Thursday, March 26, 2020

"गगनांगना" छंद Hindi poetry



Explained By  -  Shri Abhay Anand ji  
साहित्य अनुरागी परिवार के समस्त काव्य साधकों को अभय कुमार आनंद का सादर नमन।
सर्वप्रथम साहित्य अनुरागियों को आपके अथक अनवरत प्रयास व काव्य साधना की प्रबल ललक हेतु सादर आभार। जिसके परिणामस्वरूप अब तक आपने काव्यजगत को 34 मात्रिक छंद,11 वर्णिक छंद व 8 ग़ज़ल प्रदान कर साहित्य अनुरागी के पटल को सुशोभित किया है।
मात्रिक छंद की श्रृंखला को विस्तार प्रदान करते हुए आज मेरा परम सौभाग्य है कि मैं एक बार फिर आपके समक्ष कल्याणकारी महत्वपूर्ण "महावतारी "(२५ मात्रिक छंद)

के अंतर्गत
"गगनांगना" छंद

 लेकर उपस्थित हुआ हूँ जिसे लिखने में आप अपार आनंद की अनुभूति करेंगे।
गगनांगना छंद २५ मात्रिक छंद है जिसमें १६-९ पर यति तथा चरणान्त रगण (२१२) अनिवार्य होता है। हर छंद की भांति इस छंद के भी चार पद होते हैं तथा इस छंद की विशेषता यह है कि इसके प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु होना अनिवार्य है(५ गुरु×२=१० मात्रा तथा १५ लघु×१ =१५ मात्रा, कुल २५ मात्रा)
इस छंद के दो-दो चरण क्रमागत समतुकांत होते हैं।

उदाहरण के लिये महाकाव्य "छंदप्रभाकर" में दी गई रचना आपके अवलोकन हेतु :-
सोरह नौकल धरि कवि गावत , नव गगनांगना।
प्रभु ओरसड व्याप्त न जरा तउ, हरि पड़ रंगना।।
रूप सुभग जइ अर्थ न कछु है, अनरथ मंडती ।
नाच रंग महँ रहती निस दिन, मुनि तप खंडती।।

मेरे द्वारा भी छंद साधना के क्रम में उपरोक्त छंद को साधने का एक छोटा सा प्रयास है। आशा ही नहीं पूर्णविश्वास है कि आपको यह रचना अवश्य पसंद आयेगी। आपका उत्तम विचार रचना पर अपेक्षित है। छंद साधना में मेरे द्वारा हुई त्रुटि को आप लोग जरूर इंगित कर महानतम रचना बनने में मेरी मदद करेंगे।
आप समस्त गुणीजनों की भी इस छंद पर रचना करने हेतु सादर आमंत्रित करता हूँ कि आइए और उत्कृष्ट छंद रच कर समस्त छंद प्रेमियों को अनुगृहीत करें।

गगनांगना छंद
बन सुमन सम शोभित क्षितिज पर,हिन्दोस्तां खड़ा।
कश्मीर सर पर मुकुट बनकर, केसरिया जड़ा।।
सदाचार सदभाव पहन तन , अनुपम देश है।
सब अलग पथ, पर एकत्व ही, निज परिवेश है।।

मकरंद सम मधुवास मुख के, हर स्वर में यहाँ।
हर धर्म के रहते उपासक , मिलजुल कर जहाँ।।
सब जन बीमित योग से हरत, अतुल उपासना।
सप्त सुर शुभ सरगम समाहित, सुंदर साधना।।

शब्दार्थ :-
बीमित - रोग

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर,बाँका, बिहार व
लखनऊ,उत्तरप्रदेश
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 गगनांगना छंद
२५ मात्रिक छंद है,१६/९ पर यति
अंत २१२ अनिवार्य

प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु अनिवार्य


जब जब हम पर विपदा आयी,तुम प्रभु पास थे।
सर पर रखकर हाथ कृपा का,तुम प्रभु आस थे।
पग पग राह कठिन थी गहरी,पग पग हार थी ।
हुलस रहा था जीवन प्रभु वर,नस नस खार थी।।१।।

नव रूप धरकर मुदित कर के,हर लो वेदना।
क्षणिक सुरभि तन मन खिल जाए,भर दो प्रेरणा।
चरण रज से बन जाए सबल,जग की धारणा।
सब के हिय जगमग मधुर करे,पावन भावना ।।२।।

सजल नयन विकल मन से करत,तेरी वंदना।
सुन अब अरज धवल मंगल रख ,मेरा आँगना।
हर दिन भजन हर पल स्मरण हो,ऐसा दान दे।
कर जतन कर यतन हम सब पे,ऐसा ज्ञान दे।।३।।


सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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गनगनांगना छन्द(महावतारी जाति)
25 मात्रिक छन्द
16वी 9वी मात्रा पर यति
चरणान्त रगण (212)अनिवार्य।
प्रत्येक पद पर 5 गुरु 15 लघु अनिवार्य

मोहन वेणु धरि अधर सखे,
लखि छवि साँवरी,
माधव निरखत नयना सखि री,
तन-मन बावरी।

चमके कुंडल मणि कनक भरे,
दमकत दामिनी,
सोहत पीत वसन मन मोहन,
सुर मय रागिनी।

धरे कंठ मदन मणि मय माल,
शुभि शशि धारिणी,
मोहित मुदित मुख कंवल श्याम,
छवि शुभ कारिणी।

शोभित ललाट हरि शुचि चंदन,
द्युति सम राधिके,
कोमल चरण पद नेह वंदन,
सुख सखि साधिके।

मोदक खावत मधु मनमोहन,
हर दुख वेदना,
मटकी पटकी नटवर दधि की,
मन भरि चेतना।

रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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 गगनांगना छंद
२५ मात्रिक
१६-९ पर यति

अंत २१२,५ दीर्घ और १५ लघु प्रत्येक पंक्ति में अनिवार्य

बचकर रहना आप सब अब,सुन लो याचना।
हरदम दोनों कर को प्रियवर,नितदिन माँजना।।
घर पर रहकर दुआ करें सब,पावन कामना।
जड़ से अंत करो भगवन तुम,अब यह यातना।

अभिवादन वरदान यह ज्ञान,प्रतिपल बाँटना।
सार्थक जीवन हर पल अब तुम,प्रभु से माँगना ।
अब सब इसका सर्वनाश प्रिय,मिलकर कीजिए।
परहेजकर सभी मनुज गरम,जल ही पीजिए।।

अटल मन की शक्ति से अब यह,सबकुछ सँवारिए।
विकट समय पर ध्यान रख सभी,जरा विचारिए।
विचरण करना छोड़ कर इसे,हरदम टालिए।
समय के अनुरूप अब खुद को ,मिलकर ढालिए।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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 गगनांगना छंद
"महावतारी" जाति(२५ मात्रिक छंद)
जिसमें १६-९ पर यति तथा चरणान्त रगण (२१२) अनिवार्य होता है। छंद के चार पद होते हैं

प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु होना अनिवार्य (५ गुरु×२=१० मात्रा तथा १५ लघु×१ =१५ मात्रा, कुल २५ मात्रा)
इस छंद के दो-दो चरण क्रमागत समतुकांत।

डर-डर कर मत जीवन जीना, मत तुम भागना,
सुख-दुख सकल रहें जीवन भर, तू मत हारना।
सच के पथ पर हरपल चलना, मन को साधना,
निस दिन जप हरि नाम सदा तू, भवजल तारना।

तन-मन दृढ़ कर बन के प्रहरी, रहते जागते,
अरि जब रण में चढ़ कर आये, धरकर मारते।
भयभीत शत्रु फिर रणभूमि से, डर कर भागते,
तज कर भय निज बल धर योद्धा, संकट टालते।

मन चंचल भटकत निसदिन है, बाधित साधना,
चलत बहुत परपंच जगत का, जागत कामना।
चरण शरण मिलती गुरु की जब, दुविधा टूटती,
भगवन तब मन रच बस रहता, माया छूटती।

छल रख कर भरसक मन भीतर, देखो घूमते,
बन कर जन-सेवक छल-बल से, निर्धन लूटते।
धनवान हित करत सुलभ न्याय, निर्बल हारता,
चौपट अधिपति भ्रष्ट नगर कर, संकट डालता।

करत बहुत पर जन की निंदा, निज मन झाँकना,
तज विकार कर उज्ज्वल निज मन, सुंदर भावना।
जप जप हरि हरि भजन सुनत जो, जागे आत्मा,
गुरु कृपा जब भये भगतन पर, मिले परमात्मा।

जितेंदर पाल सिंह
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गगनांगना छंद( महावतारी जाति )
25 मात्रिक छंद
16वी 9वी मात्रा पर यति
चरणान्त रगण (212)अनिवार्य ।
प्रत्येक पद पर 5 गुरु 15 लघु अनिवार्य




11 11 1111 211 22 , 11 11 212,
जग यह हरदम राज पुराना ,मन मत तोड़ना ,
फुरसत न अब यहाँ जग बंधा,मुख मत मोड़ना,
हित कर जगत यहाँ अब दाता,तुम सब जोड़ना,
घर घर मन सब का अब जागे, दुख सब छोड़ना ।

रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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Wednesday, March 18, 2020

रोला- छंद - Hindi poetry


Explained By Smt. Ragini Garg ji , Rampur U.P.
नमन साहित्य अनुरागियो।
होली चली गयी अगले वर्ष फिर वापस आने का वादा करके मुझे पूर्ण विश्वास है इस होली पर सबने खूब मस्ती और धमाल किया होगा मैंने तो बहुत मजा किया वृन्दावन धाम जाकर भी और घर पर भी, क्योंकि यह मेरा यानि की आपकी प्रिय दोस्त रागिनी का सबसे पसन्दीदा त्योहार है।चलिये अब इस मस्ती से बाहर निकलकर काम की बात पर आते हैंऔर रचते हैंअपनी कलम से कुछ सुन्दर -सुन्दर रचनाएँ रोला छन्द पर ।जी आप सही समझे! मात्रिक छन्दों की श्रृंखला को आगे बढा़ते हुये हम सब सृजन करेंगे 24 मात्रिक रोला छन्द पर तो उठाइये लेखनी और बिखेरिये साहित्य में रंग रोला के संग

रोला-  छंद
यह 24 मात्रिक अवतारी जाति का मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते है। चारों चरणो के अंत मे तुक अनिवार्य है। चारो चरण भी समतुकांती हो सकते है या दो दो चरण समतुकांती हो।
प्रत्येक चरण मे11,13 मात्रा पर यति होती है।इसके विषम पदो मे मात्रा क्रम 4,4,3 या
3,3,2,3 तथा सम चरणों मे मात्रा क्रम 3,2,4,4 या 3,2,3,3,2 रखने से लय अच्छी बनती है। जिस रोला के सभी चरणो की 11वी मात्रा लघु होगी उसे काव्य छंद कहा गया है।
कुछ साहित्यकार रोला के विषम चरणो मे दोहे के सम चरण के अनुरूप विषम चरणांत गुरु लघु वर्ण को बेहतर मानते है।इससे लय बेहतर बनती है।
रोला के अंत मे दीर्घ वर्ण अनिवार्य है।इसके अंत मे लघु वर्ण रखने से बचना चाहिए।
रोला के सभी सम चरणांत अगर दो गुरु हो तो वह अति उत्तम जाति का रोला माना जाता है। अगर सम चरणांत केवल एक गुरु है , तब मध्यम श्रेणी का और अगर समचरणांत केवल लघु है तो निम्न श्रेणी का रोला समझा जाता है।

रोला की चौबीस,कला यति शङ्कर तेरा।
सम चरणन के आदि, विषम सम कला बसेरा।।
रामकृष्ण गोविन्द, भजे पूजत सब आसा।
इहां प्रमोद लहंत, अंत बैंकुंठ निवासा।
*कृमशः भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु
211 111 121 211 121 121 1 अनुसार कुल24 मात्रा क्रम होने पर इसे रसाला वृत्त भी कहा जाता है।
रोला के कुछ उदाहरण मेरी कलम से

रोला छन्द
(1)अक्षर पढ़ कर चार,
समझता खुद को ज्ञानी।
बदला है व्यवहार,
अरे!मूरख अज्ञानी ।
अच्छा रख बर्ताव ,
सभी जन तुझको चाहें।
रख रिश्तों में चाव,
सरल हो जायें राहें।।

(2) कर सबसे लो प्यार ,
बोल लो मीठी बोली।
अंहकार को मार,
बनो सबके हमजोली।
जीवन के दिन चार ,
उठेगी डन्डा डोली।
मिथ्या है संसार,
जलेगी सबकी होली।।
रागिनी गर्ग
रामपुर यू.पी.

(3)चतुर बहुत है श्याम ,
किशोरी मेरी भोरी।
लीनो चैन चुराय,
लली ने चोरी चोरी।
तीन लोक के देव,
बने वाके चपरासी।
फाँस प्रेम मे लियो,
देख के आवे हाँसी।।
रागिनी गर्ग
रामपुर यू. पी.

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रोला छंद
२४ मात्रिक (११-१३ पर यति)
रचना क्रम
बिषम पद
४+४+३ या ३+३+२+३
सम पद
३+२+४+४ या ३+२+३+३+२
दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत
- १-
सैनिक सरहद साज, सफलता सुन वर लाना,
दुश्मन दहले देख , छठी का दूध पिलाना।
गौरव गाथा गान , वरण कर आगे बढ़ना ,
चेतक से भी तेज , सुनो चोटी पर चढ़ना।।

-२-

छोटे बच्चे आज, सिखाते पाठ गुरू जी,
कैसी चलनी देख,हुआ है आज शुरू जी।
आपस में है होड़, मची सुन दुनियाँ सारी,
खोजे सारे तोड़, करोना की बीमारी।।

-३-
पोथी है सम्मान ,समझ मत इसको दूजा,
पाना हो जो मान,करो नित इसकी पूजा।
पढ़ना आता काम , पढ़ाई सबसे अच्छी,
जग में होता नाम, संगिनी सबसे सच्ची।

-४-
आदत से मजबूर,हुए देखो ये नेता,
बिकती टिकटें रोज,बने अद्भुत ये क्रेता।
जनता रोये देख,बना नौकर ही स्वामी,
उल्टा पुल्टा दौर,गधा घोड़ा सम नामी।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर,बाँका, बिहार व
लखनऊ,उत्तरप्रदेश

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रोला छंद(अवतारी जाति)
24 मात्रिक छंद
11,13 पर यति।

सर्वोपरि निज स्वार्थ, मनुज मन की अभिलाषा।
भूला सब परमार्थ, कहत रसना कटु भाषा।।

पर-निन्दा में लिप्त, स्वयं की करे प्रशंसा।
सोचे पर का अहित, मलिन दूजे प्रति मंशा।।

मलिन काग आहार, कर्णकटु तान सुनाये।
मनुज द्वेष तस धार, अकारण क्लेश मचाये।।

कहे बहुत कटु बोल, क्रोधवश हृदय दुखाये।
अज्ञानता मन घोल, व्यर्थ ही जन्म बिताये।।

दम्भ लोभ मन त्याग, ह्रदय हरि नाम बसाया।
चरण शरण गुरु लाग, भक्त हरि नाम समाया।।

पर का भूले मान, मनुज मद में जब आये।
झूठे बोले बैन, ह्रदय पर-निंदा भाये।।

छोड़ो बीती बात, कुशल-मंगल सब मानो।
हाथों में लो हाथ, मित्र अपने सब जानो।।

छूटेंगे सब लोग, मृत्यु जिस दिन भी आई।
मन में धारो जोग, नाम हरि का लो भाई।।

जितेंदर पाल सिंह

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रोला छ्न्द
24 मात्रिक 11,13 पर यति
विषम पद
4+4+3 या 3+3+2+3
सम पद
3+2+4+4 या 3+2+3+3+2

रचना
4 4 3 , 3 2 4 4
आओ लिखते आज , सभी मिल कर के रोला।
देखो बरसे आज , गगन से भारी ओला ।
गिरती है प्रभु गाज , किसानों का मन बोला।
कर दो पूरण काज , ‌सुनो ओ मेरे भोला ।
.....

फैली चारों ओर , महामारी कोरोना।
ये है कैसा रोग , मचा है सबका रोना ।
जोड़ों सबसे हाथ, स्वच्छता रखना घर में ।
कुछ दिन की है बात ,दूर ही रहना जन में।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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रोला छंद(अवतारी छंद,२४ मात्रिक,१३-११,दो चरण या चारो चरण समतुकांत,
 गेयता अनिवार्य तत्व

१भौरों का गुंजार,हृदय सबको सुख देता।
पीकर मधु मकरन्द,अमिय सुख मधुरिम लेता।।
कह कृष्णा कविराय,बजे मन में अब सरगम।
सुख देता अविराम,प्रिये,यह यौवन अनुपम।।

२-रँग दो अपने नेह,कंत मत मुझको टालो।
अमिट रंग इस फ़ाग,बलम मुझ पर तुम डालो।।
कह कृष्णा कविराय,सदा आनन यह दमके।
यह कपोल रतनार, सजन जीवन भर चमके।।

३-बहती अविरल धार, नदी का पानी पीते।
पशु-पक्षी अरु मनुज,सभी जीवन को जीते।।
कह कृष्णा कविराय, नदी लगती मनभावन।
संरक्षित कर इसे,सभी हम रखते पावन।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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रोला छ्न्द
24 मात्रिक 11,13 पर यति
विषम पद
4+4+3 या 3+3+2+3
सम पद
3+2+4+4 या 3+2+3+3+2


रोला...(२४ मात्रिक छंद,दो या चारों चरण सम तुकांती,अंत दो गुरु अनिवार्य)

४ ४ ३/ ३ २ ४ ४

हो गुमसुम जब रैन,बजत है पायल प्यारी।
साजन पावे चैन, सुहावे रुनझुन न्यारी।
डर का छाया जाल, लोग है सारे जागे।
मन होता बेहाल,सुखी जीवन से भागे।।

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अपनों से वो दूर,अनोखी माया उसकी
देश प्रेम से चूर, समर्पित काया जिसकी।।
जान देश पर वार, देश की रक्षा करता।
चढा शस्त्र पें धार, रंग यौवन मे भरता।।


सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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रोला छंद:-यह 24 मात्रिक अवतारी जाति का मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते है। चारों चरणो के अंत मे तुक अनिवार्य है। चारो चरण भी समतुकांती हो सकते है या दो दो चरण समतुकांती हो।
प्रत्येक चरण मे11,13 मात्रा पर यति होती है।
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उठे काव्य के वीर,छंद-वल्गा ले आए।
गहे भाव परिधान,समर में छंद घुमाए।।
उठे वीर मतिमान,भावित-अंजली ले के ।
शब्दाक्षर शमशीर,सजग थे निद्रा दे के ।।

छंद अनैक महान, शिखर साहित्य धरा के।
रसिक शिरोमणि जान,उपल है दिव्य विधा के।।
भर दें भाव सुजान,विध सुविध रसमणि नाना।
दिव्य-दिव्य राकेश,काव्य-अंचल परिधाना।।

नेह-सरि व्यवहार,जलधि सम गहन गभिरा।
सराबोर आख्यान,जीव्हा दृग मूक बधिरा।।
का का करो बखान,कही कब जाय बखानी।
वंद्य वंद्य है वीर, वंद्य वंदित शुचि बानी।।
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#रागिनी_नरेंद्र_शास्त्री

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Monday, March 9, 2020

अवतार छंद- Hindi poetry

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Explained By Smt Geeta Gupta ji 
साहित्य अनुरागी समूह के सभी रचनाकारों को हृदय तल से प्रणाम करते हुए मैं गीता गुप्ता 'मन' छंदज्ञान की इस श्रृंखला में नवीन कड़ी को जोड़ते हुए स्वयम को गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ।
मात्रिक छन्दों की रस श्रृंखला में आज हम 'अवतार छंद'के विषय में जानेंगे
रौद्राक जाती

23 मात्रिक छंद

अवतार छंद

13 ,10मात्रा पर यति।

दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत

चरणान्त में 212 रगण का प्रयोग कर्ण प्रिय होता है । मगर अनिवार्यता नही है।

उदाहरण -:
अवतार राम की कथा,सब दोष गंजनी।
नहिं ता समान आन है, त्रय ताप भंजनी।
प्रभु नाम प्रेम से जपे,हे राम हे हरे।
गणिकाहूँ अजामील से,पापी घने तरे।

---छन्द प्रभाकर
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नारियाँ ( छंद आधारित गीत)

स्वाभिमान से जी रही ,आधुनिक नारियाँ।
पुरुषों से कमतर नहीं, है अधिक नारियाँ।
धरती पर बनकर मिली,वरदान नारियाँ।
दे बन माँ भार्या सुता, अवदान नारियाँ।

वेद सदा गाते रहे,वनिता महानता।
पूजनीय है मातु की उर की विशालता।
ईश्वर का प्रतिरूप जो,वन्दनीया सदा।
नारी देविस्वरूपिणी, शारदे वरप्रदा।
सौम्य शील विदूषी प्रखर,अभिमान नारियाँ।

मन कोमल है पुष्प सा, सुकुमारि कुमुदिनी
अरि की सुन ललकार जो,युद्धचण्डी बनी।
निज कष्टों को भूल कर,पोषिता जो बनी।
अबला से सबला बनी,प्रेरणा पावनी।
शौर्य भरे लालित्य की,उपमान नारियाँ।

जननी बनकर विश्व पर,उपकार है किया
पालक बनकर सृष्टि को,साकार है किया।
अमिय स्रोत नारी ह्रदय,प्रेम रंगो भरी
दया,क्षमा उर में बसे, स्वर्णिम विभावरी
है इस जग में प्रेम की,प्रतिमान नारियाँ।

--गीता गुप्ता 'मन'
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अवतार छंद (रौद्राक जाती)

23 मात्रिक छंद
13 ,10मात्रा पर यति।
दो दो अथवा चारों चरण समतुकांत
चरणान्त में 212 रगण का प्रयोग, मगर अनिवार्यता नहीं है।
221 12 2 12, 212 212

गीत

मुखड़ा
श्रृंगार करें बौर का, आम की डालियाँ,
सोना लगती हैं पकी, जब कनक बालियाँ।
अंतरा
फागुन फिर से आ गया, झूमते झूमते,
अब आन मिलो तुम सजन, घूमते घूमते।
पढ़ने मनवा है लगा, प्रेम की पातियाँ,
श्रृंगार करें बौर का, आम की डालियाँ।
अंतरा
होली सच की जीत का, एक त्योहार है,
तुमसे सजना सुन मुझे, सच कहूँ प्यार है।
खेलूँ तुमसे रंग मैं, मार पिचकारियाँ,
श्रृंगार करें बौर का, आम की डालियाँ।
अंतरा
मुझको अपने रंग में, रंग दे साजना,
होली मिलना लग गले, रंग फिर डालना।
मत मोड़ कलाई पिया, टूटती चूड़ियाँ,
श्रृंगार करें बौर का, आम की डालियाँ।
अंतरा
होली जलती झूठ की, जीत सच की भयी,
सब भूल गए शत्रुता, मित्रता भा गयी।
गाती फिरती गीत हैं, प्यार के टोलियाँ,
श्रृंगार करें बौर का, आम की डालियाँ।

जितेंदर पाल सिंह
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अवतार छंद(मुक्तक)

23 मात्रिक छंद 13 पर यति पदांत रगण
सम चरण तुकांत
(2122 1122 212 212)
************************
आज हर ओर सफल हैं , देश की नारियाँ।
नापती जल थल नभ को, देश की नारियाँ।
त्याग बलिदान सिखाती, प्राण देती सदा।
वन्दना की स्वर लहरी गर्व हैं नारियाँ।
🌹
प्रीत की रीत यही है, प्रार्थना मान है।
वीर गाथा कहती है, वर क्षमा दान है।
कष्ट में जब जग पाये, रूप विकराल है।
नेह की है प्रतिमा ये, श्रेष्ठ सम्मान है।
🌹
माँ बने तो मर मिटती, प्यार के नाम पर।
बहन हो कर सहती है, बिछड़ना ब्याह पर,
बेटियाँ बन कर चहके, आँगनों की सुधा।
ब्याहता स्नेह लुटाती, सकल परिवार पर।
🌹
आज है दिवस बड़ा ये, विश्व भर नारियाँ।
रोज गढ़ती नित नूतन, प्रात है नारियाँ।
नमन "अविराज" है करे, शक्ति रूपा सदा।
सब घरों की खुशियोँ का, स्थंभ हैं नारियाँ।

अरविन्द चास्टा "अविराज" ,कपासन चित्तौड़गढ़ राज।
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अवतार छ्न्द

रौद्राक जाति का छ्न्द,
23 मात्रिक ,13 ,10 मात्रा पर यति

कान्हा मुझे ये कैसा , रंग लगाया है,
मन में मेरे प्रेम का , रस बरसाया है ।
जाने जगत तुझसे हिय , प्रीत लगाया है,
देख के तुझको मेरा ,मन हरषाया है।
....
श्री राम कहूं या श्याम , ओ मुरली वाले,
सांवरे बैजन्ती की , है माला डाले।
गोकुलधाम खेल रहे , हैं गोपी ग्वाले,
भींगे चूनर राधिका , सब हैं मतवाले।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज
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अवतार छंद [रौद्राक जाती का ]

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13,10मात्रिक
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विषय--नारी
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सुंदर सपना देखती, देश की नारियां
बिन सपनें कहाँ रहती, देश की नारियां।।
प्रित नेह स्नेह निभाती,देश की नारियां।
प्रेम पताका लहराय, देश की नारियां।।
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चढ़े पर्वतों पर देखो ,देश की नारियां।
उड़े आसमाँ निडर हो,देश की नारियां
इसी धरा की निराली,देश की नारियां।
तन मन धन मृदुल भाषी, देश की नारियां।
कहने को बेचारी न देश की नारियां।।
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नेह की प्रतिमान सुता, हमारी अभिमान ,
सृष्टि की रचयिता शक्ति,ख़ुदी ही सम्मान।
प्यार के बोल से पिघल ,देती हमको मान ।
माँ का ही हमें करना, सर्वदा तुला दान।।
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ममता की मूरत बसी,आँख मे समाए ।
चारो दिशाएं महकी,शिव को नचाए।
घर की बेटियां देखों, सबको समझाए।
बेटी पढ़ाओ भविष्य,उज्जवल बताए।।

Vini Singh
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अवतार छंद(रौद्राक जाति का छंद)
२३ मात्रिक,१३-१० पर यति,अंत २१२ (रगण) पर अनिवार्य नहीं।

तुम्हारे प्यार से मुझे,मिली संजीवनी।
अमिट सुख से भरी अमिय,सुखद यह जीवनी।
बना लो तुम पिया मुझे,अभी अर्द्धांगिनी।
महकती जाएगी हर,प्रणय की यामिनी।।

प्रेम-पथ पर पिया सदा,रहूँ पथगामिनी।
मैं पिया बनकर तेरी,यहाँ अनुगामिनी।।
सुखद लगता यही अमर,पिया अति पावनी।
तेरी बातें लगें सब, हृदय मनभावनी।।

चंचल नदिया की धार,चमकती दामिनी।।
रति,रम्भा अरु उर्वशी, या कहो कामिनी।।
निर्मल प्रेम जस प्रियवर,स्रवित मैं मालिनी।
सप्त जन्मों तक साजन, तेरी सुहासिनी।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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अवतार छंद
23 मात्रिक
13,10 पर यति अंत रगण (२१२)


गंगा देख पटी पड़ी, हर तरफ गंदगी,
देखो आज मानव से ,दूर शर्मिंदगी।
अरण्य भी वीरान है, जो था हरा-भरा,
राक्षसी गुण रचा बसा,कल्पित वसुंधरा।।

साँस देख सांसें गिने, है हवा अधमरी,
हर तरफ धुआं- धुआं,मौत मुख पर खड़ी।
जीवन जीना कठिन है,जन सोचता कहाँ,
प्राण श्रोत मार करके,दुख भोगता यहाँ।।

फसलों में भी हलाहल,घोलता आदमी,
भविष्य भूत द्वार खड़ा,दूर कर ले कमी।
विकास के छत तले क्यों,ध्वंस को पालता,
सुकर्म पथ ही है सुनो,हृद की विशालता।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर ,बाँका, बिहार व
लखनऊ , उत्तरप्रदेश
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अवतार छन्द,(रौद्राक जाति)
23 मात्रिक छन्द
13, 10 पर यति,अंत 212 रगण(स्वेच्छिक)

विषय:-कृष्ण जन्म

भाद्रपक्ष तिथि अष्टमी,
सुनक्षत्र रोहणी,
शंख चक्र गदा धरे हरि,
ललित छवि शोभिनी,
हाथ जोड़ विनती करें,
वसुदेव देवकी,
रक्षा करो नारायण,
हमारे प्रेम की।
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मथुरा चमकी रात में,
घन घटा दामिनी,
जनम लियो कारागार,
बेला सुहावनी,
द्वारपाल सोये सकल,
खुल गई बेड़ियाँ,
रोदन करें प्रभू सहज,
मिट गई भ्रांतियां।
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खोए हमने सकल सुत,
प्रथम से सातवां,
रक्षा करिये हे प्रभो,
शरण मे आठवां,
आया हूँ अवतार ले,
काल बन कंस का,
छोड़ आओ आप मुझे,
घर जहाँ नंद का।
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शिशु बन करते रुदन हरि,
रो पड़ी देवकी,
नैनों से गंगा बही,
अश्रु बन नेह की,
घनघोर काले मेघा,
धरा पर झूमते,
देवकी वसुदेव सजल,
हरि चरण चूमते।
*** *** *** ***
उफनती यमुना लहरे,
हरि परे टोकरी,
निकसे धरि वसुदेव हरि,
काल सी कोठरी,
प्रभु का बने छत्र अनुपम,
नीर में वासुकी,
दीपिका जली आस की,
मन मुदित देवकी।
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रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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अवतार छंद
रौद्राक जाती का छंद, २३ मात्रिक छंद,
१३-१० पर यति

२२१ १२२ १२ २१२ २१२

वृंदावन के रंग में,रंग जाओ कभी।
मस्ती भर लो अंग में,भूलकर दुख सभी।
कान्हा जब साथी बने,खेलने में मज़ा।
ग्वाला बनके रंग ले,ढोल,ताशा सजा।।

मारे लठ ग्वाला कभी,तो कभी डाँटती।
छेड़े जब ये ग्वाल तो,जीतना जानती।
है दृश्य अलौकिक बड़ा,तृप्त होता हिया।
लागे प्रभु में ध्यान तो,भाव जागे जिया।।

केशर तन पे है मली,हाथ मुरली सजे।
बोलो जय कान्हा यहाँ,साथ राधे बजे।
ये मंगल ,पावन छटा,पुण्य से तौलता।
सारे ब्रजवासी यहाँ,कृष्ण से बोलता।।


सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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