Explained By Smt Rajinder Kaur ji Amritsar
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प्रिय साहित्य अनुरागियों,
मात्रिक छंदों की अगली कड़ी में हम 20 मात्रिक छंद पर अभ्यास करेगें । इसमें हम महादैशिक जाती के शास्त्र छंद पर अपनी उत्कृष्ट रचनाओं को अर्पित करेंगे ।
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विधान
पदांत 21 अनिवार्य ।
यति हेतु अनिवार्यता नही स्वेछिक ली जा सकती है।
दो दो अथवा चारों चरण तुकांत
# अथवा
समचरण तुकांत मुक्तक हेतु ।
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मिलती जुलती उर्दू बहर
मफाईलुन् मफाईलुन् मफाईल
1222 1222 1221
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उदाहरण
साभार :छंदप्रभाकर
मुनीके लोक लहिये शास्त्र आनंद
सदा चितलाय भजिये नंद के नंद ।।
सुलभ है मार्ग प्यारे ना लगै दाम ।
कहो नित कृष्णा राधा और बलराम ।।
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१२२२ १२२२ १२२१
भजो प्यारे यहाँ तू राम का नाम ।
नहीं देना पड़ेगा राह में दाम ।।
कटेगा यूँ सदा ,जीना रहे मान ।
करो यूँ ही यहाँ हाथों भरे दान ।।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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🌹शास्त्र_छंद🌹
विधान
पदांत 21 अनिवार्य ।
यति हेतु अनिवार्यता नही स्वेछिक ली जा सकती है।
दो दो अथवा चारों चरण तुकांत
# अथवा
समचरण तुकांत मुक्तक हेतु ।
मिलती जुलती उर्दू बहर
मफाईलुन् मफाईलुन् मफाईल
12 22 12 2 212 21
गीत रचना
मुखड़ा
नयन चंचल चलाएं तीर हिय पार,
सजाए फूल बालों में चली नार।
अंतरा
लगे बजने हृदय के सुरमयी साज,
दिखा है मुख सलोना सुखमयी आज।
मिलाए नैन ऐसे हो गया प्यार,
सजाए फूल बालों में चली नार।-टेक
अंतरा
अकेला मन बढ़ाता है मिलन प्यास,
चली आओ चली आओ प्रिये पास।
अधर लाली नयन काजल लगी धार,
सजाए फूल बालों में चली नार।
अंतरा
तुम्हारे बैन लगते हैं मधुर राग,
बिताई रैन तेरी याद में जाग।
तुम्हीं तुम स्वप्न में थी बस लगातार,
सजाए फूल बालों में चली नार।
अंतरा
घटा से केश के पीछे धवल गाल,
कहाँ को जाय इठलाती चले चाल।
चली आ डाल बाहों का गले हार,
सजाए फूल बालों में चली नार।
जितेंदर पाल सिंह
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मापनी;-1222 1222 1221
मात्रिक छंद शास्त्र छंद (महा दैशिक जाती का छंद )
पदान्त 21 अनिवार्य
(अंत गुरु लघु )
दो -दो समतुकांत या चारो समतुकांती
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सुनो साथी सुनो बंधू करो प्रीत।
अभी है जीत जीवन की सजे रीत।
मिलेगा साथ हर पल ही रहो पास ।
नया जीवन बसायेंगे यही आस।।
Vini Singh
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शास्त्र छंद
20 मात्रिक
पदान्त लघु अनिवार्य
चरण भारती अर्पित करूँ मैं प्राण।
देशभक्ति भाव का है यही प्रमाण।।
मिट जाएं उर के सभी दंभ विकार।
जन गण मन मनुज रहे तभी साकार।।
जयचन्दों का मिलकर करे संहार।
जातियता पर हम करें प्रबल प्रहार।।
सदा देश का हृदय से हो सम्मान।
तभी तो होगा सुन्दर-सुखद विहान।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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20 मात्रिक
शास्त्र छंद
विषय प्रणय मिलन
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प्रिय निभाओ प्रणय की रीत इस रात।
है मेरी व्याकुल अँखियाँ धरो हाथ।
कौमुदी सहमी सजा लो सपन आज।
प्यास जागे बज उठे हृदय के साज
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प्यार में छोड़ी है आज जीत हार
पीत काया जल रही है तार तार
प्रणय आलिंगन यही मद गन्ध प्यार।
फूल खुशबु चांदनी है मेरा प्यार।
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अरविन्द चास्टा
कपासन चितोडगढ़ राज।
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शास्त्र छंद
२० मात्रिक छंद,अंत में २१ अनिवार्य।
१२२२ १२२२ १२२१
हरा या लाल नीला या गिला रंग,
लगा दो सजन भींगा दो सभी अंग।
घड़ी ये है सुहानी मन सजे आस,
लड़े जब नैन लागे तू रहे पास।।
सजा है फाग का रंगीन त्योहार,
बहेगा आज अपने साथ संसार।
कभी मन ये खिले सच्ची लगे चाह,
उमंगे तन जगी दिखे नयी राह।।
नशा ये भांग का अब तो चढ़े यार,
थमे साँसे मिले जब नैन ये चार।
पिया होली सजी खेलों सुनो बात,
ढला ये दिन कही होगी घनी रात।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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शास्त्र छंद ( महादैशिक जाति का 20 मात्रिक छन्द)
विधान- पदांत 21 अनिवार्य ।
यति हेतु अनिवार्यता नही स्वेछिक ली जा सकती है।
दो दो अथवा चारों चरण तुकांत
# अथवा
समचरण तुकांत मुक्तक हेतु ।
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1222 1222 1221
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बढ़ाने से बढ़ेगी बात में बात,
यहाँ अरि हैं लगाये घात पर घात,
चलो संदेह सारे हम तजें आज,
मिलन के गीत होठों पर सजें आज।।
कहूँ कैसे बता अपना तुझे प्यार,
हृदय पर हो रहा है वार पर वार,
सजाएं गीत आओ प्यार के नाम,
कटे जीवन इसी में,हो यही काम।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 16/02/2020
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शास्त्र छन्द( महादैशिक जाति)
20 मात्रिक छन्द
विधान:-पदान्त 21 अनिवार्य,
यति हेतु अनिवार्यता नही है, स्वेच्छिक ली जा सकती है।
दो दो या चारो चरण तुकांत,
शीर्षक- शिव विवाह
शिव दूल्हा बने,शुचि किया श्रृंगार,
भूत प्रेत मदमय,शिव महिमा अपार,
जटा धरे गंगा, कंठ सर्प माल,
बाघाम्बर धारी,भस्म तन में डाल।
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शशिधर नील कंठ, शिव कैलाशनाथ,
चले हिमवान घर, पाने उमा साथ,
अनोखी बारात,ले चले त्रिपुरार,
हर हर महादेव, गूँजता जयकार।
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कैसा वरण किया, पार्वती की प्रीत,
देख बारात सब, हो गए भयभीत,
हिमालय भी डरे, डरी मैना मात,
सखियाँ देख डरी, छुप छुप करें बात।
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पूछते विप्र वंश, हंसे कृपा निधान,
स्वयम्भू ने रचा, सृष्टि का विधान,
नारद अमोघ का, करें महिमा गान,
जगत के रचयिता, कलाधर अभिराम।
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नभ से सुमन गिरे,राक्षस सुर पिशाच,
बनकर बाराती, विवाह करें नाच,
देवता असुर मिल,त्रिदक्षु की बारात,
गौरा ब्याह हुआ,सजी शिव की रात।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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शास्त्र छ्न्द
महादैशिक जाति का छ्न्द
20 मात्रिक , अंत 21 अनिवार्य
1222 1222 1221
गरीबों की सदा हम सब हरें पीर,
कभी उनके नयन से जब बहे नीर।
मदद करके सदा तुम दुख करो दूर,
नहीं देखो गरीबी को कभी घूर।
....
गिरा देना घृणा की आज दीवार,
दिखा दो प्रेम से मिटता यहां खार ।
बड़ों को तुम सदा दो मान सम्मान,
यही है धर्म की सेवा सदा जान ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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मापनी;-1222 1222 1221
मात्रिक छंद शास्त्र छंद (महा दैशिक जाती का छंद )
पदान्त 21 अनिवार्य
(अंत गुरु लघु )
दो -दो समतुकांत या चारो समतुकांती
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सुनो साथी सुनो बंधू करो प्रीत।
अभी है जीत जीवन की सजे रीत।
मिलेगा साथ हर पल ही रहो पास ।
नया जीवन बसायेंगे यही आस।।
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लगी है प्रीत दिल से जो अभी श्याम
सुना दें बाँसुरी घनश्याम सब नाम।
सुनो तुम अब भजो मन से यही राम।
मिलेगा है तभी तुम को सुफल काम।।
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रहें गतिमान जीवन में सदाचार।
बना लो तुम सभी से खुद लोकचार
निभा आई सुना आई सभी आस।
कहो कैसे तुम्हे पाऊं बनी प्यास।।
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खुदा ही जानता मेरी सही बात।
तभी देता मुझे हर बार आघात।
सही होता सभी कहते सहो खार।
मिलेगा तब खुदी से ही यहां न्याय।
विनी सिंह
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