Thursday, November 7, 2019

मनमोहन छन्द- Hindi poetry

                    

           

मनमोहन छन्द--
मानव वर्ण संज्ञा या जाति के मात्रिक छंन्दों की अगली कड़ी में निम्नलिखित छन्द हैं--

चरणान्त: 111

8,6 पर यति

दो अथवा चारों चरण समतुकांत

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मनमोहन छंद

14मात्रिक ---8,6=14, अंत 111

दो या चारों चरण समतुकान्त।

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मनमोहन छंद
14मात्रिक ---8,6=14, अंत 111
दो या चारों चरण समतुकान्त।

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मनमोहन छंद
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नव जीवन का, करें सृजन,सदाचार का , करें चयन,
प्रभु रचना का,सार जगत,कर रचना से,प्यार भगत।
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नए सोच की , प्रीत पहल,गिर जाएगा, रेत महल,
सत्य पाठ का, रोज श्रवण,सुबह सवेरे , रोज भ्रमण।
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घृणा अगन का, करें शमन,गुरू चरणों में, करें नमन,
लोभ मोह का, सदा दमन,असत बात का,सदा दहन।
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घर्म- कर्म के , चलें शरण,प्रभु इच्छा का, करें वरण,
बनकर जोगी, चलें सजन,हाथ जोड़ कर, करें भजन।
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धन जोड़ू ये, लगे लगन,परिधा के नित,चले चलन,
दूजे का सुख, करे जलन,निज हित से हैं, करें मिलन।
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गगन तले तू, रहा उछल,अपनी जिद पर, रहा मचल,
जीवन तेरा , भोज तरल ,पीता खुद ही, रोज गरल।
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राज्यश्री सिंह
स्वरचित, मौलिक रचना
7/11/ 2019
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मनमोहन छंद
14 मात्रिक छन्द, 8, 6 पर यति
चरणात-111
विषय- कृष्ण बाल छवि

प्रमुदित पग पग, धावत हरि, यशुदा मन मन, भावत हरि,
माखन खावत, गिरात सखि, लेत बलैयां, खिलात सखि।
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पैजन बाजत, छमक छमक, चमके मणिका, दमक दमक,
भागत मोहन, उठत गिरत, पकड़ें दाऊ, तुरत फिरत ।
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चंदन सुंदर, माथ तिलक, कानन कुंडल, अतुल झलक,
लकुटि कमरिया, चरण कमल, बाल गोपाल, रूप विमल।
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शोभित ललाट, मुख हिमकर, भर किलकारी, लख दिनकर,
सिर मोर पंख,नैन चपल, मुख लपेट दधि, माखन मल।
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फिर शशि माँगत,रोवत हरि, धरणी गिर गिर, रोवत हरि,
जसुमति चूमत, लाड़ करत, नीरज नैनन, जल बरसत।।
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रचनाकार
डॉ. नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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मनमोहन छंद

१४ मात्रिक छंद,८,६ पर यति,

अंत में १११ अनिवार्य

मोहन माधव,करूँ नमन,मैं दीवानी, धरूँ चरण।
मुख मंडल में, सजे चमक,पायल तेरी, बजे छमक।।१।।

नाम तिहारा,करूँ श्रवण।रखूँ हृदय में,करूँ भ्रमण।
ले लो मुझको,हरी शरण।माया सारी,करो वरण।।२।।

तुमको मानूँ,सदा सजन।गाऊँ बस मैं,यही भजन।
उर में तेरी,सदा झलक।माथे साजे,खिले तिलक।।३।।

ऐसी लागी,जगी लगन।आशा से है,भरा मिलन।
भावों की हो,सदा चहल।मोहे भाए,नहीं महल।।४।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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मनमोहन छंद
१४ मात्रिक
८ , ६ अंत १११


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पावन रब सा, लगे वदन।आत्मा बसे , प्रिया सजन।।
प्रियतम बसते ,सदा ह्रदय।अंतस बसता ,भाव प्रणय।।

नेह छलकता , नैन मृदुल ।प्यार बरसता , रहे अतुल।।
चाहत मेरी , हुई प्रबल ।बंधा मन से , प्रेम सबल ।।

सिंगार करूँ , लगी लगन ।खुद को निहार ,बनी मगन।।
पथ प्रीत पगी ,चली शरण ।कंत चाह का ,किया वरण।।

इच्छा तुमसे, जुड़ी सकल।करना न कभी,नैन सजल।।
सांस आधार , प्रेम पवन।प्राण बने हो , ह्रद उपवन।।

बेकल हो मन, दिखे दरस ।सजना तुम बिन,गयी तरस।।
दाहक लगती, मुझे बिरह ।तड़प बिन नीर ,मीन तरह।।

ललिता गहलोत

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मनमोहन छंद
१४ मात्रिक छंद
8,6 पर यति

अंत 111

बदरी छाई , देख सघन ,मुस्काया है , सुंदर वन ।
आकुल ब्याकुल,सब उपवन ,नाच उठा है , पागल मन ।।

झर - झर उतरी, गई बिखर ,पा पानी को , लता निखर ।
इठलाती सी , चली उधर ,संगी लेटे , जिधर - जिधर ।।

प्यासी नदियाँ, सज-धज कर,हुई बावरी , हँस - हँस कर ।
सूखी अँखिया , काजल बिन ,तरस गयी थी , बादल गिन ।।

बरखा आई , फाड़ गगन ,पशु-पंछी सब , हुए मगन ।
दरस-दरस कर,सजल नयन ,पुलकित होता , है तन -मन ।।

संगी से तातपर्य लता जिस तार के सहारे आगे बढ़ती है

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार
व लखनऊ ,उत्तरप्रदेश

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मनमोहन छंद-8,6यति चरणान्त-111
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मद्धिम-मद्धिम, चले पवन,
सूना - सूना , लगे गगन,
मिलने का कुछ, करो जतन,हैं वियोग में, सजल नयन।।

साँझ सकारे, सभी पहर,निसदिन देखूँ, एक डगर,
मन उड़ता जस, उड़े भ्रमर,जीवन जैसे, लगे भँवर।।

सुफल मनुज का, बने जनम,कुछ तो ऐसा, करो करम,
दूर सभी तुम, रखो भरम,अभी यहाँ हैं, बहुत अधम।।

कीचड़ में ज्यों, खिले कमल,अपनी छवि को, रखो धवल,
मत करना मन ,कभी विकल,दुविधा से चल, चलें निकल।।

रहे परिस्थिति, भले विकट,बुरा समय जो, दिखे निकट,
मत रोना तुम, कभी लिपट,हँसकर लेना, सदा निपट।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद- मऊ(उ0प्र0),भारत
दि0- 10/11/2019

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मनमोहन छन्द
चरणान्त-- 111 अनिवार्य, 8,6 पर यति


शोक मत करो, वियोगमय,मृत्यु है अटल, नियत समय।
क्यूँ घमंड हो, हमें अधिक,श्वास जब रुके, नहीं क्षणिक।

कर्म की गति, रही भृमित,पाप में रहे, सदा अमित।
संग ले लिए, अपार दुख,सत्य से रहे, सदा विमुख।

त्याग देह कर, गए गमन,हरि नहीं जपा, नहीं भजन।
राख हो गया, शरीर जल,लौटते नहीं, अतीत पल।

प्राण उड़ गए, शरीर तज,देह अब नहीं, मिले सहज।
जोड़ता रहा , किये जतन,न्याय सच करे, हरी भवन।

योनियां भटक, भटक चलत,तन मनुष्य का, नहीं मिलत।
लो गुरू कृपा, पकड़ चरण,द्वार हरि मिले, तुझे शरण।

जितेंदर पाल सिंह

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मनमोहन छ्न्द
14 मात्रा , 8 ,6 पर यति, 111अनिवार्य
......

केशव तुम ही, करो जतन ,मेरे हिय के, बनो रतन।
कहती तुमको , प्रिये रमण,करते मेरे , हृदय भ्रमण ।
......
नटखट कृष्णा , मुझे दरस ,अखियां मेरी , रही बरस ।
प्रभु मुझे रखो ,अपने चरण ,फूलों सी मै, महकूं चमन ।
......
बिन तेरे मैं , रहूं विकल,कर दे मेरे , काज सफल।
मीरा करती , तुझे नमन,देता है प्रभु ,नया जनम ।
.....
सुनो प्राण प्रिय , बसो नयन,उमंग छाई , लगी लगन ।
रहना मेरे , सदा निकट ,करो समस्या , दूर विकट।
.......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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