Thursday, May 7, 2020

भुजंगी छंद (वर्णिक छंद)- Hindi Poetry







Explained By - Shri Jitendra Pal singh ji 
🌹प्यारे साहित्य अनुरागियों,🌹

🙏🙏🙏सहृदय नमन🙏🙏🙏

आज आपके समक्ष त्रिष्टुप जाति का 11 वर्णिक छंद लेकर उपस्थित होने का अवसर मिला। छंद में वाचिक भार मान्य नहीं है। छंद का विधान निम्नलिखित आधार पर होगा:--


भुजंगी छंद (वर्णिक छंद)
प्रत्येक चरण 11 वर्ण
यग ण(122) यगण(122) यगण(122) लघु गुरु(12)
11 वर्णों के बाद यति, दो अथवा चारों चरण समतुकांत।
उदाहरण स्वरूप रचना

हिया है भरा काम से क्रोध से,
अहंकार से मोह से लोभ से।
करो साधना राम के नाम की,
जला ज्योति तू आत्म के ज्ञान की।

रहें संग अच्छे बुरे त्याग दो,
करो कर्म साक्षी उन्हें भाव दो।
बड़े भाग्य से जन्म ऐसा मिला,
कई योनियाँ लाँघता है चला।

बिना चित्त साधे नहीं ध्यान हो,
घनीभूत होवे तभी ज्ञान हो।
जुड़े चेतना राम के नाम से,
सधे इन्द्रियाँ नाम के जाप से।

उठो नित्य प्रातः जपो साइयाँ,
वशीभूत होंगी सभी इन्द्रियाँ।
निराकार आकार में खोजना,
इसी मार्ग से मुक्ति का जोहना।

अभिप्राय है जन्म का मुक्त हों,
सदा के लिए राम के संग हों।
मिले साधु के संग से प्रेरणा,
मिटी पाप की पुण्य की धारणा।

जितेंदर पाल सिंह
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भुजंगी छंद त्रिष्टुप जाति का वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते है। प्रत्येक चरण 11 वर्ण होते है। इसका वर्ण विन्यास यगण(122) यगण(122) यगण(122) लघु गुरु(12)
11 वर्णों के बाद यति, दो अथवा चारों चरण समतुकांत। यह वर्णिक छंद है इसलिए इसमें वाचिक मात्रा गणना मान्य नहीं है। (यगण × 3), लघु, गुरु। उदाहरण स्वरूप रचना

सदा एक सा काल होता नहीं,
निशा देख,आदित्य सोता नहीं।
सुखों को,दुखों को मनाते चलो,
निभाते सभी साथ नाते चलो।।

जहाँ दुःख, जागी वहीं वेदना,
करो युक्ति आसान हो भेदना।
मिले मोद तो, त्याग दो दंभ को,
रखो सौम्यता सोच आरंभ को।।

करो झूठ से बैर पक्का सभी,
प्रतिष्ठा सहेगी न धक्का कभी।
लगाओ गले सर्वदा सत्यता,
मिलें कष्ट ही,साथ हो विद्वता।।

सुनो संत वाणी, सदा ध्यान से,
रहो दूर यों, नित्य अज्ञान से।
सदा शांति का ठाँव होवे जिया,
यही ज्ञान का सार वेदों दिया।।

मणि अग्रवाल
देहरादून (उत्तराखंड)

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 🐍भुजंगी छंद🐍

विधान~

[यगण यगण यगण+लघु गुरु]
( 122 122 122 12
11वर्ण,,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

हिया है हुआ आपका साँवरे।
कड़ी धूप मैं छाँव तू साँवरे।।
बनो आभ मेरे प्रभो! ज्ञान की।
करूँ साधना श्याम के नाम की।।

बसे आप मेरे जिया में सदा।
जले प्रेम बाती दिया में सदा।।
सदा श्याम तोहे पुकारा करूँ।
जगूँ रैन सारी निहारा करूँ।।

चले आप काहे मुझे छोड़ के।
रुलाते पिया हाय जी तोड़ के।।
निशा में तपूँ मैं उषा में जलूँ।
थमी श्वास मेरी चलो मैं ढलूँ।।

नीलम शर्मा ✍️

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भुजंगी छंद (वर्णिक छंद)
प्रत्येक चरण 11 वर्ण
यग ण(122) यगण(122) यगण(122) लघु गुरु(12)
11 वर्णों के बाद यति, दो अथवा चारों चरण समतुकांत।

उदाहरण स्वरूप रचना
भवानी भवानी पुकारो सदा।
हरे कष्ट सारे हरे आपदा।।
सदा ज्ञान की माँ जले ज्योतिका।
रहे सत्य की शीत सी चंद्रिका।।१।।

अनंता अनादित्व का रूप है।
तुझी से सदा सूर्य की धूप है।
सदा सत्य बोलो यही साधना।
करे दर्श तेरा यही कामना।।२।।

सभी में दिखे ईश का अंश ही।
अहंकार का माँ! करे ध्वंस भी।
करे कर्म ऐसा शुभाशीष मिले।
सदा भक्ति भी पुष्प जैसी खिले।।३।।

स्वरचित :- हिरेन अरविंद जोशी
वड़ोदरा

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भुजंगी छंद

त्रिष्टुप जाती का छंद

ये वार्णिक छंद है,प्रत्येक चरण ११ वर्ण, ११ वर्ण के बाद यति।१२२(रगन)
१२२(रगन) १२२(रगन) १२(लघु गुरु)
१२२ १२२ १२२ १२

जपों राम जो नाम पीड़ा हरे।
लगे पार नैया सुखों से भरे।
हिया में बसे पाप सारे तरे।
कृपा दृष्टि से पार देखो करे।।१।।

जगे चेतना भाग्य तारे खिले।
हमें कर्म में जो लिखा वो मिले।
कभी भाव से ईश को तू बुला।
सभी पीर खारी जिया से भुला।।२।।

झुका लो सभी शीश ऐसे जरा।
बनो भक्त न्यारे सजे ये धरा।
बुरी सोच को छोड़ आगे बढ़ो।
नयी एक प्यारी कहानी गढ़ो।।३।।

वहाँ हाथ खाली हमें लौटना।
यहाँ भोग सारे हमें भोगना।
विधाता रचे खेल सारा यहाँ।
जपों नाम रामा खिले ये जहाँ।।४।।
✍️सुवर्णा परतानी
हैदराबाद 

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भुजंगी छन्द, त्रिष्टुप जाति11 वर्ण

122, 122, 122 ,12

यगण×3 अंत लघु गुरु अनिवार्य
दो दो या चारो चरण समतुकांत
विषय:-प्रकृति संगीत

निशा छा गई है सवेरे पिया,
डराती घनेरी घटाएं हिया।
हवायें सुरीली चली भोर में,
घटाएं करें नाद भी शोर में।
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कलापी करें नृत्य हो बावरे,
बजी बाँसुरी राधिके साँवरे।
कहीं कूकती कोकिला रागिनी,
कहीं गूँजती है घटा दामिनी।
**********************
नदी राग छेड़े सुहाने स्वरा,
घटा छू रही है हवाये धरा।
खिले फूल चारो दिशाएँ भरी,
धरा हो गई है सुहानी हरी।
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बिखेरें सुहानी छटा मेह हैं,
फुहारें चली हैं सुधा नेह हैं।
उड़े व्योम पंक्षी घटा चूमते,
गिरी बूंद ठंडी धरा झूमके।
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सजे साज न्यारे हवा गा रही,
घिरे शैल मेघा छटा भा रही।
बजे नाद प्यारे सुहाने शुभा,
हुए मुग्ध सारे विधाता विभा।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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भुजंगी छन्द


#त्रिष्टुप जाति का छन्द

प्रत्येक चरण 11 वर्ण
यगण(122) यगण(122) यगण(122) लघु गुरु(12)
11 वर्णों के बाद यति, दो अथवा चारों चरण समतुकांत

122 122 122 12
हमें ईश तेरी दया चाहिए ,
सदा साथ मेरे पिया चाहिए।

करो दूर मेरे अहंकार को,
मिटा दो हिये के सभी खार को ।

सदा प्रीत की जीत होती यहाँ,
मिलेगा सदा प्रेम मोती यहाँ।

सजे चूड़ियाँ साज श्रृंगार दो,
सुखी मैं रहूँ हे ! शिवे तार दो।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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भुजंगी छंद

त्रिपुष्ट जाती का छंद

ये वार्णिक छंद है , प्रत्येक चरण 11 वर्ण,
11 वर्ण के बाद यति ।

122 122 122 12

यहाँ राह तो यूँ सुझी है नहीं |
कभी प्यास तो ये बुझी है नहीं |
जहाँ में सदा ही रहा खोजता |
सभी है यहाँ तो किसे सोचता ।|

चलो यूँ चले चाल हो चाँदनी |
रवी यूँ रचे तो राह ये जीवनी |
रहे है सभी खोज सारा जहां ।
नहीं देखते ये छुपा है कहाँ | |

रजिन्दर कोर ( रेशू )
अमृतसर

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वार्णिक छंद,

चारो चरण ११वर्ण ,११वर्ण के बाद यति १२२(रगण)१२२(रगण)१२२(रगण)१२(लघु गुरु)


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नई प्रीत हैं जीत हैं जो लगी,
सुनी हैं कभी क्या तभी हैं जगी,
हिया में पिया जो बसे थे सदा,
दिवानी बनी मैं फिरू जो सदा।
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हुआ प्यार था कही तो नही,
सुने राज मेरा तभी तो सही,
मरी भी सदा मैं उन्हीं के लिए,
सुना के गया जो सदा के लिए।
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कहानी लिखी थी निगोड़ी पिया,
जलाई गई थी उन्हीं की सिया,
नही याद करना मुझे तो हिया,
भरोसा दिलाया नही क्यों जिया।
*************************
निभाई हमेशा यही कामना,
हमेशा खुशी से रहो साजना,
दिवानी बनी हूँ फिरूँ चाहना,
तभी तो कहीं हाथ भी थामना।
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Vini Singh
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भुजंगी छंद (वर्णिक छंद)

प्रत्येक चरण 11 वर्ण

यगण यगण यगण लघु गुरु
122 122 122 1 2
दो अथवा चारों चरण समतुकांत।

सुनो!साधना है यही प्यार की,
सदा पावनी सी नदी धार की,
यही तो सदा प्रीत आधार है,
इसी प्रीत से आज संसार है।

उरों में खिले पुष्प भी प्यार से,
सदा नेह के सत्य शृंगार से,
दिलों को सदा जोड़ता प्यार है,
सदा त्याग ही पूर्णतः सार है।

सदा द्वेष को है मिटाता यही,
अहं को सदा है जलाता यही,
निभाना इसे ही सदा प्यार है,
बिना प्रेम के तो सदा हार है।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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🌹भुजंगी छंद🌹

दवाई नहीं है बढ़ा रोग है।

घरों में रहें तो बढ़ा भोग है।
ही हाथ में है हमारे सुनो।
घरों में रहो भाग्य ऐसा चुनो।
☘️
रहेगी कमी तो बनी ही यहाँ।
रुकी स्वाँस तो पार होंगे कहाँ।
रुको रोक लो भाव जो भी बने।
छटेंगे सभी मेघ जो है घने।
☘️
रखो होंसला भाव को थाम लो।
रखो धैर्य थोडा हरी नाम लो।
चले लेखनी तो करें कामना।
हमें संकटों से सदा तारना।
☘️
122 122 122 12
✍️
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़।

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भुजंगी वृत्त छंद (वर्णिक )

प्रत्येक चरण 11 वर्ण

यगण यगण यगण लघु गुरु
122 122 122 1 2
दो-दो अथवा चारों चरण समतुकांत।

बिना प्रीत का रीत भाता नहीं।
मुझे गान निंदा लुभाता नहीं।
जहाँ लोग बैठे शिकारी बने।
लहू से वहाँ वो मिलेंगे सने।।

जहाँ आदमी है वहाँ गंदगी।
कहाँ सत्य निष्ठा कहाँ बंदगी?
हवा भी कराहे जले ताप से।
यहाँ देख पानी घुले पाप से।।

नहीं काट प्यारे वनों को कभी।
सुनोगे नहीं तो मरोगे सभी।
हरी जो रहेगी धरा जान लो।
रहोगे सुखी बात को मान लो।।

अभय कुमार "आनंद"
विष्णुपुर, बाँका , बिहार व
लखनऊ ,उत्तरप्रदेश

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