चण्डिका छन्द
चण्डिका छन्द
भागवत जाति या वर्ण संज्ञा के छंद का अध्ययन करेंगे।
इस जाति के छंदों के 377 भेद हो सकते हैं और ये 13 मात्रिक छन्द हैं।
वर्णन निम्नलिखित है:---
इसके चरणान्त में रगण(212) अनिवार्य है। 13 मात्रिक ।
परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत।
इसका दूसरा नाम धरणी भी है।
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चण्डिका छंद 13 मात्रिक
पदांत 212
🌹
मन तो हर्षित चाहिए, प्यार सदा अपनाइये।
ध्यान लक्ष्य पर दीजिये, पार तरणि को कीजिये।।
🌹
बाधाओ को बॉधिए, नैराश्य नही साधिये।
अमिरस ऐसा पीजिये, नेह वृक्ष को सींचिये।।
🌹
जो मिले यहाँ राह में, प्रेमी रस की चाह में।
वही प्याला पिलाइये, मदमस्त यों बनाइये।।
🌹
धैर्य पथ सही साधना, लिए प्रेम की कामना।
गहरे मिलती मोत है, सच यही ओत प्रोत है।।
🌹
शब्द शब्द है छानना, रीत नीत है मानना।
साहित्य सदा सारथी, मात शारदा आरती।।
🌹✍अरविन्द चास्टा
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चण्डिका छन्द
इसके चरणान्त में रगण(212) अनिवार्य है। 13 मात्रिक । परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत।
जब करे हानि मान की, शत्रु ललकार भारती।
शस्त्र उठा मैदान में, धर्म निज देश आन में।
चण्डिका ही कृपाण है, शस्त्र सबसे महान है।
ये रक्षक दीनहीन की, और पहचान वीर की।
धार तू रूप चण्डिका, मेट अन्याय कंटिका।
कष्टकारी समाज है, दुष्टता राजकाज है।
आपसी फूट भेद हैं, बोल सच्चे निषेध हैं।
लूट का कामकाज है, क्या यही रामराज्य है?
आत्महत्या किसान की, मौत होती जवान की।
जो रक्षक हों भक्षक यहां,न्याय ढूढ़ें बता कहाँ?
जितेंदर पाल सिंह।
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चण्डिका छंद
13 मात्रिक छंद
चरणान्त 212 (रगण) अनिवार्य।
परस्पर दो चरण या चारों चरण समतुकांत।
शैल पुत्री तू मात है , सर पे मेरे हाथ है ।
मात तू ब्रह्मचारिणी, हस्त पुष्प धारिणी ।।
हे अर्ध चंद्र धारिणी , माँ सर्व दुख निवारिणी ।
हर कष्ट सिंह वाहिनी , सूर्य लोके निवासिनी ।।
हो स्कन्द मातृ स्वरूपनी , तुम मात विद्यादायिनी ।
हो शुभ्र बस्त्र सुशोभिता , तुम ही माँ तुम ही पिता ।।
सर्व कल्याणकारिणी , हे चार भुजा धारिणी ।
महिषासुरा विनाशिनी , हे अभय वर प्रदायिनी ।।
बसा ले चरण के तले , भक्त हूँ लगा ले गले ।
माँ तू मुझको तार दे , अनुचर को बस प्यार दे ।।
शब्दार्थ
अनुचर = भक्त
अभय कुमार आनंद
बाँका बिहार व लखनऊ उत्तरप्रदेश
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चण्डिका छंद 13 मात्रिक
पदांत 212
🌹
मन तो हर्षित चाहिए, प्यार सदा अपनाइये।
ध्यान लक्ष्य पर दीजिये, पार तरणि को कीजिये।।
🌹
बाधाओ को बॉधिए, नैराश्य नही साधिये।
अमिरस ऐसा पीजिये, नेह वृक्ष को सींचिये।।
🌹
जो मिले यहाँ राह में, प्रेमी रस की चाह में।
वही प्याला पिलाइये, मदमस्त यों बनाइये।।
🌹
धैर्य पथ सही साधना, लिए प्रेम की कामना।
गहरे मिलती मोत है, सच यही ओत प्रोत है।।
🌹
शब्द शब्द है छानना, रीत नीत है मानना।
साहित्य सदा सारथी, मात शारदा आरती।।
🌹✍अरविन्द चास्टा
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चण्डिका छन्द
इसके चरणान्त में रगण(212) अनिवार्य है। 13 मात्रिक । परस्पर दो या चारों चरण समतुकांत।
जब करे हानि मान की, शत्रु ललकार भारती।
शस्त्र उठा मैदान में, धर्म निज देश आन में।
चण्डिका ही कृपाण है, शस्त्र सबसे महान है।
ये रक्षक दीनहीन की, और पहचान वीर की।
धार तू रूप चण्डिका, मेट अन्याय कंटिका।
कष्टकारी समाज है, दुष्टता राजकाज है।
आपसी फूट भेद हैं, बोल सच्चे निषेध हैं।
लूट का कामकाज है, क्या यही रामराज्य है?
आत्महत्या किसान की, मौत होती जवान की।
जो रक्षक हों भक्षक यहां,न्याय ढूढ़ें बता कहाँ?
जितेंदर पाल सिंह।
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चण्डिका छंद
13 मात्रिक छंद
चरणान्त 212 (रगण) अनिवार्य।
परस्पर दो चरण या चारों चरण समतुकांत।
शैल पुत्री तू मात है , सर पे मेरे हाथ है ।
मात तू ब्रह्मचारिणी, हस्त पुष्प धारिणी ।।
हे अर्ध चंद्र धारिणी , माँ सर्व दुख निवारिणी ।
हर कष्ट सिंह वाहिनी , सूर्य लोके निवासिनी ।।
हो स्कन्द मातृ स्वरूपनी , तुम मात विद्यादायिनी ।
हो शुभ्र बस्त्र सुशोभिता , तुम ही माँ तुम ही पिता ।।
सर्व कल्याणकारिणी , हे चार भुजा धारिणी ।
महिषासुरा विनाशिनी , हे अभय वर प्रदायिनी ।।
बसा ले चरण के तले , भक्त हूँ लगा ले गले ।
माँ तू मुझको तार दे , अनुचर को बस प्यार दे ।।
शब्दार्थ
अनुचर = भक्त
अभय कुमार आनंद
बाँका बिहार व लखनऊ उत्तरप्रदेश
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चण्डिका छ्न्द ...
13 मात्रा , अंत 212 अनिवार्य
13 मात्रा , अंत 212 अनिवार्य
.....
विद्या की तुम दायिनी, तुम हो मोक्ष प्रदायिनी।
काम क्रोध की नाशिनी, रूप चण्डिका धारिणी ।
.....
झूठ पाप से मैं डरूं, अपराध से सदा डरूं।
नित राह सत्य की चलूं , सेवा दुखियों की करूं।
.....
वन्दना करूं शारदे , संकटों से उबार दे।
भव से नैया तार दे, जीवन को नव सार दे।
......
मात भक्ति मुझमें भरो, पुलकित तन मन को करो ।
मात मुझ पर कृपा करो , ज्ञान प्रकाश हिये करो ।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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