Thursday, May 14, 2020

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर -


Explained by - Shri jitendra Pal Singh ji 
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

122 122 122 12

काफ़िया: होने
रदीफ़: लगा
बंदिश: ओने

मिसरा: "हमें आप से इश्क़ होने लगा,"
पूरा शे'र:

मुलाक़ात जब से हुई आपसे,

हमें आप से इश्क़ होने लगा।

क़वाफी के उदाहरण:

खोने, होने, सोने, डुबोने, पिरोने, 
धोने, ढोने, भिगोने, चुभोने, बोने इत्यादि।

ग़ज़ल
अलग एक दुनिया सँजोने लगा,

मैं ख्वाबों में तेरे हूँ खोने लगा।

मुलाक़ात जब से हुई आपसे,

हमें आप से इश्क़ होने लगा।

कि मुद्दत हुई है मुलाक़ात को,

मैं यादों की माला पिरोने लगा।

मुहब्बत के दरिया में उतरे ही थे,

ज़माना अभी से डुबोने लगा।

सुनाऊँ मैं क्या हाल हालात के,

जिसे देखो नफरत वो बोने लगा।

उड़ी नींद रातें भी बेचैन हैं,

तिरे बिन मिरा दिल ये रोने लगा।

बची चंद साँसे मिरे ज़िस्म में,

बुझा दो ज़रा 'दीप' सोने लगा।

जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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नहीं जानते क्यूँ ये होने लगा।
तुम्हें देख कर चैन खोने लगा।।


घड़ी भर में दिल तेरे दीदार से,
तड़प आशिकी की सँजोने लगा।।

अभी हमने लहरों से की दोस्ती,
अभी इश्क़ हमको डुबोने लगा।

हमें झील में देखना चाँद था,
तू आ कर निगाहों में सोने लगा।

दिखा कर तेरा अक्स दिलदार अब,
ये आईना नश्तर चुभोने लगा।।

सहर शाम रटती जुबां नाम जो,
लबों को हमारे भिगोने लगा।।

कशिश इस कदर क़त्ल में थी 'मणि'*
कि जिंदा रहा दिल तो रोने लगा।।


मणि अग्रवाल
देहरादून (उत्तराखंड)

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ख़यालों में इस तर्ह खोने लगा।
फक़त याद को ही सँजोने लगा।


लगे दाग थे उसके चेहरे पे पर,

रगड़ आइने को वो धोने लगा।


नहीं छोड़े अश्कों ने दामन कभी,
बहुत खुश हुआ तो भी रोने लगा ।

किनारे भी गुस्ताख़ी करने लगे,
समंदर को दरिया डुबोने लगा।

रहा इश्क़ में तो नदारद रही,
पर अब चैन की नींद सोने लगा।

रही कोशिशें दूरियाँ हो मगर,
मैं फिर भी उसी का क्यों होने लगा।

तुम अहब़ाब समझे थे 'कश्यप' जिसे,
वहीं आज नश्तर चुभोने लगा।

आयुष कश्यप

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बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

122 122 122 12


बता दो मुझे क्या ये होने लगा।
न जाने कहाँ दिल ये खोने लगा।

ख़ुदा ने सँवारा तुम्हें नाज़नीं
तुझे देख सपने सँजोने लगा

लगा सूखने प्यार का जब शज़र,
नये ख़्वाब मैं फिर से बोने लगा।

मुहब्बत ख़ता है मुहब्बत बला
मुहब्बत मगर दिल पिरोने लगा।

सुना है मुहब्बत शरारा है इक।
जला रात भर और रोने लगा।

नीलम शर्मा

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बह्र......बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

अर्कान..... फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

काफ़िया ....होने (ओने की बन्दिश)

रदीफ़....... लगा
वज़्न........122 122 122 12

मुझे प्यार उससे यूं होने लगा।
कि दिल भी फ़क़त आज खोने लगा।

सभी जल रहे नफ़रतों में यहाँ-
कि देखो ख़ुदा ख़ुद भी रोने लगा।

दिलों के भी जज़्बात मरने लगे-
कि जग जैसे सारा ही सोने लगा।

नहीं होगी फ़स्ल ए नफ़रत कभी-
मुहब्बत ही इंसा जो बोने लगा।

जमीं होगी कृष्णा कि जन्नत सभी-
अगर आदमी मन को धोने लगा।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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साहित्य अनुरागी मंच को नमन्

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बह्र- बह्रे- मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

अर्कान - फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
वज़्न - 122 122 122 12
काफ़िया: होने (ओने स्वर की बंदिश)
रदीफ़: लगा
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मुख़ालिफ़ किनारा भी होने लगा,
सफ़ीना हमारा डुबोने लगा।।

जिसे रास आयी न उल्फ़त मेरी,
वो मेरे तसव्वुर में खोने लगा।।

भरम चाहतों का था टूटा अभी,
नये ख़्वाब दिल फिर सजोने लगा।।

मुहब्बत का जिससे रहा वास्ता,
दिलों में वो नफ़रत पिरोने लगा।।

सितमगर ने मुझपे किया जो रहम ,
नमक से मेरा ज़ख़्म धोने लगा।।

ख़फा क्या हुई मुझसे मंज़िल मेरी,
कि रस्ता मेरा बोझ ढोने लगा।।

कमी "अश्क"उसकी न खलने दिया,
जुदाई में दामन भिगोने लगा।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"

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बह्र- बह्रे- मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

अर्कान - फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

वज़्न - 122 122 122 12

काफ़िया: होने (ओने स्वर की बंदिश)
रदीफ़: लगा

☘️

शमा क्या जली शोर होने लगा,

कही नज्म थी कोई रोने लगा।

☘️
न चाहा कभी दिल दुखे प्यार में,
मगर वक्त सपनें पिरोने लगा।
☘️
लगे प्यार में बेवजह जो कभी,
वही इश्क के दाग धोने लगा।
☘️
गमों से भरी रात थी वो खड़ी,
सितारे सहित चाँद खोने लगा।
☘️
विवशता बड़ी छोड़ जाना उसे,
विरह में सभी दर्द ढोने लगा।
☘️
तमाशा बना आशिकी का सुनो,
कफ़न आँसुओ से भिगोने लगा।
☘️
कहाँ कौन "अविराज" तेरी सुने,
समय शूल सबको चुभोने लगा।
122 122 122 12
☘️✍️
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़ राज।

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 122 122 122 12

काफिया : ओने की बंदिश

रद़ीफ : लगा


तुम्हें तो नहीं ये डुबोने लगा ,
किनारे खड़ा सांस खोने लगा।१।

रहे हो सदा से तम़ाशा बने ,
अभी तो ज़रा कुछ पिरोने लगा ।२।

नया सा रहा ये जमाना सदा ,
यहाँ वक्त यूँ ही सजोने लगा ।३।

हँसी ढूंढ़ती ही रही यूँ उसे ,
तलबगार नज़रे भिगोने लगा ।४।

बुझा सा दिलों को रिझाता रहा ,
खुदी बेखुदी साथ ढोने लगा ।५।

रजिन्दर कोर (रेशू)

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गज़ल़


बह्र......बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

अर्कान..... फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

काफ़िया ....होने (ओने की बन्दिश)
रदीफ़....... लगा
वज़्न........122 122 122 12


मुझे प्यार इक़रार होने लगा
कि इज़हार उनसे युँ होने लगा

करूँ इश़्क तुमसे ए जाने जहाँ
मैं सपनों में सपने पिरोने लगा

मिटे हम तुम्हारे लिए इस क़दर
दुआओं में तुमको सँजोने लगा

तुम्हारी अदाओं भरे बात से
ख़ुदाया मुझे प्यार होने लगा

उठे हूक़ जब भी पुकारूँ तुझे
न पाकर तुझे आज रोने लगा

जिसे प्यार करते रहे हम सनम
वही कील दिल में चुभोने लगा

कहे "काव्यधारा" ग़मे इश्क़ में
तु आँसू से आँखें भिगोने लगा

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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