Sunday, December 22, 2019

शुभोदर छंद- Hindi poetry


Explained By Shri Abhay Anand Ji Lakhnau

शुभोदर छंद
नमन साहित्य अनुरागी। साहित्य अनुरागी के समस्त गुणीजनों को नमन करते हुए मैं अभय कुमार आनंद आपके समक्ष नवाक्षर (९ वर्णिक) छंद की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए बेहद सुंदर छंद शुभोदर (भ भ भ) तीन भगण अर्थात
गुरु लघु लघु गुरु लघु लघु गुरु लघु लघु
लेकर उपस्थित हुआ हूँ।
मो गुणवंत शुभोदर। लेखत दिन सहोदर।
तो सम कौन सहायक।तूहि सदा सुखदायक।।


छन्द प्रभाकर।
वर्णवृत्तों में गणों का काम पड़ता है। तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं।ये गण 8 हैं। जिसकी चर्चा हमलोग पहले कर चुके हैं।आज हम अभ्यास करेंगे तीन भगण का ।भगण (गुरु लघु लघु) का अवतार सप्तम-भानुज(रामचंद्र), स्वामी- शशि, फल यश है। व्याख्या- भानुवंशी रामचन्द्र जी का शीतल यश संसार में विदित है। भगण में एक दीर्घ के पश्चात दो लघु स्वर का समान बल होता है।
१.शुभोदर छंद में तीन भगण होते हैं ।
२. चार चरण जिसमें चारों चरण समतुकांत या दो -दो चरण क्रमशः समतुकांत होते हैं
३. चरणान्त में यति

उदाहरण :
राम-सिया मनभावन।
बेहद रूप सुहावन।
राम वसें हिय अंदर।
हैं भगवान सहोदर।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व

लखनऊ उत्तरप्रदेश
------------------------------------------------
शुभोदर छंद(नवाक्षरवृति वार्णिक छंद)
[भगण भगण भगण
211 211 211


सोच सदा रख नूतन,
सार्थक और चिरन्तन।
मानवता सुख उत्तम,
बात यही अतिउत्तम।।

अन्तस हो मृदु धारक,
विश्व सदा सुख कारक।
अंतस पावन प्रेमिल,
हो उर सादर नेहिल।।

जातियता अति बाधक,
प्रेम बने सुख साधक।
पाठ रहे उर अन्दर,
जीवन हो अति सुन्दर।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
-------------------------------------------
सादर 🙏 प्रेषित
मान पिया मनमोहन।
जान जिया मम जीवन।
आन मिलो मुरलीधर।
प्राण बनो उर भीतर।
नीलम शर्मा 
----------------------------------------------

शुभोदर छंद
नवाक्षरवृत्ति वार्णिक छंद,


२११ २११ २११ (भगण भगण भगण)

जीवन का पल व्याकुल।
नैन बने अब आकुल।
बैरन हो तब सावन।
छोड़ गए जब साजन।

शूल चुभे मन अंदर।
आग लगे तन भीतर।
टूट चुकी मृदु चाहत।
आज हुयी प्रिय आहत।।

ये बरखा धुन जाचक।
जो खिलता नव मादक।
राग बने तब दाहक।
प्रेम जले बन नाशक।।

भाव जगे उर भीतर।
बेबस आज समंदर।
रास नहीं जग जीवन।
पार भए सब बंधन।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
-------------------------------------
 "शुभोदर छन्द "
(नवाक्षर वर्णिक छन्द)
भगन भगन भगन

211 211 211

पावस मास सुहावन,
ये बदली मनभावन।
दादुर शोर मचावत,
है मधु गीत सुनावत।

शीत बयार बहावत,
सूखल पेड़ गिरावत।
लागत ॠतु भयानक,
बारिश होय अचानक।

देखत घोर घटा जब,
नाचत मोर खुशी तब।
खेत किसान हरा अब,
नाचत गाबत हैं सब।

शंकर राख लगावत,
नाग गले लिपटावत।
शोभत देव जटाधर,
सावन मास उमा घर।

रंजना सिंह "अंगवाणी बीहट"
बेगूसराय,बिहार
-----------------------------------------------
 "शुभोदर छन्द"
(नवाक्षर वर्णिक छन्द)
भगण भगण भगण

211 211 211
जीवन का सुख बाधक।
साधु सधे मुख साधक।
हूँ बलवान सहूँ तन ।
क्यू समझा नहि है मन।

विनी
--------------------------------------------
🌹नवाक्षरवृत्त🌹
शुभोदर छंद
भगण×3
2
11 211 211
🌹
सादर वन्दन मोहन,
स्वागत है मनमोहन।
आपहि जीवन दायक,
है जग पालक मोहन।
🌹
कानन कानन माधव,
आगम दर्शक माधव।
मोहक मादक मंगल ,
गोकुल रक्षक माधव।।

🌹🙏
अरविन्द चास्टा
कपासन चित्तौड़गढ़

___________________________
 !!शुभोदर छन्द!!
(नवाक्षरवृति छन्द 9 वर्ण)
(भ भ भ) भगण भगण भगण

मापनी:- 211 211 211
विषय- माखन चोरी

गोकुल धेनु चरावत,
मोहन मात बतावत,
फोड़ दई दधि गागर,
मौन भये नट नागर।
*********************

क्षीर सखा सब खावत,
झूठहि नाम लगावत,
लेप लगाय दियो मुख,
नैनन देख मिले सुख।
********************
माधव वेणु बजावत,
गौ नित रेणु उड़ावत,
क्षीरज ग्वाल सखा मिल,
केशव गात गए खिल।
*******************
आँगन माधव खेलत,
मात यशोमति देखत,
चाँद सितार दिखावत,
मोहन गोद बिठावत।
********************
मोहक माखन खावत,
देख लाल मुस्कावत,
केश सुहावत कुंतल,
नीरज लोचन चंचल।
*********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल

---------------------------------------------
शुभोदर छन्द (वर्णिक)
भगण X 3 (211 211 211)

बंधन तोड़ दिए सब,
छोड़ शरीर चला अब।
मानस की गति ये बस,
छूट गए जग के रस।

मात-पिता बनिता सुत,
रोवत देख पड़ा मृत।
क्यूँ अभिमान करो जन,
छूटत निश्चित ये तन।

मानस जन्म मिला जब,
मोह तजो जग के सब।
कर्म करो बन सज्जन,
नाम जपो हरि का मन।

दुर्लभ मानस का तन,
भाग्य बड़े मिलता सुन।
पार करो भवसागर,
प्रेम भरो मन गागर।

ध्यान धरो हरि का नित,
लिप्त रहो पर के हित।
नाम लगे मनभावन,
भाग्य बने शुभ पावन।

जितेंदर पाल सिंह

-------------------------------------------------
शुभोदर छंद-
211211211
जीवन रूप अलौकिक
मानव जीवन भौतिक
सागरिका सुख की यह
क्षीण शिखा दुख की यह।

शोभित रूप दिवाकर
प्राण भरे नित आकर।
पुष्प सुलोक लुभावन
भोर लगे अति पावन।

प्रेरक सत्य सनातन
नित्य करो अभिवादन
मात पिता गुरु प्रेरक
जीवन राह सुधारक।

मानवता अभिकारक
कोटिक प्रेम विचारक।
पाठ पढ़े नित सुन्दर
भाव भरे हिय अन्दर।।

वृक्ष हमें फल देकर,
दाम नहीं कुछ लेकर
है परमारथ जीवन
मानव प्राण सजीवन।

राह शिला बन आकर
प्राण सप्रेम निछावर।
राम बने शुचि तारक
प्रेम उपासक कारक।

गीता गुप्ता 'मन'

------------------------------------------------
शुभोदर छ्न्द(नवाक्षरवृत्ति वर्णिक छ्न्द)
211 211 211
सोच लिया मन में जब
काज तभी कर ले सब
ठोकर खा कर तू चल
सुन्दर जीवन है कल
.......
वर्ष नया यह है प्रिय
प्रेम बसे ‌सबके हिय
हो शुभ लाभ सदा जग
बोलत कोयलिया खग
......
छाय रही खुशियां अब
गूंज रहा धरती नभ
बीत गया यह ‌जो पल
सुन्दर हो अपना कल
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

-----------------------------------------------
शुभोदर छंद (नवाक्षरवृति वार्णिक छंद )
भगण। भगण भगण


211 211 211

ये मन हो अब साधक,
हो न यहां अब बाधक ।
प्रेम रहे मन अंदर ,
स्नेह जगे हर मंदर ।

पुष्प रहे मन पावन ,
फूल खिले हर सावन!
पेड़ सजे हर आँगन,
वृक्ष लगे जग साजन ।

प्यार सभी अब देकर,
प्रेम सभी अब लेकर !
मान सभी कर जाचक,
बोल मिठे कर वाचक ।

दो न यहाँ दुख मानव,
जीवन हो सुख दानव !
मान सभी जग में अब,
नाम चले नभ में अब ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
--------------------------------------------
नमन साहित्य अनुरागी 🙏

शुभोदर छंद
211 211 211

----------------------------
द्वंद बड़ा सहता मन ।
दर्शित किन्तु नही तन।।
घाव अनेक लिये हिय ।
होठ सदैव रखे सिय।।

आप लड़े उर में रण ।
देह नही लघु सा कण।।
मानस साक्ष्य बना रख ।
जीवन खार रहा चख।।

आज कहूं धीर धर ।
मंथन वो पीर कर।।
थाति रहे बन जीवन।
साथ यही घन सा वन।।

आत्म सुज्ञान बसे यह।
लेख विधान बदे सह।।
कर्म भले करता चल ।
राह नई गढ़ता चल।।

जो मिलता कह क्या कम।
लाभ नही दृग हो नम ।।
अर्पित जीव करूँ निज।
कष्ट सभी मन के तज।।

ललिता
           

Wednesday, December 18, 2019

कामना छंद - Hindi poetry


Explained By Smt. Suvarna partanij ji Haidrabad
कामना_छंद
🙏😊🙏नमस्कार साहित्य अनुराग🙏😊🙏

🙏प्रेम वंदन मेरे सभी प्यारे आदरणीय कलम कार और मेरे अज़ीज़ साथियों को।🙏

🌹छंद शृंखला अंतर्गत आज मैं आपकी दोस्त *सुवर्णा_परतानी* आप सब के समक्ष एक नया छंद *“कामना_छंद”* लेकर आयी हूँ।🌹
साहित्य अनुरागी के सभी होनहार,प्रतिभावान,दमदार सदस्यों की पढ़ने और लिखने की लालसा देखते हुए हम आज इस नए छंद पर लिखेंगे।✍️
*“कामना छंद”* नवाक्षर वृत्त का छंद है,
लक्षण....न तर को शुद्ध कामना है।

मापनी....111(नगन) 221(तगण) 212(रगण)
************************************
उदाहरण....

न तरु की डार,काटरे।
रहत तू जाहि,आसरे।
तजहुरे दुष्ट वासना।
धरहुरे शुद्ध कामना।

(प्रभाकर छंद से)
***********************************

जतन सारे सजे-सजे।
निकट लाए तुझे-मुझे।
अधर क्यूँ है सिले-सिले।
नयन लागे गिले-गिले।।

सजन स्वीकार ये जरा।
वचन दे दो हमें खरा।
प्रणय की जो उमंग है।
मिलन की ये तरंग है।।

सुखद लागे प्रसंग ये।
सुरभि छायी प्रचंड ये।
गहन लागे निनाद ये।
मधुर लागे प्रमाद ये।।

सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
************************************

 कामना छन्द(वर्णिक)

नवाक्षरवृति छन्द

नगण(111)तगण(221) रगण(212)


समय के साथ है चले,
मनुज की उम्र ये ढले।
निकट है मृत्यु सामना,
नित बढ़ी जाय कामना।

मन नहीं मृत्यु से डरे,
व्यसन में लिप्त ये रहे।
सुध नहीं राम नाम की,
तिष बढ़ी लोभ काम की।

मन दिशा हीन हो रहा,
जगत के कर्म ढो रहा।
विमुख है पुण्य कर्म से,
विहीन है नाम मर्म से।

भजन गाओ मिले मुक्ति,
भव करो पार है युक्ति।
मत करो संग दुष्ट का,
नित भजो नाम ईष्ट का।

गुरु मिले भाग्य साथ हो,
तब सही ज्ञान नाथ हो।
सफल हो जाय जन्म ये,
रस हरे नाम जो पिये।

जितेंदर पाल सिंह

-------------------------------------
 कामना छंद

नवाक्षर वृत्त का छंद है,

लक्षण ..... न तर को शुद्ध कामना है ।
मापनी ....१११नगन
२२१ तगण
२१२ रगण

111 221 212
पवन देखो यहाँ चली
जगत में आस है पली
निकट से राह यूँ मिली
दफन ये साँस है खुली ।

सबक ये यहाँ ही रहे
सुखद ये राह ही रहे
मुँह यहाँ मान से खुले
नित यहाँ मैल ये धुले ।

हर घड़ी हो खुशी यहाँ
सब रहे यूँ सुखी यहाँ
भगत का मान बंद हो
दुखद में गंद बंद हो ।

नित जपो नाम यूँ सभी
न मन ये हो दुखी कभी
हम सभी हो सुखी यहाँ
सब जपे यूँ खुशी जहाँ ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

-------------------------------------
“कामना छंद”* नवाक्षर वृत्त का छंद है,

लक्षण....न तर को शुद्ध कामना है।


मापनी....111(नगन) 221(तगण) 212(रगण)


पवन भाए, मुझे तुझे
तपन प्रीती लगे बुझे।
गगन मेघा भरे चले,
जतन मेवा करें मिलें।।

सुखद प्रेमी प्रमाद है,
सुरमयी सा संवाद है।
विनय को मान लीजिए|
प्रणय को जान लीजिए।

हरण कान्हा हिया किया,
शरण राधा जिया दिया।
भरम यूँ ही बना रहे,
करम से साथ तू गहे।

शरद पूनो कली खिले,
नयन नीले नलिन मिले।
सपन साझे सदा फले,
लगन विरहा यदा पले।।
नीलम शर्मा -

---------------------------------------
कामना छंद(वार्णिक)
नवाक्षरवृति छंद
नगण तगण रगण

111 221 212

शमन आतंक का करें।
मन सदा शौर्य से भरें।।
विशद धारा सदा बहे।
वतन मेरा यही कहे।।

उर करे साधना यही।
कर रहा कामना सही।।
सरस,प्यारे,महान हों।
मनुज सारे समान हों।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर

------------------------------------
कामना छ्न्द (वर्णिक)

111 221 212

लिख रहे आज कामना,
गिर रहे हाथ थामना।
भँवर में हूँपड़ी यहाँ।
सँभल जाऊँ गिरूँ जहाँ।
.....
निखरते शब्द बोलती,
विनय के भाव खोजती।
तब कहे हाथ जोड़ के ,
जब चले साँस छोड़ के।
......
भय तुझे क्युँ सता रहा ,
समय का मौन छा रहा।
निकट ही मृत्यु आ रही,
बिखर के भोर जा रही।
......
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

----------------------------------------------------
 "कामना छन्द"
नवाक्षरवृति छन्द
मापनी-१११ २२१ २१२


सघन मेघा धरा घिरे,
रजत मोती नदी भरे,
कुहुकिनी डाल कूकती,
कुमुदिनी ताल फूलती।
********************
चमकती मेघ दामिनी,
तरसती नाथ वामिनी,
सुरभि भाये सुहावनी,
मदन छेड़े सुरागिनी।
*********************
विकल नैना प्रिये बहे,
अगन तेरी जिया गहे,
पलक राह निहारती,
सजन आओ पुकारती।
**********************
झलक तेरी पिया मिले,
मुदित मेरा हिया खिले,
मगन गाये सुभाषिनी,
निखर जाये सुहासिनी।
*********************
ह्रदय ही प्रीत साधना,
सफल हो मीत कामना,
नयन में दीप लौ जले,
मिलन की आस में चले।
*********************
चपलता मौन धारती,
सपन साकार वारती,
उदधि आकाश छू रहा,
पवन देखो भिगो रहा।
*********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर( छत्तीसगढ़)

-------------------------------------
कामना छन्द(वर्णिक) - न त र
{नवाक्षरवृति छन्द}
मापनी - नगण(111)तगण(221) रगण(212)
**** **** **** ****
व्यथित हैं लोग देखिए,
किसलिए प्राण दे दिए,
नयन तो आप खोलिए,
अब सही बात बोलिए।।


भ्रमित है नीति आपकी,
छल रही प्रीति आपकी,
असत की नींद सो लिए,
सच सभी दूर हो लिए।।

दिन ढले रात हो गयी,
कटु तभी बात हो गयी,
हम कहे क्या यहाँ अभी,
तुम सुने क्या वहाँ अभी।।

हम जिसे जी लिये यहाँ,
दिन कभी लौटते कहाँ,
गिर पड़ेंगे यहाँ कभी,
सजग हो जाइए अभी।।

चल करें बात काम की,
प्रभु, खुदा, राम नाम की,
अस रहे भावना सभी,
सुफल हो कामना सभी।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 26/12/2019

Friday, December 13, 2019

रलका छन्द-- Hindi poetry







Explained By Mr. Jitender Pal singh ji
वर्णिक छंन्दों की अगली शृंखला में हम वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्दों का अभ्यास करेंगे।
प्रथम छन्द निम्नलिखित है--
"रलका"।
(म स स)
मापनी: मगण(222) सगण(112) सगण(112)




बाहों में सजना भर ले,
मेरे को अपना कर ले।
तेरे संग चलूँ सजना,
छोड़ूं बाबुल का अँगना।

तू है जीवन का गहना,
मेरे साथ सदा रहना।
तेरी दुल्हन मैं बन के,
डोली बैठ चलूँ सजके।

साथी जीवन का बन जा,
मेरे को मत तू तरसा।
लागी प्रीत निभा मुझ से,
मांगा है तुझको प्रभु से।

नैनों में छवि प्रीतम की,
रातों नींद उड़ी इनकी।
तेरा रूप सजे वर का,
सातों जन्म बनूँ बनिता।

मेरी मांग भरो सजना,
पूरा प्रीतम हो सपना।
आये द्वार पिया मिलने,
आशातीत लगी लगने।

जितेंदर पाल सिंह
____________________________
रलका छन्द

(म स स)
मापनी: मगण(222) सगण(112) सगण(112)

222 112 112
आशा बाँध रही सजना।
मेरा काम तुम्हें भजना।।
मेरे श्याम मेरा गहना।
मेरे प्राण सदा रहना।।

आओ हे मनमोहन जी
साजो थे उर आँगन जी।।
कान्हा केशव काल कला।
न्यारा नीलम नैन लला।।

पीतांबर सजे तन पे।
प्रेमी प्यास पले पनपे।।
राधेश्याम मिलें वन में।
ज्यूँ फूटें कलियाँ मन में।।

देंखें बाट नयन किसकी?
राधा हृदय बंधी सिसकी।
लागे नैन पिया तुमसे।
माँगा आज तुम्हें तुमसे।।
नीलम शर्मा 

-----------------------------
 वर्णिक छन्द

छन्द-"रलका"।
(म स स)
मापनी: मगण(222) सगण(112) सगण(112)

मेरे जीवन में सजना,
नैना काजल सा बसना।
पाया दौलत में गहना,
संगी ही बन के रहना।

मेरी याद सदा रखना,
यादों को जमके चखना।
आते हो जब तू सपने,
रातें भी लगती तपने।

बातों में बहला कर तू,
यादों में सहला कर तू।
धोखा दे कर हो छलते,
जैसे सूरज हैं ढ़लते।

मेरे हो प्रिय साजन तू,
मैं रानी सुन राजन तू।
तेरे साथ चलूँ सजके,
जैसे पायल है खन के।

साथी साथ निभा कर जा,
बाहों में मुझको भर जा।
सातों जन्म रहूँ सजनी,
बीते संग दिवा - रजनी।

रंजना सिंह "अंगवाणी बीहट"

--------------------------------------
रलका छंद


ये वार्णिक छंद है,नवाक्षर वृत्ति छंद

मापनी...मगन (२२२)सगण (११२)सगण (११२)


आए जो अपने बन के।
कैसे वो रहते तन के?।।
आँखों में घुलते रहते।
आँसू सागर से बहते ।।

छायी है गरमी तन में।
बातें जो झलकी मन में।
आएँगे घर जो सजना।
लज्जा से झुकते नयना।।

प्यारी सी लगती रजनी।
ज़ोरों से चलती धमनी।
जैसे घायल हो हिरणी।
प्यारी सी महिमा लिखनी।।

हौले स्पंदन ये धड़के।
बाहों में जियरा भड़के।
ज्वाला ये उमड़ी गहरी।
काया का बनके पहरी।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
---------------------------------------
🌹रलका छंद🌹
नवाक्षरवृत
222 112 112
🌹

सूना है लगता मुझको,
खोना है लगता मुझको।
जाने क्यों सुनता रहता,
जीना या मरना मुझको।।
🌹
फूलों की खुशियाँ बिखरी,
बागों की कलियाँ बिखरी।
देखूं ये सहता कुढ़ता,
आँखों की बतियाँ बिखरी।।
🌹
रातों में जगते रहते,
बातों में पलते रहते।
छेड़े यूँ अबला मन को,
वादों में हँसते रहते।।
🌹
काली मावस की रजनी,
जैसे आतुर हो सजनी।
सारा वैभव है उतरा
मेरे भाव बसे सजनी।
🌹🙏
अरविन्द चास्टा

------------------------------------------------
रलका छंद
ये वार्णिक छंद है, नवाक्षर वृति छंद
मापनी ....मगन(222) सगण (112) सगण (112)


222. 112. 112

जैसे ये चहके सजनी
रानी ये सजती रजनी
बाहे ये लगती गहना
आँखो में सजना रहना ।

साथी तू मन में बसना
मेरे अंदर यूँ हँसना
तेरे ही मन में रहते
बातें ये मन की कहते ।

‌आभारी मन ये धड़के
साँसे ये मन‌ में धड़के
फूलों की कलियां महके
बातें ये मन में चहके ।

रंगीले यह है सपने
साथी से यह है अपने
मेरा जी यह यूँ तड़पे
बैचारा मिलने तड़पे ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर

---------------------------------------------
वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्द
वार्णिक छन्द,
"रलका" ( म स स)

मापनी-:- मगण- २२२ ११२ ११२
शीर्षक- मेघ
आया सावन मेघ घिरे,
देखो आँगन फूल गिरे,
नाचे मोर घिरे बदरा,
मेघों से बरसे मदिरा।
*********************
कान्हा क्षीरज खाय रहे,
आधा भूमि गिराय रहे,
धाए ग्वालन देख सखा,
फोड़ी गागर क्षीर चखा।
********************
राधा मोहन झूल रहे,
भौंरे कुंतल गात गहे,
काली कोयल कूक भरे,
डाली से शुचि फूल झरे।
********************
प्यारे पावन दीप जले,
न्यारे जीवन मीत मिले,
बीती रात खिली कलियाँ,
आशा से निखरी अखियाँ।
********************
मेरे माधव लाज धरो,
कान्हा नीरज पाद परो,
मेघों से रसधार बहे,
नैना प्रेम सुभाष कहे ।
********************
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

---------------------------------------------
रलका छ्न्द(वर्णिक)
222112112
कृष्णा झूल रहे पलना,

मीरा रुप धरे चलना।
वीणा बाज रहा अँगना,
बाजे है घुंघरू कँगना।
......
गाती हैं महिमा उनके,
वस्त्र पीत सजे जिनके।
डूबी प्रेम सुधा रस में,
वीणा तार नहीं बस में।
......
नाचे जोगिन रूप धरे,
रागों से सुर धार बहे।
राधे कृष्ण सदा जपना,
पूरा हो सबका सपना।
.....
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

----------------------------------------------
वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्द
रलका छंद (वर्णिक)
२२२ ११२ ११२

रस : वीर रस

काटो शीष लड़ो जम के,
आंखें विद्युत सी चमके।
बाजू को तलवार बना ,
चीखे दुश्मन रक्त सना ।।

हाहाकार मचा बढ़ लो,
गाथा एक नई गढ़ लो।
घोड़ा चेतक सा बन जा,
चाहे शोणित में सन जा।।

वीरों भारत नाम करो,
ऐसा ही कुछ काम करो।
बैरी को दहला बढ़ जा,
चोटी को सहला चढ़ जा।।

ज्वाला आग जले तन में,
खौले लाल लहू रण में।
कुर्वानी हँस के चुन लो,
आजादी मिलती सुन लो ।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर, बांका, बिहार व
लखनऊ , उत्तरप्रदेश

------------------------------------------------
रलका छंद
वर्णिक छंद -9 अक्षर
मगन सगण सगण


222 112 112

प्राची से रवि झाँक रहे,
जीवों में सुविचार गहे।
आभा रश्मि हँसी बहती
ऊर्जा जीवन में महती।

** ************
वाणी में गरिमा रखना
शोभा जीवन की लखना।
काया के तुम हो प्रहरी
आयी रात बड़ी गहरी।

***************
आशा है जगती क्षण में
ऊर्जा है तरु में तृण में।
ऊषा और निशा मिल के
जागे पुष्प सभी खिल के।

**************

नैनों में कजरा दमके
बालों में गजरा चमके।
मुग्धा सोच रही मन में
आशा कान्ति जगी तन में।

*****************
छायी है ऋतु पावस की
आयी रात अमावस की।
नैनो से सरिता बहती
यादों में वनिता रहती।

गीता गुप्ता"मन"
उन्नाव,उत्तरप्रदेश

------------------------------------
रलका छंद(वार्णिक)
मगण सगण सगण
222 112 112


सांसो में रहते-रहते,
रातों में उठते-जगते।
कोई दर्द दिया करता,
पीड़ा पाकर मैं मरता।

दुःखों से उर आहत हैं,
कैसी ये कटु चाहत है।
प्यारा तो बस स्वारथ है,
छूटा ही परमारथ है।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर

-----------------------------------
वृहती जाति के नवाक्षरवृति छन्दों का प्रथम छन्द -"रलका"(म स स)
{ वर्णिक छंद}
मापनी - मगण(222) सगण(112) सगण(112)
**** **** **** ****
लोगों में तुम नाम करो,
ऐसा तो कुछ काम करो,
झूठों का प्रतिकार करो,
बोले जो सच प्यार करो।।

मीठी बात सदा करना,
लोगों के दुख को हरना।।
पूरे काज करो अपना,
होगा पूर्ण तभी सपना।।

पूजे मान जिसे सबला,
नारी आज दिखे अबला,
छाया से भयभीत हुई,
दुष्टों की जब जीत हुई।।

झूठा हो सरदार जहाँ
कैसे हो तब न्याय वहाँ,
हारों की कब हार यहाँ,
हारा केवल प्यार यहाँ।।

थोड़ा सा हम धीर धरें,
आओ आज प्रकाश करें,
होंगे ये तम दूर सभी,
आशाएँ रख पास अभी।।

@अशोक कुमार "अश्क चिरैयाकोटी"
दि0 19/12/2019