवन में नित शुचिता घोले।
रानी ब्रज कह लाती राधा,
हरती है जो क्षण में बाधा।

जीवन है सुख दुख का मेला,
चलता रहता जीवन रेला।
कष्टों से तुम मत घबराना।
पतझड़ सावन आना जाना।

मग के कंटक सब चुन लेना।
मंजिल के सपने बुन लेना।
नित श्रम से ही जय मिलती है ।
उपवन में कलियाँ खिलती हैं।

गीता गुप्ता 'मन'


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