Explained By - Shri Abhay Anand ji
साहित्य अनुरागी परिवार के समस्त काव्य साधकों को अभय कुमार आनंद का सादर नमन।
सर्वप्रथम साहित्य अनुरागियों को आपके अथक अनवरत प्रयास व काव्य साधना की प्रबल ललक हेतु सादर आभार। जिसके परिणामस्वरूप अब तक आपने काव्यजगत को 34 मात्रिक छंद,11 वर्णिक छंद व 8 ग़ज़ल प्रदान कर साहित्य अनुरागी के पटल को सुशोभित किया है।
मात्रिक छंद की श्रृंखला को विस्तार प्रदान करते हुए आज मेरा परम सौभाग्य है कि मैं एक बार फिर आपके समक्ष कल्याणकारी महत्वपूर्ण "महावतारी "(२५ मात्रिक छंद)
के अंतर्गत
"गगनांगना" छंद
लेकर उपस्थित हुआ हूँ जिसे लिखने में आप अपार आनंद की अनुभूति करेंगे।
गगनांगना छंद २५ मात्रिक छंद है जिसमें १६-९ पर यति तथा चरणान्त रगण (२१२) अनिवार्य होता है। हर छंद की भांति इस छंद के भी चार पद होते हैं तथा इस छंद की विशेषता यह है कि इसके प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु होना अनिवार्य है(५ गुरु×२=१० मात्रा तथा १५ लघु×१ =१५ मात्रा, कुल २५ मात्रा)
इस छंद के दो-दो चरण क्रमागत समतुकांत होते हैं।
उदाहरण के लिये महाकाव्य "छंदप्रभाकर" में दी गई रचना आपके अवलोकन हेतु :-
सोरह नौकल धरि कवि गावत , नव गगनांगना।
प्रभु ओरसड व्याप्त न जरा तउ, हरि पड़ रंगना।।
रूप सुभग जइ अर्थ न कछु है, अनरथ मंडती ।
नाच रंग महँ रहती निस दिन, मुनि तप खंडती।।
मेरे द्वारा भी छंद साधना के क्रम में उपरोक्त छंद को साधने का एक छोटा सा प्रयास है। आशा ही नहीं पूर्णविश्वास है कि आपको यह रचना अवश्य पसंद आयेगी। आपका उत्तम विचार रचना पर अपेक्षित है। छंद साधना में मेरे द्वारा हुई त्रुटि को आप लोग जरूर इंगित कर महानतम रचना बनने में मेरी मदद करेंगे।
आप समस्त गुणीजनों की भी इस छंद पर रचना करने हेतु सादर आमंत्रित करता हूँ कि आइए और उत्कृष्ट छंद रच कर समस्त छंद प्रेमियों को अनुगृहीत करें।
गगनांगना छंद
बन सुमन सम शोभित क्षितिज पर,हिन्दोस्तां खड़ा।
कश्मीर सर पर मुकुट बनकर, केसरिया जड़ा।।
सदाचार सदभाव पहन तन , अनुपम देश है।
सब अलग पथ, पर एकत्व ही, निज परिवेश है।।
मकरंद सम मधुवास मुख के, हर स्वर में यहाँ।
हर धर्म के रहते उपासक , मिलजुल कर जहाँ।।
सब जन बीमित योग से हरत, अतुल उपासना।
सप्त सुर शुभ सरगम समाहित, सुंदर साधना।।
शब्दार्थ :-
बीमित - रोग
अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर,बाँका, बिहार व
लखनऊ,उत्तरप्रदेश
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गगनांगना छंद
२५ मात्रिक छंद है,१६/९ पर यति
अंत २१२ अनिवार्य
प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु अनिवार्य
जब जब हम पर विपदा आयी,तुम प्रभु पास थे।
सर पर रखकर हाथ कृपा का,तुम प्रभु आस थे।
पग पग राह कठिन थी गहरी,पग पग हार थी ।
हुलस रहा था जीवन प्रभु वर,नस नस खार थी।।१।।
नव रूप धरकर मुदित कर के,हर लो वेदना।
क्षणिक सुरभि तन मन खिल जाए,भर दो प्रेरणा।
चरण रज से बन जाए सबल,जग की धारणा।
सब के हिय जगमग मधुर करे,पावन भावना ।।२।।
सजल नयन विकल मन से करत,तेरी वंदना।
सुन अब अरज धवल मंगल रख ,मेरा आँगना।
हर दिन भजन हर पल स्मरण हो,ऐसा दान दे।
कर जतन कर यतन हम सब पे,ऐसा ज्ञान दे।।३।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
२५ मात्रिक छंद है,१६/९ पर यति
अंत २१२ अनिवार्य
प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु अनिवार्य
जब जब हम पर विपदा आयी,तुम प्रभु पास थे।
सर पर रखकर हाथ कृपा का,तुम प्रभु आस थे।
पग पग राह कठिन थी गहरी,पग पग हार थी ।
हुलस रहा था जीवन प्रभु वर,नस नस खार थी।।१।।
नव रूप धरकर मुदित कर के,हर लो वेदना।
क्षणिक सुरभि तन मन खिल जाए,भर दो प्रेरणा।
चरण रज से बन जाए सबल,जग की धारणा।
सब के हिय जगमग मधुर करे,पावन भावना ।।२।।
सजल नयन विकल मन से करत,तेरी वंदना।
सुन अब अरज धवल मंगल रख ,मेरा आँगना।
हर दिन भजन हर पल स्मरण हो,ऐसा दान दे।
कर जतन कर यतन हम सब पे,ऐसा ज्ञान दे।।३।।
सुवर्णा परतानी
हैदराबाद
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गनगनांगना छन्द(महावतारी जाति)
25 मात्रिक छन्द
16वी 9वी मात्रा पर यति
चरणान्त रगण (212)अनिवार्य।
प्रत्येक पद पर 5 गुरु 15 लघु अनिवार्य
मोहन वेणु धरि अधर सखे,
लखि छवि साँवरी,
माधव निरखत नयना सखि री,
तन-मन बावरी।
चमके कुंडल मणि कनक भरे,
दमकत दामिनी,
सोहत पीत वसन मन मोहन,
सुर मय रागिनी।
धरे कंठ मदन मणि मय माल,
शुभि शशि धारिणी,
मोहित मुदित मुख कंवल श्याम,
छवि शुभ कारिणी।
शोभित ललाट हरि शुचि चंदन,
द्युति सम राधिके,
कोमल चरण पद नेह वंदन,
सुख सखि साधिके।
मोदक खावत मधु मनमोहन,
हर दुख वेदना,
मटकी पटकी नटवर दधि की,
मन भरि चेतना।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
25 मात्रिक छन्द
16वी 9वी मात्रा पर यति
चरणान्त रगण (212)अनिवार्य।
प्रत्येक पद पर 5 गुरु 15 लघु अनिवार्य
मोहन वेणु धरि अधर सखे,
लखि छवि साँवरी,
माधव निरखत नयना सखि री,
तन-मन बावरी।
चमके कुंडल मणि कनक भरे,
दमकत दामिनी,
सोहत पीत वसन मन मोहन,
सुर मय रागिनी।
धरे कंठ मदन मणि मय माल,
शुभि शशि धारिणी,
मोहित मुदित मुख कंवल श्याम,
छवि शुभ कारिणी।
शोभित ललाट हरि शुचि चंदन,
द्युति सम राधिके,
कोमल चरण पद नेह वंदन,
सुख सखि साधिके।
मोदक खावत मधु मनमोहन,
हर दुख वेदना,
मटकी पटकी नटवर दधि की,
मन भरि चेतना।
रचनाकार
डॉ नीरज अग्रवाल नन्दिनी
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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गगनांगना छंद
२५ मात्रिक
१६-९ पर यति
अंत २१२,५ दीर्घ और १५ लघु प्रत्येक पंक्ति में अनिवार्य
बचकर रहना आप सब अब,सुन लो याचना।
हरदम दोनों कर को प्रियवर,नितदिन माँजना।।
घर पर रहकर दुआ करें सब,पावन कामना।
जड़ से अंत करो भगवन तुम,अब यह यातना।
अभिवादन वरदान यह ज्ञान,प्रतिपल बाँटना।
सार्थक जीवन हर पल अब तुम,प्रभु से माँगना ।
अब सब इसका सर्वनाश प्रिय,मिलकर कीजिए।
परहेजकर सभी मनुज गरम,जल ही पीजिए।।
अटल मन की शक्ति से अब यह,सबकुछ सँवारिए।
विकट समय पर ध्यान रख सभी,जरा विचारिए।
विचरण करना छोड़ कर इसे,हरदम टालिए।
समय के अनुरूप अब खुद को ,मिलकर ढालिए।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
२५ मात्रिक
१६-९ पर यति
अंत २१२,५ दीर्घ और १५ लघु प्रत्येक पंक्ति में अनिवार्य
बचकर रहना आप सब अब,सुन लो याचना।
हरदम दोनों कर को प्रियवर,नितदिन माँजना।।
घर पर रहकर दुआ करें सब,पावन कामना।
जड़ से अंत करो भगवन तुम,अब यह यातना।
अभिवादन वरदान यह ज्ञान,प्रतिपल बाँटना।
सार्थक जीवन हर पल अब तुम,प्रभु से माँगना ।
अब सब इसका सर्वनाश प्रिय,मिलकर कीजिए।
परहेजकर सभी मनुज गरम,जल ही पीजिए।।
अटल मन की शक्ति से अब यह,सबकुछ सँवारिए।
विकट समय पर ध्यान रख सभी,जरा विचारिए।
विचरण करना छोड़ कर इसे,हरदम टालिए।
समय के अनुरूप अब खुद को ,मिलकर ढालिए।।
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर
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गगनांगना छंद
"महावतारी" जाति(२५ मात्रिक छंद)
जिसमें १६-९ पर यति तथा चरणान्त रगण (२१२) अनिवार्य होता है। छंद के चार पद होते हैं
प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु होना अनिवार्य (५ गुरु×२=१० मात्रा तथा १५ लघु×१ =१५ मात्रा, कुल २५ मात्रा)
इस छंद के दो-दो चरण क्रमागत समतुकांत।
डर-डर कर मत जीवन जीना, मत तुम भागना,
सुख-दुख सकल रहें जीवन भर, तू मत हारना।
सच के पथ पर हरपल चलना, मन को साधना,
निस दिन जप हरि नाम सदा तू, भवजल तारना।
तन-मन दृढ़ कर बन के प्रहरी, रहते जागते,
अरि जब रण में चढ़ कर आये, धरकर मारते।
भयभीत शत्रु फिर रणभूमि से, डर कर भागते,
तज कर भय निज बल धर योद्धा, संकट टालते।
मन चंचल भटकत निसदिन है, बाधित साधना,
चलत बहुत परपंच जगत का, जागत कामना।
चरण शरण मिलती गुरु की जब, दुविधा टूटती,
भगवन तब मन रच बस रहता, माया छूटती।
छल रख कर भरसक मन भीतर, देखो घूमते,
बन कर जन-सेवक छल-बल से, निर्धन लूटते।
धनवान हित करत सुलभ न्याय, निर्बल हारता,
चौपट अधिपति भ्रष्ट नगर कर, संकट डालता।
करत बहुत पर जन की निंदा, निज मन झाँकना,
तज विकार कर उज्ज्वल निज मन, सुंदर भावना।
जप जप हरि हरि भजन सुनत जो, जागे आत्मा,
गुरु कृपा जब भये भगतन पर, मिले परमात्मा।
जितेंदर पाल सिंह
"महावतारी" जाति(२५ मात्रिक छंद)
जिसमें १६-९ पर यति तथा चरणान्त रगण (२१२) अनिवार्य होता है। छंद के चार पद होते हैं
प्रत्येक पद में ५ गुरु और १५ लघु होना अनिवार्य (५ गुरु×२=१० मात्रा तथा १५ लघु×१ =१५ मात्रा, कुल २५ मात्रा)
इस छंद के दो-दो चरण क्रमागत समतुकांत।
डर-डर कर मत जीवन जीना, मत तुम भागना,
सुख-दुख सकल रहें जीवन भर, तू मत हारना।
सच के पथ पर हरपल चलना, मन को साधना,
निस दिन जप हरि नाम सदा तू, भवजल तारना।
तन-मन दृढ़ कर बन के प्रहरी, रहते जागते,
अरि जब रण में चढ़ कर आये, धरकर मारते।
भयभीत शत्रु फिर रणभूमि से, डर कर भागते,
तज कर भय निज बल धर योद्धा, संकट टालते।
मन चंचल भटकत निसदिन है, बाधित साधना,
चलत बहुत परपंच जगत का, जागत कामना।
चरण शरण मिलती गुरु की जब, दुविधा टूटती,
भगवन तब मन रच बस रहता, माया छूटती।
छल रख कर भरसक मन भीतर, देखो घूमते,
बन कर जन-सेवक छल-बल से, निर्धन लूटते।
धनवान हित करत सुलभ न्याय, निर्बल हारता,
चौपट अधिपति भ्रष्ट नगर कर, संकट डालता।
करत बहुत पर जन की निंदा, निज मन झाँकना,
तज विकार कर उज्ज्वल निज मन, सुंदर भावना।
जप जप हरि हरि भजन सुनत जो, जागे आत्मा,
गुरु कृपा जब भये भगतन पर, मिले परमात्मा।
जितेंदर पाल सिंह
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गगनांगना छंद( महावतारी जाति )
25 मात्रिक छंद
16वी 9वी मात्रा पर यति
चरणान्त रगण (212)अनिवार्य ।
प्रत्येक पद पर 5 गुरु 15 लघु अनिवार्य
11 11 1111 211 22 , 11 11 212,
जग यह हरदम राज पुराना ,मन मत तोड़ना ,
फुरसत न अब यहाँ जग बंधा,मुख मत मोड़ना,
हित कर जगत यहाँ अब दाता,तुम सब जोड़ना,
घर घर मन सब का अब जागे, दुख सब छोड़ना ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
25 मात्रिक छंद
16वी 9वी मात्रा पर यति
चरणान्त रगण (212)अनिवार्य ।
प्रत्येक पद पर 5 गुरु 15 लघु अनिवार्य
11 11 1111 211 22 , 11 11 212,
जग यह हरदम राज पुराना ,मन मत तोड़ना ,
फुरसत न अब यहाँ जग बंधा,मुख मत मोड़ना,
हित कर जगत यहाँ अब दाता,तुम सब जोड़ना,
घर घर मन सब का अब जागे, दुख सब छोड़ना ।
रजिन्दर कोर (रेशू)
अमृतसर
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