Friday, May 15, 2020

"तोटक_छंद" - Hindi Poetry



"जगती द्वादशाक्षरावृत "

12 वर्णिक छंद।

☘️3

"तोटक_छंद"
सगण ×4
यथा
112 112 112 112

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सगण ×4
यथा
112 112 112 112
जपले मनवा हरिओम नमो।
मनका मनका जप राम रमो।।

रटते - रटते मन श्याम भयो।।
रमके तन भी घनश्याम भयो।

उपवास करूँ ,बस श्याम भजूँ।
करके तप मैं, निज देह तजूँ।।

धुन गूँज उठी,वन-कानन में।
सुन हूक उठी मम प्राणन में।।

मिलता हिय का उपचार नहीं।
सजते सुर साजन तार नहीं।।

उर कोयल बनकर बोल रहा।
लतिका रस अंतर घोल रहा।।
नीलम शर्मा

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तोटक छंद

१२ वर्णिक छंद
११२ ११२ ११२ ११२

तरसे घन ये,बरसे मन ये।
तब याद पिया करता तन ये।
नयना बरसे अँखिया तरसे।
मुख जो निरखूँ मनवा हरषे।।१।।

स्वर जो सुन लूँ बगिया महके।
मन में प्रिय के सपने दहके।
जियरा धड़के नयना फड़के।
जगती रहती सब से लड़के।।२।।

सजती रहती मिलने तुझसे।
मद में रहती बचके हम से।
प्रिय में मुझको प्रभु है दिखता।
उर में रस प्रेम सदा घुलता।।३।।



सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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तोटक छंद

११२ ११२ ११२ ११२
सगण सगण सगण सगण

सबका प्रभु जी अब ध्यान धरो।
अपने प्रिय का अभिमान हरो।।
मन मंदिर में बस ज्ञान भरो।
परमारथ का अनुदान करो।।

तन से,मन से यह काम करें।
जग में अपना कुछ नाम करें।।
उर को अब पुंजित राम करें।
अरु ज्ञान सदा हिय धाम करें।।


कृष्णा श्रीवास्तव

हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
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तोटक छंद

12 वर्णिक छंद
112 112 112 112

मन पावन ही रखना जग में ,
तन से धन से निखरो मन में ,
मचले कब ये मन है जगता ,
तरसे नयना मन ये बजता ।

रजिन्दर कोर ( रेशू)

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तोटक छन्द 12 वार्णिक

112×4
सगण×4
दो दो या चारो चरण समतुकांत

शुचिते शुभिते सुख श्याम कहो,
हरते हरि संकट पाद गहो,
बनते बिगड़े हर काम सदा,
दुख जीवन से फिर होय विदा।
*** *** *** *** ***
अवतार धरे भगवान सदा,
हरते विपदा हरि नाम सदा,
धरि धीरज प्रेम निवास करो,
मन पावन ज्योति उजास भरो।
*** *** *** *** ***
सुख नन्दन हैं घनश्याम विभे,
दुख भंजन मंगल काज शुभे,
प्रभु शीश सुकोमल पाद धरूँ,
जग में सुख हो अभिलाष करूँ,
*** *** *** *** ***
शुचि चंदन सुंदर भाल सजे,
मन वंदन ईश सुनाम भजे,
भव सागर से प्रभु पार करो,
दुनिया दुख में हरि ताप हरो।
*** *** *** *** ***
सिर हाथ धरो नव दीप जले,
मन मंगल भाव पुनीत पले,
मुख नीरज लोचन प्रीत जगे,
जग में सब प्रेम पराग पगे।
*** *** *** *** ***
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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तोटक छन्द (वर्णिक)

12 वर्ण , 112×4
सगण सगण सगण सगण
112 112 112 112

प्रतिभा निखरे जन-जीवन में
खग कोयल बोल रहे वन में।

प्रिय पुष्प खिले महके तन में,
हरि अच्युत आप बसो मन में।

तुम ही प्रभु हो हर पत्थर में,
रहते प्रतिमा बन के घर में।

मन-भावन सावन घेर रहा ,
बन दादुर सा मन टेर रहा ।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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तोटक छंद

112 112 112 112

परिवार धुरी इस जीवन की

यह ताकत है असली मन की
पहचान समाजिक आनन की
छवि सुंदर सी निज आँगन की।



दिखते उर के सब भाव यहाँ।
मिटते मन के सब घाव यहाँ।।
बहता बन निर्झर प्यार यहाँ।
अपनत्व भरी रस धार यहाँ।।

नर-नार समाहित प्यार रहे।
समरूप सदा अधिकार रहे ।।
व्रत वृद्ध जनों हित नित्य करें ।
मन ध्यान लगा यह कृत्य करें ।

जब और नहीं कुछ साथ दिखे।
तब साथ सदा परिवार दिखे।।
जब मानुष का अवतार मिले।
शुभ-शुद्ध मुझे परिवार मिले।।

सतसंग सुपावन काज सदा।
गत-काल-पुरातन आज सदा।।
बस चिन्तन ही उपचार रहे।
धरणी सम ही परिवार रहे।।

स्वरचित
डॉ. पूजा मिश्र 'आशना'
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 🌹तोटक छंद
सहमी सहमी निकली घर से।
छुपते छुपते जग के डर से।
भय भाग गया मिल के हर से
जब जाय मिला उर ही उर से।
🌹
दिन रात रटूँ पिवजी तुमको।
अँखियाँ थकती तकते तुमको।
हर आप बसे इन नैनन में।
विरही बन के भटकूँ वन में।
🌹
जब सोच विचार करूँ मन में।
छवि श्याम दिखे मुझको तन में।
वृषभान सुता अरदास करे।
नटनागर आवन आस करे।
✍️
अरविन्द चास्टा
कपासन ,चित्तौड़गढ़ राज।

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