Explained By Mr. Arvind Chasta , Kapasan (Chittorgarh)
लक्ष्मी छंद
🌹🙏
🌹नमन साहित्य अनुरागी🌹
छंद लेखन प्रक्रिया को आगे। बढ़ाते हुये हम आज से वर्णिक छंद प्रकरण आरम्भ करेंगे।
जिन छंदों को वर्णों की संख्या और लघु गुरु के निश्चित क्रम के अनुसार पदों की व्यवस्था की जाती है उन्हें वर्णिक छंद कहते है।
जिन छंदों में चारो पदों में समान वर्ण और क्रम हो उन्हें समवृत अथवा सम वर्णिक छंद कहा जाता है।
सुगमता के लिए इसके दो भेद है।
1 जातिक- एक से 26 वर्ण तक
2 दण्डक - 26 से अधिक वर्ण संख्या होने पर
🌹
वर्णिक छन्दों की 26 जातियां है।
(विस्तृत अलग से)
छंदों शास्त्र में अनेको छंदों का वर्णन है हम उनमे से कुछ प्रमुख के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
आज_का_छंद
आज हम अनुष्ठुप जाती के छंद के बारे में जानेंगे।
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लक्ष्मी_छंद
लक्षण - रे रँगीली सु लक्ष्मीहि।
इस छंद के चार चरण है
हर चरण में 8 वर्ण होते है
क्रमश: रगण रगण गुरु और लघु वर्ण होते है
यथा
212 212 21
उक्त मापनी पर ही सृजन करना होता है
दो दो अथवा चारो चरण अथवा सम चरण तुकांत लिए जा सकते है।
वाचिकभार_मान्य_नही_है
दो छंद की न्यूनतम अपेक्षा ,
अधिकस्य_अधिकम्_फलम्
स्वागत सभी साहित्य अनुरागियों का
आइये सभी वर्णिक छंदों पर सृजन यात्रा का शुभारम्भ करते है ।
लक्ष्मी छंद
🌹
हे दया धारिणी मात,हे सती रूपिणी मात।
दास की लो सुधी मात,विष्णु वामां धरो हाथ।।1
🌹
नाम तेरा करे पार,जो गया मान है हार।
जो झुकाये तुझे शीश,ले रमा नित्य आशीष।।2
जो झुकाये तुझे शीश,ले रमा नित्य आशीष।।2
212 212 21
अरविन्द_चास्टा
कपासन_चित्तौड़गढ़_राजस्थान।
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लक्ष्मी छन्द (वर्णिक छन्द)
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
रगण रगण गुरू लघु
212 212 21
ध्यान धारो निरंकार,छूट जाये अहंकार।
मोह माया तजो काम,क्रोध त्यागो भजो राम।
जन्म धारा कई बार,हो सका नाहि उद्धार।
योनियों में फिरे हार,धर्म का नाम आधार।
देह भू लोक की अंश,पाप मारें उसे दंश।
देह पाई बड़े भाग,मूढ़ रे तू अभी जाग।
साधना से मिलें राम,नाम साधे बने काम।
राम द्वारे मिले त्राण,देह माटी बिना प्राण।
चाहते हैं सभी मुक्ति,जानते हैं नहीं युक्ति।
नाम धारे समाधान,राम बोलो सुने कान।
जितेंदर पाल सिंह
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लक्ष्मी छन्द
वार्णिक छन्द 8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
212 212 21
दो दो चरण या चारो समतुकांत
विषय- पिया मिलन की आस
*************************
मेघ काले घने आय, देह भीगी हमे भाय।
नैन जागी पिया आस,रैन आओ करें रास।
***********************
आम डाली करै शोर, काकपाली कुहे भोर,
मोर नाचे घटा घोर,वारि भारी दिशा छोर।
***********************
मीनकेतु बसे रैन, प्रेम डूबे मिले चैन।
नीर मेघा गिरे रात, मान जाओ पिया बात।
************************
छंद लिखो धनी आज, रंग भरो बजे साज।
छेड़ वीणा प्रिये तान,प्रेम गूँजे हिये गान।
************************
वाटिका में कली फूल, सँग साथी बिना शूल।
रंग रंगूँ तेरे साथ, सँग तेरे धरूँ हाथ।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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लक्ष्मी छ्न्द (वर्णिक छ्न्द)
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
212 212 21
जानकी राम हैं सारराधिका श्याम संसार
कष्ट से वो करे पारढूंढ लो कृष्ण दातार
.....
विष्णु सारे हरे पापजो करे प्रभु का जाप
रोग होगा सभी दूरनित्य जो भी चले दूर
.....
लालिमा सूर्य की भोरजाग आलस्य को छोड़
स्वस्थ होते वही लोगस्नान गंगा करे रोज
......
देख पंछी करें शोरनाचते हैं यहां मोर
दृश्य अद्भुत रहा मोहस्वर्णिमा फैलती रोह
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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लक्ष्मी छंद
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
212 212 21
जागने से मिले जीत ,भागने से सुनो मीत ।
हार देखो खड़ा राह ,जाग पूरी करो चाह ।।
दूसरे ही हरे पीर ,हैं निजी घोंपते तीर ।
कान खोलो सुनो वीर ,जीतता जो रहे धीर ।।
रोज दौड़ो हरो रोग ,छोड़ दो जी सुनो भोग ।
आज ही से करो योग ,ठान लो जी सभी लोग ।।
बेटियाँ ही रखे लाज ,मात-बापू सुनो आज ।
मारने की किया भूल ,सृष्टि देगा सुनो शूल ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बाँका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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लक्ष्मी छंद (वर्णिक छंद)
21221221-8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
*******************
कृष्ण है राधिका संग,घोलते प्रेम के रंग।
प्रीत के गीत का गान,बाँसुरी की छिड़े तान।
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मेघ छाए मचे शोर ,नृत्य मुद्रा सजे मोर ।
कोकिला कूकती आज ,बादलों के बजे साज।
**********************
दीप की ज्योति का मर्म,प्रीति है प्राण का धर्म,
नित्य जागे निशा आस,ज्योति में हो प्रभा वास।
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मुग्ध सांसे लिखे गीत,ढूंढती प्राण संगीत ,
शून्य वीणा के तार ,स्वप्न उन्मेष आकार ।
****************
वेश भूषा सभी ढंग,धर्म बोली घुले रंग ,
भूमि वन्दे ऋचा साज ,प्रेम धारा बही आज ।
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राम सीता बसे धाम, है अयोध्यापुरी नाम ,
वेद गुंजार निष्काम,कीर्ति शोभा सियाराम।
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गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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लक्ष्मी छंद
८ वर्ण,वार्णिक छंद है,अंत गुरु लघु ,
मापनी...२१२ २१२ २१
नंद के लाडले लाल।संग में खेलते ग्वाल।
सांवला रंग है शान।बांसुरी की भरे तान।।
कृष्ण-राधा करे नाच।मोह छाया तपी आँच।
प्रीत की डोर में सार।जोड़ते भाव के तार।
कृष्ण-राधा जपो नाम।पूर्ण होंगे सभी काम।
बोल सारी दबी बात।आज काली छटे रात।।
नष्ट होवे बसे पीर।नैन खारे मिटे नीर।।
काट डालो चुभे तीर।आज दे दो मुझे धीर।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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लक्ष्मी छन्द (वर्णिक छन्द)
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
रगण रगण गुरू लघु
212 212 21
ध्यान धारो निरंकार,छूट जाये अहंकार।
मोह माया तजो काम,क्रोध त्यागो भजो राम।
जन्म धारा कई बार,हो सका नाहि उद्धार।
योनियों में फिरे हार,धर्म का नाम आधार।
देह भू लोक की अंश,पाप मारें उसे दंश।
देह पाई बड़े भाग,मूढ़ रे तू अभी जाग।
साधना से मिलें राम,नाम साधे बने काम।
राम द्वारे मिले त्राण,देह माटी बिना प्राण।
चाहते हैं सभी मुक्ति,जानते हैं नहीं युक्ति।
नाम धारे समाधान,राम बोलो सुने कान।
जितेंदर पाल सिंह
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लक्ष्मी छन्द
वार्णिक छन्द 8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
212 212 21
दो दो चरण या चारो समतुकांत
विषय- पिया मिलन की आस
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मेघ काले घने आय, देह भीगी हमे भाय।
नैन जागी पिया आस,रैन आओ करें रास।
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आम डाली करै शोर, काकपाली कुहे भोर,
मोर नाचे घटा घोर,वारि भारी दिशा छोर।
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मीनकेतु बसे रैन, प्रेम डूबे मिले चैन।
नीर मेघा गिरे रात, मान जाओ पिया बात।
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छंद लिखो धनी आज, रंग भरो बजे साज।
छेड़ वीणा प्रिये तान,प्रेम गूँजे हिये गान।
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वाटिका में कली फूल, सँग साथी बिना शूल।
रंग रंगूँ तेरे साथ, सँग तेरे धरूँ हाथ।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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लक्ष्मी छ्न्द (वर्णिक छ्न्द)
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
212 212 21
जानकी राम हैं सारराधिका श्याम संसार
कष्ट से वो करे पारढूंढ लो कृष्ण दातार
.....
विष्णु सारे हरे पापजो करे प्रभु का जाप
रोग होगा सभी दूरनित्य जो भी चले दूर
.....
लालिमा सूर्य की भोरजाग आलस्य को छोड़
स्वस्थ होते वही लोगस्नान गंगा करे रोज
......
देख पंछी करें शोरनाचते हैं यहां मोर
दृश्य अद्भुत रहा मोहस्वर्णिमा फैलती रोह
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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लक्ष्मी छंद
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
212 212 21
जागने से मिले जीत ,भागने से सुनो मीत ।
हार देखो खड़ा राह ,जाग पूरी करो चाह ।।
दूसरे ही हरे पीर ,हैं निजी घोंपते तीर ।
कान खोलो सुनो वीर ,जीतता जो रहे धीर ।।
रोज दौड़ो हरो रोग ,छोड़ दो जी सुनो भोग ।
आज ही से करो योग ,ठान लो जी सभी लोग ।।
बेटियाँ ही रखे लाज ,मात-बापू सुनो आज ।
मारने की किया भूल ,सृष्टि देगा सुनो शूल ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बाँका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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लक्ष्मी छंद (वर्णिक छंद)
21221221-8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
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कृष्ण है राधिका संग,घोलते प्रेम के रंग।
प्रीत के गीत का गान,बाँसुरी की छिड़े तान।
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मेघ छाए मचे शोर ,नृत्य मुद्रा सजे मोर ।
कोकिला कूकती आज ,बादलों के बजे साज।
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दीप की ज्योति का मर्म,प्रीति है प्राण का धर्म,
नित्य जागे निशा आस,ज्योति में हो प्रभा वास।
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मुग्ध सांसे लिखे गीत,ढूंढती प्राण संगीत ,
शून्य वीणा के तार ,स्वप्न उन्मेष आकार ।
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वेश भूषा सभी ढंग,धर्म बोली घुले रंग ,
भूमि वन्दे ऋचा साज ,प्रेम धारा बही आज ।
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राम सीता बसे धाम, है अयोध्यापुरी नाम ,
वेद गुंजार निष्काम,कीर्ति शोभा सियाराम।
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गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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लक्ष्मी छंद
८ वर्ण,वार्णिक छंद है,अंत गुरु लघु ,
मापनी...२१२ २१२ २१
नंद के लाडले लाल।संग में खेलते ग्वाल।
सांवला रंग है शान।बांसुरी की भरे तान।।
कृष्ण-राधा करे नाच।मोह छाया तपी आँच।
प्रीत की डोर में सार।जोड़ते भाव के तार।
कृष्ण-राधा जपो नाम।पूर्ण होंगे सभी काम।
बोल सारी दबी बात।आज काली छटे रात।।
नष्ट होवे बसे पीर।नैन खारे मिटे नीर।।
काट डालो चुभे तीर।आज दे दो मुझे धीर।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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