Thursday, November 28, 2019

पद्य छंद - Hindi Poetry

Explained By Smt. Geeta Gupta " Mann" , Unnav (U.P.)

*पद्य छंद*
विघ्नहर्ता गजानन की चरण वन्दना करते हुए माँ वागेश्वरी का आह्वान करती हूँ।आप अपने आशीष से लेखनी को कृतार्थ करें।
साहित्य अनुरागी समूह के सभी रचनाकारों को मैं गीता गुप्ता "मन" हृदय तल से नमस्कार करती हूँ। समूह का कोटिशः आभार कि मुझ अदना को छंदज्ञान की शृंखला में नवीन कड़ी जोड़ने का सौभाग्य प्रदान किया।
मात्रिक छंदों के पश्चात हम वर्णिक छंदों का अध्ययन एवं अभ्यास कर रहे हैं।इसी कड़ी में आज हम पद्य छंद के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे।



*पद्य छंद*
अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत्त
वर्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
लक्षण- निसि लगत पद्य हूँ ।
क्रमशः नगण सगण लघु गुरु।।
यथा
111 112 12
नियत मापनी
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत ले सकते हैं।

उदाहरण-
   निसि लगन नैन री। दिन कछु न चैन री।
कब पहुँचि सद्यरी। लखहुँ पड़ पद्यरी।।
(छंद प्रभाकर)

 नमन वरदायिनी। नमन सुखदायिनी।
धवल पटधारिणी। सकल शुभकारिणी।।

वरक कर में सजे। मधुर ध्वनियाँ बजे।
विमल मति दान दो। सकल जग में दो।।

वदन शुभ कान्ति हो। विकल मन शान्ति हो।
चरण रसपान दो। सुमति शुचि ज्ञान दो।।

सुमधुर सुभारती। मुदित कर आरती।

सुरभि सुर मंगला। भुवन नवरंग ला।

(गीता गुप्ता "मन")
उन्नाव,उत्तरप्रदेश
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🌹पद्य छंद🌹
अष्ठाक्षर वृत्त
क्रमशः नगण सगण लघु गुरु
सम चरण तुकांत
🌹
मिलन अब हो रहा। सफल अब हो रहा।।
कुछ दिनन बात है। शगुन अब हो रहा।।
🌹
सपन सजने लगे। मधुर लगने लगे।।
सरगम कहीँ बजे। नयन झुकने लगे।।
🌹
हर पल यहाँ वहाँ। कलरव जहाँ तहाँ।।
बरबस यही सहूँ। प्रियतम मिले कहाँ।।
🌹🙏
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़

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पद्द छंद ८ वर्ण प्रतिचरन,अंत लघु गुरु
१११ ११२ १२


नयन भरलो पिया। जतन उर से किया।
धड़क उठता हिया। अगन बढ़ती जिया।।

विकट क्षण है यही। क्षणिक मद ये नहीं।
घुमड़ कर मैं बही। सजन मन की कही।।

लगन हिय से जड़ी। पवन बन के उड़ी।
ग़ज़ल बन के खड़ी। सृजन कर दो घड़ी।।

सपन नयना पले। चमन धरती जले।
कमल बन के खिले। शपथ जब तू मिले।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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 पद्य छंद
अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत
वार्णिक छंद

8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु
नियत मापनी :-111 112 12

विषय:- वर्षा
सघन बरसे घटा, गगन निखरी छटा,
सरस धरणी खिली,जलधि सलिला मिली।
**********************
हिरन अटवी चले,कमल सरसी खिले,
पुलक थिरके शिखी,मधुर मुरली सखी।
**********************
तड़ित दमके विभा,गगन चमके प्रभा,
जलद बरसे सुधा,प्रणय मन की विधा।
**********************
पनघट चलो सखी, रजत मटकी रखी,
नयन तरसे पिया, मुदित हरषे हिया।
***********************
सजन विनती करूँ, नयन कलशे धरूँ,
सुखद कर दो निशा, बदल मन की दशा।
***********************
सुरभि चपला कहे,मदन वनिता गहे,
विनय करते प्रिये, मिलन जलते दिये।।
*********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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पद्य छंद

अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत
वार्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु
नियत मापनी :-111 112 12

हिरण मनवा हुआ,हुलस धड़का जिया।
सुमन बगिया खिली,सजन अँखियाँ मिली।।

नवल सपने सजे,विरह विरहा तजे।
हरष हरसे घटा,नवल सजती छटा।।

मदन मितवा हुआ,पदम नयना पिया।
अधर छलके सुधा,प्रणय हियरा जगा।।

जतन फलता सदा,करम उजली प्रभा।
यतन नीलम किया,गगन अपना लिया।।
नीलम शर्मा 

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पद्य छंद

अष्ठाक्षर वृत्त
नगण सगण लघु गुरु
111 112 1 2

अगन मन में जगी।प्रणय रस में पगी।।
प्रियम अब पास हैं।सुखद पल खास हैं।।

अमिय रस दे रहे।नयन अब खो रहे।।
सकल सब कामना।सफल अब साधना।।

नयन भर रो रहे।हृदय अब क्या कहे।।
विरह मन जल रहा।शयन अब खल रहा।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा, कुशीनगर

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पद्य छन्द देखिये 11111212 वर्ण..8
सुमन अब सीचते , हिय मगन खीचते
विरह मन है जले ,सपन अब है पले

लगन मन मे लगी ,सजन मिलने चली
प्रियतम अभी कहे, मिलन न तभी रहे

नयन तकते रहे, जगन जगते रहे
सुमन खिलना नदी, हदय मचला सखी
स्वरचित
ऋतु गुलाटी
हिसार हरियाणा

_____________________
 पद्य छंद
अष्ठाक्षर वृत्त
क्रमश: नगण सगण लघु गुरू

सम चरण तुकांत
111 112 12

पवन अब है चले , सुमन अब है खिले ,
सपन सब यूँ सजे , जगत सब ले मजे ।

चमन महके सदा , नयन चहके कदा,
विरह न रहे कहीं, मिलन अब हो यहीं ।

सुखद पल हो सभी , दुख क्षण न हो कभी,
खुश मन सभी रहे , नयन न कभी बहे ।

पतझड़ न हो पिया, दुख न अब हो जिया
घर घर रहे खुशी मन मन रहे सुखी ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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पद्य छंद
अष्टाक्षर वृत
१११ ११२ १२

नगण सगण लघु गुरु

*****************
सदृश सब फूल है।
चुभन हृद शूल है ।।
सहन करता चले।
निस दिन जिया जले।।

अधर खुलते नही ।
दमन कहते नही।।
व्यथित रहते सदा।
अगन सहते सदा।।

बहक इक चाह में।
भटक सद राह से।।
कठिन भव जीव की।
गहन तम से ढकी ।।

विगत सुधि पास हो ।
सुदृढ लय श्वास हो।।
प्रबल अरदास हो
तन मन विश्वास हो।।

प्रबल मन ज्ञान हो।
सफल तब जान लो।
सरस भर कामना।
जगत सब तारना।।

ललिता गहलोत

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पद्य छ्न्द , (वर्णिक )
8 वर्ण , अंत 12
111 112 12

चलत मन मोहना, किलकत प्रमोदना ।
ठुमकत चले कहां, पुलकित सभी यहां।
......
शुभ नयन राधिका, खिलत मन वाटिका ।
सब मिल जपा करे, गिरधर हरे हरे ।
.....
कुशल तन शोभना, बनत जग जोगना ।
जगत हरि डोलना, मधुर सब बोलना
......
सुमन खिलते वहां, चरण रखते जहां ।
हम मगन हो गए, दरस प्रभु हो गए ।
....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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अष्टाक्षर पद्य छंद
गण=नगण- सगण - लघु गुरु
मात्रा=111 112 12

**********************
पकड़ निज हाथ में । चलत पिय साथ मे ।
नयन खिलते रहे। सहज मिलते रहे।।

व्यथित सब पास है । जगत हिय सांस है ।
कहत मन रार है । दिखत अब सार है।।

सजल मन बावरे। तड़प नित सांवरे।
मगन चलते चलो। सजन मुझसे मिलो।।

कुशल तन साध लो। सजन मन बांध लो ।
मधुर लहरी बने। सरस् प्रहरी बने।।

जगत मिथकों भरा। सहन करती धरा।
जनक दुलरा रहा। तनय इठला रहा।।

विनीता सिंह विनी

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साहित्य अनुरागी
पद्य छंद
१११ ११२ १२


प्रबल मन कामना,कठिन हर चाहना।
सहज मिलता नहीं, कुसुम ‌ खिलता नहीं।

चलन इस राह का,जतन बस दाह का ।
करम करता नहीं, शरम ‌करता नहीं।

मनुज मन जोड़ता , सहज दिल तोड़ता।
कथन कुछ बोलता, वचन कब तोलता।

कृतिम हर चाह है, पतन दिन -रात है।
भ्रमण सम राह है, गमन उस धाम है।
राज्यश्री सिंह
गुड़गांव

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 पद्य छन्द
8 वर्ण,
प्रत्येक चरण:

नगण(१११) सगण(११२) लघु गुरु(१२)

तरसत रहे जिया, समझत नहीं पिया।
दरसन लगी तिषा, अखियन जगी निशा।

विरह मन पीड़ है, नयन भर नीर है।
मिलन हिय आस है, प्रियतम उदास है।

दर पर निहारती, हर पल पुकारती।
जतन सब हारती, दुख मन सहारती।

अब मत सता मुझे, विनय करती तुझे।
नित तक थकी गली, विरह मुझको मिली।

लगन तुमसे लगी, प्रिय मत करो ठगी।
अब जब मिलाप हो, तब मत विलाप हो।

जितेंदर पाल सिंह

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पद्य छंद
८ वर्ण
प्रत्येक चरण-

नगण(१११)सगण(११२)लघु गुरु(१२)

भ्रमर मुख चूमते, मगन मद झूमते।
कुमुद अलसा रहे, अलक सुलझा रहे।

सघन बदरा घिरे, सजन जियरा डरे।
न तुम बिन चैन रे, बहत अब नैन रे।

पवन पुरवा चली, अगन तन में लगी।
निरख सखि कौमुदी, विहस रही केतकी।

मिलन मन आस है, क्षणिक भर साँस है।
प्रलय घन यामिनी, दहक नभ चाँदनी।।
ममता गुप्ता

Monday, November 25, 2019

चित्रपदा छंद- Hindi poetry


Explained By - Mr. Krishna Shrivastav ji
Hata , Kushi-Nager (U.P.)
चित्रपदा छंद
सर्वप्रथम श्री गणेश जी के चरणों में प्रणाम करता हूँ ततपश्चात माँ शारदे के चरणों मे नमन करता हूँ।
साहित्य अनुरागी समूह द्वारा चलाये जा रहे छंद की कार्यशाला के सफलतम क्रम को आगे बढ़ाते हुए मैं कृष्णा श्रीवास्तव आप सभी उद्भट विद्वजन के समक्ष चित्रपदा छंद का विधान उदाहरण के साथ अभ्यास हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ। साहित्य के क्षेत्र में कोई परिपूर्ण नहीं होता और मैं तो सहित्य का एक साधारण सा विद्यार्थी हूँ अतः कुछ त्रुटियां सम्भाव्य हैं, जिसके लिए मैं अग्रिम रूप से ही क्षमा प्रार्थी हूँ।

चित्रपदा छंद का विधान उदाहरण सहित आप सभी के अवलोकनार्थ सादर समर्पित है।

चित्रपदा छंद
जाती - अनुस्ठुप (8 वर्ण हर चरण में)

लक्षण - चित्रपदा भ भ गा गा ।
अर्थात
हर चरण में क्रम से
भगण भगण गुरु गुरु वर्ण हो।
यथा
211 211 22
नियत मापनी।
चार चरण
दो दो अथवा चारो चरण अथवा सम चरण तुकांत लिए जा सकते है।

उदाहरण-1
211 211 22
सीय जहीं पहिरायी।
रामहि माल सुहायी।
दुदुभि देव् बजाये।
फूल तहीं बरसाये।
केशवदास (रामचन्द्रिका से)

उदाहरण-2
211 211 22
रामहि नाम पियारा।
जीवन एक सहारा।
हे!प्रभु दीनदयाला।
मो पर होहुँ कृपाला।

कृष्णा श्रीवास्तव
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 चित्रपदा छंद
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
मापनी

211 211 22
भगण भगण गुरु गुरु
दो -दो चरण समतुकांत

हार, हरा कर आना ,जीत जरा भर लाना।
भारत ध्वज निहारो ,जा अरि मुण्ड उतारो ।।

मात कहे सुत मेरे ,रक्त बहे रग तेरे ।
तो बढ़ जा रिपु मार ,सिंह समान दहाड़ ।।

बाज उठी रणभेरी ,जा लड़ ले बिन देरी ।
गौरव गान सुनाना ,भारत मान बढ़ाना ।।

दुश्मन से टकराते ,युद्ध कला सिखलाते ।
हिम्मत जो दिखलाते ,वीर वही कहलाते ।।

अभय आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ , उत्तरप्रदेश
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 चित्रपदा छंद
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
मापनी

211 211 22
भगण भगण गुरु गुरु
दो -दो चरण समतुकांत

मात-पिता जग सारे,भूल गये सुत प्यारे।
जा परदेश विराजे,बैठ वहाँ बिन काजे।

माँ ममता अनुरागी,पिता बने सहभागी।
दर्द दवा महतारी,माँ जग में उपकारी।

बालक रोग शरीरा,माँ उर होत अधीरा।
देव बसे गृह मेरे,कष्ट मिटे शिशु तेरे।

माँ बिन बालक रीता,माँ जग में गृह भीता।
सृष्टि बसी जग सारी,पूजन माँ अधिकारी।

रंजना सिंह "अंगवाणी बीहट "
बेगूसराय, बिहार
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चित्रपदा छंद
प्रत्येक चपण 8 वर्ण
मापनी

२११ २११ २२
भगण भगण गुरु गुरु
दो दो चरण समतुकांत

बात जरा तुम मानो,काम यहाँ सब आना,
जीवन राह सुधारों ,मान न सादर मारो ।

साथ यहाँ तुम देना,प्यार यहाँ सब लेना,
चार दिनों यह मेला,हार यहाँ सब झेला ।

झूठ सदा तुम छोड़ो,मानव से मन जोड़ो ,
है जिनके मन छोटे,अंदर से वह खोटे ।

जो अब मान बढ़ातेमैं तब ही रखु नाते,
जीवन में सहभागी ,साजन वो अनुरागी ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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चित्रपदा छंद
4 चरण
प्रत्येक चरण 8 वर्ण


21121122
भगण भगण गुरु गुरु

**************

जो भय से भय खाता ,जीत नहीं वह पाता
शौर्य प्रकाश बिखेरे ,काँप उठे रिपु डेरे।
************
हर्षित है जग सारा ,प्रीति प्रवाहित धारा।
व्याकुल नैन मिले हैं ,सुन्दर पुष्प खिले हैं।

************
कोटिक चन्द्र लजे है ,मोहक श्याम सजे है।
गीत धरा शुचि गाये। ,माँ निज लाल खिलाये।
*************

मोहन को अति भाये ,जो मुरली सुख पाये।
शोभित ब्रज किशोरी ,मुग्ध प्रमोद घनेरी।

************
पीत प्रभा रवि आये ,भोर उषा शुचि लाये
प्राण भरें नित आशा .पूर्ण करें अभिलाषा।
**************

माधव ज्ञान सुनाते .अर्जुन शीश झुकाते
धर्म प्रकाश बढ़ेगा .जो नर पुण्य करेगा।
************
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश

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चित्रपदा छन्द- वार्णिक छन्द
8 वार्णिक अंत 2 गुरु अनिवार्य
मापनी- 211 211 22

भगण भगण गुरु गुरु
दो दो या चारो चरण समतुकांत
विषय:- पावस

पावस मौसम आयो, कोकिल गान सुहायो,
आँगन झूलत झूला,प्रीतम प्रेम छबीला।
**********************
बाखर भीगत राधा,माधव प्रेम अगाधा,
नैनन ओझल धामा, वैभव भूषण श्यामा।
***********************
दीपक नेह जलाए, केशव द्वार न आये,
जीवन प्राण अधीरा,माधव कंटक पीरा।
***********************
मोहन भोग लगाओ,माखन मोदक खाओ,
तारण दो त्रिपुरारी,माधव श्याम मुरारी।
**********************
नीरज कोमल नैना, कुंतल केश सलोना,
मोहक प्रीत निहारूँ,पंकज पाद पखारुँ।
*************************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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चित्रपदा छ्न्द
वर्णिक 8 वर्ण , अंत 2 2 अनिवार्य,
.....

211 211 22
पुष्प बनो तुम प्यारे, राह बना चल न्यारे।
जीव यहां भरमायें, दुर्लभ ये तन पायें।
.....
प्रेम करो सब प्राणी, सुन्दर हो सुर वाणी।
सुन्दर कर्म बनाओ , जीवन का सुख पाओ।
.....

लालच को अब त्यागो, सूर्य बनो सब जागो ।
चन्दन सा तन धारो , धाम करो तुम चारो ।
......
नाव चले जब धारा, राम करें भव तारा ।
राह मुझे दिखलाओ, अद्भुत नाम कमाओ ।
....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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चित्रपदा छंद
८ वर्ण,वार्णिक छंद है,अंत दो गुरु
मापनी...२११ २११ २२


जो बजरंग बली है। राम तरंग पली है।
भक्त अनन्य कहाए। प्रीत अखंड जगाए।।

देह विशाल दिखाते। सूक्ष्म कभी बन जाते।
शक्ति अपार निखारे। दानव हाय पुकारे।।

रावण को उकसाए। भूत पिशाच भगाए।
दीन दुखी रखवारे। भक्त अनेक पुकारे।।

सौमित्र प्राण बचाए। प्रभु दुलार लुटाए।
बुद्धि कृपा तुम दाता। हे हनुमान विधाता।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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चित्रपदा छंद-वार्णिक छंद
8 वार्णिक अंत 2 गुरु अनिवार्य
मापनी-211 211 22...


कंचन कुंतल काया, अग्नि प्रचंड समाया,
क्यों भटके मन तृष्णा, जाप मना हरि कृष्णा।

जीवन के दिन चारी, नाथ सुनो गिरधारी,
भक्ति सुधा बरसा दे, मुक्ति सुमार्ग दिखा दे।

श्याम छटा अति प्यारी, सुन्दर नैन कटारी,
पाप कटे भव बाधा, नाम जपो हरि राधा।

जीवन कष्ट अगाधा नाथ हरो मम बाधा,
मोहन कुंज बिहारी, श्याम सखा बनवारी।

ममता गुप्ता
आर्य नगर उतरौला
जिला-बलरामपुर

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🌸अनुष्ठुप अष्ठाक्षर वृत्त
चित्रपदा छंद
211 211 22 आठ वर्ण
भगण भगण गुरु गुरु
🌹
कष्ट मिटे जप रामाद्वेष मिटे जप श्यामा ।
पार करे यह नामाजीवन में यह कामा।।
*****************
प्रीत सदा फलती है।रीत यही चलती है।
पंख पसार खड़ा है।प्राण पखेरू अड़ा है।
****************
आज सभी यह गायेराम जपे सुख पाये
चाह जगे मन द्वारेवो भव सागर तारे।।
*****************
🌹🌹
अरविन्द चास्टा , कपासन -चित्तौड़गढ़

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चित्र पदा छंद
8 वर्ण वार्णिक छंद
मात्रा भार :- 211 211 22


धूसर है मत दाता ,दे मत वो पछताता ।
खेल करे हर नेता ,पीड़ लगे हर लेता ॥
****************
लोभ बसे मन न्यारा ,राज करूँ बस सारा ।
लोग नहीं अपनाने ,राज करें मनमाने ॥
****************
झूठ सदा कह जाते ,तोड़ रहे कर वादे ।
देश भले लुट जाए ,सँग भले छुट जाए ॥
**************
बोल सभी मन भाए ,कौन भला समझाए ।
भेष धरे बस झूठा ,बेच रहा मत लूटा ॥
***************
जाग जरा मत दाता ,सोच नहीं कर पाता ।
आज सही जन लाओ ,आज करें प्रण आओ ॥

॥ जय हिंद ॥
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।

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चित्रपदा छन्द। (विनती)
वर्णिक 8 वर्ण अंत 22
211/211/2 2
प्रेम करो भज रामा ,पूरण हो सब काजा

मालिक संकट टालो ,जीवन सुन्दर डालो


प्रभु दवारिहि आये ,संकट दूरहि जाये
आस न होय अधूरी ,दूर रहे मजबूरी।

ऋतु गुलाटी
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चित्रपदा छन्द
प्रति चरण: 8 वर्ण
प्रत्येक चरण : भगण(211) भगण(211) गुरु गुरु(22)


चंचल नैन तुम्हारे, काजल से कजरारे।
मंजुल रूप सजीला, ढूढ़त छैल छबीला।

मोहक ये तरुणाई, सुंदर ज्यूँ अरुणाई।
स्वर्णिम रंग सजी है, कोमल प्रेम कली है।

केश खुले घुँघराले, ज्यूँ बदरा मतवाले।
पायल को छनकाती, घूम रही बलखाती।

रैन गयी तम भागे, भोर भई सब जागे।
देख रहा हर कोई, रात जगी कब सोई।

याद जगाय पिया की, पीड़ सताय जिया की।
बैरन रैन भयी रे, जागत भोर हुई रे।

जितेंदर पाल सिंह

Saturday, November 23, 2019

लक्ष्मी छंद - वर्णिक छंद 8 वर्ण


Explained By Mr. Arvind Chasta  , Kapasan (Chittorgarh)

लक्ष्मी छंद
🌹🙏
🌹नमन साहित्य अनुरागी🌹
छंद लेखन प्रक्रिया को आगे। बढ़ाते हुये हम आज से वर्णिक छंद प्रकरण आरम्भ करेंगे।
जिन छंदों को वर्णों की संख्या और लघु गुरु के निश्चित क्रम के अनुसार पदों की व्यवस्था की जाती है उन्हें वर्णिक छंद कहते है।
जिन छंदों में चारो पदों में समान वर्ण और क्रम हो उन्हें समवृत अथवा सम वर्णिक छंद कहा जाता है।
सुगमता के लिए इसके दो भेद है।
1 जातिक- एक से 26 वर्ण तक
2 दण्डक - 26 से अधिक वर्ण संख्या होने पर

🌹

वर्णिक छन्दों की 26 जातियां है।
(विस्तृत अलग से)
छंदों शास्त्र में अनेको छंदों का वर्णन है हम उनमे से कुछ प्रमुख के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
आज_का_छंद
आज हम अनुष्ठुप जाती के छंद के बारे में जानेंगे।

🌹

लक्ष्मी_छंद
लक्षण - रे रँगीली सु लक्ष्मीहि।
इस छंद के चार चरण है
हर चरण में 8 वर्ण होते है
क्रमश: रगण रगण गुरु और लघु वर्ण होते है
यथा
212 212 21
उक्त मापनी पर ही सृजन करना होता है
दो दो अथवा चारो चरण अथवा सम चरण तुकांत लिए जा सकते है।

वाचिकभार_मान्य_नही_है

दो छंद की न्यूनतम अपेक्षा ,
अधिकस्य_अधिकम्_फलम्
स्वागत सभी साहित्य अनुरागियों का
आइये सभी वर्णिक छंदों पर सृजन यात्रा का शुभारम्भ करते है ।

लक्ष्मी छंद

🌹

हे दया धारिणी मात,हे सती रूपिणी मात।
दास की लो सुधी मात,विष्णु वामां धरो हाथ।।1

🌹

नाम तेरा करे पार,जो गया मान है हार।
जो झुकाये तुझे शीश,ले रमा नित्य आशीष।।2
212 212 21



अरविन्द_चास्टा

कपासन_चित्तौड़गढ़_राजस्थान

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लक्ष्मी छन्द (वर्णिक छन्द)
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
रगण रगण गुरू लघु

212 212 21

ध्यान धारो निरंकार,छूट जाये अहंकार।
मोह माया तजो काम,क्रोध त्यागो भजो राम।

जन्म धारा कई बार,हो सका नाहि उद्धार।
योनियों में फिरे हार,धर्म का नाम आधार।

देह भू लोक की अंश,पाप मारें उसे दंश।
देह पाई बड़े भाग,मूढ़ रे तू अभी जाग।

साधना से मिलें राम,नाम साधे बने काम।
राम द्वारे मिले त्राण,देह माटी बिना प्राण।

चाहते हैं सभी मुक्ति,जानते हैं नहीं युक्ति।
नाम धारे समाधान,राम बोलो सुने कान।

जितेंदर पाल सिंह

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 लक्ष्मी छन्द
वार्णिक छन्द 8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु

212 212 21
दो दो चरण या चारो समतुकांत
विषय- पिया मिलन की आस
*************************
मेघ काले घने आय, देह भीगी हमे भाय।
नैन जागी पिया आस,रैन आओ करें रास।
***********************
आम डाली करै शोर, काकपाली कुहे भोर,
मोर नाचे घटा घोर,वारि भारी दिशा छोर।
***********************
मीनकेतु बसे रैन, प्रेम डूबे मिले चैन।
नीर मेघा गिरे रात, मान जाओ पिया बात।
************************
छंद लिखो धनी आज, रंग भरो बजे साज।
छेड़ वीणा प्रिये तान,प्रेम गूँजे हिये गान।
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वाटिका में कली फूल, सँग साथी बिना शूल।
रंग रंगूँ तेरे साथ, सँग तेरे धरूँ हाथ।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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लक्ष्मी छ्न्द (वर्णिक छ्न्द)
प्रत्येक चरण 8 वर्ण

212 212 21
जानकी राम हैं सारराधिका श्याम संसार
कष्ट से वो करे पारढूंढ लो कृष्ण दातार
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विष्णु सारे हरे पापजो करे प्रभु का जाप
रोग होगा सभी दूरनित्य जो भी चले दूर
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लालिमा सूर्य की भोरजाग आलस्य को छोड़
स्वस्थ होते वही लोगस्नान गंगा करे रोज
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देख पंछी करें शोरनाचते हैं यहां मोर
दृश्य अद्भुत रहा मोहस्वर्णिमा फैलती रोह
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सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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लक्ष्मी छंद
प्रत्येक चरण 8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु
212 212 21

जागने से मिले जीत ,भागने से सुनो मीत ।
हार देखो खड़ा राह ,जाग पूरी करो चाह ।।

दूसरे ही हरे पीर ,हैं निजी घोंपते तीर ।
कान खोलो सुनो वीर ,जीतता जो रहे धीर ।।

रोज दौड़ो हरो रोग ,छोड़ दो जी सुनो भोग ।
आज ही से करो योग ,ठान लो जी सभी लोग ।।

बेटियाँ ही रखे लाज ,मात-बापू सुनो आज ।
मारने की किया भूल ,सृष्टि देगा सुनो शूल ।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बाँका, बिहार व
लखनऊ उत्तरप्रदेश

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लक्ष्मी छंद (वर्णिक छंद)
21221221-8 वर्ण
रगण रगण गुरु लघु

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कृष्ण है राधिका संग,घोलते प्रेम के रंग।
प्रीत के गीत का गान,बाँसुरी की छिड़े तान।

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मेघ छाए मचे शोर ,नृत्य मुद्रा सजे मोर ।
कोकिला कूकती आज ,बादलों के बजे साज।
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दीप की ज्योति का मर्म,प्रीति है प्राण का धर्म,
नित्य जागे निशा आस,ज्योति में हो प्रभा वास।
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मुग्ध सांसे लिखे गीत,ढूंढती प्राण संगीत ,
शून्य वीणा के तार ,स्वप्न उन्मेष आकार ।

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वेश भूषा सभी ढंग,धर्म बोली घुले रंग ,
भूमि वन्दे ऋचा साज ,प्रेम धारा बही आज ।
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राम सीता बसे धाम, है अयोध्यापुरी नाम ,
वेद गुंजार निष्काम,कीर्ति शोभा सियाराम।

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गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव,उत्तरप्रदेश

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लक्ष्मी छंद
८ वर्ण,वार्णिक छंद है,अंत गुरु लघु ,
मापनी...२१२ २१२ २१

नंद के लाडले लाल।संग में खेलते ग्वाल।
सांवला रंग है शान।बांसुरी की भरे तान।।

कृष्ण-राधा करे नाच।मोह छाया तपी आँच।
प्रीत की डोर में सार।जोड़ते भाव के तार।

कृष्ण-राधा जपो नाम।पूर्ण होंगे सभी काम।
बोल सारी दबी बात।आज काली छटे रात।।

नष्ट होवे बसे पीर।नैन खारे मिटे नीर।।
काट डालो चुभे तीर।आज दे दो मुझे धीर।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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