Explained By Mr. Jitender Pal singh ji
वर्णिक छंन्दों की अगली शृंखला में हम वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्दों का अभ्यास करेंगे।
प्रथम छन्द निम्नलिखित है--
"रलका"।
(म स स)
मापनी: मगण(222) सगण(112) सगण(112)
बाहों में सजना भर ले,
मेरे को अपना कर ले।
तेरे संग चलूँ सजना,
छोड़ूं बाबुल का अँगना।
तू है जीवन का गहना,
मेरे साथ सदा रहना।
तेरी दुल्हन मैं बन के,
डोली बैठ चलूँ सजके।
साथी जीवन का बन जा,
मेरे को मत तू तरसा।
लागी प्रीत निभा मुझ से,
मांगा है तुझको प्रभु से।
नैनों में छवि प्रीतम की,
रातों नींद उड़ी इनकी।
तेरा रूप सजे वर का,
सातों जन्म बनूँ बनिता।
मेरी मांग भरो सजना,
पूरा प्रीतम हो सपना।
आये द्वार पिया मिलने,
आशातीत लगी लगने।
जितेंदर पाल सिंह
____________________________
रलका छन्द
(म स स)
मापनी: मगण(222) सगण(112) सगण(112)
222 112 112
आशा बाँध रही सजना।
मेरा काम तुम्हें भजना।।
मेरे श्याम मेरा गहना।
मेरे प्राण सदा रहना।।
आओ हे मनमोहन जी
साजो थे उर आँगन जी।।
कान्हा केशव काल कला।
न्यारा नीलम नैन लला।।
पीतांबर सजे तन पे।
प्रेमी प्यास पले पनपे।।
राधेश्याम मिलें वन में।
ज्यूँ फूटें कलियाँ मन में।।
देंखें बाट नयन किसकी?
राधा हृदय बंधी सिसकी।
लागे नैन पिया तुमसे।
माँगा आज तुम्हें तुमसे।।
नीलम शर्मा
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वर्णिक छन्द
छन्द-"रलका"।
(म स स)
मापनी: मगण(222) सगण(112) सगण(112)
मेरे जीवन में सजना,
नैना काजल सा बसना।
पाया दौलत में गहना,
संगी ही बन के रहना।
मेरी याद सदा रखना,
यादों को जमके चखना।
आते हो जब तू सपने,
रातें भी लगती तपने।
बातों में बहला कर तू,
यादों में सहला कर तू।
धोखा दे कर हो छलते,
जैसे सूरज हैं ढ़लते।
मेरे हो प्रिय साजन तू,
मैं रानी सुन राजन तू।
तेरे साथ चलूँ सजके,
जैसे पायल है खन के।
साथी साथ निभा कर जा,
बाहों में मुझको भर जा।
सातों जन्म रहूँ सजनी,
बीते संग दिवा - रजनी।
रंजना सिंह "अंगवाणी बीहट"
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रलका छंद
ये वार्णिक छंद है,नवाक्षर वृत्ति छंद
मापनी...मगन (२२२)सगण (११२)सगण (११२)
आए जो अपने बन के।
कैसे वो रहते तन के?।।
आँखों में घुलते रहते।
आँसू सागर से बहते ।।
छायी है गरमी तन में।
बातें जो झलकी मन में।
आएँगे घर जो सजना।
लज्जा से झुकते नयना।।
प्यारी सी लगती रजनी।
ज़ोरों से चलती धमनी।
जैसे घायल हो हिरणी।
प्यारी सी महिमा लिखनी।।
हौले स्पंदन ये धड़के।
बाहों में जियरा भड़के।
ज्वाला ये उमड़ी गहरी।
काया का बनके पहरी।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
---------------------------------------
🌹रलका छंद🌹
नवाक्षरवृत
222 112 112
🌹
सूना है लगता मुझको,
खोना है लगता मुझको।
जाने क्यों सुनता रहता,
जीना या मरना मुझको।।
🌹
फूलों की खुशियाँ बिखरी,
बागों की कलियाँ बिखरी।
देखूं ये सहता कुढ़ता,
आँखों की बतियाँ बिखरी।।
🌹
रातों में जगते रहते,
बातों में पलते रहते।
छेड़े यूँ अबला मन को,
वादों में हँसते रहते।।
🌹
काली मावस की रजनी,
जैसे आतुर हो सजनी।
सारा वैभव है उतरा
मेरे भाव बसे सजनी।
🌹🙏
✍अरविन्द चास्टा
------------------------------------------------
रलका छंद
ये वार्णिक छंद है, नवाक्षर वृति छंद
मापनी ....मगन(222) सगण (112) सगण (112)
222. 112. 112
जैसे ये चहके सजनी
रानी ये सजती रजनी
बाहे ये लगती गहना
आँखो में सजना रहना ।
साथी तू मन में बसना
मेरे अंदर यूँ हँसना
तेरे ही मन में रहते
बातें ये मन की कहते ।
आभारी मन ये धड़के
साँसे ये मन में धड़के
फूलों की कलियां महके
बातें ये मन में चहके ।
रंगीले यह है सपने
साथी से यह है अपने
मेरा जी यह यूँ तड़पे
बैचारा मिलने तड़पे ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
---------------------------------------------
वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्द
वार्णिक छन्द,
"रलका" ( म स स)
मापनी-:- मगण- २२२ ११२ ११२
शीर्षक- मेघ
आया सावन मेघ घिरे,
देखो आँगन फूल गिरे,
नाचे मोर घिरे बदरा,
मेघों से बरसे मदिरा।
*********************
कान्हा क्षीरज खाय रहे,
आधा भूमि गिराय रहे,
धाए ग्वालन देख सखा,
फोड़ी गागर क्षीर चखा।
********************
राधा मोहन झूल रहे,
भौंरे कुंतल गात गहे,
काली कोयल कूक भरे,
डाली से शुचि फूल झरे।
********************
प्यारे पावन दीप जले,
न्यारे जीवन मीत मिले,
बीती रात खिली कलियाँ,
आशा से निखरी अखियाँ।
********************
मेरे माधव लाज धरो,
कान्हा नीरज पाद परो,
मेघों से रसधार बहे,
नैना प्रेम सुभाष कहे ।
********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
---------------------------------------------
रलका छ्न्द(वर्णिक)
222112112
कृष्णा झूल रहे पलना,
मीरा रुप धरे चलना।
वीणा बाज रहा अँगना,
बाजे है घुंघरू कँगना।
......
गाती हैं महिमा उनके,
वस्त्र पीत सजे जिनके।
डूबी प्रेम सुधा रस में,
वीणा तार नहीं बस में।
......
नाचे जोगिन रूप धरे,
रागों से सुर धार बहे।
राधे कृष्ण सदा जपना,
पूरा हो सबका सपना।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
----------------------------------------------
वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्द
रलका छंद (वर्णिक)
२२२ ११२ ११२
रस : वीर रस
काटो शीष लड़ो जम के,
आंखें विद्युत सी चमके।
बाजू को तलवार बना ,
चीखे दुश्मन रक्त सना ।।
हाहाकार मचा बढ़ लो,
गाथा एक नई गढ़ लो।
घोड़ा चेतक सा बन जा,
चाहे शोणित में सन जा।।
वीरों भारत नाम करो,
ऐसा ही कुछ काम करो।
बैरी को दहला बढ़ जा,
चोटी को सहला चढ़ जा।।
ज्वाला आग जले तन में,
खौले लाल लहू रण में।
कुर्वानी हँस के चुन लो,
आजादी मिलती सुन लो ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ , उत्तरप्रदेश
------------------------------------------------रलका छंद
वर्णिक छंद -9 अक्षर
मगन सगण सगण
222 112 112
प्राची से रवि झाँक रहे,
जीवों में सुविचार गहे।
आभा रश्मि हँसी बहती
ऊर्जा जीवन में महती।
** ************
वाणी में गरिमा रखना
शोभा जीवन की लखना।
काया के तुम हो प्रहरी
आयी रात बड़ी गहरी।
***************
आशा है जगती क्षण में
ऊर्जा है तरु में तृण में।
ऊषा और निशा मिल के
जागे पुष्प सभी खिल के।
**************
नैनों में कजरा दमके
बालों में गजरा चमके।
मुग्धा सोच रही मन में
आशा कान्ति जगी तन में।
*****************
छायी है ऋतु पावस की
आयी रात अमावस की।
नैनो से सरिता बहती
यादों में वनिता रहती।
गीता गुप्ता"मन"
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
------------------------------------
रलका छंद(वार्णिक)
मगण सगण सगण
222 112 112
सांसो में रहते-रहते,
रातों में उठते-जगते।
कोई दर्द दिया करता,
पीड़ा पाकर मैं मरता।
दुःखों से उर आहत हैं,
कैसी ये कटु चाहत है।
प्यारा तो बस स्वारथ है,
छूटा ही परमारथ है।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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🌹रलका छंद🌹
नवाक्षरवृत
222 112 112
🌹
सूना है लगता मुझको,
खोना है लगता मुझको।
जाने क्यों सुनता रहता,
जीना या मरना मुझको।।
🌹
फूलों की खुशियाँ बिखरी,
बागों की कलियाँ बिखरी।
देखूं ये सहता कुढ़ता,
आँखों की बतियाँ बिखरी।।
🌹
रातों में जगते रहते,
बातों में पलते रहते।
छेड़े यूँ अबला मन को,
वादों में हँसते रहते।।
🌹
काली मावस की रजनी,
जैसे आतुर हो सजनी।
सारा वैभव है उतरा
मेरे भाव बसे सजनी।
🌹🙏
✍अरविन्द चास्टा
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रलका छंद
ये वार्णिक छंद है, नवाक्षर वृति छंद
मापनी ....मगन(222) सगण (112) सगण (112)
222. 112. 112
जैसे ये चहके सजनी
रानी ये सजती रजनी
बाहे ये लगती गहना
आँखो में सजना रहना ।
साथी तू मन में बसना
मेरे अंदर यूँ हँसना
तेरे ही मन में रहते
बातें ये मन की कहते ।
आभारी मन ये धड़के
साँसे ये मन में धड़के
फूलों की कलियां महके
बातें ये मन में चहके ।
रंगीले यह है सपने
साथी से यह है अपने
मेरा जी यह यूँ तड़पे
बैचारा मिलने तड़पे ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्द
वार्णिक छन्द,
"रलका" ( म स स)
मापनी-:- मगण- २२२ ११२ ११२
शीर्षक- मेघ
आया सावन मेघ घिरे,
देखो आँगन फूल गिरे,
नाचे मोर घिरे बदरा,
मेघों से बरसे मदिरा।
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कान्हा क्षीरज खाय रहे,
आधा भूमि गिराय रहे,
धाए ग्वालन देख सखा,
फोड़ी गागर क्षीर चखा।
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राधा मोहन झूल रहे,
भौंरे कुंतल गात गहे,
काली कोयल कूक भरे,
डाली से शुचि फूल झरे।
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प्यारे पावन दीप जले,
न्यारे जीवन मीत मिले,
बीती रात खिली कलियाँ,
आशा से निखरी अखियाँ।
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मेरे माधव लाज धरो,
कान्हा नीरज पाद परो,
मेघों से रसधार बहे,
नैना प्रेम सुभाष कहे ।
********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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रलका छ्न्द(वर्णिक)
222112112
कृष्णा झूल रहे पलना,
मीरा रुप धरे चलना।
वीणा बाज रहा अँगना,
बाजे है घुंघरू कँगना।
......
गाती हैं महिमा उनके,
वस्त्र पीत सजे जिनके।
डूबी प्रेम सुधा रस में,
वीणा तार नहीं बस में।
......
नाचे जोगिन रूप धरे,
रागों से सुर धार बहे।
राधे कृष्ण सदा जपना,
पूरा हो सबका सपना।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्द
रलका छंद (वर्णिक)
२२२ ११२ ११२
रस : वीर रस
काटो शीष लड़ो जम के,
आंखें विद्युत सी चमके।
बाजू को तलवार बना ,
चीखे दुश्मन रक्त सना ।।
हाहाकार मचा बढ़ लो,
गाथा एक नई गढ़ लो।
घोड़ा चेतक सा बन जा,
चाहे शोणित में सन जा।।
वीरों भारत नाम करो,
ऐसा ही कुछ काम करो।
बैरी को दहला बढ़ जा,
चोटी को सहला चढ़ जा।।
ज्वाला आग जले तन में,
खौले लाल लहू रण में।
कुर्वानी हँस के चुन लो,
आजादी मिलती सुन लो ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ , उत्तरप्रदेश
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वर्णिक छंद -9 अक्षर
मगन सगण सगण
222 112 112
प्राची से रवि झाँक रहे,
जीवों में सुविचार गहे।
आभा रश्मि हँसी बहती
ऊर्जा जीवन में महती।
** ************
वाणी में गरिमा रखना
शोभा जीवन की लखना।
काया के तुम हो प्रहरी
आयी रात बड़ी गहरी।
***************
आशा है जगती क्षण में
ऊर्जा है तरु में तृण में।
ऊषा और निशा मिल के
जागे पुष्प सभी खिल के।
**************
नैनों में कजरा दमके
बालों में गजरा चमके।
मुग्धा सोच रही मन में
आशा कान्ति जगी तन में।
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छायी है ऋतु पावस की
आयी रात अमावस की।
नैनो से सरिता बहती
यादों में वनिता रहती।
गीता गुप्ता"मन"
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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रलका छंद(वार्णिक)
मगण सगण सगण
222 112 112
सांसो में रहते-रहते,
रातों में उठते-जगते।
कोई दर्द दिया करता,
पीड़ा पाकर मैं मरता।
दुःखों से उर आहत हैं,
कैसी ये कटु चाहत है।
प्यारा तो बस स्वारथ है,
छूटा ही परमारथ है।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्दों का प्रथम छन्द -"रलका"(म स स)
{ वर्णिक छंद}
मापनी - मगण(222) सगण(112) सगण(112)
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लोगों में तुम नाम करो,
ऐसा तो कुछ काम करो,
झूठों का प्रतिकार करो,
बोले जो सच प्यार करो।।
मीठी बात सदा करना,
लोगों के दुख को हरना।।
पूरे काज करो अपना,
होगा पूर्ण तभी सपना।।
पूजे मान जिसे सबला,
नारी आज दिखे अबला,
छाया से भयभीत हुई,
दुष्टों की जब जीत हुई।।
झूठा हो सरदार जहाँ
कैसे हो तब न्याय वहाँ,
हारों की कब हार यहाँ,
हारा केवल प्यार यहाँ।।
थोड़ा सा हम धीर धरें,
आओ आज प्रकाश करें,
होंगे ये तम दूर सभी,
आशाएँ रख पास अभी।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 19/12/2019
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