Wednesday, November 6, 2019

सुलक्षण छन्द - Hindi poetry


 सुलक्षण छन्द
 मानव वर्णसंज्ञा अथवा जाति के छंदों की अगली श्रृंखला में  छन्द विवरण निम्नलिखित है:---

 प्रत्येक चरण 14 मात्रिक

चार मात्राओं के बाद गुरु लघु(21) अनिवार्य।
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
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सुन रे मीत तुझसे प्रीत,तेरी ताल मेरे गीत।
अपना प्रेम का है माथ,मानो बात चल दो साथ।


बजता श्वास का संगीत,जबतक प्राण तन में मीत।
सुख-दुख काट मेरे संग,नयनों देख जीवन रंग।

काजल धार नयनों डाल,मन ले जीत ऐसी चाल।
पायल पैर करती शोर,खींचे ध्यान अपनी ओर।

बीती रात आयी भोर,किरणें सूर्य की चहुँओर।
साजन खोल मन के द्वार,कर लूं स्वप्न मैं साकार।

कोकिल बैठ गाये गीत,ढूढ़े देख अपना मीत।
होता प्रेम जीवाधार,जग में प्रेम बिन अँधियार।

जितेंदर पाल सिंह
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सुलक्षण छ्न्द

14 मात्रा , दो द्विकल या चार मात्रा के बाद 21 अनिवार्य
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आया कौन मन के द्वार,छेड़े कौन मन के तार ।
चुपके पांव साजन मीतआये संग गाने गीत ।
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छेड़ो आज मुरली तान,राधा साथ गाओ गान ।
सखियां झूम लाएं साज ,ढोलक और घुंघरू बाज ।
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माखन चोर ग्वाले साथ,गायें भोर मुरली हाथ ।
जमुना गेंद लेने आज,कूदे कृष्ण हितकर काज ।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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सुलक्षण छंद

१४ मात्रिक भार,चार मात्रा के बाद गुरु लघु (२१) अनिवार्य,
२२२१ २२२१

मेरे मीत तुमसे प्रीत।ऐसी रीत गूंजे गीत।
होवे साथ महके रात।पावन राग फेरे सात।।

होगा जन्म बारम्बार।हो हर बार ये आधार।
तुमसे जीत तुमसे हार।मिलता साँच मुझको प्यार।।

काहे राग काहे द्वेष।उर में होय जब प्रवेश।
तिरछे नैन साधे बाण।बन जा आज मेरा प्राण।।

लागे नाद आयी याद।बरसों बाद ये उन्माद।
इसका जान तू भी मोल।अपनी प्रीत है अनमोल ।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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सुलक्षण छंद

१४ मात्रिक,४ मात्रा के बाद गुरु लघु २१ अनिवार्य,

मापनी
२२२१ , २२२१ ।

हरि -हरि बोल, मुख को खोल । स्वर अनमोल , मधु को घोल ।।

माला फेर , प्रभु को हेर । मत कर देर, हर अंधेर ।।

छोड़ो काम , पहुँचो धाम । भज लो राम , राधे श्याम ।।

है संसार , छल का द्वार । मैं को मार , बेड़ा पार ।।

माया - जाल , है विकराल । यह भव - जाल , है जंजाल ।।

अभय कुमार आनंद
बिष्णुपुर, बांका बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश

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सुलक्षण छन्द
14 मात्रिक छन्द 4मात्रा के बाद गुरु लघु(21) अनिवार्य
मापनी-2221 2221

शीर्षक- ऊधौ गोपी संवाद

ऊधौ श्याम, बिन ब्रजधाम, गोपी ग्वाल, जपते नाम,
आओ प्राण, अपनी देह, श्यामल मेघ, बरसे नेह।
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यमुना तीर, पीपल छाँव, तकते नैन, सूना गाँव,
चुभते फूल, जैसे शूल, सूखी श्याम, नैनन झील।
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लतिका नाग, बन दिन रात, मारे डंक, कोमल पात,
तपती देह, सुलगे प्राण, मिलन आस, कर दो त्राण।
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केशव प्रेम, मुरली भाय तकती राह, कहना जाय,
मधुवन रास, मधुरस गीत, यशुदा नन्द, राधा मीत।
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माखन चोर, मटकी फोड़, जीवन छीन, मन को तोड़,
सुलगी साँस, आओ श्याम, भूला प्रीत, भूला नाम।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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