Wednesday, January 15, 2020

कीर्ति छंद- Hindi poetry


Explained By Vinita singh ji "Vini"  (Gounda, U.P.)
नमन सभी को 🌹🙏🌹
मित्रों सखियों आप सबने अब तक बहुत सारे छंदों का निर्माण किया ,आप के द्वारा निर्मित छंद एक मील का पत्थर सावित हुआ, तो आइये एक बार फिर से कुछ नए अंदाज में छंद लिखते है कुछ नया करते है ,थोड़ा दिमांग को खोलते है कुछ सोचते है फिर लिखते है ।
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पहले तो विलुप्त हुए छंदों की शृंखला में आज दशाक्षार छंद कीर्ति छंद को लिखते है ।
आज जिस छंद की चर्चा करने जा रहे उसे पहले जान ले
 कीर्ति_छंद नाम है ।

ये छंद दशाक्षार वृत का छंद है ।
इसका विधान तीन सगण एक गुरु का कीर्ति वृत है ।
यह एक वार्णिक_छंद है ।
सगण- सगण- सगण- एक गुरु
मापनी ११२-११२-११२-२
लक्षण-
सखि सां गुनिये मुख राधा ।
सखि सांचहि आवत बाधा।
ससि है सकलंक खरोरी।
अकलांकित कीर्ति किशोरी।।
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कीर्ति छंद में मेरी रचना
वार्णिक छंद
मापनी ;- ११२-११२-११२-२
सगण -सगण- सगण- गुरु
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सहती कहती नहि राधा।
जिसका हर जीवन बाधा।
हृद से सबकी बन जाती।
नित साथ वही रह पाती।।

फिरती रहती वन में जो ।
सहती मरती हिय से जो ।
पिय से लगि छाँव सुनेरी।
सजना सखि मेह घनेरी।

खुदही डसती सहती थी
पिय से नहि जो कहती थी।
बनती हिय पाँख अजोरी।
उड़ती नभ पाश अघोरी ।

विनीता सिंह "विनी"
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अब_बात_करते_है ,छंद में कुछ नया करने की तो बहुत ही आसान सा हिन्दी साहित्य की जो विधा का हम इस्तेमाल तो करते हैं,पर बहुत कम तो उसे प्रोत्साहित करने के लिए आइये ,कुछ अलग हट कर लिखते है मिले छंद से ही रचना लिखनी हैं।
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पाँचो विकल्प नीचे दिए गए हैं।

नोट;--- चाहे तो सारे विकल्पों से छंद का निर्माण करें।
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[ जो करता वायु शुद्ध ,
फल देकर जो पेट भरे,
मानव बना है उसका दुश्मन
फिर भी वह सबका उपकार करें ।]
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दिए गए चरणों में शब्द भर कर पूरा करे अपना छंद ।
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प्रिय से [_______] मिल जाता
सुख [_____] सभी मिल जाता।
दुख की [______] सिल ती तो
सुख की फिर [_____] घनेरी।
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[ उपमा अलंकार का प्रयोग करते छंद लिखे उसे * चिन्हित करें ]
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4- दिए गए #शब्द को लेकर छंद में प्रयोग करते हुए लिखे

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5- #मुक्तक लिखें प्रदत छंद (कीर्ति छंद )से लिखे
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तो आइये लिखते हैं छंद आज के छंद पर कुछ नवीन लिखते है ।

साहित्य अनुरागी समूह
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[ जो करता वायु शुद्ध ,
फल देकर जो पेट भरे,
मानव बना है उसका दुश्मन
फिर भी वह सबका उपकार करें ।]
तरु
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दिए गए चरणों में शब्द भर कर पूरा करे अपना छंद ।
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112-112-112-2
प्रिय से उर है मिल जाता
सुख खास सभी मिल जाता।
दुख की चुनरी सिल ती तो
सुख की फिर छाँव घनेरी।
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[ उपमा अलंकार का प्रयोग करते छंद लिखे उसे * चिन्हित करें ]
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4- दिए गए #शब्द को लेकर छंद में प्रयोग करते हुए लिखे

11 2 112 112 2
शशि सा मुख तेज सु-राधा,
हिय मोहित मोहन साधा‌।
कुमुदी सम ओंठ गुलाबी,
सम कोयल गावन लागी।
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5- #मुक्तक लिखें प्रदत छंद (कीर्ति छंद )से लिखे
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कीर्ति छंद(वर्णिक छन्द)
दशाक्षर
(सगण)X3+गुरु(2)

11 2 1 121 12 2
नित जोवत बाट दिवानी,
चुभती अब रात सुहानी।
विरहा दुख देह लगा है,
लिखदी कह आप कहानी।

खुद जीवन आग जलाया,
जबसे तुमसे हिय लाया।
मछली सम मैं तड़पूँ रे,
दृग नीलम नीर बहाया।
नीलम शर्मा 

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कीर्ति छंद (#मुक्तक)
दशाक्षर वृत्त वार्णिक छंद है,

११२ ११२ ११२ २

जब भी तुमको निरखूँ मैं,
मधुरा बन के बिखरूँ मैं।
जब भी अखियाँ तरसे है,
नम होकर के बरसूँ मैं।।

सब को अब मैं समझाऊँ,
चित्र मैं प्रिय का दिखलाऊँ।
उसकी हर आदत भाए ,
मन ही मन मैं इठलाऊँ।।

हिय में उठती नव धारा,
लट ने मुख पे जब मारा।
विरहा बन के रहती हूँ ,
सुन ओ सजना उर हारा।।

झनके पग पायल प्यारी,
नयना अब शीतल न्यारी।
स्वर ये मृदु सा अब लागे,
बन के बादल फुलवारी ।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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कीर्ति छन्द- दशाक्षर वृत
सगण×3 अंत गुरु 1
मापनी- 112 112 112 -2
प्रदत्त शब्द- #राधा,

घनघोर घटा मतवाली,
वन कूकत कोयल काली,
मुदि नाचत झूमत राधा,
हिय पावन प्रेम अगाधा।
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धरणी चूनर धरि धानी,
टपके नभ से मधु पानी,
मृदु तान सुदेश सुरीली,
दृग लौकिक रैन रसीली।
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मनभावन प्रीत सुहानी,
नदिया थिरकी मृदु बानी,
शिखरों पर मेघ घनेरे,
कलकंठ सरोवर घेरे।
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छवि शोभित श्याम मुरारी,
सरि तीर खड़े गिरधारी,
महके कुमुदी मन भाई
शुचि, जीवन सार सुहाई।
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मुरली मधुतान सुनाई,
वृषभानु सुता हरसाई,
मदने शुचिते शुभि, राधा,
प्रभु प्रेम भरा सुर साधा।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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कीर्ति छंद(वर्णिक छन्द)
दशाक्षर
(सगण)X3+गुरु(2)
112 112 112 2

कुछ सीख मनुष्य कला तू,
गुण धार विनीत भला तू।
सम वृक्ष पुनीत बनो हे!
फल फूल विनम्र रहो रे।

अभिमान नहीं करता वो,
फल दान तुम्हें करता जो।
नभ धूप प्रचंड खिली हो,
तरु छाँव दिखाय भली वो।

परमार्थ लिए वह जीता,
शुभ कर्म कमाय पुनीता।
यश कीर्ति वही जन गाये,
जिसको परमार्थ सुहाये।

तरु नष्ट करो मत भाई,
तरु काट विपत्ति बुलाई।
चहुँओर प्रदूषण छाया,
धरती पर ताप बढ़ाया।

जब सृष्टि प्रभावित होती,
धरती तब शापित होती।
विपदा फिर नाश बुलाए,
सब जीवन नष्ट कराए।

जितेंदर पाल सिंह

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कीर्ति छ्न्द (वर्णिक ) दशाक्षर वृत्त का छ्न्द
112 सगण 112 सगण 112 सगण 2 गुरू
112 112 112 2

प्रभु की रचना मन मोहे
उनकी महिमा जग सोहे
मन से इनको भजते हैं
चतुर्थी व्रत को करते हैं
......
हर ओर गजानन छाए
व्रत आज सभी मन भाए
प्रिय है इनको फल मेवा
कर लो इनकी भक्ति सेवा
.......
रखते यह चार भुजाएं
संकष्टी व्रत आज मनाएं
वर है इनसे जग पाते
सबके कष्ट ये हर जाते
.......
कीर्ति छ्न्द पर
पहेली बूझो
......
जो करता वायु शुद्ध
फल देकर जो पेट भरे
मानव बना है उसका दुश्मन
फिर भी वह सबका उपकार करे।।
......
पहेली का उत्तर ..... वृक्ष

112 112 112 2
वृक्ष को मत काट कटारी
फल दे सबको वन धारी
सबको यह जीवन देता
तरु ना तुमसे कुछ लेता
.......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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🌹पँक्ति दशाक्षर वृत्त🌹
कीर्ति छंद
*
च मान यही करणी है,
कर पार यही तरणी है।
समझो यह मार्ग हमारा,
सत कर्म चुनो सब प्यारा।।
*
मनमोहन की बस राधा,
धर नाम कटे भव बाधा।
तकती रहती जब वंशी,
कर जाप यही मन साधा।।
*
कुमुदी महकी रस छाया,
मन हर्षित हो ललचाया।
करके हर बार किनारा,
हिय को हरते नव तारा
🌹
अरविन्द चास्टा "अविराज"
कपासन ,चित्तौड़गढ़ राज.

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कीर्ति छंद
वार्णिक छंद
मापनी ;- ११२-११२-११२-२
सगण -सगण- सगण- गुरु
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प्रिय से हिय जो मिल जाता
सुख चैन सभी मिल जाता।
दुख की चुनरी सिलती तो
सुख की फिर छांव घनेरी।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"

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कीर्ति छंद वार्णिक छंद
मापनी ११२- ११२ -११२- २
सगण सगण सगण गुरु

निज स्वार्थ तजो जग तारो,
अपने मन का मद मारो।
यह जीवन भूल - भुलैया,
सुलझो निकलो सुन भैया।।

सब मूक बने जस उल्लू,
छिह डूब मरो जल चुल्लू।
कब लोग सुनो सुधरेंगे ,
मन मैल सभी उतरेंगे।।

धन - दौलत हैं सब माया,
तनहा जलती यह काया,
किसका सुन क्या अपना है?
अपना अपना सपना है।।

अभय कुमार आनंद

कीर्ति छंद वार्णिक छंद
मापनी ;- ११२ ११२ ११२ २
सगण सगण सगण गुरु
#खाली जगह भरो दिए गए चरणों में शब्द भर कर पूरा करें अपना छंद

प्रिय से (दृग जो) मिल जाता ,
सुख (लोचन को ) मिल जाता।
दुख की ( चुनरी ) सिलती तो ,
सुख की फिर ( छाँह ) घनेरी ।।

अभय कुमार आनंद

कीर्ति छंद वार्णिक छंद
मापनी ;- ११२ ११२ ११२ २
सगण सगण सगण गुरु

उपमा अलंकार का प्रयोग करते हुए छंद लेखन

मुख बोल सुनो पिक सा हो,
घर मान वधू दिखता हो।
निखरे घर कंचन जैसा ,
मन शीतल ज्यों विधु का हो।।


अभय कुमार आनंद

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