Explained By - Shri Krishna Shrivastav ji ( HATA , Kushinagar, U.P.)
शुभकर्ता श्री गणेश जी और माँ शारदे को प्रणाम करते हुए आप समस्त साहित्य अनुरागियों को सादर नमन करता हूँ।मात्रिक छंदों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए हम महासंस्कारी जाती के राम छंद का अभ्यास करेंगे।यह छंद १७ मात्रिक है तथा इसमें ९वीं मात्रा पर यति अनिवार्य है साथ ही इसके अंत में यगण (१२२) का आना अनिवार्य है।इसके अतिरिक्त दो चरण या चारो चरण समतुकांत होने चाहिए।
सभी उद्भट विद्वानों से करबद्ध निवेदन है कि अपने उत्कृष्ट सृजन से मंच को सुशोभित करें।
राम छंद
पर आधारित सृजन
प्रणय नित्य मधुर,स्वप्न सजाती।
प्रेम की सरगम, मृदुल सुनाती।।
मृदुभाव उर के,सभी छिपाती।
दर्पण लख रूप,स्वयं लजाती।।
हृदय का सारा, चैन चुराती।
आमंत्रित कर,मुझे बुलाती।।
उर के उद्गार,शुभे बताती।
अपना सर्वस्व ,सदा लुटाती।।
मधुरिम संगीत,सदा बजाती।
दिवस-रैन मुझे,वही लुभाती।।
सुखमय,सरस जो,आस जगाती।
वही जीवन भर, साथ निभाती।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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🍂राम छंद 🍂
17 मात्रिक,पदांत यगण। 9वीं मात्रा पर यति ।
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प्रीत रीत जहाँ , सब सुख साजै।
बरसै आनन्द , अमी घन गाजै।
नित मङ्गल गान, सकल गुँजाया।
रूप ऐसा ही , प्रकृति छाया।
🍂
दरश दिये पिया , मान मनाऊँ।
लाज लगे मोहि , आज छुपाऊँ।
रखुँ ढाँप पलकें , नजर उतारूँ।
हर पल पीव जी , नाम उचारूँ।
✍
अरविन्द चास्टा
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राम छंद
१७ मात्रिक ,पदांत यगण । ९वीं मात्रा यति
सुहानी बातें,रात जगाती,
चाँदनी मन में , राग बजाती ।
चुपके से पवन , रैन सुलाती ,
ठंड़ी ये हवा , गीत सुनाती ।
मन अंदर सदा, प्रेम बढ़ाती ,
ह्रदर को नया , पाठ पढ़ाती ।
जीवन में न हो , उदास यूँ ही ,
जग से न होना , निराश यूँ ही ।
माँ जैसा प्रेम , ये बरसीती ,
अंदर से न ये , अब घबराती ।
सभी को अपने , साथ मिलाती ,
मानवता यहाँ , मान बढा़ती ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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राम छ्न्द
महासंसकारी जाति का छ्न्द,
17 मात्रिक छ्न्द, 9 पर यति अनिवार्य,
अंत 122 ( यगण) अनिवार्य
.......
कृष्ण जन्म हुआ , बजी बधाई।
नन्द घर आंगन , द्वार सजाई ।
हर्षोल्लास से , सभी मनाते ।
ये माखन चोर ,नाम कहाते ।
संध्या सवेरे , गाय चराते ।
गोपियां राधे ,रास रचाते।
देवकी नन्दन , नैन लुभाते ।
बंसी राधिका , मधुर सुनाते।
आजा प्रिये मैं , तुझे बुलाऊं ।
मन में गोविंद , सदा बसाऊं।
मनोहारी धुन , अधर बजाऊं ।
राधिका बन मैं, पिया रिझाऊं।
केशव के सदा , स्वप्न सजाऊं ।
मोहन संगीत , प्रीत सुनाऊं ।
माखन का तुझे , भोग लगाऊं।
प्रिये जब रूठो , तुझे मनाऊं ।
.......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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राम छन्द
महासंस्कारी जाति का
१७ मात्रिक छन्द,९,८ पर यति। चरणान्त १२२(यगण) अनिवार्य
व्योम में देखो , अगणित तारे,
अगेह देह जस , पाँव पसारे।
विगत बेला की , याद दिलाती,
निशि निपुण नित ही,मुझे रुलाती।।
धनहीन बेघर , तारक जैसे ,
खुले नभ नीचे , हैं तन ऐंठे।
झेल प्रहार नित , मौसम मारे,
दीन के दिन को, कौन सुधारे?
सूर्य समान हैं , पालक सारे,
प्रखर किरणों से , नक्षत्र हारे।
नीर को पी पी , किस्मत कोसे,
बेमेल जग को , हर पल सोचे।।
शब्दार्थ:
अगेह - बेघर
नक्षत्र - तारक
अभय कुमार आनंद
लखनऊ , उत्तर प्रदेश
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राम छ्न्द
महासंस्कारी जाति का छ्न्द,
17 मात्रिक छ्न्द, 9 पर यति अनिवार्य,
अंत 122 ( यगण) अनिवार्य.......
अवचेतना ही,भाव जगाए।
झकझोर कर वह,मन बहलाए।
उभर आते है,जब-तब साए।
भीगो कर शब्द,बहला जाए।
यह लेखनी है,अति-प्रिय मेरी।
मूढ़-मति मनशां,बन कर चेरी।
निशि-याम स्याही,घुल कर घेरी।
स्वर-व्यंजन भर,क्या?अब देरी।
अनुरागी-मना!राग-सुनाते।
भोर की बेला,भाव-जगाते।
नियति के मधुकर,नेह-बहाते।
अद्य,धरुं नमन,शीश-झुकाते।
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रागिनी नरेंद्र शास्त्री
दाहोद(गुजरात)
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राम छ्न्द
महासंसकारी जाति का छ्न्द,
17 मात्रिक छ्न्द, 9 पर यति अनिवार्य,
अंत 122 ( यगण) अनिवार्य
.......
चैन लूटे रे,मोहक बैना।
रैन लूटे रे, नटखट नैना।।
देख बिंब पिया, हाय! लजाऊँ।
मधुर भाव हिया,बात छिपाऊँ।।
देखूँ पिया तो,तन-मन डोले।
मूक नयना सुन,बतरस घोले।।
कान्हा कपट से,हृदय चुराया।
चपल चंचल चित,चौर कहाया।।
प्रणय पराग तुम,नीलम प्यारे।
प्रेम मुरली धुन, मधुर बजा रे।।
अपलक अंखियाँ,जात निहारी।
देखूँ मनोहर,छब मनुहारी।
नीलम शर्मा
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राम छन्द (महासंस्कारी जाति)
१७ मात्रिक, ९,८ का यति नियम
चरणान्त: यगण (१२२)
काम क्रोध लोभ, मोह बढ़ाया,
दम्भरत मनुष्य, पाप कमाया।
तज विकार पाप, पुण्य कमाओ,
कर्म है प्रधान, ध्यान लगाओ।
राम नाम ध्यान, मनुज भुलाया,
माया चितचोर, रोग लगाया।
भोग विलास कर, जन्म बिताया,
साधु संग से दूर, समय गँवाया।
भव कराय पार, नाम सहारा,
राम नाम जाप, दूर किनारा।
जल थल आकाश, राम समाया,
मानुष जाति एक, भेद भुलाया।
आदि अंत राम, एक विधाता,
मूढ़ करे भेद, भ्रम बढ़ाता।
नाम हैं अनेक, ह्रदय पुकारो,
नित करो ध्यान, चित्त विचारो।
सहज प्रेम मार्ग, द्वार दिखाया,
गुरू खोले भेद, राम मिलाया।
राम राम राम, ह्रदय बसाया,
मन हुआ पावन, सुप्त जगाया।
जितेंदर पाल सिंह
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राम छन्द(महासंस्कारी जाति) -
नियम- 17 मात्रिक छन्द, 9वीं पर यति अनिवार्य।
अंत यगण(122) अनिवार्य।
दो चरण या चारों चरण समतुकांत हों।
***** ***** *****
कवन जतन प्रिये, तुम्हें भुलाऊँ,
रात दिवस तुम्हें, सदा बुलाऊँ,
हृदय व्यथा कहो, कहाँ छुपाऊँ
तुम ही कहो अब, किसे दिखाऊँ।।
बहुत दिनन भये, दरस तिहारे,
नेह हृदय बसे, विरह सहारे,
बरबस मन कहाँ, कबहुँ पुकारे,
याद करूँ तुझे, साँझ सकारे।।
सजल नयन लिये, पाथ निहारूँ,
मीत वियोग में , गीत संवारूँ,
सहत - सहत लगे, पीर सुहानी,
आ मिलकर लिखें, प्रेम कहानी।।
मन में लगी जो, अगन बुझाओ,
मीत मेरे मत, और सताओ,
पास मेरे आ, मुझे रिझाओ,
नैन से प्रियतम, नैन मिलाओ।।
गरल विछोह का,जाल बिछाये,
सूना सा अंबर, मुझे दिखाये,
अमृत बनकर तुम, प्यास बुझाओ,
मिलन का रस्ता, मुझे सुझाओ।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
१७ मात्रिक छन्द, ९वी पर यति अनिवार्य।
अंत यगण(१२२) अनिवार्य।
दो चरण या चारो चरण समतुकांत हो।
सघन तिमिर घिरे, बादल छाये,
अंब बौर घने, मधुर सुहाये,
कुहुक कोयलिया, मधुवन डाली,
तान धरे प्रिये,पिक मतवाली।
********************
ठंडी हवायें,छम छम गायें,
झूमी शैलजा, राग सुनाएं,
चले समीर शुचि, अति सुखदाई,
उड़े मेघ छुये, नभ पुरवाई।
*********************
पैजनी बाँधे, रिमझिम बूंदें,
मीनकेतू मद, लोचन मूंदें,
शिलीमुख चूमे, गात रसीले,
भव विभोर भये, सागर नीले।
********************
वसुधा महीधर, अम्बर चूमे,
नाचे कलापी, मधुवन झूमे,
प्रकृति मनोरम, लगी लुभाने,
पुष्प श्रृंगारित, सजे सुहाने।
*********************
ढोल मंजीरे, मेघ बजाये,
चमके दामिनी, हिया लुभाये,
सरुवर छाई,नीरज लाली,
आई घटाएं, अम्बर काली।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
महासंस्कारी जाती का छंद ,१७ मात्रिक छंद, ९ वी मात्रा पर यति,अंत में १२२ अनिवार्य।
२१२२२ ११११२२
श्याम ने बंसी,मधुर बजायी,
धून वो प्यारी,नवल सुनाई।
ध्यान से हारी,नज़र चुराई,
प्रीत में राधा,रमन लजाई।।
देख के ग्वाला,क्षणिक जलेगी,
श्याम है मेरे,वचन कहेगी।
बात वो न्यारी,श्रवण करेगी,
सोच के राधा,गहन हँसेगी।।
नित्य मैं चाहूँ,निकट समाऊँ,
भाव ये मेरे,विनय जगाऊँ।
हाल ये मेरा,रतन सुनाया,
हृदय में श्यामा,दरस दिखाया।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद ✍️
नियम- 17 मात्रिक छन्द, 9वीं पर यति अनिवार्य।
अंत यगण(122) अनिवार्य।
दो चरण या चारों चरण समतुकांत हों।
***** ***** *****
कवन जतन प्रिये, तुम्हें भुलाऊँ,
रात दिवस तुम्हें, सदा बुलाऊँ,
हृदय व्यथा कहो, कहाँ छुपाऊँ
तुम ही कहो अब, किसे दिखाऊँ।।
बहुत दिनन भये, दरस तिहारे,
नेह हृदय बसे, विरह सहारे,
बरबस मन कहाँ, कबहुँ पुकारे,
याद करूँ तुझे, साँझ सकारे।।
सजल नयन लिये, पाथ निहारूँ,
मीत वियोग में , गीत संवारूँ,
सहत - सहत लगे, पीर सुहानी,
आ मिलकर लिखें, प्रेम कहानी।।
मन में लगी जो, अगन बुझाओ,
मीत मेरे मत, और सताओ,
पास मेरे आ, मुझे रिझाओ,
नैन से प्रियतम, नैन मिलाओ।।
गरल विछोह का,जाल बिछाये,
सूना सा अंबर, मुझे दिखाये,
अमृत बनकर तुम, प्यास बुझाओ,
मिलन का रस्ता, मुझे सुझाओ।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
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राम छन्द(महासंस्कारी जाति)१७ मात्रिक छन्द, ९वी पर यति अनिवार्य।
अंत यगण(१२२) अनिवार्य।
दो चरण या चारो चरण समतुकांत हो।
सघन तिमिर घिरे, बादल छाये,
अंब बौर घने, मधुर सुहाये,
कुहुक कोयलिया, मधुवन डाली,
तान धरे प्रिये,पिक मतवाली।
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ठंडी हवायें,छम छम गायें,
झूमी शैलजा, राग सुनाएं,
चले समीर शुचि, अति सुखदाई,
उड़े मेघ छुये, नभ पुरवाई।
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पैजनी बाँधे, रिमझिम बूंदें,
मीनकेतू मद, लोचन मूंदें,
शिलीमुख चूमे, गात रसीले,
भव विभोर भये, सागर नीले।
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वसुधा महीधर, अम्बर चूमे,
नाचे कलापी, मधुवन झूमे,
प्रकृति मनोरम, लगी लुभाने,
पुष्प श्रृंगारित, सजे सुहाने।
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ढोल मंजीरे, मेघ बजाये,
चमके दामिनी, हिया लुभाये,
सरुवर छाई,नीरज लाली,
आई घटाएं, अम्बर काली।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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राम छंदमहासंस्कारी जाती का छंद ,१७ मात्रिक छंद, ९ वी मात्रा पर यति,अंत में १२२ अनिवार्य।
२१२२२ ११११२२
श्याम ने बंसी,मधुर बजायी,
धून वो प्यारी,नवल सुनाई।
ध्यान से हारी,नज़र चुराई,
प्रीत में राधा,रमन लजाई।।
देख के ग्वाला,क्षणिक जलेगी,
श्याम है मेरे,वचन कहेगी।
बात वो न्यारी,श्रवण करेगी,
सोच के राधा,गहन हँसेगी।।
नित्य मैं चाहूँ,निकट समाऊँ,
भाव ये मेरे,विनय जगाऊँ।
हाल ये मेरा,रतन सुनाया,
हृदय में श्यामा,दरस दिखाया।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद ✍️
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