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आज जिन छंदों का अध्ययन हम करेंगे, वे रौद्र वर्ण संज्ञा या जाति के छंद हैं। और इनके १४४ भेद हो सकते हैं। ये सभी ११ मात्रिक छंद हैं। ये ३ प्रकार के हैं:--
१-अहीर छंद
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मात्रा ;- ११मात्रिक छंद
विधान
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-कोई भी मापनी ले अंत जगण अनिवार्य है ।
चरणान्त: जगण(१२१)
चार चरण
दो-दो समतुकांत,
या चारों समतुकांत।
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बस ध्यान इतना रहे कि अंत मे जगण(१२१) अनिवार्य हो ।
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-अहीर छंद
अहीर छन्द11 मात्रिक
चरणान्त: जगण(121) अनिवार्य
मुख पर घटा फुहार, शीतल लगे अपार।
हर जीव मन प्रमोद, जल में करें विनोद।
बिजुरी बहुत डराय, घनघोर घड़घड़ाय।
भरते विहग उड़ान, मुस्काय हैं किसान।
धरती बुझाय प्यास, उठती रहे सुवास।
सावन बरस जिवाय, कोंपल हरी कराय।
कलकल नदी उछाल, जलमग्न गांव ताल।
मत काट वन गँवार, विनाश नहीं पुकार।
मां है प्रकृति विशाल, रख पूर्ण देखभाल।
कर शीघ्र कुछ उपाय, धरती तपत जलाय।
जितेंदर पाल सिंह
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छन्द-**अहीर**
मात्राभार-११मात्रिक छंद
चरणान्त: जगण(१२१)
राम गये वनवास ,कीना तमस उजास।
सज्जन के मन आश ,दुर्जन किया विनाश।।
सागर करत किलोल ,मोती हैं अनमोल।
तल में लीन छुपाय, जो डूबे सब पाय।।
घूमा सकल जहान ,मन में ले अभिमान।
हाथ में कुछ न आय ,बस माया भरमाय।।
चंदा देख चकोर , होता रहा विभोर।
तक-तक काटत रैन ,मन नहिं पावत चैन।।
~प्रभात
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अहीर छंद
११मात्रिक छंद,दो,दो या चार समतुकांत,अंत १२१ अनिवार्य
कर के क्रूर प्रहार। मोहे छोड़ किनार।
साधा दुष्ट शिकार। हारी मार पुकार।।
कर के वो व्यभिचार। काया झेल कुठार।
अस्मत होय मलीन। हो अस्तित्व विलीन।।
बोले लोग कलंक। है लागत उर डंक।
पल में भागत नेह । पापी लागत देह।।
आदर देत उछाल। देखो छाय बवाल।
आवे भाव भूचाल। नारी होय मलाल ।।
सुवर्णा परतानी ,हैदराबाद
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अहीर छंद
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मात्रा ;- ११मात्रिक छंद
चरणान्त: जगण(१२१)
अनिवार्य (जगण) १२१
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मनमोहन मनमीत, राधा साथ सु-मीत।
लीन्हा उर जगजीत, ऐसी पावन प्रीत।
चाहूँ प्यार अबीर। व्याकुल हृदय अधीर।
चुभती विरह सरीर, सुध लो आन सुधीर।
मनवा विकल अशांत, जीवन विरल सुखांत।
कीजे ध्यान निशांत, मन के भाव नितांत।
निकले सार उगार, पाऊँ प्रीत उबार।
पुलकित उर उदगार, महके प्रेम बयार।
सुशांत-अत्यंत शांत, उगार - निचुड़कर एकत्र हुआ पानी या
कही हुई बात ,विरल-झीना,पतला ,उबार -कष्ट या विपत्ति आदि से बचाना
नीलम शर्मा ✍️
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रौद्र (अहीर छंद)
मात्रा ;- ११मात्रिक छंद
चरणान्त: जगण(१२१) अनिवार्य
विषय : पर्यावरण
पर्यावरण शिकार , करता करुण पुकार ।।
नभ में धुआँ अपार , कह कौन कर्णधार ।।
वन काट हो विनाश , हो देख वंश - नाश ।।
मत काट सृष्टि मूल , जीवन हरे समूल ।।
गिरती नहीं फुहार , खोई सभी बहार ।
हो भानु कुद्ध लाल , गर्मी करे बेहाल ।।
कटते विटप हजार , हाथों मनुष्य आज ।।
क्रंदन करे बयार , कर जन सभी विचार ।।
इंजन चले हजार , नदियाँ भरी विकार ।।
कैसा हुआ विकास , पूछे अभय निराश ।।
अभय कुमार आनंद ,विष्णुपुर बांका बिहार व लखनऊ उत्तरप्रदेश
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अहीर छंद
11 मात्रिक
चरणान्त : जगण (121) अनिवार्य
विषय -जीवन
मन करता अभिमान , कोन सुजान महान
दोष निकाल अज्ञान , मत कर तू यह मान ।
सब करते पड़ताल , रोज यहाँ हड़ताल ,
जीवन है बस रात , बीत गई सब बात ।
सब जग को यह रोग , सब मन में यह सोग ,
क्रोध करे सब लोग , मन न करे अब योग ।
अंदर मान सुधार , लो हर एक पुकार,
सब पर हो यह आस , जग कर खूब विकास |
रजिन्दर कोर ( रेशू )
अमृतसर
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अहीर छन्द ,11 मात्रिक चरणान्त 121 आवश्यक
जीवन है अनमोल। इसमें विष मत घोल।
वृक्षों को मत काट। कानन को मत छाँट।।
धरती मात हमार। करती आर्त पुकार।
उगले सूरज आग। जल जाते सब बाग।।
पृथ्वी की मनुहार। सुन लो सब नर-नार।
सीमित हैं सब साध्य। सारा खाद्य, अखाद्य।।
करके और विकास। खोला द्वार विनाश
ढूँढ़े शुद्ध बयार। मिलती घर न बहार।।
लिपटा भोग -विलास। करके सब कुछ नाश
करनी का यह भोग । देता लख-लख रोग।।
अरि बन, मत कर वार। खुद का जन्म सुधार।
मत छीन प्रकृति श्वाँस। जागे जीवन आस।।
रागिनी गर्ग , रामपुर (यूपी )
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अहीर छ्न्द ,
इसमें 11 मात्रा ,चार चरण , दो दो चरण ,या चारो चरण समतुकान्त, 121 अनिवार्य
.....
करो सब यह प्रचार, जलाओ सब विकार ।
जला आज कुविचार , करो दूर सब खार ।
....
जले द्वेष अभिमान, करो सत्य पहचान।
अहंकार परिधान , उतारो बन महान ।
......
जहां है व्यभिचार, वहीं है दुर्विचार ।
करो मत तुम प्रहार , करे सिम्पल गुहार ।
...
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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अहीर छंद
मात्राभार-11 मात्रिक छंद
चरणान्त- 121 जगण
पुष्पित है मधुमास पल्लव हिय प्रिय आस
प्रियतम वचन सुभाष। कुसुमित हिय अभिलाष।
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आये हैं ऋतुराज हर्षित मुदित समाज
पीत धरे परिधान धरा बनी उपमान।
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करें विहग नित शोर जागे जलज विभोर
मधुमय चली समीर प्रपात उज्ज्वल नीर।
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बसते जिस हिय राम रमता है प्रभु नाम
चरणामृत नित पान दीपक ज्योति विहान।
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दर्शन की नित आस। करते विहग प्रवास।
आओ प्रियतम पास। आया है मधुमास।
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गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
मात्राभार-11 मात्रिक छंद
चरणान्त- 121 जगण
पुष्पित है मधुमास पल्लव हिय प्रिय आस
प्रियतम वचन सुभाष। कुसुमित हिय अभिलाष।
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आये हैं ऋतुराज हर्षित मुदित समाज
पीत धरे परिधान धरा बनी उपमान।
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करें विहग नित शोर जागे जलज विभोर
मधुमय चली समीर प्रपात उज्ज्वल नीर।
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बसते जिस हिय राम रमता है प्रभु नाम
चरणामृत नित पान दीपक ज्योति विहान।
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दर्शन की नित आस। करते विहग प्रवास।
आओ प्रियतम पास। आया है मधुमास।
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गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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