Thursday, January 30, 2020

चौपाई छंद - Hindi poetry


Explained By Smt Ragini Garg Ji ( Rampur, U.P.)
सभी साहित्य अनुरागियों को रागिनी का प्रणाम। 🙏
दोस्तो 16 मात्रिक संस्कारी जाति के छन्द पादाकुलक पर अभ्यास करने के बाद आज हम अपनी लेखनी संस्कारी जाति के ही दूसरे छंद चौपाई छंद पर चलायेंगे।
विधान:-चौपाई संस्कारी जाति का 16 मात्रिक छन्द है। चौपाई को रूप चौपाई भी कहते हैं ।इसमें चार चरण होते हैं। दो-दो या चारों चरण समतुकान्ति होते हैं।बहुत से लोग चौपाई के दो चरणों को चौपाई कहते हैं ये गलत है। एक पद को एक पाई,दो पद को दो पाई या अर्धाली, तीन पद तीन पाई और चार पद चौपाई।

चरण के अन्त में जगण (121)या तगण (221) नहीं होने चाहिए ,किन्तु अंत में दो गुरु (SS) रखने से लय अच्छी बनती है। चौपाई के चरणान्त गुरु लघु नहीं होने चाहिए (अन्त में राम, नाम, काम जैसे शब्द नहीं होने चाहिए )



 चौपाई छंद 
उदाहरण (छन्द प्रभाकर से)
सोरह क्रमन जतन चौपाई।
सुनहु तासु गति अब मन लाई।
त्रिकल परे सम कल नहिं दीजे।
दिये कहूँ तो लय अति छीजे।
सम सम सम सम समसुखदाई।
बिषम बिषम सम समहू भाई।
बिषम बिषम सम बिषम बिषम सम
बिषम दोय मिली जानिये इकसम।
आइये चौपाई के नियम को। छन्द प्रभाकर के उदाहरण से ही समझते हैं।
(1)त्रिकल पड़े समकल नहिं दीजे-त्रिकल के पीछे समकल मत रखो।त्रिकलके बाद समकल रखने से लय प्रभावित होती है।
सुनत रामा सुनत राम
त्रिकल समकल(गलत) त्रिकल त्रिकल (सही)
(2)सम सम सम सम समसुखदाई-सम सम प्रयोग अत्युत्तम होते हैं ।जैसे गुरु-पद-रज-मृदु-मं-जुल-अं-जन।

(3)बिषम बिषम सम समहू भाई।
नित्य- भजिये- तजि-मन- कुटि -लाई।
(4) बिषम बिषम सम बिषम बिषम सम
कबहुँ राम की कृपा सहा ई।
(5) बिषम दोय मिली जानिये एक सम
वंदौ राम नाम रघुवर को।
ध्यान रखने योग्य :-(1)द्विकल, चौकल, षटकल, अष्टकल ये समकल कहलाते हैं।
(2)त्रिकल, पंचकल ये बिषमकल कहलाते हैं।
उदाहरण
चौपाइयाँ
(1)राम -भजन में, सब सुख पावें।
राम नाव को, पार लगावें।।
राम- नाम की, महिमा न्यारी।
इनको जपते, सब नर -नारी।।

(2) हर कर विपदा, सुख उपजाते।
कष्टों से, श्री राम बचाते।।
राम- नाम का, मिले सहारा।
जीवन होगा, सबसे प्यारा।।

(3)जन्म- मरण का, फन्द कटेगा।
राम- नाम जब, मनुज रटेगा।।
राम रटें, हनुमन्त हठीले।
राम हटाते, कंट कटीले।।

(4) राम- नाम है, अपरम्पारा।
भज ले बन्दे, बारम्बारा।।
राम शरण में' जो भी जाता।
अपना जीवन सुखी बनाता ।।
रागिनी गर्ग रामपुर( यूपी)

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संस्कारी जाति का छंद ;-चौपाई

(१६ मात्रिक )
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विधान;-
चार चरणों का मात्रिक छंद
१६-१६ पर चरणांत अंत २ गुरु

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१)प्रेम बने व्यवहार हमारा l
प्रेम - भाव है जीवन - धारा ll
भक्ति-भाव यदि रहे ह्रदय में l
जीवन-गति रहती है लय में ll
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२)मेल रहे जग से इस मन का l
यही लक्ष्य रखिए जीवन का ll
मानव-हित यदि लक्ष्य रहा है l
समझें जीवन धन्य रहा है ll
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३)मातृभूमि को शीश नवाएँ l
नित श्रद्धा के फूल चढ़ाएँ ll
कर्मों के प्रति भक्ति तुम्हारी l
बन जाती है शक्ति हमारी ll
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४)सावन की ये ऋतु अलबेली l
मौसम करता है अठखेली ll
घिरें घटाएँ जल बरसे जब l
पल में सब का मन हरषे तब ll
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विनीता सिंह विनी
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चौपाई

१६मात्रिक प्रत्येक चरण,दो-दो चरण या चारो चरण समतुकांत,अंत गुरु।

नाम जपूँ दिन-रात तुम्हारा।
तुम ही हो प्रभु एक सहारा।।
सदा करो कल्याण हमारा।
जीवन में भर दो उजियारा।।

कृपा करो प्रभु तुमअति भारी।
सुखी रहें सारे नर-नारी।।
उर के सारे कष्ट मिटाओ।
प्रेम-भाव को सदा जगाओ।।

मानवता के बन सहभागी।
करुण भाव रखते बन त्यागी।।
सर्वधर्म के हम अनुरागी।
हम मानुष कितने बड़भागी।।

परहित धर्म सदा अपनाएं।
अमिय प्रेम सब पर बरसाएं।।
धीर धरा सम मन में रखना।
कर्म यही बस कृष्णा अपना।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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छंद - चौपाई

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

प्रीत जुड़ी है साजन जबसे।
चितवन चैना को है तरसे।।
पीर हिया मैंने क्यों पाली ।
हाय भूल कैसी कर डाली।।

निशिवासर हृद धाम उन्ही का।
अधरों पर बस नाम उन्ही का ।।
उनके बिन जियरा अकुलाए ।
सूरत देख वदन खिल जाए।।

नित्य नवल श्रृंगार सजाकर ।
तन में बालम नेह बसाकर ।।
मुग्ध बनी ऐसे हरषाती ।
आप रूप पर ही इठलाती।।

तृषा मिलन की प्रतिपल रहती।
सखियों बीच बात यह कहती ।।
जग से बन अंजान गई मैं ।
बेकल ऐसी आज हुई मैं।।

नैना नित नव सपन सुहाये ।
चंचल मनवा उन्हें सजाये ।
सुंदर इक संसार बसेगा ।
प्यार यही आधार बनेगा ।

ललिता गहलोत
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चौपाई छन्द-16 मात्रिक,

संस्कारी जाति,
चरणान्त- जगण(121)तगण(221) निषेध।
अंत दो गुरु 22 रख सकते हैं,
विषय- जानकी विवाह,

धनुष भंग गूँजा जयकारा,
जनक नमन धरि बारम्बारा,
सकल प्रजा ने धूम मचाई,
नाचत झूमत लोग लुगाई।
*********************
सुंदरता सिय बरनि न जाई,
लखति सुनयना मन मुस्काई,
गिरे गगन से सुमन अपारा,
हर्षित जनक बही सुख धारा,
*********************
मुदित लिये सीता वरमाला,
भरी सभा गल रामहि डाला,
बजी दुंदभी सजी अटारी,
आये राम लखन सुख कारी।
*********************
जनक बाँटते माणिक मोती,
जले दीप बिखरी चहुँ ज्योति,
कंचन देह जानकी चमके,
करि श्रृंगार दामिनी दमके,।
*********************
मंगल गीत सुनावै सखियाँ,
सजल जानकी बरसी अखियाँ,
करती तिलक भाल रघुवीरा,
सजे थाल में कंचन हीरा।

रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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चौपाई छ्न्द

यह 16 मात्रिक , संस्कारी जाति का छ्न्द है,
चरणान्त जगण (121 ) तगण (221) निषेध,
विषम के साथ विषम , सम के साथ सम अनिवार्य
अंत दो गुरु 22 रख सकते हैं ,
.........
विषय वन गमन

चले नाथ वन नावहिँ माथा,
लखन सिया रघुवर के साथा ।
दशरथ मूर्छित गिरे धरा पर ,
कहाँ चले मेरे हिय प्रियवर ।
........
शोक अयोध्या में है व्यापा ,
लाज वचन रख चले विधाता ।
माता कैकइ है मुँह फेरे ,
कौशलपुर में संकट घेरे ।
.......
जटा शीश पहने पीताम्बर ,
लखन सिया संगे करुणाकर ।
प्रयाग संगम के तट आए ,
वेणी माधव दर्शन पाए ।
......
तीनों लोकों के हैं वासी,
बने आज हैं ये सन्यासी ।
रूप राम का अच्युत धारे ,
त्रेतायुग में थे अवतारे ।
.......

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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चौपाई(१६ मात्रिक छन्द)

221 121 अंत में निषिद्ध है ।

नाम की महिमा

तज कर दम्भ नम्रता धारो।
करहि राम नाम निस्तारो।।
बिन हरि नाम मुक्ति नहि पावै।
जन्मे बार - बार मर जावे।।

हरि हरि जाप पाप जल जावे।
हियरा शुद्ध राम को भावे।।
गुरुबिन ज्ञान ध्यान नहि आवे।
गुरु के संग नाम सुधि पावे।।

अवगुण त्याग नाम उर धारे।
पांचों दुष्ट नाम संहारे।।
प्रातः नाम जाप सुख पावे।
मन संताप पाप मिट जावे।।

हरि के नाम ध्यान नित धारा।
आत्मा ज्ञान ज्योति उजियारा।।
पूरी होय चित्त की इच्छा।
करता राम नाम सब अच्छा।।

त्यागो मन विकार सब त्यागो।
मानुष जन्म लाभ लो जागो।।
बारम्बार ध्यान धर हरि का।
होवे लक्ष्य मुक्ति जीवन का।।

जितेंदर पाल सिंह
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चौपाई छंद

१६ मात्रिक
दो-दो चरण समतुकांत अंत गुरु

मुख माखन मोहन मुस्काया।
नाच-नाच मक्खन को खाया।।
मैया मन ही मन मुस्काई।
अच्युत अपने अंक लगाई।।

दृग चंदा के चार हुए थे।
जस तीरों के वार हुए थे।।
चन्द्रप्रभा तब थी शरमाई ।
मानो दुल्हन नव थी आई।।

3

उसकी कोकिल कंठ सुरीली।
आंखें सागर जैसी नीली।।
वदन मुलायम कंज सरीखे।
सहज सलोनी सुंदर दीखे।।

अभय कुमार आनंद
लखनऊ उत्तरप्रदेश
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 चौपाई छन्द आधारित

विधा- 16 मात्रिक,
चरणान्त: 2/11(वाचिक भार)

रचना

गुण तेरे असीम रघुनंदन।
पुरषोत्तम चरित्र दुखभंजन।।
मन यह राम नाम यश गावे।
महिमा गीत काव्य बन जावे।।

तुम थे मात-पितृ अनुकारी।
बलशाली कुशल धनुरधारी।।
त्यागी श्रेष्ठ श्रेष्ठ तुम भ्राता।
छोड़ा राज सुन वचन माता।।

तज कर राज पाट सुख वासी।
धारा वेश राम वनवासी।।
जूठे बेर प्रेमवश खाये।
शबरी भाव देख मुस्काये।।

जन सब एकरूप तुम जाना।
किंचित भेद नाहि तुम माना।।
भक्तों के कृपालु रखवाले।
रावण दुष्ट मार तुम डाले।।

शरणागत कृपा असुर नाशक।
राजन रामराज्य प्रतिपालक।।
लीला रच सुमार्ग दिखलाये।
हम सम मूढ़ ज्ञान पद गाये।।

जितेंदर पाल सिंह
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चौपाई छंद

मात्राभार-16

बसन्त

नूतन नवल वेश धारण कर
पात पुष्प पल्लव विस्मय भर
करते सभी प्रथम अभिनन्दन
हर्षित है मानस प्रसून वन।

शिशिर गया गृह तिमिर भागता
रवि किरणों के संग जागता।
धरा पहन कर चूनर धानी
कोकिल गीत मधुर शुचि बानी।

चले बसन्ती मलय पवन है
पंछी हुलसे मुक्त गगन है।
पुष्पों में नव कौतुक छाया
प्रकृति रंग जनमानस भाया।

दहक उठा टेसू पलास है
तन्द्रा टूटी नवल आस है।
सरसों ने पहना पीताम्बर
धवल अमल नीला है अम्बर।

वृक्षों ने धारे नव कोंपल
फूलों पर गुंजन कर अलि दल।
बौरों से सजती शाखाएँ
भरते हैं मन में आशाएँ।

गीता गुप्ता 'मन'
---------------------------------
चौपाई छंद
🍂
बिलख रहे सब चौपाये हैं।
भटके जग में घर खोये हैं।
वन कानन दिन दिन घटते हैं।
जीव सकल सब अब मरते हैं।
🍂
मानव तेरा ये विकास हैं।
छोड़ रहे सब जीव आस हैं।
कंकड़ पत्थर के ही सपने ।
खोये मीत सहज जो अपने।
🍂
दोष किसे दूँ हूँ सहभागी।
मन में राखी प्रीत अभागी।
कहाँ कर्म कर इनको पाला।
मुश्किल में जीवों को डाला।
🍂🍂🍂🍂🍂🍂
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़ राज.
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चौपाई (16 मात्रिक छंद )

22. 21. 21. 222

आओ नाम जाप को धारे
तीनों लोक आज संवारे
आत्मा को यहाँ सदा जोड़ो
नाता पांच दुष्ट से तोड़ो ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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चौपाई छंद
संस्कारी जाती का छंद,१६ मात्रिक छंद,
अंत में दो गुरु अनिवार्य ।


आज चली शिव जी की टोली।
भूत प्रेत खेले है होली।
राग रंग भरती ये मस्ती।
संग चले शंकर की हस्ती।।

नाग सर्प रहते है संगा।
जटा सजे पावन सी गंगा।
कंठ बना है विष का प्याला।
रक्त मुण्ड की रंजित माला।।

त्रिशूल,डमरू शिव के न्यारे।
गौरी,नंदी लागे प्यारे।
सत्यम,सुंदर सब के दाता।
प्रेम सुधा मय है जग धाता ।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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Saturday, January 25, 2020

सेदोका कविता - As Hindi Poetry


🍁अनुरागी नमन🍁
जापानी कविता शैली के क्रम में आइये आज हम एक अन्य विधा को जानते है।
सेदोका जापानी शैली की कविता है जिसमे 6 चरण होते है ।

जिसकी वर्ण संख्या निर्धारित है।
5+7+7+5+7+7=38 वर्ण
यथा 6 चरण क्रमशः
पाँच, सात ,सात ,पाँच, सात, सात वर्ण युक्त होने चाहिये।
हालाँकि की इस तरह की कविता के मुख्य विषय प्रकति पर आधारित रहे है ।
चूँकि हमारा रास्ट्रीय पर्व 26 जनवरी निकट है तो इस विषय पर सृजन की अपेक्षा है।
दिनाँक 26 /01/2020 तक समय सीमा है ।
आपसे 2 सेदोका सृजन की अपेक्षा है ।
सभी उपयुक्त रचना साहित्य अनुरागी ब्लॉग में प्रकाशित की जायगी । सभी का स्वागत🌹🙏
🍂सेदोका कविता शैली🍂
गणतन्त्र है
भारतवर्ष ऐसा
सर्वधर्म समान
गौरवान्वित
महसूस करता
किसान व जवान।
*
चरणधूलि
चन्दन समान है
आओ भाल लगा लें
भारत माँ के
सपूत रखवाले
आओ शीश नवा लें।
🙏
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़ राज.
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अनुरागी 🙏नमन
बुधवार 22/01/2020
विद्य्या -सेदोका (577 577)शीर्षक-वतन से इश्क़ 🇮🇳
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©®स्वरचित…🖊️

कभी ठंड में
ठिठुर के देखना
कभी तुम धूप में
जल देखना
हिफाज़त मुल्क की
सरहद देखना

कभी दिल को
पत्थर में देखना
जज्बात सब मारें
आते है याद
दुःख भी है सहना
वतन की सोचना

मज़ा है आता
मरने में भी यारों
है वतन से इश्क़
यही दिखाना
हो वतन से इश्क
सच कर दिखाना

🖊️विनोद शर्मा🇮🇳विश🌿

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(सेदोका ) जापानी कविता
5,7,7 5,7,7 वर्ण 38
चरण 6

1
जय हिन्द का
जहां नारा लगता
बहती सदा गंगा
ऊंचे शिखर
हिन्दुस्तान का नित
लहराये तिरंगा

2
निष्ठा से यहां
करें वतन सेवा
धरती के हैं लाल
शहीद होते
राष्ट्र के धरोहर
भारत के हैं ढाल

3
सर कटाते
पर झुकाते नहीं
सींचते रक्त से हैं
भगतसिंह
आजाद जैसे यहां
महान भक्त ये हैं
......

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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.......सेदोका........
५ ७ ७ ५ ७ ७

....राखी का बंधन.....
(१)
मनभावन
रेशम की है डोर
नाज़ुक सा बंधन
है अभिमान
प्रेम को है दर्शाता
बढ़ाता वो अगन।

(२)
बिना बँधे ही
करता मेरी रक्षा
देता प्रेम अपार
होता जो भाई
मिलता स्नेह,प्यार
करता जाँ निसार।

......खेल खिलौना.......

(१)
रंगबिरंगी
खिलौने से खेलता
ना कभी मुरझाए
देखते नैन
मासूम बचपन
मन बड़ा हर्षाए।

(२)
हर खिलौना
जितनी भरी चाबी
तब तक चलता
वो है सिखाता
जनम मरण का
राज़ है वो बताता।

........सुवर्णा परतानी........
............हैदराबाद..........
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 सेदोका जापानी कविता
5,7,75,7,7 कुल 38 वर्ण

जनतांत्रिक
पंथनिरपेक्षता
देश की पहचान
बहुलताएं
सभ्यता-संस्कृति की
हिन्दुस्तान महान।

गंगो-जमन
स्रवित हृदय में
सुखद उनवान
समरसता
पुष्पित-पल्लवित
अद्वितीय विधान।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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 कलम की यात्रा। विषय..मेहनत मजदूरी
सदोका विधा..5/7/7/5/7/7--38 वर्ण
ये मजदूर
बेचारे दिन भर
दिहाड़ी मे खपते
मौसम मार
मुठ्ठी भर वेतन
गुजारा मुश्किल
(2)
हैं अनपढ
झुग्गियों मे रहते
सस्ता नशा करते
साधनहीन
जरूरतो से दुखी
भविष्य अंधकार

स्वरचित
रीतू गुलाटी..ऋतु
---------------------------------------------------------

वर्ण संख्या-
5+7+7+5+7+7=38
कुल 6 चरण
विषय:- 26 जनवरी

राष्ट्र त्योहार,
छब्बीस जनवरी,
उल्लास है अपार,
ये अभिमान,
देश का संविधान,
भारत है महान।
****************
ध्वज तिरंगा,
फहरा राजपथ,
गगन सतरंगा,
जय जवान,
शक्ति का प्रदर्शन,
झाँकियाँ अनुपम ।
************
नव सृजन,
नव कीर्ति पताका,
नवल अस्त्र शस्त्र,
नव सँकल्प,
नवल हर्षोल्लास,
कला संस्कृति पूर्ण।
******************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
----------------------------------------------------------

 (सेदोका)
बहा शोणित
स्वतन्त्रता के लिए
फाँसी झूलीं गर्दनें
शीश भी कटे
हम आजाद हुये
उपकार वीरों का।

नमन करो
उन वीरों को तुम,
बलिदान हुये जो
मातृभूमि पे
रंगे देशभक्ति में
खेले रक्त से होली।

रागिनी गर्ग रामपुर( यूपी)
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साहित्य अनुरागी
सुभाषचन्द्र बोस जयन्ती
विधा कविता( नयी विधा सदोका)
मापनी..5/7/7/5/7/7-38 वर्ण
(1)
सुभाष चन्द्र
जय हिन्द का नारा
आजादी का दीवाना
जयन्ती आज
तेईस जनवरी
मनाये धूमधाम
(2)
आजादी दूंगा
तुम मुझे खून दो
गुलामी हटा दूंगा
बोला सुभाष
आजाद कंरू देश
दम लूंगा कहे वो
(3)
जन्मे उड़ीसा
नेता जी उपाधि है
लड़े आजादी वास्ते
हिन्दुतान में
चटा दी धूल उन्हे
अंग्रेज जो थे अड़े
(4)
आजाद सेना
बना संस्थापक
अंग्रेजों से निपटा
आजाद नाम
प्रभावती जानकी
प्रिय औलाद रहे।

स्वरचित
रीतू गुलाटी..ऋतु
हिसार हरियाणा
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सेदोका ( जापानी कविता)
5 7 7 5 7 7 , वर्ण 38 , चरण 6

1
मत भूलना
प्रेम करने वालों
पुलवामा को
मर मिटे जो
वतन की खातिर
प्रेम राष्ट्र से कर

2
नमन करो
देशवासियों उन्हें
गुलाब चढ़ाकर
जै हिन्द बोलो
देखिए वो चौदह
फरवरी आ रही
.........
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
---------------------------------------------------------

सेदोका -1
विषय - वेणु /बंसी / मुरली / बाँसुरी/ नरकट

बजा रहे है
बाँसुरी मधुर सी
मन लुभा रहे है
कृष्ण मुरारी
छेड़े गोपियाँ सारी
दिल सब है हारी ।

सेदोका -2
विषय-हरसिंगार/शेफाली/प्राजक्ता

हरसिंगार
गुणों भरा खजाना
खुशबू इसकी है
अति सुहानी
जीवन देता यह
पीड़ा सब हरता ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
-----------------------------------------------------------

वर्ण संख्या-
5+7+7+5+7+7=38
कुल 6 चरण
विषय:- 26 जनवरी

राष्ट्र त्योहार,
छब्बीस जनवरी,
उल्लास है अपार,
ये अभिमान,
देश का संविधान
भारत है महान।

****************
ध्वज तिरंगा,
फहरा राजपथ,
गगन सतरंगा,
जय जवान,
शक्ति का प्रदर्शन,
झाँकियाँ अनुपम ।
************
नव सृजन,
नव कीर्ति पताका,
नवल अस्त्र शस्त्र,
नव सँकल्प,
नवल हर्षोल्लास,
कला संस्कृति पूर्ण।
******************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
-----------------------------------------------------------

सादर नमन मंच
21/01/2020
सेदोका(सूरज)

सूरज ज्ञान
समय का पाबंद
सीख अनुसासन
जग समक्ष
श्रेष्ठ अनुपालक
कर्म सर्व महान।

आँखें
1
दो बुढ़ी आँखें
कमरे से झाँकती
थोड़ा स्नेह माँगती
डरी सहमी
भीड़ में भी अकेली
काश!कोई सहेली।
2
कजली आँखें
रात हुई बावरी
बनी है विरहिणी
प्रीतम प्यारे
सरहद के द्वारे
कर्तव्य वो निभाते।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।
-----------------------------------------------------------

 साहित्य अनुरागी
सुभाषचन्द्र बोस जयन्ती
विधा कविता( नयी विधा सदोका)
मापनी..5/7/7/5/7/7-38 वर्ण
(1)
सुभाष चन्द्र
जय हिन्द का नारा
आजादी का दीवाना
जयन्ती आज
तेईस जनवरी
मनाये धूमधाम
(2)
आजादी दूंगा
तुम मुझे खून दो
गुलामी हटा दूंगा
बोला सुभाष
आजाद कंरू देश
दम लूंगा कहे वो
(3)
जन्मे उड़ीसा
नेता जी उपाधि है
लड़े आजादी वास्ते
हिन्दुतान में
चटा दी धूल उन्हे
अंग्रेज जो थे अड़े
(4)
आजाद सेना
बना संस्थापक
अंग्रेजों से निपटा
आजाद नाम
प्रभावती जानकी
प्रिय औलाद रहे।

स्वरचित
रीतू गुलाटी..ऋतु
हिसार हरियाणा
-----------------------------------------

साहित्य अनुरागी
विषय..साजन की प्रीत
विधा..सदोका
(1)
मधुर यादें
मन के कोने बसी
यादो के दर्पण में
साजन प्रीत
तू प्रीत गीत सुना
सांझ ढलें तू ख्याब
(2)
मेरे साजन
अँगना मे तू आना
संग मुझको गाना
मधुर गीत
मन धागा पिरोया
तुझे संग भिगोया।

स्वरचित
रीतू गुलाटी
---------------------------------------------------------
--सेदोका ( जापानी कविता)

5 7 7 5 7 7 , वर्ण 38 , चरण 6

1
मत भूलना
प्रेम करने वालों
पुलवामा को
मर मिटे जो
वतन की खातिर
प्रेम राष्ट्र से कर

2
नमन करो
देशवासियों उन्हें
गुलाब चढ़ाकर
जै हिन्द बोलो
देखिए वो चौदह
फरवरी आ रही
.........
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

-------------------------------------------------------------

सेदोका (जापानी काव्य शैली)
5,7,7 5,7,7
38 वर्ण,6 पंक्तियाँ

भारत प्यारा,
एक देश हमारा,
हिन्दू मुस्लिम और
सिख ईसाई,
आपस में सबका,
रहता भाईचारा।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
गणतंत्र है,
यहाँ प्रजातंत्र है,
लहू को बहाकर,
बलिदानों से,
देशभक्तों ने सींचा,
भारत स्वतंत्र है।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
सोलह माघ,
दिन आया सुभाग,
गणतंत्र दिवस,
का है उल्लास,
युवाओं से समृद्ध,
भारत के सौभाग्य।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ऊंचा लहराए,
तिरंगा मन भाए,
विकास पथ पर,
अग्रसर है,
तकनीक देश को,
आत्मनिर्भर बनाए।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
विशाल सेना,
चौड़ा करती सीना,
हो शत्रु भयभीत,
प्रेम का देश,
नहीं रखते द्वेष,
मिलजुल के जीना।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

जितेंदर पाल सिंह