Explained By - Shri Jitrndar Pal Singh ji
🌹नमन साहित्य अनुरागियों🌹
आज का छंद
सिंधु छंद
त्रेलोक जाती का 21 मात्रिक छंद।
इस छंद के हर चरण में 21 मात्राएँ होती है।
हर चरण के आदि में लघु वर्ण अनिवार्य है।
पहली ,आठवीं और 15 वीं मात्रा लघु अनिवार्य
यथा मात्रिक मापनी
1222 1222 1222
*अन्य मापनी भी ली जा सकती है
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत लिए जा सकते है ।
मुक्तक हेतु सम चरण तुकांत लिए जा सकते है।
यथा सम्भव उर्दू शब्दों के प्रयोग से बचें।
🌹
उदाहरण
गीतिका
जिधर देखूँ तुम्हीं तुम बस दिखाई दो,
मुझे कोई बुलाये तुम सुनाई दो।
किया है प्यार तुमसे और क्या बोलूँ,
मुझे जीवन पिया आनंददायी दो।
नहीं चाहूँ कभी दुख हो तुम्हें प्रियतम,
हँसी ले लो सजन अपनी रुलाई दो।
नहीं चाहे मिलें हम जग हुआ बैरी,
सभी चाहें मुझे तुम जगहँसाई दो।
कभी तजना अगर मुझको सजन मेरे,
बिना तेरे जियें कैसे सुझाई दो।
कि आशा 'दीप' जीवन के सजे तुमसे,
रहें जलते इन्हें दीया सलाई दो।
जितेंदर पाल सिंह 'दीप'
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📒सिंधु छंद
21 मात्रिक
1,8,15 वीं मात्रा लघु
1222 1222 1222
🌴
बढ़ा ही जा रहा रोग कोरोना।
नहीं उपचार है इसका यही रोना।
सजायें अब मिली हमको कहाँ माफ़ी।
उजाड़े जीव के कुनबे यही काफी।
🌴
कहो कैसा लगा मरघट सजाना यूँ।
हजारों जीव तुमने मार खाये क्यूँ।
नही छोड़ा न छोड़ेगा कभी तुमको ।
व्यवस्था न्याय की ऐसी कहूँ तुमको।
🌴
घरोंदे रेत ईंटों के कहाँ कमियाँ।
सदा तुमने उजाड़े वन कभी बगियाँ।
सुधारो कर्म अब भी तुम करो वादा।
करोगे प्यार जीवों से कहो ज्यादा।
✍
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़ राज।
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सिंधु छ्न्द (मात्रिक)
त्रेलोक जाति का 21 मात्रिक छ्न्द
1,8,15वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य
1222 1222 1222
बहुत प्यारे यहाँ अद्भुत सितारे हैं,
बड़ी ऊँची यहाँ देखो मिनारें हैं।
भरा है ये शहर पूरा कलाओं से,
बनीं हैं मूर्तियाँ प्राचीन भावों से।
नयन है खोलती शोभा गुफाओं की,
कला से है बहे प्रिय रस सुधाओं सी।
सजी ये प्रेम की प्रतिमा बुलाती हैं,
चमकती चाँदनी से ये नहाती हैं।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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सिंधु छ्न्द (मात्रिक)
त्रेलोक जाति का 21 मात्रिक छ्न्द
1,8,15वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य
1222 1222 1222
1-हमेशा ही जहाँ उर में कुटिलता है।
वहीं होती सदा व्यापक जटिलता है।।
मनुज देखो!हृदय कितनी विकलता है।
कहीं दिखती नहीं हिय में मृदुलता है।।
2-हृदय में जो मनुज रखते सरलता हँ।
सदा मन में अमिअ मधुरिम तरलता है।।
पराई पीर से मन में विकलता है।
उन्हीं में भाव की अद्भुत विरलता। है।।
3-यहाँ अस्तित्व में जिसके कुशलता है।
समय की मांग पर प्रतिपल बदलता है।।
गिरे फिर भी पुनः जो नित्य चलता है।
वही तकदीर भी अपनी बदलता है।।
4-जहाँ मृदुभाव की उर में विपुलता है।
नहीं मन में जहाँ कोई शिथिलता है।
वहाँ हरगिज नहीं मिलती विफलता है।
सदा कृष्णा वहीं पर चिर सफलता है।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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*सिंधु छंद (त्रेलोक जाती का 21 मात्रिक छंद)
नियम--
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*इस छंद के हर चरण में 21 मात्राएँ होती है।
*हर चरण के आदि में लघु वर्ण अनिवार्य है।
*पहली ,आठवीं और 15 वीं मात्रा लघु अनिवार्य
* मात्रिक मापनी -1222 1222 1222
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1222 1222 1222
कहीं रूठा हुआ मुझसे सवेरा है,
नयन में बस अँधेरा ही अँधेरा है।।
हिया को पीर देते हर्ष के भी क्षण,
दुखों ने इस तरह से आज घेरा है।।
यहाँ अपने पराये हो गये जबसे,
कहे विपदा समय का देख फेरा है।।
विरह की वेदना में कट रहा जीवन,
तुम्हारे प्यार का मन में बसेरा है।।
रहूँ चुप तो सभी कातर समझते हैं,
कहूँ कैसे कि सारा दोष तेरा है।।
पथिक मन ढूँढता फिरता सुगम पथ को,
किधर जाऊँ यहाँ किस ओर डेरा है।।
मिलन की आस है मन में चले आओ,
तुम्हारे बाद जग में कौन मेरा है।।
@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 20/02/2020
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🌹नमन साहित्य अनुरागियों🌹
#सिंधु छंद:-त्रेलोक जाती का 21 मात्रिक छंद।
इस छंद के हर चरण में 21 मात्राएँ होती है।
हर चरण के आदि में लघु वर्ण अनिवार्य है।
पहली ,आठवीं और 15 वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मात्रिक मापनी
1222 1222 1222
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शिवांगी!आहना शुचि कोष की तुम हो।
चराचर इस जगत के घोष में तुम हो।
हिमालय की सुता,कैलाश-कैलाशी,
शिवालय शोभना,सौंदर्य,सुखराषी।
प्रिया हो वल्लभा!शंकर,सदा-शिव की,
शिवा हो इस जगत में जागृती जय की।
उमा-गौरी!शिवालिक साधिका अन्वय,
शिवा-शंभु!प्रवालिक प्रार्थना तन्मय।
सनातन सत्य शिव है,दिव्य-दिगंबर,
महागौरी विराजित,शोभिता सुंदर।
महाशिवरात्रि उत्सव ओजसी वंद्या,
निशी-वासर,निरत-रत,आरती,संध्या।
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स्वरचित:-रागिनी नरेंद्र शास्त्री
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मापनी--1222 1222 1222
त्रेलोक जाती का 21 मात्रिक छंद।
इस छंद के हर चरण 21 मात्राएँ होती है । आदि में लघु अनिवार्य है ।पहली आठवीं 15 वीं मात्रा लघु।
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शिवा शम्भू जपो शम्भू उमापति शिव!
भजो शम्भू कहो शम्भू रमापति शिव!
दिया जग को नया जीवन त्रिमूर्ति तुम।
कला के देवता तुम हो विधाता तुम ।
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बड़ी है आस सबको हे शिवा-शंभू ।
जगत कर्ता सिया पति बन्दगी शंभू।
अघोरी हो कहें दुनिया सभी शंभू।
सजल ही तो बहाना नीर है शंभू।
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त्रेलोक जाती का 21 मात्रिक छंद।
इस छंद के हर चरण 21 मात्राएँ होती है । आदि में लघु अनिवार्य है ।पहली आठवीं 15 वीं मात्रा लघु।
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शिवा शम्भू जपो शम्भू उमापति शिव!
भजो शम्भू कहो शम्भू रमापति शिव!
दिया जग को नया जीवन त्रिमूर्ति तुम।
कला के देवता तुम हो विधाता तुम ।
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बड़ी है आस सबको हे शिवा-शंभू ।
जगत कर्ता सिया पति बन्दगी शंभू।
अघोरी हो कहें दुनिया सभी शंभू।
सजल ही तो बहाना नीर है शंभू।
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1222 1222 1222
डमक डमडम डमक डमडम डमक डमडम।
डमक डमडम डमक डमडम डमक डमडम।
डमक डमडम डमक डमडम डमक डमडम।
अलख शिव की जगाएं हैं डमक डमरू।।
डमक डमडम डमक डमडम डमक डमडम।
डमक डमडम डमक डमडम डमक डमडम।
डमक डमडम डमक डमडम डमक डमडम।
अलख शिव की जगाएं हैं डमक डमरू।।
शिवा भक्ति शिवा शक्ति दिशा सारा
जपूं हे!नाम शक्ति का मिला प्यारा।
हिमालय से जटा में हो समाई खुद।
चली आओ नदी गंगा बहा दो तुम
जपूं हे!नाम शक्ति का मिला प्यारा।
हिमालय से जटा में हो समाई खुद।
चली आओ नदी गंगा बहा दो तुम
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Vini Singh
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सिंधु छंदत्रेलोक जाती का २१ मात्रिक छंद
हर चरण के आदि में लघु अनिवार्य
१२२२ १२२२ १२२२
कभी जो रूठ कर तुम जो चले जाते।
कभी जो साथ प्यारा छोड़ कर जाते।
जला के आग मन में तू जिया कैसे?
धुआँ बन के उड़ूँ जो तो खिलूँ कैसे?
बता मुझको कभी तो हाल ये सारा।
कभी तो भाव अपने भी जता यारा।
दबी जो आह ओठों पे उसे तोड़ो
घटे हुए पलों को अब यही छोड़ो।।
अकेला तू नहीं हूँ संग ये जानो ।
खिलेगी ज़िंदगी जो साथ ये मानो ।
बनूँ मैं छाँव तेरी तू घना साया।
जगी है चाह क़िस्मत से तुझे पाया।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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#सिंधु छन्दत्रिलोक जाति का 21 मात्रिक छन्द,
पहली, आठवीं, पंद्रहवी, मात्रा लघु,
प्रति चरण 21 मात्रा,
दो दो या चारो चरण समतुकांत।
मात्रा विधान
1222 1222 1222
जटाधारी सदाचारी, कृपा कीजै,
सुनो भोले बसे शिखरों, दया कीजै,
शिवा शंकर महादेवा, करूँ विनती,
जपूं माला सदा शिव की, बिना गिनती।
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जगत के नाथ हो स्वामी, तमस हर लो,
दया शंकर कृपाशंकर, विपद हर लो,
बुलाते हैं शिवा तुमको, नयन मेरे,
डराते हैं अँधेरो के, सघन घेरे।
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हरो संकट प्रभू शंकर,सहारा तू,
घिरी तूफान में नौका,किनारा तू,
उजाले दे,सहारे दे, शिवा भोले,
खड़े हैं द्वार में तेरे, हिया डोले।
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पियो माहुर जली ज्वाला,बुझाना है,
बढ़े पापी धरा आओ, मिटाना हैं,
नयन खोलो इधर देखो, गिरीमाली,
बड़ी महिमा अनघ भोले,अति निराली।
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बही गंगा जटा से शिव,चरण नीरज,
जगत पालक त्रिलोकी को, चढ़े क्षीरज,
डमक बाजे डमक डमरू,जयति शंकर,
हरो हर हर बसो घर घर, दयाशंकर।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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