Explained By Shri Hiren Arvind Joshi ji
नमन 🙏🏻
साहित्य अनुरागी के सभी अनुरागियों को नमन, वंदन। साहित्यिक छंद की अविरल बहती इस अलखनंदा में अपनी तुच्छ बुद्धि से अंजनी भर अर्घ्य अर्पण करने की कोशिश कर रहा हूँ। अभी तक हमने मात्रिक गीतिका छंद का अध्ययन किया है। आज वर्णिक गीतिका छंद यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
=================
यह एक वर्णिक छंद है। #अथकृति: जाति का यह छंद #विशत्यक्षरावृति: है। अर्थात इसमें 20 वर्ण होते है। इस छंद का वर्ण विन्यास
सणण, जगण, जगण, भगण, रगण, सगण, लघु, गुरु
मापनी 112, 121, 121, 211, 212, 112, 1, 2
इसमें 12 और 8 वर्ण पर यति आती है।
।। #ईश_वंदना ।।
जगदीश हे! अखिलेश, अक्षय, आप पालनहार हो।
करुणानिधान कृपालु ईश्वर, आप तारणहार हो।
विनती करूँ मन से यही प्रभु, भक्ति का वरदान दो।
इतनी करो मुझ पे कृपा विभु, शुद्ध निश्छल ज्ञान दो।
उर में विभावन आपका बस, दृष्टि में छवि आपकी।
दिन रात ही जपता रहूँ प्रभु, माल्य मैं हरि जाप की।
सदमार्ग पे चलता रहूँ नित, आपका जब साथ हो।
सब विघ्न संकट दूर हो अब, शीश पे जब हाथ हो।
स्वरचित :- हिरेन अरविंद जोशी
वड़ोदरा
-------------------------------------------------------
अथकृति: जाति छन्द
वर्ण विन्यास:-सगण, जगण, जगण,भगण, रगण,सगण, लघु ,गुरु
मापनी:- 112,121,121,211,212,112, 1,2,
इसमें 12 और 8 वर्ण पर यति।
!! कृष्ण रूप!!
मुरली प्रिये मनमोहनी हरि,बाजती सुर रागिनी,
द्युति सी अलौकिक कौंधती प्रभु, माल माणिक दामिनी।
यदुराज लोचन नील नीरज, श्याम सुंदर साँवरी,
पट पीत सुंदर देह अम्बर,राधिका लखि बावरी।
*** *** *** *** ***
धरि शीश पंख मयूर मोहन,केश कुंतल भ्रामरी,
यमुना नदी तट बैठते सखि, श्याम गोकुल धाम री।
पग पैजनी मृदु गान शोभित,गोप ग्वालन नाचते,
कटि मोड़ मोहन बाँसुरी धरि,प्रेम माधव वांचते।
*** *** *** ***
***
मुरली मनोहर मोद मोदित, नैन मूंद बजा रहे,
शुचि भोर पावन स्वर्ण शोभित,मोरनी शुचिता गहे।
अँखियाँ शिलीमुख गात श्यामल,अंबु सी छवि श्याम की,
धरणी सजी बन राधिका सम,प्रेयसी घन श्याम की।
*** *** *** *** ***
चलती समीर अधीर शीतल,डूबते हरि नेह में,
नगरी बनी मृदु वाटिका सखि,भीगते रस मेह में।
नयना निहारत सोहनी छवि,श्याम की मनभावनी,
अभिराम लौकिक है अलौकिक,राधिका शुचि पावनी।।
*** *** *** ***
***
मिलते सखा नित भोर केशव,गौ चरावत संग में,
मटकी मही पटकी भरी सखि, प्रीत के मधु रंग में,
रचते सदा हरि रास मोहक, चीर ग्वालन के हरे,
यमुना सुशोभित श्यामली शुभि,नीर में पद को धरे।।
*** *** *** *** ***
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
----------------------------------------------------------------
गीतिका - छंद (वार्णिक ) विशत्यक्षरावृत्:
20 वर्ण
अथकृति : जाति छंद
वर्ण विन्यास :- सगण जगण जगण भगण रगण सगण लघु गुरु
मापनी :-112 121 121 211 ,212 112 1 2,
इसमें 12 और 8 वर्ण पर यति ।
मन से यहाँ लगते सभी दुर , हो रही पुतना खरी ,
विष ये सभी मन में रहे अब , देखती धरती हरी ।
जग जागता जरते यहाँ नित , ये भरे मन यूँ जले ,
चलते सभी अब चाल चंचल , चौकते मन झैलते ।
रजिन्दर कोर ( रेशू )
-----------------------------------------------------------------
मन, बीच सागर डोलता हरि,
आप ही अब तार दो।
भव भोग भक्षित भावना हर,
भव्य भासित सार दो।
कर दो कृपा करुणा करो कुछ,
पुण्यभानु न अस्त हो।
हम हेतु हों हितसेतु का हरि,
नीति मार्ग प्रशस्त हो।।
प्रिय! प्रेमपूरित प्रार्थना स्वर,
प्रेम से सुन लीजिए।
जगदीश जीवन शेष जो सब,
ज्ञान से गुन दीजिए।
सद्ज्ञान संचित सत्व सौरभ,
से सुवासित देह हो।
प्रभु आप अन्तर में रहो जब,
मात्र भीतर नेह हो।।
कर दो अनुग्रह हे पिता! अब,
आस को मत तोड़ना।
सुन लो दयानिधि दीन का दुख,
दास हूँ, मत छोड़ना।
वर विश्वनाथ विशेष देकर,
रंग दो उरवीथिका।
कर दी निवेदित हे जनार्दन!,
भाव से शुभगीतिका।
मणि अग्रवाल
देहरादून (उत्तराखंड)
----------------------------------------------------------------------
गीतिका छंद
विशत्यक्षरावृत्ति का वर्णिक छंद,प्रत्येक चरण २० वर्ण
सगण जगण जगण भगण रगण सगण
लघु गुरु
१२ और ८ पर यति
११२ १२१ १२१ २११ २१२ ११२ १२
शिव पाप नाश अशेष व्यापक,ब्रम्ह मोक्ष स्वरूप है।
डमरू बजावत चेतना जड,ये महाशिव रूप है।
विकराल रूप कृपालु मंगल,ज्ञान से गुण से भरे।
सिर पें सजें शुभ चंद्रमा जब,ये सभी मद से हरे।।१।।
मुख है प्रसन्न प्रचंड उज्वल ,कान कुंडल शोभते।
नयना विशाल कृपालु सागर,भाव व्याकुल लोभते।
वह मुण्डमाल पिशाच राक्षस,भस्म भी तन धारते।
कर में त्रिशूल महेश राखत,शत्रु को नित मारते।।२।।
प्रिय गौर संग गणेश कार्तिक,साथ नन्दि सभी रहें।
तुम हो जलंधर पाप नाशक,नीलकंठ तुम्हें कहें।
जय हो अनंत कृपा करो तुम,नाश हो अब ये घड़ी।
प्रभु हाथ जोड़ अधीन हो कर, द्वार मैं कब से खडी।।३।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
------------------------------------------------------------------
गीतिका छंद (वार्णिक)
यह एक वर्णिक छंद है। #अथकृति: जाति का यह छंद #विशत्यक्षरावृति: है। अर्थात इसमें 20 वर्ण होते है। इस छंद का वर्ण विन्यास
सणण, जगण, जगण, भगण, रगण, सगण, लघु, गुरु
११२, १२१, १२१, २११, २१२ ११२, १२
इसमें 12 और 8 वर्ण पर यति आती है।
'साधना और त्याग'
तज आत्म-पुण्य करे निछावर, सर्व संचित ज्ञान को ।
सह धूप, वृष्टि, प्रचंड पावक , मृत्यु को,अवसान को ।
जिनकी कहे महिमा दिवाकर, धन्य है गुणगान वो ।
भय छोड़ साधक जो गहे सच, खोज ले भगवान वो ।।
यदि राम भी भयभीत होकर, भागते वनवास से ।
यह आर्य भूमि युगों-युगों तक, क्षारती भय त्रास से ।
पर हेत जो मनु त्यागते तन, कीर्ति है उनकी चरी ।
जस त्याग देह दधीचि निर्भय, देव आपद जा हरी ।।
रमेश विनोदी
----------------------------------------------------------------------
=================
यह एक वर्णिक छंद है। #अथकृति: जाति का यह छंद #विशत्यक्षरावृति: है। अर्थात इसमें 20 वर्ण होते है। इस छंद का वर्ण विन्यास
सणण, जगण, जगण, भगण, रगण, सगण, लघु, गुरु
मापनी 112, 121, 121, 211, 212, 112, 1, 2
इसमें 12 और 8 वर्ण पर यति आती है।
==================
जब आतपी निशि,स्याह गव्हर,घाम लेकर घूमती।
छवि-चंद्रिका,बिखरी मनोहर,व्योम-आगर चूमती।
क्षण देख चंद्रक!चित्त-शामक,यामिनी बहला गई।
नयना खिले,कुछ नींद पाकर,भोर प्राकृत आ गई।
धन-धन्य है,तप-ताप आयुध,रश्मियाँ-सित छा गई।
रवि-रक्तिमा गह,दिप्त हो कर,ज्योतिका सहला गई ।
अचला,अनादि,अनंत ईश्वर!आदिनाथ दया करो।
शिव-साधिका,उपासिका हित,बूद्धि,ज्ञान-मया भरो।
हिय सौप के प्रभु आपके पग,याचना करती रहूँ।
चित-चेतना,विभु!आप से कब?साधना कर मैं गहूँ।
घन-घोर छा कर वेदना जब,साक्ष्य हो भव-भौतिकी।
निशि-याम मारग ढूँढ़ता मन,साधना,मम हेतुकी।
शुचि ज्ञान का अवदान पा प्रभु!कामना भव पार हो।
मति-मंद प्राण,प्रयाण-प्राकृत,पावनी जल धार हो।
हरि!गीतिका,उर-वीथिका अब,दीनता,तव हाथ है।
चरणों तले,लयता मिले कब?लीनता,नत माथ है।
==================
#रागिनी_नरेंद्र_शास्त्री
------------------------------------------------------------------------
गीतिका छंद
सुत अंजनी करते सदा बस,राम का गुण गान हैं।
प्रभु भक्ति अंग बसे सदा बस,माँगते वरदान हैं।
बन दास ही करते सभी कुछ,हैं समर्पित वो सदा
हनुमान का हर एक कारज,राम अर्पित हो सदा।
बन के सहायक राम साधक,लाँघ सागर को चले।
कर घोर वार प्रतार लंकिनि,वाटि में सिय से मिले।
प्रभु मुद्रिका सिय को दिखाकर,दूत चिह्न दिखा रहे।
बजरंग लंक उजाड़ते फिर,लंक शीघ्र जला रहे।
फिर राम रावण युद्ध में धर,वीर रूप उठा गदा।
रिपु को दिखाकर शक्ति सौष्ठव,जीतते रण सर्वदा।
वरदान पाकर राम से तुम,ईश भक्त कहाय हो
कर बद्ध है यह प्रार्थना बस,आंजनेय सहाय हो।
स्वरचित
डॉ. पूजा मिश्र #आशना
--------------------------------------------------------------
गीतिका छन्द (वर्णिक ) विशत्यक्षरावृति: ,अथकृति:जाति छन्द
20 वर्ण
12 , 8 वर्ण पर यति
सगण जगण जगण भगण , रगण सगण लघु गुरु
112 121 121 211, 212 112 12,
मन पुष्प सा खिलने लगा जब , काव्य की रसधार में,
बजने लगे मन हो तरंगित , प्रेम के हिय तार में ।
करते अलंकृत हैं मुझे तब , काव्य की बरसात में ,
मन है प्रफुल्लित छेड़ती अब , रागिनी हर बात में ।
बरसे सुधा रस प्रेम से हिय , कौमुदी प्रतिमा बनी,
वसुधा सजी नव नील अम्बर , देखती मन भावनी।
मुरली मनोहर कृष्ण की प्रिय , राधिका वृषभान है,
बन मोरनी तब नाचते सब , ज्यों छिड़े सुर तान है।
सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
--------------------------------------------------------------------
गीतिका_छन्द (#वार्णिक) विशत्यक्षरावृति: 20 वर्ण
अथकृति: जाति छन्द
वर्ण विन्यास:-सगण, जगण, जगण,भगण, रगण,सगण, लघु ,गुरु
मापनी:- 112,121,121,211,212,112, 1,2,
इसमें 12 और 8 वर्ण पर यति।
कर के कृपा मुझ दासिका पर,स्नेह दो भर मोहना।
कर दूँ निछावर प्राण मोहन,आस्था तुम सोहना।।
चहुँ ओर प्रीत सुगीत है शुभ,चाँदनी नभ छा रही।
मन-मोर नाच रहा सखी वन, कोकिला मधु गा रही।।
मनमीत मोहन राधिका छवि, भूलती सुधि बावरी।
दृग जोहते पथ हैं मनोहर,प्रीति पावन रावरी ।।
वन,बाग,कानन वाटिका बसि,गौ चरावत मोहना।
खिलती प्रभा नित भोर केशव, बाल ग्वाल सु मोहना।।
नीलम शर्मा
---------------------------------------------------------------------------