Saturday, January 11, 2020

हाइकु - जापानी कविता


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नव वर्ष 2020 मैं आप सबका स्वागत अभिनंदन। आज साहित्य अनुरागी पेज के माध्यम से हम जापानी कविता शैली के बारे में जानने का प्रयास करेंगे ,इसमें पहला है #हाइकु जो आजकल साहित्यकारों की लेखकों की पसंद बन चुका है। आइए जानते हैं हाइकु क्या है।
🌹

हाइकु मूल रूप से जापानी कविता है ।हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परंपरा जापानी जनमानस और सौंदर्य चेतना में हुआ है। हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है।
हाइकु कई भावो में लिखा जाता है। प्रक्रति, हास्य, प्रेम आदि।
हाइकु जापानी शैली की लघु कविता है इसमें 17 वर्ण होते हैं जिसे 3 पंक्तियों में लिखा जाता है पहली पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी पंक्ति में 7 वर्ण तीसरी पंक्ति में पुनः 5 वर्ण
अर्थात 5,7,5
🌹
वर्ण की संख्या निश्चित 17।
अर्थ की पूर्णता हो।
सार गर्भित हो ।
अर्थात ।
हर हाइकु का अपना स्वतन्त्र अर्थ होना ।
🌹
तेरा विरह,
आँखों में आँसू देता,
कभी तो मिलो ।
🌹
आग लगा दी,
सपनों में तुमने,
खाक हो गया।
🌹
छोड़ गई क्यों,
अकेला मुझे तुम,
जीना बेकार।
🌹
थे भूले वादे,
आज जो मिले मुझे,
याद आ गया।
🌹
अरविन्द चास्टा
कपासन चितोडगढ़ राजस्थान।

दिनाँक 2-1-2020 to 10-1-2020
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हाइकु

टूटता देखो,
संविधान हमारा,
इसे बचाओ।
😔😔😔
हिन्दू, मुस्लिम,
सिख, ईसाई सब,
साथ में आओ।
😊😊😊😊
बढ़ती ईर्ष्या,
रोक लो मिलकर,
ये समझाओ।
🙂🙂🙂🙂
हम इसके,
भारत है सबका,
भ्रम मिटाओ।
🤗🤗🤗🤗
एकजुट हो,
अखंडता के लिए,
पग बढ़ाओ।
👬👬👬👬
राज मद में,
अहंकार बढ़े जो,
उसे झुकाओ।
😑😑😑😑
याद रहे ये,
मत डरो किसी से,
मत डराओ।
😌😌😌😌
हम सब हैं,
नागरिक देश के,
मत भुलाओ।

जितेंदर पाल सिंह

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 हाइकु


शून्य तल्लीन
ज्यूँ ह्रदय विहीन
कितना दीन

संसार माया
है चिंतातुर काया
गर्त समाया

विलुप्त ओज
आपा- धापी है भोज
व्यर्थ की खोज

ललिता गहलोत

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हाइकू

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नव विहान
नवीन उम्मीदों का
नव विधान।
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लेकर आया
तजुर्बों की लकीर
ठौर ठिकाना।
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फिर सपना
नई उम्मीदों भरी
कोई अपना।
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बढ़ती उम्र
घटते सम्बन्धो में
पड़ी दरार
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कामनाओं की
लालसा में बढ़ते
सोच विचार

*******************
फिर वादों की
वही पुरानी आस,
वाणी सुभाष।
*******************
नीरज. मौन.!
तजुर्बों से सीखना
अपना कौन..?
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल " नन्दिनी"
बिलासपुर

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हाइकु

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भोर
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१) मन विभोर
सभी गतिमान है
हुआ भोर है।

२)पंछी चहके
सूर्य रक्तरंजित
करू नमन!

३) सुहानी धरा
चहुँ ओर है भरा
हर्षित भोर

४) जीवन डोर
भोर की लालिमा से
अभिसिंचित।

५) नव्या नवेली
है धरा भी अकेली
प्रतीक्षा भोर।

६)क्षितिज पार
नवप्रभात आया
हर्षित मन।

७) परिवर्तन
नियम है सृष्टि का
निशा है भोर।

८) अस्तांचल जो
सूर्य अरुणोदय
भोर रश्मियाँ।

९) अटल भोर
चाँद संग चाँदनी
विलग दिखे ।

१०) ख़ुशी अनन्त
कोरी कल्पित नही
कवि कल्पना ।।

विनीता सिंह "विनी"

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..........हाइकु...........


(१)......बेटी.....


पराया धन
दिल का है टुकड़ा
सुना आँगन

दूर बसेरा
थमी है नादानियाँ
उड़ी चिरय्या

निभाती फ़र्ज़
दो घर की ये शान
होती क़ुर्बान

(२)......परिश्रम......

करते श्रम
मिटता अंधकार
नया संचार

परिश्रम से
मिलता मीठा फल
राह सुबल

रोटी का स्वाद
श्रम देता अपार
बने खुद्दार

........सुवर्णा परतानी........
..........हैदराबाद........

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हायकू  - विषय-तुलसी

राक्षस कुल
जन्मी नन्ही बालिका
व्रन्दा था नाम।

परम् भक्त
चक्रधारी विष्नु की
गहन आस्था

हुआ विवाह
जालंधर युवक
परम् योद्धा

पा पत्नी रूप
धन्य है जालंधर
थी पतिव्रता

फैला साम्राज्य
काँपने लगे देव
भय हार का

भेज पति को
युद्ध संग देवो के
बैठी तपस्या

कांपे देवता
जीवित जलंधर
हार निश्चित

संग व्रन्दा के
किया छल कपट
बदला भेष

पवित्र व्रन्दा
की टूटी पवित्रता
हुआ विनाश

श्रापित कर
बनाया पत्थर का
देव विष्नु को

लक्ष्मी प्रार्थना
किया श्रापित मुक्त
ले वरदान

निकली पौध
जहाँ सती बनी वो
बनी तुलसी

सालीग्राम जी
वचन पूर्ण किये
कर विवाह

बिना तुलसी
नही पूर्ण प्रसाद
न मोक्ष द्वार

रानी सोनी
राजस्थान जयपुर

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हाइकु


प्रातः नमन
सादर नमस्कार
शुभ दिवस।

क़ैद परिन्दा
उड़ने की चाहत
मन बेचैन।

शिव की जटा
भागीरथी प्रयास
मलिन गंगा।

धरा- गगन
मिलन अभिसार
क्षितिज पार।

चाँदनी रात
साजन नहीं साथ
मन उदास।

सहनशक्ति
परिचय महान
धरती माता।

पिता हृदय
पाषाण शिखर है
सहज प्यार

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर

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हाइकु-

""""""'''''''':::::::::::"""""""""""'"
पढ़ने गया
शहर के कालेज
संस्कार भूला ।


Om Prakash Khare
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हाइकु
हरसिंगार-
महकता आँगन

भीनी खुशबू।

शीत लहर
कोहरा छाया घना
कांपते बच्चे
अनीता मिश्रा
हजारीबाग

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