Tuesday, May 19, 2020

सारंग_छंद - Hindi Poetry



"जगती द्वादशाक्षरावृत "

12 वर्णिक छंद।
सारंग_छंद
तगण ×4
यथा
221 221 221 221


आये कहाँ से सभी जानना सार।
जाना कहाँ है हमे हो सकें पार।
उद्धेश्य क्या जन्म का ये सदा जान।
चारों युगों में यही प्रश्न है मान।

✍️अरविन्द चास्टा,कपासन चित्तौड़गढ़ राज।
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सारंग छंद

जगती द्वादक्षरावृत्त जाती छंद
१२ वर्णिक छंद,
२२१ २२१ २२१ २२१

वो आज आए नयी हो गयी रात।
है चाँद तारों सजी आज बारात।
लागे मुझे स्वप्न सी ये भरी बात।
वो साथ लाए नयी चंद सौग़ात।।१।।

मेरे जिया के सँवारे तुने साज ।
तेरे बिना हृदय आता नहीं बाज।
वो तो करे सिर्फ़ साथी तुझे प्यार।
मेरा भरोसा हुआ आज साकार।।२।।

थामा तुने हाथ हो एक आधार।
तू छोड़ जाना नहीं हो न ये वार।
हो प्रीत न्यारी,लागे पार संसार।
सारे सुखों की चले नित्य बौछार।।३।।


सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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सारंग छंद

१२ वर्णिक
२२१×४

ज्ञानी वही जो दिखाए सही राह,
लोभी नहीं वो रखें जो कभी चाह।
वो बाँटते हैं खुले हाथ से ज्ञान,
हैं देवता वो जिसे छंद का भान।।

अभय कुमार "आनंद"
विष्णुपुर, बाँका, बिहार व
लखनऊ,उत्तरप्रदेश

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सारंग छंद

तगण तगण तगण तगण
२२१ २२१ २२१ २२१


कल्याण का है यही एक आधार।
विश्वास संबंध का है सदा सार।।
होती कभी भी किसी की नहीं हार।
चारो दिशा में बहे प्रेम की धार।।


मानो कहा मित्र मेरा यही कथ्य।
है सृष्टि का मूलतः पूर्ण ये तथ्य।।
जीते हमेशा यहाँ मात्र ही सत्य।
देता उजाला सभी को यही पथ्य।।

कृष्णा श्रीवास्तव

हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
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 सारंग_छंद

तगण ×4
यथा
22 1 22 1 221 221
कान्हा कृपाला जगाओ सदाचार।
आओ मुरारी मिटाओ दुराचार।।
गीता हमेशा रही न्याय आधार।
वेदों ऋचाओं समाया यही सार।।

आओ सहेजें धरा प्राण संचार।
चारों दिशाओं बसे प्रेम संसार।।
नाचे हिया मोर ज्यों मेघ मल्हार।
छाई घटाएँ किया बूंद श्रृंगार।।
नीलम शर्मा

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सारंग छन्द

(वर्णिक) 12 वर्ण ,
चार तगण 221×4
तगण तगण तगण तगण
221 221 221 221

उद्देश्य है आज मैं भी लिखूँ सार,
गीताञ्जली छन्द सारंग आधार।

साँईं करे साधना आज संसार ,
स्वरूप तेरा निहारूँ सजा द्वार।

गाती रहूँ मैं तुम्हारे सदा गीत,
गूँजे सदा प्रीत का साज संगीत।

सौभाग्य मेरे विधाता बढ़े आज,
सिंदूर की नाथ मेरी रहे लाज।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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सारंग छन्द- 12 वार्णिक

मापनी: 221×4
तगण, तगण, तगण ,तगण
चारो या दो दो चरण समतुकांत

काले घने मेघ मोती झरे रैन,
आओ सखा साँवरे ताकते नैन,
नाचे कलापी सखी री घिरे मेह,
बूंदे सुधा सी गिरी प्रेम की नेह
*** *** *** *** ***
रंगी पिया रंग भाये मुझे श्याम,
मेरा जिया बावरा हो करे काम,
गाती सुरीली कही कोकिला गीत,
राधा बताये सुनो कृष्ण की प्रीत।
*** *** *** *** ***
छेड़ी कहीं श्याम ने बाँसुरी तान,
देखें सभी ग्वाल बाला प्रभू शान,
राधा सुहानी लगे श्याम के संग,
चूमे शुभे गात फूलों भरे रंग।
*** *** *** *** ***
झूले पड़े हैं सखी आम की डाल,
झूलें मुरारी हिया देख बेहाल,
सारंग चूमे धरा शैल के गात,
डोले हवाएं करें फूल से बात।
*** *** *** *** ***
काली घटा में छुपे भाल से तुंग,
घूमे घटाएं फिरे झुंड से भृंग,
गाएं हवाएं सुहाने शुभा राग,
बाहें पसारें जिया में भरी आग।
*** *** *** *** ***
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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सारंग छंद
12 वार्णिक
221 221 221 221

तगण तगण तगण तगण

गाते रहे फूल पंक्षी चले तान ,
देखो यहाँ दीप गाएं सुने राग ।
छाई घनी ये घटा मोर का नाच ,
गाना यहाँ गा रहा आग सी आच ।

रजिन्दर कोर ( रेशू )

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 सारंग छंद (१२ वर्णिक)
तगण×४( २२१×४)
दो अथवा चारों पड़ समतुकांत



मेरा जिया माँगता है पिया साथ,
आओ पिया जी यहाँ थाम लो हाथ।
दूरी सताने लगी है मुझे रात,
तेरे बिना हैं अधूरी सभी बात।

टूटा हुआ ये जिया जोड़ दो मीत,
आओ निकट प्रेम के गा पिया गीत।
पक्षी बजाने लगे कूक के साज,
छोड़ो पिया व्यर्थ ये नित्य के काज।

देखो घटा छा गयी छुप रहा व्योम,
देही खिली देख के हर्ष में रोम।
टूटे न देखो कहीं प्रेम की रीत,
जाऊँ कहाँ तू बता संग है प्रीत।

पाया पिया संग तेरा मिला प्रेम,
जागी नहीं आज टूटा पिया नेम।
सोई नहीं रात को हो गयी भोर,
पक्षी मचाने लगे हैं यहाँ शोर।

ठंडी चले भोर की हवा जाग,
गाने लगे देख पक्षी नया राग।
लाली बिखेरी जली सूर्य में आग,
आया जगाने हमारे यहाँ काग।

जितेंदर पाल सिंह

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