Wednesday, March 18, 2020

रोला- छंद - Hindi poetry


Explained By Smt. Ragini Garg ji , Rampur U.P.
नमन साहित्य अनुरागियो।
होली चली गयी अगले वर्ष फिर वापस आने का वादा करके मुझे पूर्ण विश्वास है इस होली पर सबने खूब मस्ती और धमाल किया होगा मैंने तो बहुत मजा किया वृन्दावन धाम जाकर भी और घर पर भी, क्योंकि यह मेरा यानि की आपकी प्रिय दोस्त रागिनी का सबसे पसन्दीदा त्योहार है।चलिये अब इस मस्ती से बाहर निकलकर काम की बात पर आते हैंऔर रचते हैंअपनी कलम से कुछ सुन्दर -सुन्दर रचनाएँ रोला छन्द पर ।जी आप सही समझे! मात्रिक छन्दों की श्रृंखला को आगे बढा़ते हुये हम सब सृजन करेंगे 24 मात्रिक रोला छन्द पर तो उठाइये लेखनी और बिखेरिये साहित्य में रंग रोला के संग

रोला-  छंद
यह 24 मात्रिक अवतारी जाति का मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते है। चारों चरणो के अंत मे तुक अनिवार्य है। चारो चरण भी समतुकांती हो सकते है या दो दो चरण समतुकांती हो।
प्रत्येक चरण मे11,13 मात्रा पर यति होती है।इसके विषम पदो मे मात्रा क्रम 4,4,3 या
3,3,2,3 तथा सम चरणों मे मात्रा क्रम 3,2,4,4 या 3,2,3,3,2 रखने से लय अच्छी बनती है। जिस रोला के सभी चरणो की 11वी मात्रा लघु होगी उसे काव्य छंद कहा गया है।
कुछ साहित्यकार रोला के विषम चरणो मे दोहे के सम चरण के अनुरूप विषम चरणांत गुरु लघु वर्ण को बेहतर मानते है।इससे लय बेहतर बनती है।
रोला के अंत मे दीर्घ वर्ण अनिवार्य है।इसके अंत मे लघु वर्ण रखने से बचना चाहिए।
रोला के सभी सम चरणांत अगर दो गुरु हो तो वह अति उत्तम जाति का रोला माना जाता है। अगर सम चरणांत केवल एक गुरु है , तब मध्यम श्रेणी का और अगर समचरणांत केवल लघु है तो निम्न श्रेणी का रोला समझा जाता है।

रोला की चौबीस,कला यति शङ्कर तेरा।
सम चरणन के आदि, विषम सम कला बसेरा।।
रामकृष्ण गोविन्द, भजे पूजत सब आसा।
इहां प्रमोद लहंत, अंत बैंकुंठ निवासा।
*कृमशः भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु
211 111 121 211 121 121 1 अनुसार कुल24 मात्रा क्रम होने पर इसे रसाला वृत्त भी कहा जाता है।
रोला के कुछ उदाहरण मेरी कलम से

रोला छन्द
(1)अक्षर पढ़ कर चार,
समझता खुद को ज्ञानी।
बदला है व्यवहार,
अरे!मूरख अज्ञानी ।
अच्छा रख बर्ताव ,
सभी जन तुझको चाहें।
रख रिश्तों में चाव,
सरल हो जायें राहें।।

(2) कर सबसे लो प्यार ,
बोल लो मीठी बोली।
अंहकार को मार,
बनो सबके हमजोली।
जीवन के दिन चार ,
उठेगी डन्डा डोली।
मिथ्या है संसार,
जलेगी सबकी होली।।
रागिनी गर्ग
रामपुर यू.पी.

(3)चतुर बहुत है श्याम ,
किशोरी मेरी भोरी।
लीनो चैन चुराय,
लली ने चोरी चोरी।
तीन लोक के देव,
बने वाके चपरासी।
फाँस प्रेम मे लियो,
देख के आवे हाँसी।।
रागिनी गर्ग
रामपुर यू. पी.

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रोला छंद
२४ मात्रिक (११-१३ पर यति)
रचना क्रम
बिषम पद
४+४+३ या ३+३+२+३
सम पद
३+२+४+४ या ३+२+३+३+२
दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत
- १-
सैनिक सरहद साज, सफलता सुन वर लाना,
दुश्मन दहले देख , छठी का दूध पिलाना।
गौरव गाथा गान , वरण कर आगे बढ़ना ,
चेतक से भी तेज , सुनो चोटी पर चढ़ना।।

-२-

छोटे बच्चे आज, सिखाते पाठ गुरू जी,
कैसी चलनी देख,हुआ है आज शुरू जी।
आपस में है होड़, मची सुन दुनियाँ सारी,
खोजे सारे तोड़, करोना की बीमारी।।

-३-
पोथी है सम्मान ,समझ मत इसको दूजा,
पाना हो जो मान,करो नित इसकी पूजा।
पढ़ना आता काम , पढ़ाई सबसे अच्छी,
जग में होता नाम, संगिनी सबसे सच्ची।

-४-
आदत से मजबूर,हुए देखो ये नेता,
बिकती टिकटें रोज,बने अद्भुत ये क्रेता।
जनता रोये देख,बना नौकर ही स्वामी,
उल्टा पुल्टा दौर,गधा घोड़ा सम नामी।।

अभय कुमार आनंद
विष्णुपुर,बाँका, बिहार व
लखनऊ,उत्तरप्रदेश

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रोला छंद(अवतारी जाति)
24 मात्रिक छंद
11,13 पर यति।

सर्वोपरि निज स्वार्थ, मनुज मन की अभिलाषा।
भूला सब परमार्थ, कहत रसना कटु भाषा।।

पर-निन्दा में लिप्त, स्वयं की करे प्रशंसा।
सोचे पर का अहित, मलिन दूजे प्रति मंशा।।

मलिन काग आहार, कर्णकटु तान सुनाये।
मनुज द्वेष तस धार, अकारण क्लेश मचाये।।

कहे बहुत कटु बोल, क्रोधवश हृदय दुखाये।
अज्ञानता मन घोल, व्यर्थ ही जन्म बिताये।।

दम्भ लोभ मन त्याग, ह्रदय हरि नाम बसाया।
चरण शरण गुरु लाग, भक्त हरि नाम समाया।।

पर का भूले मान, मनुज मद में जब आये।
झूठे बोले बैन, ह्रदय पर-निंदा भाये।।

छोड़ो बीती बात, कुशल-मंगल सब मानो।
हाथों में लो हाथ, मित्र अपने सब जानो।।

छूटेंगे सब लोग, मृत्यु जिस दिन भी आई।
मन में धारो जोग, नाम हरि का लो भाई।।

जितेंदर पाल सिंह

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रोला छ्न्द
24 मात्रिक 11,13 पर यति
विषम पद
4+4+3 या 3+3+2+3
सम पद
3+2+4+4 या 3+2+3+3+2

रचना
4 4 3 , 3 2 4 4
आओ लिखते आज , सभी मिल कर के रोला।
देखो बरसे आज , गगन से भारी ओला ।
गिरती है प्रभु गाज , किसानों का मन बोला।
कर दो पूरण काज , ‌सुनो ओ मेरे भोला ।
.....

फैली चारों ओर , महामारी कोरोना।
ये है कैसा रोग , मचा है सबका रोना ।
जोड़ों सबसे हाथ, स्वच्छता रखना घर में ।
कुछ दिन की है बात ,दूर ही रहना जन में।

सिम्पल काव्यधारा
प्रयागराज

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रोला छंद(अवतारी छंद,२४ मात्रिक,१३-११,दो चरण या चारो चरण समतुकांत,
 गेयता अनिवार्य तत्व

१भौरों का गुंजार,हृदय सबको सुख देता।
पीकर मधु मकरन्द,अमिय सुख मधुरिम लेता।।
कह कृष्णा कविराय,बजे मन में अब सरगम।
सुख देता अविराम,प्रिये,यह यौवन अनुपम।।

२-रँग दो अपने नेह,कंत मत मुझको टालो।
अमिट रंग इस फ़ाग,बलम मुझ पर तुम डालो।।
कह कृष्णा कविराय,सदा आनन यह दमके।
यह कपोल रतनार, सजन जीवन भर चमके।।

३-बहती अविरल धार, नदी का पानी पीते।
पशु-पक्षी अरु मनुज,सभी जीवन को जीते।।
कह कृष्णा कविराय, नदी लगती मनभावन।
संरक्षित कर इसे,सभी हम रखते पावन।।

कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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रोला छ्न्द
24 मात्रिक 11,13 पर यति
विषम पद
4+4+3 या 3+3+2+3
सम पद
3+2+4+4 या 3+2+3+3+2


रोला...(२४ मात्रिक छंद,दो या चारों चरण सम तुकांती,अंत दो गुरु अनिवार्य)

४ ४ ३/ ३ २ ४ ४

हो गुमसुम जब रैन,बजत है पायल प्यारी।
साजन पावे चैन, सुहावे रुनझुन न्यारी।
डर का छाया जाल, लोग है सारे जागे।
मन होता बेहाल,सुखी जीवन से भागे।।

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अपनों से वो दूर,अनोखी माया उसकी
देश प्रेम से चूर, समर्पित काया जिसकी।।
जान देश पर वार, देश की रक्षा करता।
चढा शस्त्र पें धार, रंग यौवन मे भरता।।


सुवर्णा परतानी
हैदराबाद

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रोला छंद:-यह 24 मात्रिक अवतारी जाति का मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते है। चारों चरणो के अंत मे तुक अनिवार्य है। चारो चरण भी समतुकांती हो सकते है या दो दो चरण समतुकांती हो।
प्रत्येक चरण मे11,13 मात्रा पर यति होती है।
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उठे काव्य के वीर,छंद-वल्गा ले आए।
गहे भाव परिधान,समर में छंद घुमाए।।
उठे वीर मतिमान,भावित-अंजली ले के ।
शब्दाक्षर शमशीर,सजग थे निद्रा दे के ।।

छंद अनैक महान, शिखर साहित्य धरा के।
रसिक शिरोमणि जान,उपल है दिव्य विधा के।।
भर दें भाव सुजान,विध सुविध रसमणि नाना।
दिव्य-दिव्य राकेश,काव्य-अंचल परिधाना।।

नेह-सरि व्यवहार,जलधि सम गहन गभिरा।
सराबोर आख्यान,जीव्हा दृग मूक बधिरा।।
का का करो बखान,कही कब जाय बखानी।
वंद्य वंद्य है वीर, वंद्य वंदित शुचि बानी।।
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#रागिनी_नरेंद्र_शास्त्री

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