सरस छन्द
.मानव वर्ण संज्ञा अथवा जाति के अन्तर्गत 9 छन्द आते हैं।
सरस छन्द-- 14 मात्रिक
चरणान्त:
द्विकल+पंच कलX2=14 मात्रिक
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
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सरस छंद
(द्विकल+पाँच कल)×२=१४
दोनों अथवा चारों चरण समतुकांत
मन मोहती , है राधिका , खिल सोहती , है वाटिका ।
सब गोपिका ,भी साधिका ,हरि गोपाल , गुण वाचिका ।।
हँस हमेशा , कर जोड़कर , कर निर्वाह , मत तोड़कर ।
है बांधती , विधि एकता , वह जीतता , जो जागता ।।
माँ भारती , की आरती ,युग युगांतर, जग तारती ।
है भव्यता , अरु सभ्यता , है साम्यता , ये सत्यता ।।
है दिव्यता , है सौम्यता , है संसार , में मान्यता ।
है श्रव्यता , है शिष्टता , है भारती , की धन्यता ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका बिहार,व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
(द्विकल+पाँच कल)×२=१४
दोनों अथवा चारों चरण समतुकांत
मन मोहती , है राधिका , खिल सोहती , है वाटिका ।
सब गोपिका ,भी साधिका ,हरि गोपाल , गुण वाचिका ।।
हँस हमेशा , कर जोड़कर , कर निर्वाह , मत तोड़कर ।
है बांधती , विधि एकता , वह जीतता , जो जागता ।।
माँ भारती , की आरती ,युग युगांतर, जग तारती ।
है भव्यता , अरु सभ्यता , है साम्यता , ये सत्यता ।।
है दिव्यता , है सौम्यता , है संसार , में मान्यता ।
है श्रव्यता , है शिष्टता , है भारती , की धन्यता ।।
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका बिहार,व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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सरस छन्द:-
14 मात्रिक छन्द
द्विकल पंचकल 2×5 अनिवार्य
मापनी:- 2212 2212
विषय:- सरस्वती वंदना
माँ शारदे, वर दायिनी,हे !धवलिके, शुचि आसनी,
सुख कारिणी, दुख हारिणी,हे ! विमलके, तम तारिणी।
**********************
हे! धवलमय,रस रागिनी,जग मोहनी,मधु भाषिणी,
हर तमसमय, घन कालिमा,हो ज्योतिमय, शुभ लालिमा।
***********************
माँ श्वेतमय, पट धारिणी,भर सप्तसुर, मृदु रागिनी,
हर कपटता,मद वासना,हो वेदमय, हर साधना।
***********************
हे! भारती, माँ शारदा,दे बुद्धिमत्ता, हे ज्ञानदा,
तू वेदिके, हर वेदना,भर प्रेरणा, दे चेतना।
**********************
हे! ज्ञानदा,सुन प्रार्थना,हो सफ़लमय, शुचि कामना,
हे! वंदिते, जय जगदिके,शत वन्दना, शुभ कमलिके।
***********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
14 मात्रिक छन्द
द्विकल पंचकल 2×5 अनिवार्य
मापनी:- 2212 2212
विषय:- सरस्वती वंदना
माँ शारदे, वर दायिनी,हे !धवलिके, शुचि आसनी,
सुख कारिणी, दुख हारिणी,हे ! विमलके, तम तारिणी।
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हे! धवलमय,रस रागिनी,जग मोहनी,मधु भाषिणी,
हर तमसमय, घन कालिमा,हो ज्योतिमय, शुभ लालिमा।
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माँ श्वेतमय, पट धारिणी,भर सप्तसुर, मृदु रागिनी,
हर कपटता,मद वासना,हो वेदमय, हर साधना।
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हे! भारती, माँ शारदा,दे बुद्धिमत्ता, हे ज्ञानदा,
तू वेदिके, हर वेदना,भर प्रेरणा, दे चेतना।
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हे! ज्ञानदा,सुन प्रार्थना,हो सफ़लमय, शुचि कामना,
हे! वंदिते, जय जगदिके,शत वन्दना, शुभ कमलिके।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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(द्विकल+पाँच कल)X2=14 मात्रिक
यति 7,7
2 अथवा 4 चरण समतुकांत
मिल प्रदूषण, की सांझ पर,मुख सलोना, तू ढांक कर।
सुन न चुम्बन, दूँ मैं अधर,कुछ दिवस प्रिय, तू जा ठहर।
छा गया है, ये धूम्र नभ,अब न मिलन, ये हो सुलभ।
हो गए विष, से नैन नम,तू ठहर जा, कुछ मास थम।
ये श्वसन भी, प्रिय है कठिन,हो गया मुख, भी तो मलिन।
जल उधर है, उस पार चल,कर धुलाई, तू आंख मल।
जब प्रदूषण, नित है बढ़त,तन श्वेत को, रज रत करत।
रो रहे बिन, दुख ये नयन,हो न जाये, सुन रे निधन।
चल बढ़ाएं, घर को चरण,अब यहां तू, मत कर भ्रमण।
चल चलें हम, तो उस जगह,हो चमकती, सी नव सुबह।
जितेंदर पाल सिंह
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सरस छन्द
(द्विकल+पाँच कल)X2=14 मात्रिक
यति 7,7
2 अथवा 4 चरण समतुकांत
सुन प्रेयसी, मन मोहिनी,चल प्रियतमा, गज गामिनी।
मन चाहता, बन संगिनी,निश जागना, बिन कामिनी।
आ अंगना, हिय स्वामिनी,दृग सुरमयी, लट नागिनी।
स्वर कोकिला, है रागिनी,मुख सुंदरम, सम दामिनी।
जो चाहते, तुम साजना,मैं जानती, हूँ कामना।
बन नववधू, प्रिय भावना,हो आगमन, है वंदना।
शशि बंदनी, है चाँदनी,निश शोभती, मन भावनी।
प्रिय बावरी, हो नाचती,तब पैंजनी, पग बाजती।
मन प्रेममय, हो झूमता,चित्र प्रेमिका, का चूमता।
मत पालना, हिय वासना,दो आत्मा, इक मानना।
जितेंदर पाल सिंह
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सरस छ्न्द
द्विकल + पांच कल ×2 = 14 मात्रिक , 7,7 पर यति, 2 अथवा चार चरण समतुकांत ,
ओ मोहनी , यह संसार ,तुम वंदिनी , हो दातार ।
मैं राधिके , तुम मनोहर ,तुम देवकी , के धरोहर ।
.......
मृदु रागिनी , बन हंसिनी ,हम संगिनी , तन रूपिणी।
प्रभु वन्दना, कर जोड़ती,बज बाँसुरी , मधु घोलती ।
......
मन मोहती , हैं प्रेरणा ,कर जोड़ती ,कह वेदना।
मत छोड़ना, अब रघुनाथ ,धुन छेंडते , हैं हितनाथ ।
.....
गज गामिनी , मन भावनी,तू दामिनी ,सुन कामिनी।
सुन चन्द्रिके ,कर अनुराग,तू मनमीत , है प्रहलाद।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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सरस छन्द--
चरणान्त:
(द्विकल+पांच कल)X2=14 मात्रिक
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
माँ शारदा ,पग पखारूँ।हे कारिणी,मुख निहारूँ।
तू स्वामिनी,सज भारती।बन दामिनी,सुन आरती।।
सुन प्रार्थना,कह नवनीत।यह वंदना,बन नवगीत।
ओ मालिनी,कर उपकार।हे रागिनी,भर झंकार।।
ओ यामिनी,जग शालिणी।मद मोहिनी,सब तारिणी।
यह याचना,दे वरदान।बस साधना,हो दिनमान।।
मन समाई,तू कमनीय।कर भलाई ,हे पुजनीय।
जो परिवेश,वह निर्माण।दे संदेश,हो कल्याण।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
(द्विकल+पाँच कल)X2=14 मात्रिक
यति 7,7
2 अथवा 4 चरण समतुकांत
मिल प्रदूषण, की सांझ पर,मुख सलोना, तू ढांक कर।
सुन न चुम्बन, दूँ मैं अधर,कुछ दिवस प्रिय, तू जा ठहर।
छा गया है, ये धूम्र नभ,अब न मिलन, ये हो सुलभ।
हो गए विष, से नैन नम,तू ठहर जा, कुछ मास थम।
ये श्वसन भी, प्रिय है कठिन,हो गया मुख, भी तो मलिन।
जल उधर है, उस पार चल,कर धुलाई, तू आंख मल।
जब प्रदूषण, नित है बढ़त,तन श्वेत को, रज रत करत।
रो रहे बिन, दुख ये नयन,हो न जाये, सुन रे निधन।
चल बढ़ाएं, घर को चरण,अब यहां तू, मत कर भ्रमण।
चल चलें हम, तो उस जगह,हो चमकती, सी नव सुबह।
जितेंदर पाल सिंह
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सरस छन्द
(द्विकल+पाँच कल)X2=14 मात्रिक
यति 7,7
2 अथवा 4 चरण समतुकांत
सुन प्रेयसी, मन मोहिनी,चल प्रियतमा, गज गामिनी।
मन चाहता, बन संगिनी,निश जागना, बिन कामिनी।
आ अंगना, हिय स्वामिनी,दृग सुरमयी, लट नागिनी।
स्वर कोकिला, है रागिनी,मुख सुंदरम, सम दामिनी।
जो चाहते, तुम साजना,मैं जानती, हूँ कामना।
बन नववधू, प्रिय भावना,हो आगमन, है वंदना।
शशि बंदनी, है चाँदनी,निश शोभती, मन भावनी।
प्रिय बावरी, हो नाचती,तब पैंजनी, पग बाजती।
मन प्रेममय, हो झूमता,चित्र प्रेमिका, का चूमता।
मत पालना, हिय वासना,दो आत्मा, इक मानना।
जितेंदर पाल सिंह
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सरस छ्न्द
द्विकल + पांच कल ×2 = 14 मात्रिक , 7,7 पर यति, 2 अथवा चार चरण समतुकांत ,
ओ मोहनी , यह संसार ,तुम वंदिनी , हो दातार ।
मैं राधिके , तुम मनोहर ,तुम देवकी , के धरोहर ।
.......
मृदु रागिनी , बन हंसिनी ,हम संगिनी , तन रूपिणी।
प्रभु वन्दना, कर जोड़ती,बज बाँसुरी , मधु घोलती ।
......
मन मोहती , हैं प्रेरणा ,कर जोड़ती ,कह वेदना।
मत छोड़ना, अब रघुनाथ ,धुन छेंडते , हैं हितनाथ ।
.....
गज गामिनी , मन भावनी,तू दामिनी ,सुन कामिनी।
सुन चन्द्रिके ,कर अनुराग,तू मनमीत , है प्रहलाद।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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सरस छन्द--
चरणान्त:
(द्विकल+पांच कल)X2=14 मात्रिक
दो अथवा चारों चरण परस्पर समतुकांत।
माँ शारदा ,पग पखारूँ।हे कारिणी,मुख निहारूँ।
तू स्वामिनी,सज भारती।बन दामिनी,सुन आरती।।
सुन प्रार्थना,कह नवनीत।यह वंदना,बन नवगीत।
ओ मालिनी,कर उपकार।हे रागिनी,भर झंकार।।
ओ यामिनी,जग शालिणी।मद मोहिनी,सब तारिणी।
यह याचना,दे वरदान।बस साधना,हो दिनमान।।
मन समाई,तू कमनीय।कर भलाई ,हे पुजनीय।
जो परिवेश,वह निर्माण।दे संदेश,हो कल्याण।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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