मनोरम छन्द--
Explained By Smt Ragini Garg ji - Rampur ( U.P.)
मानव वर्ण संज्ञा या जाति के 14 मात्रिक छंन्दों की अगली कड़ी में निम्नलिखित छन्द हैं-
मनोरम छन्द--
(क) इस छन्द का पहला वर्ण(आदि वर्ण) गुरु(2) होता है
चरणान्त: भगण (211) अनिवार्य है
(ख) इस छन्द का पहला वर्ण (आदि वर्ण) गुरु(2
चरणान्त: यगण (122) अनिवार्य।
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
उदाहरण के लिए :-
विषय:- वीर-गाथा
विधा:- गीत
छंद-मनोरम छंद
मापनी-2122 2122
रस-वीर रस
स्थायी भाव-उत्साह
रचना :-
(मुखड़ा)
देश हित में जो मरेगा। नाम अपना वो करेगा।।
(अन्तरा 1)
देश पर जब आँच आये, खून की नदियाँ बहाये।
शीश माँ चरणों चढ़ायें, वीर -गाथा हम लिखायें।
शत्रुदल से जो लड़ेगा । नाम अपना वो करेगा।।(टेक)
(अन्तरा 2)
नारियाँ पीछे नहीं हैं, देश हित वो भी लड़ी हैं।
चूड़ियाँ तज, तेग पकड़ीं, गर्दनें अरि की जकड़ीं।
मृत्यु को जो भी वरेगा। नाम अपना वो करेगा।।
(अन्तरा 3)
भारती माँ! भारती माँ! पूत अपने वारती, माँ!
आँख जब बैरी दिखाये, वीर उसको नोंच लाये।
प्राण, रिपु के जो हरेगा। नाम अपना, वो करेगा।।
रागिनी गर्ग
रामपुर (यूपी )
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मनोरम छंद
पहला वर्ण गुरु 2,
चरणान्त 122 यगण या 211 भगण
दो अथवा चारों चरण समतुकांत
विषय : चन्द्रिका ( चाँदनी)
चन्द्रिका अल्हड़ सुहाई , दूध से रजनी नहाई ।
इंदु ने भेजा उजाला , दृश्य देखो है निराला ।।
ज्योत्सना जब मुस्कुराई , कालिमा तब थी लजाई ।
रात ने है ओढ़ डाला , चंद्र-तारक का दुशाला ।।
कौमुदी श्रृंगार करके , राह काली पार करके ।
यौवना सी आ गई है , वाह! सचमुच भा गई है ।।
शीत स्नेहिल सुंदरी सी , मोहिनी मनमीत मन की।
पावनी पल पास पाकर , गुनगुनाऊँ गीत गाकर ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
पहला वर्ण गुरु 2,
चरणान्त 122 यगण या 211 भगण
दो अथवा चारों चरण समतुकांत
विषय : चन्द्रिका ( चाँदनी)
चन्द्रिका अल्हड़ सुहाई , दूध से रजनी नहाई ।
इंदु ने भेजा उजाला , दृश्य देखो है निराला ।।
ज्योत्सना जब मुस्कुराई , कालिमा तब थी लजाई ।
रात ने है ओढ़ डाला , चंद्र-तारक का दुशाला ।।
कौमुदी श्रृंगार करके , राह काली पार करके ।
यौवना सी आ गई है , वाह! सचमुच भा गई है ।।
शीत स्नेहिल सुंदरी सी , मोहिनी मनमीत मन की।
पावनी पल पास पाकर , गुनगुनाऊँ गीत गाकर ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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छंद का नाम :- मनोरम
विषय:- भारत के वीर
विधा:- गीत
मापनी-2122 2122
मुखड़ा
शौर्य के उनवान हो तुम।देश के अभिमान हो तुम।।
अंतरा-01
वीरता की तुम निशानी।राष्ट्र को अर्पित जवानी।।
रौद्र की भाषा चुनो तुम।गर्व की गाथा बनो तुम।।
हिन्द की भी शान हो तुम।शौर्य के उनवान हो तुम।।
अंतरा-02
जोर से हुंकार भरकर।रक्त अरि माथे लगाकर।।
वीर राणा सा बढो तुम।साहसी साहस गढ़ो तुम।।
भारती की जान हो तुम।शौर्य के उनवान हो तुम।।
अंतरा-03
आग दिल में हो धधकती।जोश में है जो सुलगती।।
हौंसलों की जीत हो तुम।विश्वविजयी गीत हो तुम।।
इस धरा का आन हो तुम।शौर्य के उनवान हो तुम।।
अंतरा-04
शत्रु का संहार करके।बाजुओं में शक्ति भरके।।
प्राण हत यमराज हो तुम।देश की आवाज हो तुम।।
राष्ट्र का सम्मान हो तुम।शौर्य के उनवान हो तुम।।
अंतरा-05
जीत हो हर बार अपनी।एकता में धार अपनी।।
बोस औ आजाद हो तुम।भगत का अंदाज हो तुम।।
हर हृदय का गान हो तुम।शौर्य के उनवान हो तुम।।
अंतरा-06
दुश्मनों के काल हो तुम।भारती के लाल हो तुम।।
युद्ध में मत हार मानो।है विजय का सार मानो।।
लाडले वरदान हो तुम।शौर्य के उनवान हो तुम।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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मनोरम छन्द
क) आदि गुरु(2)
चरणान्त: 211 अनिवार्य
14 मात्रिक छन्द
ये नैन प्रिय बाट जोहत,संध्या गई रैन होवत।
नैना भरे अश्रु बहावत,आये नहीं तम डरावत।
मैंने किया प्रेम साजन,तू है हृदय प्राण राजन।
द्वारे खड़ी मैं निहारत,आजा पिया मन पुकारत।
सूना लगे आज आँगन,तेरी बनी मैं सुहागन।
देखो पिया प्रेम रोगन,कैसे रहूँ होय जोगन।
बादल घने आया सावन,मेरा हरो कष्ट रूदन।
नैनों बहा रोय अंजन,आ लग गले पीड़ भंजन।
पाया दरस चित्त रंजन,तू कर पिया संग नंजन।
होना नहीं दूर प्रीतम,लागूं हिये बात उत्तम।
जितेंदर पाल सिंह
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मनोरम छंद
१४ मात्रिक छंद,आदी वर्ण गुरु,चरणांत १२२ या २११ अनिवार्य
मापनी-2122 2122
मुखड़ा
मृत्यु भय से जो न डरता,काल बनकर जान हरता।
अंतरा(१)
भाल कुमकुम लाल साजे,हाथ खन खन शस्त्र गाजें।
आँख में चमके सितारे,श्वास धरती माँ पुकारे।
गर्व से है युद्ध करता,काल बनकर जान हरता।।
(२)
शान माता की बचाता,जान अपनी है लुटाता।
आग मन में यूँ लगी है,जाग तू बाँहें सजी है।
शत्रु को ये मार मरता,काल बनकर जान हरता।।
(३)
हाथ में सजता तिरंगा,आज लागे शुद्ध गंगा।
शूर वीरों की कहानी,आज है सब की ज़ुबानी।
ऋण माँ का वीर भरता,काल बनकर जान हरता।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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नोरम छन्द:-
14 मात्रिक छन्द7-7 पर यति
आदि वर्ण गुरु(2)
चरणान्त:- भगण (211)या यगण(122) अनिवार्य
मापनी:- 2122 2122
विषय:- श्याम छवि
नील सागर, गात शोभित,श्याम सुंदर, ह्रदय मोहित,
प्रीत माधव, सुखद पावन,पीर मानस, सकल तारन।
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मोर नाचत, सघन सावन,प्रीत राधा, सुखद पावन,
डोर नैनन, प्रेम बाँधत,मौन तन-मन, रीत लाँघत।
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पैर पैजन, मधुर बाजत,देख माखन,मुदित धावत,
छाँव पीपल, बैठ मोहन,रैन आँगन, धेनु दोहन।
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कूक कोकिल, मधुर कूकत,भोर उपवन, गीत गूंजत,
तान मधुरस, मलय घोलत,भानु लालिम, गगन सोहत।
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नेह अनुपम, धवल मूरत,देख मोहन, अतुल सूरत,
केश कुंतल, मधुप श्यामल,श्याम नीरज,चरण कोमल।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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मनोरम छन्द
आदि गुरु(2)
चरणान्त: 122 अनिवार्य।
14 पर यति
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
जा रहे क्यूँ तुम बताओ,यूँ मुझे तुम मत सताओ।
क्या हुआ कुछ तो सुनाओ,प्रिय नहीं ऐसे रुलाओ।
काज ये तेरा पुराना,नित करो कोई बहाना।
तुम नयन हमसे मिलाओ,सच कहो कुछ मत छुपाओ।
देर से आना तुम्हारा,है दुखाता मन हमारा।
प्रेम को मन से निभाओ,मत सताकर मुस्कुराओ।
नभ घनी छायी घटायें,बूंद बरखा की सुहायें।
ठंडी सी चलती हवायें,खग विहग उड़कर नहायें।
किस तरफ है मन तुम्हारा,प्रेम को देकर किनारा।
प्रीत को हमने संवारा,तोड़ मत प्रिय ये सहारा।
जितेंदर पाल सिंह
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मनोरम
छंद का विधान:- प्रत्येक चरण १४ मात्राएँ,
आदि में गुरु और अंत में १२२ या २११, ३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मात्रा भार : २१२२ २१२२
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विषय:- देश के वीर
विधा:- गीत
चयनित छंद-मनोरम छंद
मापनी-२१२२ २१२२
रस-वीर रस
गा ल गा गा गा ल गा गा
मुखड़ा
जान की बाजी लगाते,खून की धारा बहाते ।
भारतीयों को सलामी ,याद वीरों की कहानी।
खून से लथपथ नहाते।जान की बाजी लगाते।
अन्तरा
लाज रखते हैं तिरंगा,चाल चलते हैं तुरंगा ।
तान सीना चल रहे हैं ,देश को जो छल रहे हैं।
रक्त अरि के वो बहाते ।जान की बाजी लगाते।
मौत सरहद पर खड़ें हैं ,साँस अन्तिम तक लड़े हैं।
मृत्यु चाहे आज आये ,डर नहीं कोई सताये।
नींद अरि की हैं उड़ाते।जान की बाजी लगाते।
गोद माँ की छोड़ जाते ,लाज राखी की बचाते।
वीरता की है कहानी,याद रख उनकी जवानी।
शीश तक अपने कटाते।जान की बाजी लगाते।
वीर गाथा गा रहे हैं ,पार सरहद जा रहे हैं।
वीर चेतक की कहानी ,भारती माँ की ज़बानी।
प्राण हँसकर हैं गँवाते ,जान की बाजी लगाते।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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वो बुलाती है मुझे हीवो सताती है मुझे ही
प्यार जो करती हमेशावो जताती है मुझे ही
🌹
ये बताया है उसी नेये सिखाया है उसी ने
रोज भावों को जगातीमन सजाया है उसी ने
🌹
मै रहा नादान ऐसेराह हो सुनसान जैसे
गीत सारे ले गई वोहूँ खड़ा अनजान जैसे
🌹
है दिलासा जिंदगी येहै भरोसा जिंदगी ये
दर्द की दूजी दशा हैहै निभाना जिंदगी ये
🌹
व्यर्थ बातें क्यों करूँ मैंराज सारे क्यों कहूँ मैं
हैं सभी अपने यहाँ पेतो बहाने क्यों करूँ मैं
🌹
अब कहाँ पर प्रीत वैसीजो लगे संगीत जैसी
रोक ले अविराज इनकोजो लगे मनमीत जैसी
🌹✍
अरविन्द चास्टा
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मनोरम छंद
14 मात्रिक छंद , आदी वर्ण गुरु,
चरणांत 122 या 211 अनिवार्य
मापनी -2122 2122
थोप दूजे ,पर न बाते ,काटना रो, रोज राते ,
जो यहां मन ,ह्रदय तोड़ेसब यहां बस,प्रेम छोड़े ।
दूसरे के , घर न ताके,आपना मन, लोग छाके ।
जो यहाँ यूँ ,मीत काटें ,वो सदा यूँ ,स्नेह बाटें ।
मन न दूखे , देख कोई ,सब निभाना , काम कोई ।
यूँ मिलाना , मन यहाँ सब ,देख खुश हो, जाय यूँ सब ।
प्रेम ज्ञानी ,संत से हो ,चाँदनी से , प्रीत अब हो
फूल हो हर ,ओर देखो ,खुश यहाँ हर ,ओर देखो ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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मनोरम छंद
14 मात्रा,7-7 पर यति
2122 2122
आदि वर्ण गुरु(2)
चरणान्त-भगण (211)या यगण (122)
राम का संसार सीता, प्रेम का आधार सीता।
रीति रघुकुल की निभाई, वन गए हैं संग भाई।
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राधिका के श्याम प्यारे ,नित्य यमुना के किनारे।
बाँसुरी मोहक बजाते ,श्याम राधा को मनाते।
**************
ज्योति जलती ज्ञान की है ,मान अरु सम्मान की है
विश्व का है पथ प्रदर्शक ,देश निज है दिव्य दर्शक।
**************
रूप तेरा है सुहावन ,खिल उठा है आज मधुबन।
प्रेम के खिलते सुमन है ,कर रहे शुभ आचमन है।
**************
है प्रभा का रूप पावन ,पवन चलती नित सुहावन
भानु प्राची मुस्कुराते ,भूमि किरणों से सजाते।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
मनोरम छन्द
क) आदि गुरु(2)
चरणान्त: 211 अनिवार्य
14 मात्रिक छन्द
ये नैन प्रिय बाट जोहत,संध्या गई रैन होवत।
नैना भरे अश्रु बहावत,आये नहीं तम डरावत।
मैंने किया प्रेम साजन,तू है हृदय प्राण राजन।
द्वारे खड़ी मैं निहारत,आजा पिया मन पुकारत।
सूना लगे आज आँगन,तेरी बनी मैं सुहागन।
देखो पिया प्रेम रोगन,कैसे रहूँ होय जोगन।
बादल घने आया सावन,मेरा हरो कष्ट रूदन।
नैनों बहा रोय अंजन,आ लग गले पीड़ भंजन।
पाया दरस चित्त रंजन,तू कर पिया संग नंजन।
होना नहीं दूर प्रीतम,लागूं हिये बात उत्तम।
जितेंदर पाल सिंह
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मनोरम छंद
१४ मात्रिक छंद,आदी वर्ण गुरु,चरणांत १२२ या २११ अनिवार्य
मापनी-2122 2122
मुखड़ा
मृत्यु भय से जो न डरता,काल बनकर जान हरता।
अंतरा(१)
भाल कुमकुम लाल साजे,हाथ खन खन शस्त्र गाजें।
आँख में चमके सितारे,श्वास धरती माँ पुकारे।
गर्व से है युद्ध करता,काल बनकर जान हरता।।
(२)
शान माता की बचाता,जान अपनी है लुटाता।
आग मन में यूँ लगी है,जाग तू बाँहें सजी है।
शत्रु को ये मार मरता,काल बनकर जान हरता।।
(३)
हाथ में सजता तिरंगा,आज लागे शुद्ध गंगा।
शूर वीरों की कहानी,आज है सब की ज़ुबानी।
ऋण माँ का वीर भरता,काल बनकर जान हरता।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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नोरम छन्द:-
14 मात्रिक छन्द7-7 पर यति
आदि वर्ण गुरु(2)
चरणान्त:- भगण (211)या यगण(122) अनिवार्य
मापनी:- 2122 2122
विषय:- श्याम छवि
नील सागर, गात शोभित,श्याम सुंदर, ह्रदय मोहित,
प्रीत माधव, सुखद पावन,पीर मानस, सकल तारन।
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मोर नाचत, सघन सावन,प्रीत राधा, सुखद पावन,
डोर नैनन, प्रेम बाँधत,मौन तन-मन, रीत लाँघत।
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पैर पैजन, मधुर बाजत,देख माखन,मुदित धावत,
छाँव पीपल, बैठ मोहन,रैन आँगन, धेनु दोहन।
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कूक कोकिल, मधुर कूकत,भोर उपवन, गीत गूंजत,
तान मधुरस, मलय घोलत,भानु लालिम, गगन सोहत।
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नेह अनुपम, धवल मूरत,देख मोहन, अतुल सूरत,
केश कुंतल, मधुप श्यामल,श्याम नीरज,चरण कोमल।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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मनोरम छन्द
आदि गुरु(2)
चरणान्त: 122 अनिवार्य।
14 पर यति
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
जा रहे क्यूँ तुम बताओ,यूँ मुझे तुम मत सताओ।
क्या हुआ कुछ तो सुनाओ,प्रिय नहीं ऐसे रुलाओ।
काज ये तेरा पुराना,नित करो कोई बहाना।
तुम नयन हमसे मिलाओ,सच कहो कुछ मत छुपाओ।
देर से आना तुम्हारा,है दुखाता मन हमारा।
प्रेम को मन से निभाओ,मत सताकर मुस्कुराओ।
नभ घनी छायी घटायें,बूंद बरखा की सुहायें।
ठंडी सी चलती हवायें,खग विहग उड़कर नहायें।
किस तरफ है मन तुम्हारा,प्रेम को देकर किनारा।
प्रीत को हमने संवारा,तोड़ मत प्रिय ये सहारा।
जितेंदर पाल सिंह
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मनोरम
छंद का विधान:- प्रत्येक चरण १४ मात्राएँ,
आदि में गुरु और अंत में १२२ या २११, ३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मात्रा भार : २१२२ २१२२
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विषय:- देश के वीर
विधा:- गीत
चयनित छंद-मनोरम छंद
मापनी-२१२२ २१२२
रस-वीर रस
गा ल गा गा गा ल गा गा
मुखड़ा
जान की बाजी लगाते,खून की धारा बहाते ।
भारतीयों को सलामी ,याद वीरों की कहानी।
खून से लथपथ नहाते।जान की बाजी लगाते।
अन्तरा
लाज रखते हैं तिरंगा,चाल चलते हैं तुरंगा ।
तान सीना चल रहे हैं ,देश को जो छल रहे हैं।
रक्त अरि के वो बहाते ।जान की बाजी लगाते।
मौत सरहद पर खड़ें हैं ,साँस अन्तिम तक लड़े हैं।
मृत्यु चाहे आज आये ,डर नहीं कोई सताये।
नींद अरि की हैं उड़ाते।जान की बाजी लगाते।
गोद माँ की छोड़ जाते ,लाज राखी की बचाते।
वीरता की है कहानी,याद रख उनकी जवानी।
शीश तक अपने कटाते।जान की बाजी लगाते।
वीर गाथा गा रहे हैं ,पार सरहद जा रहे हैं।
वीर चेतक की कहानी ,भारती माँ की ज़बानी।
प्राण हँसकर हैं गँवाते ,जान की बाजी लगाते।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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वो बुलाती है मुझे हीवो सताती है मुझे ही
प्यार जो करती हमेशावो जताती है मुझे ही
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ये बताया है उसी नेये सिखाया है उसी ने
रोज भावों को जगातीमन सजाया है उसी ने
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मै रहा नादान ऐसेराह हो सुनसान जैसे
गीत सारे ले गई वोहूँ खड़ा अनजान जैसे
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है दिलासा जिंदगी येहै भरोसा जिंदगी ये
दर्द की दूजी दशा हैहै निभाना जिंदगी ये
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व्यर्थ बातें क्यों करूँ मैंराज सारे क्यों कहूँ मैं
हैं सभी अपने यहाँ पेतो बहाने क्यों करूँ मैं
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अब कहाँ पर प्रीत वैसीजो लगे संगीत जैसी
रोक ले अविराज इनकोजो लगे मनमीत जैसी
🌹✍
अरविन्द चास्टा
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मनोरम छंद
14 मात्रिक छंद , आदी वर्ण गुरु,
चरणांत 122 या 211 अनिवार्य
मापनी -2122 2122
थोप दूजे ,पर न बाते ,काटना रो, रोज राते ,
जो यहां मन ,ह्रदय तोड़ेसब यहां बस,प्रेम छोड़े ।
दूसरे के , घर न ताके,आपना मन, लोग छाके ।
जो यहाँ यूँ ,मीत काटें ,वो सदा यूँ ,स्नेह बाटें ।
मन न दूखे , देख कोई ,सब निभाना , काम कोई ।
यूँ मिलाना , मन यहाँ सब ,देख खुश हो, जाय यूँ सब ।
प्रेम ज्ञानी ,संत से हो ,चाँदनी से , प्रीत अब हो
फूल हो हर ,ओर देखो ,खुश यहाँ हर ,ओर देखो ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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मनोरम छंद
14 मात्रा,7-7 पर यति
2122 2122
आदि वर्ण गुरु(2)
चरणान्त-भगण (211)या यगण (122)
राम का संसार सीता, प्रेम का आधार सीता।
रीति रघुकुल की निभाई, वन गए हैं संग भाई।
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राधिका के श्याम प्यारे ,नित्य यमुना के किनारे।
बाँसुरी मोहक बजाते ,श्याम राधा को मनाते।
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ज्योति जलती ज्ञान की है ,मान अरु सम्मान की है
विश्व का है पथ प्रदर्शक ,देश निज है दिव्य दर्शक।
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रूप तेरा है सुहावन ,खिल उठा है आज मधुबन।
प्रेम के खिलते सुमन है ,कर रहे शुभ आचमन है।
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है प्रभा का रूप पावन ,पवन चलती नित सुहावन
भानु प्राची मुस्कुराते ,भूमि किरणों से सजाते।
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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