Wednesday, December 18, 2019

कामना छंद - Hindi poetry


Explained By Smt. Suvarna partanij ji Haidrabad
कामना_छंद
🙏😊🙏नमस्कार साहित्य अनुराग🙏😊🙏

🙏प्रेम वंदन मेरे सभी प्यारे आदरणीय कलम कार और मेरे अज़ीज़ साथियों को।🙏

🌹छंद शृंखला अंतर्गत आज मैं आपकी दोस्त *सुवर्णा_परतानी* आप सब के समक्ष एक नया छंद *“कामना_छंद”* लेकर आयी हूँ।🌹
साहित्य अनुरागी के सभी होनहार,प्रतिभावान,दमदार सदस्यों की पढ़ने और लिखने की लालसा देखते हुए हम आज इस नए छंद पर लिखेंगे।✍️
*“कामना छंद”* नवाक्षर वृत्त का छंद है,
लक्षण....न तर को शुद्ध कामना है।

मापनी....111(नगन) 221(तगण) 212(रगण)
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उदाहरण....

न तरु की डार,काटरे।
रहत तू जाहि,आसरे।
तजहुरे दुष्ट वासना।
धरहुरे शुद्ध कामना।

(प्रभाकर छंद से)
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जतन सारे सजे-सजे।
निकट लाए तुझे-मुझे।
अधर क्यूँ है सिले-सिले।
नयन लागे गिले-गिले।।

सजन स्वीकार ये जरा।
वचन दे दो हमें खरा।
प्रणय की जो उमंग है।
मिलन की ये तरंग है।।

सुखद लागे प्रसंग ये।
सुरभि छायी प्रचंड ये।
गहन लागे निनाद ये।
मधुर लागे प्रमाद ये।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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 कामना छन्द(वर्णिक)

नवाक्षरवृति छन्द

नगण(111)तगण(221) रगण(212)


समय के साथ है चले,
मनुज की उम्र ये ढले।
निकट है मृत्यु सामना,
नित बढ़ी जाय कामना।

मन नहीं मृत्यु से डरे,
व्यसन में लिप्त ये रहे।
सुध नहीं राम नाम की,
तिष बढ़ी लोभ काम की।

मन दिशा हीन हो रहा,
जगत के कर्म ढो रहा।
विमुख है पुण्य कर्म से,
विहीन है नाम मर्म से।

भजन गाओ मिले मुक्ति,
भव करो पार है युक्ति।
मत करो संग दुष्ट का,
नित भजो नाम ईष्ट का।

गुरु मिले भाग्य साथ हो,
तब सही ज्ञान नाथ हो।
सफल हो जाय जन्म ये,
रस हरे नाम जो पिये।

जितेंदर पाल सिंह

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 कामना छंद

नवाक्षर वृत्त का छंद है,

लक्षण ..... न तर को शुद्ध कामना है ।
मापनी ....१११नगन
२२१ तगण
२१२ रगण

111 221 212
पवन देखो यहाँ चली
जगत में आस है पली
निकट से राह यूँ मिली
दफन ये साँस है खुली ।

सबक ये यहाँ ही रहे
सुखद ये राह ही रहे
मुँह यहाँ मान से खुले
नित यहाँ मैल ये धुले ।

हर घड़ी हो खुशी यहाँ
सब रहे यूँ सुखी यहाँ
भगत का मान बंद हो
दुखद में गंद बंद हो ।

नित जपो नाम यूँ सभी
न मन ये हो दुखी कभी
हम सभी हो सुखी यहाँ
सब जपे यूँ खुशी जहाँ ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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“कामना छंद”* नवाक्षर वृत्त का छंद है,

लक्षण....न तर को शुद्ध कामना है।


मापनी....111(नगन) 221(तगण) 212(रगण)


पवन भाए, मुझे तुझे
तपन प्रीती लगे बुझे।
गगन मेघा भरे चले,
जतन मेवा करें मिलें।।

सुखद प्रेमी प्रमाद है,
सुरमयी सा संवाद है।
विनय को मान लीजिए|
प्रणय को जान लीजिए।

हरण कान्हा हिया किया,
शरण राधा जिया दिया।
भरम यूँ ही बना रहे,
करम से साथ तू गहे।

शरद पूनो कली खिले,
नयन नीले नलिन मिले।
सपन साझे सदा फले,
लगन विरहा यदा पले।।
नीलम शर्मा -

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कामना छंद(वार्णिक)
नवाक्षरवृति छंद
नगण तगण रगण

111 221 212

शमन आतंक का करें।
मन सदा शौर्य से भरें।।
विशद धारा सदा बहे।
वतन मेरा यही कहे।।

उर करे साधना यही।
कर रहा कामना सही।।
सरस,प्यारे,महान हों।
मनुज सारे समान हों।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर

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कामना छ्न्द (वर्णिक)

111 221 212

लिख रहे आज कामना,
गिर रहे हाथ थामना।
भँवर में हूँपड़ी यहाँ।
सँभल जाऊँ गिरूँ जहाँ।
.....
निखरते शब्द बोलती,
विनय के भाव खोजती।
तब कहे हाथ जोड़ के ,
जब चले साँस छोड़ के।
......
भय तुझे क्युँ सता रहा ,
समय का मौन छा रहा।
निकट ही मृत्यु आ रही,
बिखर के भोर जा रही।
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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 "कामना छन्द"
नवाक्षरवृति छन्द
मापनी-१११ २२१ २१२


सघन मेघा धरा घिरे,
रजत मोती नदी भरे,
कुहुकिनी डाल कूकती,
कुमुदिनी ताल फूलती।
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चमकती मेघ दामिनी,
तरसती नाथ वामिनी,
सुरभि भाये सुहावनी,
मदन छेड़े सुरागिनी।
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विकल नैना प्रिये बहे,
अगन तेरी जिया गहे,
पलक राह निहारती,
सजन आओ पुकारती।
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झलक तेरी पिया मिले,
मुदित मेरा हिया खिले,
मगन गाये सुभाषिनी,
निखर जाये सुहासिनी।
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ह्रदय ही प्रीत साधना,
सफल हो मीत कामना,
नयन में दीप लौ जले,
मिलन की आस में चले।
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चपलता मौन धारती,
सपन साकार वारती,
उदधि आकाश छू रहा,
पवन देखो भिगो रहा।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर( छत्तीसगढ़)

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कामना छन्द(वर्णिक) - न त र
{नवाक्षरवृति छन्द}
मापनी - नगण(111)तगण(221) रगण(212)
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व्यथित हैं लोग देखिए,
किसलिए प्राण दे दिए,
नयन तो आप खोलिए,
अब सही बात बोलिए।।


भ्रमित है नीति आपकी,
छल रही प्रीति आपकी,
असत की नींद सो लिए,
सच सभी दूर हो लिए।।

दिन ढले रात हो गयी,
कटु तभी बात हो गयी,
हम कहे क्या यहाँ अभी,
तुम सुने क्या वहाँ अभी।।

हम जिसे जी लिये यहाँ,
दिन कभी लौटते कहाँ,
गिर पड़ेंगे यहाँ कभी,
सजग हो जाइए अभी।।

चल करें बात काम की,
प्रभु, खुदा, राम नाम की,
अस रहे भावना सभी,
सुफल हो कामना सभी।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 26/12/2019

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