Wednesday, October 30, 2019

कज्जल छंद - HINDI POETRY


Explained By Mr. ABHAY KUMAR ANAND JI

कज्जल छंद

साहित्य अनुरागी ने आज मुझे सौभाग्य प्रदान किया है कि मैं अभय कुमार आनंद आपलोगों के समक्ष मानव जाति का दो छंद ,अभ्यास व रचना हेतु प्रस्तुत करूँ।
इसके पहले कि मैं वो दो छंद रखूँ ,कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मात्रिक छंद के बारे में याद दिलाना चाहूँगा ताकि रचनाधर्मिता सफल व स्पष्ट हो:-

१. लौकिक छंद के मुख्यतः दो भाग हैं :-
क) मात्रिक व जाति

ख) वर्णिक व वृत्त

२. साधारणतः छंद के चार पद व चरण होते हैं।

३. जिस छंद के चारों चरण में एक समान मात्रा हो परंतु वर्ण क्रम एक सा न हो ,वही मात्रिक छंद है ।

जैसे :-
क) पुरन भरत प्रीति मैं गाई वर्ण ११, मात्रा १६
ख) मति अनुरूप अनूप सुहाई वर्ण १२, मात्रा १६
इनमें वर्णों का क्रम और संख्या एक समान नहीं पर मात्राएं १६, १६ दोनों पद में एक समान है इसलिए यह मात्रिक छंद है।

आज के विषय पर आता हूँ । मानव जाति के १४ मात्रिक छंद जो कि कुल ९ हैं जिसमें से आज से आने वाले अगले पोस्ट तक हमलोग १ छंद का अभ्यास कर रचना करेंगे जो निम्नलिखित हैं :-
१. कज्जल छंद
क) कुल मात्रा १४ ,चरणान्त २१ ( गुरु, लघु) अनिवार्य
ख) चारों चरण समतुकांत या दो-दो चरण परस्पर समतुकांत।
ग) १४ वीं मात्रा पर यति

घ) सहूलियत के लिये आप निम्न मापनी ले सकते हैं :-
२२२१ २२२१
११२२१ ११२२१
२११२१ २११२१
११११२१ ११११२१

कज्जल छंद
क) कुल मात्रा १४ ,चरणान्त २१ ( गुरु लघु) अनिवार्य
ख) चारों चरण समतुकांत या दो-दो चरण परस्पर समतुकांत।
ग) १४ वीं मात्रा पर यति

कैसे - कैसे कर्म - कांड ,
परोसते पंडित प्रकांड ।
मिले निर्वाण मृतक मान ,
पकड़ पूँछ कर गाय दान ।।

कुरीति को जड़ से निकाल ,
यह प्रथा एक महाजाल ।
रावण भाँति मुख विकराल ,
जनता का है बुरा हाल।।

लोक- लाज में भोज-भात ,
जीते जी कोई न साथ ।
है समाज की खास बात ,
चोर - चोर मिल बाँट खात ।।

असहनीय हुआ यह सोच ,
सर पर बोझिल देख बोझ ।
घातक रीति देती मार ,
कब समाज होगा उदार ?

अभय कुमार आनंद
बांका बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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कज्जल छन्द
मानव जाति या वर्ण संज्ञा का 14 मात्रिक छन्द , 

चरणान्त गुरु लघु(21) अनिवार्य। परस्पर 2 या चारों चरण समतुकांत।

सुंदर रूप कजरा डार, मतवारी चली है नार।
छम छम छम करे झंकार, पायल पग किया शृंगार।

चंचल नैन मीठे बैन, लागत जाग बीती रैन।
उड़ता जाय आँचल हाय! सुघड़ रूप सबको भाय।

कुंडल केश कांधे डाल, लट लहराय सुंदर गाल।
मुखड़ा चाँद सा चमकाय, देखो वो खड़ी मुस्काय।

स्त्री तेरे कई हैं रूप, जननी मित्र सुता बहुरूप।
बनिता रूप से परिवार, भाई को बहन का प्यार।

सृष्टि का बनी प्रतिरूप, जीवन का तुम्हीं प्रारूप।
तुझ बिन सून सब संसार, तू ममतामयी आधार।

जितेंदर पाल सिंह

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कज्जल छंद
मानव जाति का छंद
14 मात्रिक ,अंत -21

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फैल रहा आतंक राज, हारता अब विकास काज।
उजाड़ रोज नए प्रभाव, बिखेरते हैं दुष्प्रभाव।

रक्षक आज हैं सब मौन, सही दिशा दिखाए कौन।
टूटा धीर सभी का आज, बिन बजाए बजे न साज।

दीनता से नम है आंख, डर से सूखती हर शाख।
ये है दहशतों का दौर, जहर सा है मुख का कौर।

बेच रहे जो आज जान, देखिए तो उनका मान ।
राष्ट्र कब इनसे निहाल, मानव हुआ अब बेहाल।

राज्यश्री सिंह
स्वरचित मौलिक रचना

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सखी छ्न्द
14 मात्रा , चार चरण , दो दो या चारो चरण समतुकांत , अंत 222 या 122
यहां 122 लिया गया है

.......
लहराओ चलो तिरंगा ,चल लेकर ध्वज तुरंगा ।
पहले ये धर्म निभाओ,शहीद का मान बढ़ाओ ।
.....
चलो सजी लेकर थाली,दीपक जले स्नेह वाली।
तिलक सजे मस्तक रोली ,चली बहन की फिर टोली।
......
आज भाई दूज आया,मन में फिर उमंग छाया।
भाभी भी खुशी मनाए ,सखी जैसी ननद पाए ।
......
करूं स्नेह वन्दन भैया,माथ लगा चन्दन भैया।
दूज पर्व पावन प्यारा,इसे मनाए जग सारा।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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कज्जल छंद (14 मात्रिक छंद)
चरणान्त - गुरू लघु (21)


नेता हो रहे धनवान,जनता दे रही बलिदान,
दिल्ली है कि खेले खेल,सबके सब हुए अनमेल।।

निसदिन है बढ़े अतिचार,मानवता दिखे लाचार,
है चहुँओर हाहाकार,बहरी है बनी सरकार ।।

झूठे तुम गिनाकर काम,जग में हो बढ़ाते नाम,
इमली को बताकर आम,उनके हो लगाते दाम।।

भ्रष्टाचार की हर पोल,हल्ला बोलकर दो खोल,
हम तुम जब रहेंगे साथ,दे देंगे सभी को मात।।

निर्बल का न हो उपहास,सड़कों से मिटे संत्रास,
ऐसा तुम करो कुछ काज, हो सुन्दर सुशोभित राज।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
चिरैयाकोट, जनपद - मऊ(उ0प्र0)भारत
दि0 30/10/2019

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कज्जल छंद
वियष - जीवन के रंग


मन की बात कहता कौन, फिर भी देख कोई मौन ,
कोई कब यहाँ दे राज, जीवन के यहाँ ये काज ।

कब चुप है बडे़ से लोग , करते रोज माया भोग ,
कहते बात देखो गोल , देते है ज़हर मन घोल ।

अब माँ बाप से दे तोड़, जीवन कौन देता जोड़,
जिनके बाल करते नाश , चलती अब उसी की साँस ।

करते है गलत सारे कर्म , बोले बात हरदम धर्म ,
मन में अब न सेवा जाग, सारा जग यहाँ है दाग ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर


2 comments:

  1. छंद साहित्य संवर्धन हेतु किये जा रहे उत्तम सृजन हेतु समस्त साहित्य अनुरागी परिवार को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ

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