Saturday, February 29, 2020

बिहारी छंद- Hindi poetry






Explained By Shri Arvind Chasta , Kapasan chittorgarh Raj.

🌹अनुरागी नमन 🌹
बिहारी छंद
जाती महारौद्र


आओ सब मिलकर लिखें
छंद बिहारी आज।

चौदह आठ पर हो यति,

बने सृजन सब काज ।।

बने सृजन सब काज ,

मात्राएँ हो बाईस।

साहित्य रक्षण हो,

हे मात वरो आशीष।

यही कलम का धर्म,

नित नूतन काव्य सीखें

यही आज का छंद,

आओ सब मिलकर लिखें। ।।
22 मात्रिक बिहारी छंद
14 -8 पर यति,
दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत।
मापनी स्वेच्छानुसार ली जा सकती है।
छंद लेखन के अन्य नियम समान ।
उदाहरण🍁🌴
साँझ की सुंदरी आई , फैली लाली।
लौट आये सभी पाँखी , सजती डाली।
देवालयों पे लगे जुटने , ध्यानी ज्ञानी ।
नित्य होती आराधना , यही कहानी।


अरविन्द चास्टा

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 बिहारी छन्द(जाति:महारौद्र)

22 मात्रिक

14, 8 यति

प्रयुक्त मापनी: 2121 2211 2, 2222


काल चक्र से कौन बचा, सुन रे प्राणी,

प्रेम भाव से जाप सदा, गुरु की वाणी।

द्वेष क्लेश से दूर रहो, जग में सबसे,

धर्म कर्म को अर्थ मिले, रहना ऐसे।


राज काज संसार सभी, जन छूटेंगे,

कालभैरवी जिस दिन भी, सुन रूठेंगे।

कर उपाय हरि प्रेम बढ़े, मन में ऐसा,

अंतकाल हरि धाम मिले, मंदिर जैसा।


स्वप्न रूप संसार जिसे, सच्चा माना,

हर्ष शोक क्षणभंगुर है, किसने जाना।

मित्र भ्रात सुत मात पिता, संगी साथी,

देह संग संबंध बने, नहि परमार्थी।


राजनीति ने भेद दिया, भाईचारा,

मारकाट कर बाँट दिया, भारत प्यारा।

भेदभाव का तंत्र चले, ईर्ष्या फैली,

क्षीण हो चुकी मानवता, आत्मा मैली।


छल-कपट से कर्म करे, दम्भी मानव,
अब मनुष्य का रूप धरे, घूमें दानव।
ज्ञान ध्यान की बात करें, भीतर माया,
धर्म देख व्यापार बना, कलयुग छाया।

जितेंदर पाल सिंह

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बिहारी छंद

महारौद्र जाती छंद,२२मात्रिक छंद है

१४-८ पर यति


मेरे भोले भंडारी, जग के स्वामी।

महिमा बहुत निराली है, पर्वत धामी।

जटा तिहारी गंगा माँ, निर्मल धारा।

भाव भक्ति का सागर है,भोला न्यारा।।१।।


पिया कभी विष का प्याला, वह बना सुधा।

शिव की भक्ति तृप्ति करती , है सदा क्षुधा।

बिल्वपत्र के साथ धतूरा, धृत मधु चढ़ते।

मुंड माल सँग नाग भस्म, में शिव दिखते।।२।।


नंदी,डमरू,त्रिशूल की,लीला न्यारी।

नित्य कैलाश विराजे, शिव त्रिपुरारी।

नीलकंठ भोला लागे, महाकाल वो।

कर दे दूर कष्ट सारे, बने ढालजो।।३।।



सुवर्णा परतानी

हैदराबाद

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बिहारी छंद

महारौद्र जाती छंद,२२मात्रिक

१४-८ पर यति


साँवरे आकर बचा लो,लुट रही लाज।

दुःशासन भी घूम रहे,कितने आज।।

हृदय बसते रावण यहाँ,पाप का राज।

काश पुनः आता सुखमय,रघुवर सुराज।।


पाप के ताप से जलता,यहाँ ऋतुराज।

पूण्य,धर्म,प्रेम खो गया ,कहीं कविराज।।

भाव शून्य हो गया यहाँ,इंसान आज।

विकृत अब हो गया देखो,सारा समाज।


भूखों मरें आदमी अरु, सड़ता अनाज।।

द्वेष और स्वार्थ से सदा,बनता न काज।

पापियों को मारिए बन,आप अब बाज।

अरि मर्दन कीजिए आप,वीर अविराज।



कृष्णा श्रीवास्तव

हाटा,कुशीनगर

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बिहारी छ्न्द
महारौद्र जाति ,22 मात्रिक, 14 , व 8 पर यति,
दो दो या चारो चरण समतुकान्त


हे बांके बिहारी लाल , तुम दया करो ।
है नैया घिरी मझधार, प्रभु कृपा करो।
तेरा है नाथ सहारा , हे मुरलीधर।
तू जगत करे उजियारा , जै हो श्रीधर।

दुःख से जीवन घबराए , तुम साथ रहो।
है व्याकुल मेरा ये मन , कुछ घात न हो।
गिरधर गोपाल का नाम , मैं जपा करूं।
कर दो सफल मेरे काम ,हिय तुझे धरूं।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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बिहारी छंद (जाति :महारौद्र )
22 मात्रिक
14, 8 यति

प्रयुक्त मापनी :2121 2211 2 , 2222

भेद भाव संसार घटे ,फैला ऐसा ,
घोर क्लेश से तंग सभी , मानव ऐसा ।
कौन मोह से साथ यहाँ , जग में देता ,
प्रेम प्यार की बात करे ,मन में रहता ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

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#साहित्य_अनुरागीयों!सादर नमन,,,,,,,,
22 मात्रिक बिहारी छंद(महारौद्र-जाती)
14 -8 पर यति,

दो दो अथवा चारों चरण सम तुकांत।चरणांत गुरु उत्तम,किंतु अनिवार्य नहीं,,,,,,
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सुहानी भोर आई है,जाग सखी री।
लुभाता ओज लाई है,दिशा चितेरी।
सुनो री!साज बन कर मैं,गीत सुनाऊँ।
ललित सी भैरवी गाऊँ,हरी!रिझाऊँ।

पुरवा चली सुहानी ये,पवन बसंती।
लगती भली दिवानी वो,देख मचलती।
सुन लो आज,तुम्हें गाना,गीत सुहाना।
तुम दे गीत,नया जाना,मीत सुनाना।

अरुणि उषा बन के आई,नवल किशोरी।
धरती हरीतिमा लाई,नाचत गौरी।
पंछी गाते,मृदुल-गीत,नभ में झूमें।
सबके मन को हर्षाते,इत-उत घूमें।

विभु!नीरव-राग,बजा दो,शुचि गान बहे।
रवि-राज!विहंग,सजा दो,द्युतिमान गहे।
विधु!शीत-सुधा,बरसा दो,अभयम् सुखदा।
पुनि,काव्य-विधा,महका दो,भवितव्य सदा।

यश-कीर्ति,अलभ्य विधा है,ये तो जाना।
यह देह,विदेह,मृदा है,हमने माना।
अणु मात्र,अहं,दुविधा है,कटु सत्य यही।
कण मात्र,नता,वरदा है,सु-अमर्त्य वही।
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#रागिनी _नरेंद्र_शास्त्री

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बिहारी छन्द, महारौद्र जाति,
22 मात्रिक ,14,और 8 पर यति
दो दो या सम चरण या चारो चरण तुकांत।

विषय- शिव महिमा गान

हे!नीलकंठ त्रिपुरारी,
गिरिजा शंकर,
बसते धरती शिखरों पर,
कंकर कंकर,
हे!महादेव नागेश्वर,
पार लगाओ,
हर हर हर लो भव बाधा,
दरश दिखाओ।

*********************
हे!गंगाधर जगपालक,
शंकर भोले,
हे!करुणा निधि करुणाकर,
बम बम बोले,
हे!जटाधीश हे यजन्त,
महिमा तेरी,
घट घट वासी दयानिधे,
प्रभुता तेरी।
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हर लो विपदा हे महेश,
औघड़दानी,
हे! भूतनाथ शशिशेखर,
अंतरयामी,
हे!गणनाथ प्रलयंकार,
वारी जाउँ,
हे!मंगलेश हर कलेश,
द्वारे आऊँ।
*********************
धरती का कल्याण करो,
हे शिव मलंग,
भव सागर से पार करो,
हे अघ अनंग,
हे! भस्मेंश्वर वामदेव,
पालनहारी,
तेरे नाम अनेक अनघ,
करुणाकारी।
******************
संकट में आज धरा शिव,आप बचाओ,
बढ़े रिपुदल हे त्रिलोकी,शूल उठाओ,
हे!संकट मोचन शम्भू,चन्द्र धारी,
नीरज करती वंदन पद, हो बलिहारी।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)


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