Monday, February 3, 2020

सायली- Hindi poetry


🍁अनुरागी नमन🍁
हिंदी साहित्य लेखन ने कई गैर पारम्परिक अथवा अन्य भाषायी काव्य की विधाओं को अपने विशाल हृदय में आत्मसात किया है । पिछली पोस्ट में हमने जापानी कविता की शैली की #हाइकु ताँका सेदोका बारे में संक्षिप्त जानकारी ली ।


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इसी क्रम में एक अन्य विधा आज आप साहित्य अनुरागियों के समक्ष प्रस्तुत है।


🍂सायली 🍂

इसे कई महानुभाव सायली छंद भी कहते है पर सर्वमान्य नही ।
अपने भावों को शब्दों के निश्चित क्रम में प्रकट करने का माध्यम है ।
यथा
सायली एक पाँच पंक्तियों और नौ शब्दों वाली कविता है | उपलब्ध जानकारी के अनुसार मराठी कवि विशाल इंगळे ने इस विधा को विकसित किया हैं | अल्प समय में यह विधा मराठी काव्यजगत में लोकप्रिय हुई है। हिंदी साहित्य के सृजनकर्ताओं ने इस विधा को अपने लेखन शैली में स्थान दिया है।
नियम🍂
पाँच पंक्तियों में लेखन का विधान कहा जाता है।
विशेष की मात्रा एवम् वर्ण के बजाय शब्दों की सँख्या को आधार माना है।
पहली पँक्ति में एक शब्द
दुसरी पँक्ति में दो शब्द
तीसरी पँक्ति में तीन शब्द
चौथी पँक्ति में दो शब्द
पाँचवी पँक्ति में एक शब्द


🍂सायली🍂
धरा
पीत वर्णी
मद गन्ध महकी
मोहती मन
हवाएँ।
🍂
उमड़ते
भावों को
थाम लो आकर
बेचैन हुआ
मन।
🍂
पवन
दिशा हीन
लपेट रही मुझे
आ गया
वसन्त।
🍂
अरविन्द चास्टा "अविराज"
कपासन चितोड़गढ़ राज.

🍂शुभकामनाएँ।
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सायली छ्न्द
........
1
चांदनी
रात में
साज छेड़े मधुर
गीत साजन
संग

2
चुनरिया
पीली ओढ़े
घूंघट में गोरी
खड़ी है
सजी

3
लाज
से झुक
रही है नजर
किया प्रीत
शृंगार
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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सायली छंद

विषय - मौन
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१)मौन
कौन हूँ
अनकहे शब्दो की
मौन हूँ
मैं

२)मौन
छुपा सार
शून्य सृष्टि संघार
मौन हूँ
मैं

३)अनहद
गूँज भाव
शून्य हुआ संसार
कौन हूँ
मौन

४)मैं
अहम उत्सर्जित
जीवन सार हूँ
मैं मौन
हूँ

विनीता सिंह विनी ✍️

गोंडा ( उत्तर प्रदेश)
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सायली:-

हे!
नव वर्ष!
नया कुछ है?
निशि-वासर
यथावत्

मूक
है भाषा
नैन-सकोरो में
ढलते आँसू
परिभाषा।

धवल
पृष्ठ कोरे
मौन तोड कर
व्योम जैसे
बोलते

माँ
पयपान प्रांजल
ममता का आँचल
नेहिल गोद
करुणाचल।

ईश!
हृद-उच्छ्वास
चरणों में समर्पित
निःश्वास चहे
श्वास।
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रागिनी नरेंद्र शास्त्री
दाहोद(गुजरात)
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सायली

सँभाल
अपनी गगरी
आया माखन चोर
नन्द किशोर
कान्हा

बेटियाँ
होतीं कोमल
कली गुलाब की
मुरझा जातीं
झट

कवि
लिखे कविता
लय ,भाव शिल्प
के मिश्रण
से।

प्रेम
आत्मिक था
राधा कृष्ण का
सब जानते
हैं

मीरा
वैरागिन हुयी
कृष्ण भक्ति में
भूल गयी
सब
रागिनी गर्ग
रामपुर यूपी
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 सायली छंद

विषय ;- नव वर्ष
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भारती
विदा बेटी
सहेजा तुमने सबको
बिखर गया
कुटुंब

सुखद
नव वर्ष
लाये सबको करीब
विभाजित नही
हिन्दुस्तान

नवीनता
अमन चैन
दिल बटवारा कैसे
रामराज्य सहेजना
पुलकित

पूजा
चरण स्पर्श
अतिथि देवों भवः
नव वर्ष
भारत

उमंग
नव पर्व
प्यार चाहत नफ़रत
हाथ बढाये
आत्मविस्वास।

विनीता सिंह विनी
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विधा..सायली

विषय..विदाई

(1)
विदाई
होती बेटियाँ
कलेजे पर पत्थर
भेजे माता पिता
पराई
(2)
मुश्किल
करना विदाई
दिल का टुकड़ा
होती बेटियाँ
हमदर्द
विषय ..आज की शिक्षा पर।

(3)आधुनिक
शिक्षा देती
लाइलाज जख्म भर
सरकारी नौकरी
भाईभतीजा

(4)सिफारशी
नौकरी मिलती
लाइलाज जख्म देती
मेहनती तड़फता
बेरोजगारी

स्वरचित
ऋतु गुलाटी
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 सायली छन्द

नित,
कर ध्यान,
तेरे आये काम,
कष्टों का,
निदान।

प्रेम,
आधार है,
आपसी सौहार्द का,
ईश्वर द्वार,
का।

ईर्ष्या
दूर भगाओ,
देश की एकता,
सब नागरिक,
बढ़ाओ।

देश,
है अपना ,
इसका है सपना,
तरक्की कर,
बढ़ना।

दुर्बल,
होती उंगली,
जो बाँधो पाँचो,
बन जाय,
मुट्ठी।

जितेंदर पाल सिंह
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पता

नहीं क्यो?
यादों के पन्ने
आज फिर
फड़फड़ाते।

मोह
के धागे
तेरी उँगलियों में,
जा उलझे
क्यों?

संभली
तुफानो से
समंदर में फँसकर
हिदायतें लिख
दी।

सहेजती
अश्रु अँखियाँ,
मिलन आस लिए
सपने समेटे
बैठी।
नीलम शर्मा
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सायली


सौरभ
पुष्प विकसित
धरा दुल्हन बनी
स्वागत आपका
ऋतुराज

**********
श्याम
गोकुल धाम
गोपाल,बनवारी,गिरधारी
यशोदा नन्दन
कृष्ण

***********

दिनकर
रश्मि रथ
प्रभा करें श्रृंगार
प्रकाश विकरण
कलरव
**********

यामिनी
धवल अमल
गगन मध्य राकेश
प्रखर ज्योत्स्ना
पूर्णिमा

************
होती
कर्म पूजा
ध्येय की प्राप्ति
अथक परिश्रम
विजय
*************

बेटी
करती रोशन
मायका और ससुराल
जीवन अधिकार
भिक्षुक
**********
गीता गुप्ता 'मन'
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सायली छंद

1- अद्भुत
अद्वितीय श्रृंगार
सुखद वसंत आगमन
हरित धरा
मनोहारी।

2- हंसवाहिनी
मात शारदे
मिले ज्ञान वरदान
हृदय करे
यशगान।

3- विनम्रता
सम्पूर्ण समर्पण
लोक कल्याण आधार
पूर्ण पहचान
साहित्यकार।

4-सुरभित
धरा-आकाश
प्रसून,मधुकर गुंजार
अनुपम प्रकृति
अमृतमयी।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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सायली

पवन
चली जब
मन बहक गया
पिया संग
चहकी ।

तेरा
साथ रहे
सदा यूं साजन
जीवन चलो
सवारे ।

रजिन्दर कोर रेशू
अमृतसर
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सायली छंद



वक्त
नहीं थमता
फिर नहीं आता
मानव है
पछताता।

कर्म
करो ऐसे
सुगंधी,संस्कारी जैसे
मिले फल
वैसे।

मेहनत
उम्मीद,लगन
होगी थोड़ी अगन
चित्त होगा
मगन।

भूखा
करे हहाकार
सोती है सरकार
नेता छिनता
अधिकार

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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-सयाली छंद में एक प्रयास  
प्रेम
अद्भूत है
समर्पण मांगता है

संसार में
बस।

 बसंत
धरती सजी
उमंग छाया है।

विदा हुआ
पतझड़ ।

तुम
मेरे हो
फिर क्या गम
छोड़ना मत
साथ ।

Rakesh Kumar Singh
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सयाली
विषय:-प्रकृति

सूर्योदय
बिखरी लालिमा,
सिमटी श्यामल कालिमा,
सुरभित सुमन,
मनभावन।
***********
मृदुल,
कोकिल गान,
कुसुमित कमल दल,
मलयिज हवाएं,
विहान।
*************
शंखनाद,
सजे द्वार,
गूंजती भोर घण्टिया,
चहकती चिड़ियाँ,
सुप्रभात।
****************
गूंजते
प्रार्थना मंत्रोच्चार,
मधुर संगीत सुखद,
नाचते मयूर,
प्रभात।
*********
प्रकृति
मन मोहनी,
श्रृंगार कर उतरी,
सुनहरी भोर,
स्वर्णिम।
**************
खिलते,
सरुवर नीरज,
विचरते श्वेत मराल,
तरंगित लहरे,
विशाल।
***************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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सायली छन्द
सँभाल
अपनी गगरी

आया माखन चोर
नन्द किशोर
कान्हा

बेटियाँ
होतीं कोमल
कली गुलाब की
मुरझा जातीं
झट

कवि
लिखे कविता
लय ,भाव शिल्प
के मिश्रण
से।

प्रेम
आत्मिक था
राधा कृष्ण का
सब जानते
हैं

मीरा
वैरागिन हुयी
कृष्ण भक्ति में
भूल गयी
सब

रागिनी गर्ग रामपुर (यूपी)
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1 comment:

  1. सायली विधा कब बनी और क्या पंक्तियों में स्वतंत्रता की जरूरत नहीं होती?

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