Explained By SMt . Lalita Gahlot ji ( Surat, Gujrat)
सादर नमन अनुरागी जन 🙏
१९ मात्रिक छंद की अगली कड़ी में हम अभ्यास करेंगे
महापौराणिक जाति के छंद का
सुमेरु_छंद
विधान :-
१२२२ १२२२ १२२
सुमेरु छंद के प्रत्येक चरण में १९ मात्रा
यति निर्वाह दो तरह से किया जा सकता है
१२,७ या १०,९
इसके आदि में लघु १ आता है
अंत में २२१, २१२ , १२१ , २२२ वर्जित हैं तथा १ , ८ , १५ वीं मात्रा लघु १ होती है।उदाहरण-
लहै रवि लोक सोभा , यह सुमेरु ,
कहूँ अवतार पर , ग्रह केर फेरू।
सदा जम फंद सों , रही हौं अभीता ,
भजौ जो मीत हिय सों , राम सीता।।
साभार - छंद प्रभाकर
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१२२२ १२, २२ १२२
नहीं उपहार की ,चाहत कभी थी ।
कमी से भी नही ,आहत कभी थी।।
मुझे सानिध्य बस ,भाता तुम्हारा ।
सजन आत्मिक ये ,नाता हमारा।।
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सुदृढ आधार भी , साजन बनूंगी।
सभी बाधा विकट , सह साथ लूँगी।।
निवेदन मात्र है , क्या तुम कहोगे।
वचन दो शब्द में , मेरे रहोगे ।।
सुमेरु छंद
1222 12 , 22 122
मधुर मृदु मोद है , छाया अनेरा ।
दिखे बस प्यार ही ,संझा सवेरा।।
बहारें छा गईं , हर ओर देखो ।
नवल इक रूप है ,हर पोर देखो।।
पवन बहती चले , मधुरस डुबोती।
प्रणय मोती शुभे ,नयनन पिरोती।।
अधर बस नाम है , प्रियतम सुहाना।
ह्रदय का काम है , सपने सजाना।।
ललिता गहलोत
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सुमेरु छंद
1222 1222 122
बारहवीं मात्रा पर यति
न हिंदू हूँ न मुस्लिम,एक हूँ मैं,
सुनो इंसान केवल, नेक हूँ मैं।
जपूँ मैं राम राघव, और अल्ला,
मचाते मूढ़ केवल, देख हल्ला ।।
भजूँ गुरुग्रंथ साहब , संग में भी,
बसें ईशा हमारे, अंग में भी।
सभी जन मिल बसायें, स्वर्ग शाला,
पिरो हर रंग मोती , एक माला
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बाँका, बिहार व
लखनऊ ,उत्तरप्रदेश
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-बसंत
#विधा:-सुमेरु छंद
१२२२ १२२२ १२२
१० वीं मात्रा पर यति
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तनिक ठहरो सखे!मधुमास आया।
धरा पर है बिछी,शुचि-पीत छाया।।
शिशिर ने शीत में,उष्मा भरी है।
सुनहले ओस कण,में भी तरी है।।
लताएं शाख से,लिपटी सुहानी।
वसंती वात भी,होकर दिवानी।।
पलाशी-पुष्प की,गंधा बिखेरी।
घनेरी टेसुई, चित्रा सुनेरी।।
विटप-घन आम्र पर,खिली अमराई।
कुहुकिनी कोकिला,मदिर चहकाई।।
चढी़ पेड़ महुआ के,झूमें हवाएं।
हरे खेत पोखर,हँसती दिशाएं।।
सुवासित धान की,बाली लजाई।
कली ने फूल की, पकडी़ कलाई।।
खिल उठी यौवना,पुलकित धरा सी।
प्रणय में प्रीत भी,मुखरित सुधा सी।।
सखी!ऋतुराज है,मादक बसंती।
विरह का मेल है, साधक बसंती।।
सुगम संगीत सुर, बसंत सँवारे।
सजीवन हो खिले,मधूप गुँजारे।।
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#स्वरचित:-रागिनी नरेंद्र शास्त्री
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सुमेरु छ्न्द
विधान...
19 मात्रिक , मात्रा 1222 1222 122 ,
आदि में लघु , तथा 1,8, 15 वीं पर लघु ,
यति दो प्रकार की हो सकती है ,12+7 पर या 10+9 पर यति महापौराणिक जाति का छ्न्द
........
1222 1222 122
प्रिये तुम प्रेम का ,दीपक जलाओ,
मधुर स्नेहिल सदा ,जीवन बनाओ ।
हमारा साथ तुम , प्रियवर निभाओ ,
सुगन्धों से भरा , मधुबन खिलाओ ।
........
दिखाकर स्वप्न तुम , मत छोड़ जाना,
मिलेंगे हम कभी, हिय से बुलाना ।
बनाकर मीत तुम , मुझको सजाना ,
समय अन्तिम मुझे ,कांधा लगाना ।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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महापौराणिक जाति के छंद
सुमेरु छंद (१९ मात्रिक)
विधान :-
१२२२ १२२२ १२२
यति दो प्रकार की हो सकती है--
१२+७ या १०+९
इसके आदि में लघु १ आता है
अंत में २२१, २१२ , १२१ , २२२ वर्जित हैं तथा १ , ८ , १५ वीं मात्रा लघु १ होती है।
जिधर देखें नयन, प्रिय मुख दिखत है,
यही है रोग क्या? मन को लगत है।
नहीं मिलता कहीं, अब चैन मन को,
यही है प्रेम क्या? होता सभी को।
नहीं मुख बैन है, इसके लिए अब,
रहे मन सोचता, होगा मिलन कब।
हुआ है प्रेम सब, कहने लगे हैं,
नहीं कोई बचा, सारे ठगे हैं।
हुआ संसार सब, इसका विरोधी,
यही आधार है, करता प्रबोधी।
नहीं है मात्र तन, की वासना ये,
करे मन प्रेम जब, ईश्वर दिखा दे।
यही नानक गुरू, ने भी किया था,
कि विष का पात्र मीरा, ने पिया था।
लड़े जब देशप्रेमी, प्रेमवश हो,
चटा दे धूल बैरी, को वहीं वो।
यही सम्बन्ध जोड़े, मातृ-पितृ का,
कि रखती ध्यान माता, गर्भ हित का।
बहन भाई इसी वश, संग जुड़ते,
सभी नाते बनाये, मित्र मिलते।
बहुत हैं रूप इसके, ढंग निराले,
जिसे हो जाय अपना, ही बना ले।
यही संसार चालक, लोग जानो,
बिना इसके रहे सब, सून मानो।
जितेंदर पाल सिंह
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सुमेरु छ्न्द
19 मात्रिक , मात्रा 1222 1222 122 ,
आदि में लघु , तथा 1,8, 15 वीं पर लघु ,
यति दो प्रकार की हो सकती है ,12+7 पर या 10+9 पर यति महापौराणिक जाति का छ्न्द
........
1222 1222 122
10-9 पर यति
प्रिये! उर में सदा, मेरे समाना।
मधुर संबंध तुम,सारे निभाना।।
प्रणय रस नित्य तुम, प्रतिपल पिलाना।
सुनयने!मत कभी, मुझको भुलाना।
हृदय मेरा शुभे!कितना विकल है।
प्रणय की साधना मेरी अटल है।।
नहीं हिय को कभी,मेरे जलाना।
खुशी देकर सदा,तुम मुस्कुराना।।
चिरन्तन वेदना सहता रहा मैं।
दुखों की धार में बहता रहा मैं।।
विरह की अग्नि में जलता रहा मैं।
अकेला ही सफ़र करता रहा मैं।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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19 मात्रिक
सुमेरु छंद
10-9 यति
🍂
चले जाते सभी , दे पवन झोंके।
गति नियम पालना , कैसे युँ रोके।
हमेशां हो रही , दु:खान्तिकाऍ।
तरुण मन भटकता, कौन समझाएँ।
🍂
दम तोड़ती सड़क , वाहन न काबू।
किशोर उम्र यहाँ , चले बेकाबू।
चलो हम सीख दें, वाहन चलाना।
न टूटे हड्डियाँ, कुशल घर आना।
✍
अरविन्द चास्टा
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सुमेरु छंद ( महापौराणिक जाति का 19 मात्रिक छंद)
विधान :-
1222 1222 122
नियम - (1)- सुमेरु छंद के प्रत्येक चरण में 19 मात्रा
(2)-यति निर्वाह दो तरह से किया जा सकता है--12, 7 या 10,9
(3)- इसके आदि में लघु {1} आता है।
(4)- अंत में 221, 212 , 121 या 222 वर्जित हैं।
(5) पहली , आठवीं तथा 15 वीं मात्रा लघु {1} होती है।
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( 1222 12 , 22 122)
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सुघर पथ झूठ का, लगता यहाँ है,
मगर सच झूठ से, हारा कहाँ है,
कभी तो पास आ,देखो मुझे भी,
दिखेगी पीर ये, मेरी तुझे भी।।
तुम्हें क्या नेह का, कुछ भान भी है,
किसी के मान का, सम्मान भी है,
सजल आँखें लिये, प्रतिपल मरूँ मैं,
करूँ विश्वास तो, कैसे करूँ मैं।।
कहो क्या तुम कभी, खुलकर जिये हो,
हमेशा व्यर्थ की, बातें किये हो,
हृदय की चोट अब, किसको दिखाऊँ,
व्यथित है मन बहुत, क्या-क्या छुपाऊँ।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0- 11/02/2020
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सुमेरु छंद
19 मात्रिक
आदि में लघु तथा 1 ,8, 15 वीं पर लघु ,
यति दो प्रकार की हो सकती है 12+7 पर या 10+ 9 पर यति महापौराणिक जाति का छंद
1222 1222 122
खुशी की आस इंसानों जगाओ ,
कभी देखो न प्राणों को दुखाओ ।
सदा जीना सभी का यूँ सुधारों ,
यहाँ संबंध बोलो से सवारों ।।
गुलाबों से यहाँ पीडा़ मिटाओ ,
बहारों की हवाऐं यूँ चलाओ ।
सभी से प्रेम देखों यूँ बनाओ ,
दुखों की बात आत्मा से निकालों ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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१९ मात्रिक छंद
(महापौराणिक जाति )
#सुमेरु_छंद
विधान :-
१२२२ १२२२ १२२
सुमेरु छंद के प्रत्येक चरण में १९ मात्रा
यति निर्वाह दो तरह से किया जा सकता है
१२,७ या १०,९
इसके आदि में लघु १ आता है
अंत में २२१, २१२ , १२१ , २२२ वर्जित हैं तथा १ , ८ , १५ वीं मात्रा लघु
विषय:- सीता हरण
कहाँ खोई सिया, राघव पुकारें,
सघन वन में प्रभू, इट उत निहारें,
विटप बोलो कहाँ, सीते छुपाई,
कहो खग मृग प्रिया, तुमको बताई।
*******************
जटायू वार से, घायल पुकारे,
सिया को ले गया,रावण चुरा के,
सताता है करुण, क्रंदन हिया को,
दशानन ले उड़ा, लंका सिया को।
******************
क्षमा करना प्रभू, हारा जटायु,
किया घायल मुझे, बन वेग वायू,
बहे अश्रु नैन से, जुड़ नेह धागे,
जटायू राम के ,पद प्राण त्यागे।
*******************
*******************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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सुमेरु छंद
१९ मात्रिक छंद,१२/७ या १०/९ पर यति
१२२२ १२२२ १२२
हिया में लाड़ली को,है लगाया,
जिया में साँस बन के,है खिलाया।
कभी पीड़ा कभी दुख,से बचाया,
कभी रज तो कभी तम,से छिपाया।।
खिले तू चाँदनी सी,बन सितारा,
हँसी तेरी लगे सुख,का किनारा।
तुझे पाकर मिला सुख,ये सुहाना,
मिला मुझको ख़ुशी का,ये बहाना।।
विधाता रूप होती,ये दुलारी,
बनी वो आज जीवन,है हमारी।
बनेगी दो घरों का,वो उजाला,
सजेगा दिव्य सा अब,ये शिवाला।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद ✍️
१९ मात्रिक छंद
(महापौराणिक जाति )
#सुमेरु_छंद
विधान :-
१२२२ १२२२ १२२
सुमेरु छंद के प्रत्येक चरण में १९ मात्रा
यति निर्वाह दो तरह से किया जा सकता है
१२,७ या १०,९
इसके आदि में लघु १ आता है
अंत में २२१, २१२ , १२१ , २२२ वर्जित हैं तथा १ , ८ , १५ वीं मात्रा लघु
विषय:- सीता हरण
कहाँ खोई सिया, राघव पुकारें,
सघन वन में प्रभू, इट उत निहारें,
विटप बोलो कहाँ, सीते छुपाई,
कहो खग मृग प्रिया, तुमको बताई।
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जटायू वार से, घायल पुकारे,
सिया को ले गया,रावण चुरा के,
सताता है करुण, क्रंदन हिया को,
दशानन ले उड़ा, लंका सिया को।
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क्षमा करना प्रभू, हारा जटायु,
किया घायल मुझे, बन वेग वायू,
बहे अश्रु नैन से, जुड़ नेह धागे,
जटायू राम के ,पद प्राण त्यागे।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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सुमेरु छंद
१९ मात्रिक छंद,१२/७ या १०/९ पर यति
१२२२ १२२२ १२२
हिया में लाड़ली को,है लगाया,
जिया में साँस बन के,है खिलाया।
कभी पीड़ा कभी दुख,से बचाया,
कभी रज तो कभी तम,से छिपाया।।
खिले तू चाँदनी सी,बन सितारा,
हँसी तेरी लगे सुख,का किनारा।
तुझे पाकर मिला सुख,ये सुहाना,
मिला मुझको ख़ुशी का,ये बहाना।।
विधाता रूप होती,ये दुलारी,
बनी वो आज जीवन,है हमारी।
बनेगी दो घरों का,वो उजाला,
सजेगा दिव्य सा अब,ये शिवाला।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद ✍️
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